आचार्य प्रशांत: जो बातें मैं कह रहा हूँ अगर उनमें कुछ दम, कुछ फ़ौलाद समझ में आता है तो उसको अपनी ज़िन्दगी में उतार लें, मेरा उदेश्य पूरा हो जाएगा। और अगर वो फ़ौलाद आप ज़िन्दगी में नहीं उतार रहे हो और बस “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु” कर रहे हो तो करते रहो, कुछ नहीं होना है। ये शिष्य इत्यादि बनना भी न कई बार बड़े फ़रेब की बात हो जाती है कि हमारी ज़िम्मेदारी तो पूरी हो गयी। हम क्या बन गये? शिष्य। आगे का कौन देखेगा? ‘अब आगे का गुरु जी देखेंगे न।’ गुरु जी कुछ नहीं देख सकते, क्या देखेंगे।
कुछ शेर लिखे थे मैंने बीस साल पहले वो भी कल डायरी खुली तो सामने आये। मैंने लिखा था,
मेरी तारीफ़ से गमगीन न करो मुझे काबिल-ए-तारीफ़ मैं तुम्हें चाहता हूँ।
“मेरी तारीफ़ से गमगीन न करो मुझे, काबिल-ए-तारीफ़ मैं तुम्हें चाहता हूँ।” बार-बार बोलोगे, ‘आचार्य जी, ये, वो।’ तुम बोलोगे, ‘आचार्य जी महान हैं।’ आचार्य जी क्या हैं वो जानते है कि तुम जानते हो? बोलो। मैं जानता हूँ न मैं क्या हूँ। तुम मुझे ही मेरे बारे में कुछ बताना चाहते हो, ‘आचार्य जी महान हैं।’ अगर तुम ये बोल सकते हो, ‘आचार्य जी महान हैं’ तो कल तुम ये भी बोल सकते हो कि आचार्य जी लफ़ंगे हैं। अगर मैं ये मान लूँ तुम्हारे कहने से, तुम्हारे मुहँ की बात कि आचार्य जी महान हैं तो तुम कल ये भी बोल सकते हो, ‘आचार्य जी गधे-घोड़े हैं,’ मुझे वो भी मानना पड़ेगा। मैं काहे को मानूँ और तुम्हें पता कितना है मेरे बारे में? तुम्हें अपने बारे में कितना पता है कि मेरे बारे में पता हो जाएगा?
मुझे ये सब मत बताओ कि मुझे देखकर के तुम्हें दिव्यता की अनुभूति होती है इत्यादि-इत्यादि। तुम आईने में अपनेआप को देखो, उससे तुम्हें दिव्यता की अनुभूति हो तो अच्छी बात है; मुझे देखकर जो अनुभूति होती है वो रातों-रात बदल भी सकती है। हाँ, अपनी ज़िन्दगी के बारे में ईमानदार रहो तो वहाँ कुछ मिलेगा जो बिलकुल पक्का होगा, रॉक सॉलिड (पत्थर जैसा ठोस)। वो नहीं बदलेगा। और लिखा था,
”मुझे बात करने से रोकते हो तुम, तुम बात कर सको यही बात चाहता हूँ।”
तो मतलब बात मेरे बारे में नहीं है, बात आपके बारे में है। आप बात कर सको न, तो कुछ बात बनी। और अंदाज़ तो बाँका था बीस साल पहले भी, अब ये बीस-इक्कीस साल का छोकरा है जिसने लिखा है, “उम्र काफ़ी हो गयी थोड़ा ही ज़िन्दा बचा हूँ,”
”उम्र काफ़ी हो गयी थोड़ा ही ज़िन्दा बचा हूँ, पुण्य काफ़ी कर लिये कुछ पाप चाहता हूँ।”
ये बात अभी भी लागू होती है। ठीक है?
”सीखा बहुत कम है तालीम है अधूरी, इस घने जंगल में आदमजात चाहता हूँ।”
यही चाहता हूँ इसे ज़्यादा कुछ नहीं; बार-बार बात करता हूँ न जंगल की, गोरिल्ला की तो “इस घने जंगल में आदमजात चाहता हूँ”, बस यही है। जहाँ तक मेरी बात है मैंने सीखा वाकई बहुत कम है, वाकई तालीम अधूरी है। मुझे इस तरह का कोई मुगालता नहीं है कि मैं अवतार हूँ या जो कुछ भी, कई बार आप लोग बोल जाते हैं। न। बिलकुल भी नहीं। जंगल से निकल आओ, गोरिल्ला से आदमी बन जाओ, यही बहुत बड़ी बात है।
2016 में ऋषिकेश में पहला मिथ डिमोलिशन टूर (मिथक भंजन यात्रा) हुआ था तो वहाँ जितने घूम रहे थे ऋषिकेश में उन सबको इनलाइटनमेंट (प्रबोधन) चाहिए था और सब वहाँ पहुँचते ही यही है सब विदेशी, ’इनलाइटनमेंट इनलाइटनमेंट’! तो मैंने पोस्टर छपवाया एक, उसमें लिखवाया, ‘फॉरगेट इनलाइटनमेंट बी ह्यूमन फर्स्ट’।
”इस घने जंगल में आदमजात चाहता हूँ।”
छोड़ो न इनलाइटनमेंट, आदमी तो बन जाओ। आज भी वही बात कह रहा हूँ, गोरिल्ला से इंसान बन जाओ, बहुत है। इनलाइटनमेंट का करोगे क्या? खयाली पुलाव।
”तुम्हारी हसरत मैं बन न पाऊँगा, तुम्हारी हसरतें मैं आबाद चाहता हूँ।”
मुझे अपनी हसरत मत बना लो। मुझे हसरत मत बनाओ, मैं भी मिट्टी का ढेला हूँ तुम्हारी ही तरह। अपनी हसरत उसको बनाओ जो आबाद कर देगा तुमको। “तुम्हारी हसरत मैं बन न पाऊँगा, तुम्हारी हसरतें में आबाद चाहता हूँ।” मुझको अपनी हसरत बना लोगे तो बर्बाद हो जाओगे। ‘मैं’ माने ये जो व्यक्ति बैठा है यहाँ, ये जो देह बैठी है (अपनी ओर इशारा करते हुए), इसको बहुत महिमामंडित मत करो।
और इसमें जो पहला शेर है वो है,
”दायरों में बाँध लो तुम ज़िन्दगी मेरी, मैं बस एक दायरा अपना चाहता हूँ।”
उसी दायरे का नाम है ‘प्रशांत अद्वैत फाउंडेश’। अगर पैदा हुए हैं तो हज़ार वृत्तों में तो बँधना ही पड़ेगा न। वृत्त माने ही दायरा होता है, कि वृत्तियाँ तो अब रहनी-ही-रहनी हैं, जीवन भर रहनी हैं। जो पैदा हुआ है उसको रहेगी-ही-रहेगी। जन्म लिये का दंड है, “जो जन्मे सो रोए”।
तो ”हज़ार दायरों में तुम बाँध लो ज़िन्दगी मेरी, मैं बस एक दायरा अपना चाहता हूँ।” ये सब तो चलता ही रहेगा जो देह का, वृत्तियों का, विकारों का खेल है उससे हटकर के कुछ अच्छा भी कर लो बस इतनी ख्वाहिश है। तो कृपा करके पर्सनल ग्लोरिफिकेशन (व्यक्तिगत महिमामंडन) जैसा न करें, न किसी को करने दें। हिन्दुस्तान ने देखिए, इस बात का भी खूब खामियाजा भुगता है, और मत करिएगा। एक ताकतवर ज़िन्दगी जियें आप। ठीक है?
बस इतना बहुत है। और कुछ है क्या ज़िन्दगी में पाने को, बताओ न? आप कर लो बहुत बड़ी-बड़ी बातें, ये सब बड़ी-बड़ी बातें लेकर एक दिन सो जाओगे।
मिट्टी के हो मिट्टी को ही जाना है, बीच में ये क्या इतना बखेड़ा और बहाना है? शान्त, सरल, आज़ाद जीवन बिताओ, बहुत है। बाकी कुछ नहीं।
ठीक है?