प्रश्न: सर, मैं वर्तमान में कैसे जियूँ, बिना भविष्य के बारे में सोचे?
वक्ता: जो है, सामने ही है| उसमें ‘कैसे’ का प्रश्न क्या है? तुम पूछ रहे हो कि कैसे वर्तमान में जियूँ, कैसे न भटकता रहूँ भविष्य में|
कैसे का क्या प्रश्न है? जो है सो सामने है| अच्छा, अभी मेरी बात सुन रहे हो?
श्रोता १: हाँ।
वक्ता: कैसे? कैसे सुन रहे हो? सिर के बल खड़े होकर सुन रहे हो? प्राणायाम करते हुए सुन रहे हो? कुछ कर रहे हो क्या सुनने के लिए या बस सुन रहे हो? कोई विधि अपना रहे हो सुनने की? क्या हाथ सिर के पीछे ले जा कर कान पकड़ा तब सुनाई पड़ा? कैसे का क्या प्रश्न है?
तुम कह रहे हो वर्तमान में रहना है, तो रहो! उसमें विधि क्यों चाहिए? जो लोग सुन रहे हैं, देख रहे हैं, मैं उनसे पूछ रहा हूँ। कैसे ?
तुमने क्या-क्या तरीके अपनाए हैं सुनने के लिए? बताओ, कोई तरीका है ?
सभी श्रोता(एक स्वर में): नहीं, सर।
वक्ता: कोई तरीका है ही नहीं। और ये बड़े मज़े की बात है। ये बात तुम्हें बड़ा हल्का कर देगी कि कोई तरीका है ही नहीं, बस जियो।तुम्हें दोष नहीं दे रहा हूँ क्योंकि तुमने जो शिक्षा पायी है, वो सिर्फ तरीकों की है| और हर तरीके का मतलब होता है, ‘चालाकी’! कोई चाल चलनी पड़ेगी तब काम होगा| कोई तुम्हारे सामने खड़ा हो और तुम्हें दस रुपए चाहिए हों तो तुम उससे सीधे निवेदन नहीं कर पाओगे कि दस रुपए दे दीजिये क्योंकि उसमें अहंकार को चोट लगती है, कि सीधे कैसे बोल दूँ कि महोदय दस रूपये हों, तो दे दीजिये| तुम चाल चलोगे! और जब चाल चलनी होती है तो प्रश्न उठता है कि ….?
श्रोता १(एक स्वर में): कैसे?
वक्ता: कैसे? तब मन जुगत लगाएगा। तुम उसको कहोगे कि देखिये मैं जादूगर हूँ, दस का सौ करना जानता हूँ, ज़रा दीजियेगा दस | बहुत सारे कैसे पैदा हो जाएंगे, एक से बढ़कर एक विधियाँ निकाल लोगे तुम।
पर विधि की ज़रूरत क्या है? चीज़ सामने है, वर्तमान सामने है; जियो।
अभी सुन रहे हो न? सुनो। अभी चलोगे तो चलो, खाओगे तो खाओ। कैसे का क्या मतलब है। खाया कैसे जाता है बताओ। और कोई होते हैं जो विशेष विधि लगाकर खाते हैं, कि कान के माध्यम से या कहीं और से।
(सभी हँसते हैं)
बस हल्के रहो, और कोई विधि नहीं है| कोई और विधि है ही नहीं, ये सोचो ही मत की जीवन जटिल है| जीवन में जटिलताएं नहीं हैं, मन में हैं जटिलताएं| मन को हल्का रखो, जीवन हल्का रहेगा |
जीवन में समस्याएं नहीं हैं, मन है समस्या ! तो जीवन को सुलझाने की कोशिश भी मत करना, मन ही समस्या है, मन को ही सुलझा दो |
मन को सुलझाने का ही नाम है हल्के रहना, बस हल्के रहो| कोई विधि नहीं चाहिए, कोई फार्मूला नहीं है, कोई जुगाड़ नहीं है, कोई मंत्र नहीं है, कोई विशेष ट्रेनिंग नहीं है, कुछ छुपा हुआ रहस्य नहीं है, सब प्रस्तुत है| कुछ ऐसा नहीं है जो तुमसे छुपा हुआ है| बड़े से बड़े विद्वान ने जो जाना है, वो तुम्हारे लिए भी उपलब्ध है, सामने ही है| उसने भी इन्हीं हवाओं को, आकाश को, पक्षियों को देखकर जाना| वो सब तुम्हें भी उपलप्ध है| कैसे का कोई प्रश्न ही नहीं है, सब सामने है |
‘आँखें खोलो और देख लो’ | कोशिश बहुत ज़्यादा करो ही नहीं| हल्के रहो बस| काम हो गया तुम्हारा |
ठीक है ?
-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।