गीता मत पढ़ना, बच्चा! || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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गीता मत पढ़ना, बच्चा! || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: एक मुहावरा चल गया है कि अरे किताबों में क्या है वहाँ तो खोखले और थोथे शब्द हैं, असली ज्ञान तो भीतर है, बच्चा ध्यान करो। गीता उठाकर के कचरे में डाल दो, बच्चा ध्यान करो और असली ज्ञान भीतर से निकलेगा। मेरे पास शब्द नहीं हैं इस प्रकार की मूर्खता का उत्तर देने के लिए वाकई, कि, "बच्चा ध्यान करो, गीता छू मत देना, असली ज्ञान तो तुम्हारे भीतर से निकल जाएगा!" तुम्हारे भीतर जानते नहीं हो क्या है? मल, मवाद, मूर्खता।

अभी कुछ दिनों पहले एक सज्जन का संदेश आया था कि, "अरे! कृष्ण भी तो एक व्यक्ति ही थे। क्या भरोसा है, कि उन्होंने जो बातें बोलीं वो ठीक हैं? हम कृष्ण से आगे क्यों नहीं निकल सकते? हम कृष्ण से बेहतर क्यों नहीं सोच सकते?" अच्छा हुआ इन्होंने संदेश ही भेजा था।

अच्छा हुआ कि महामारी के चलते आजकल लोगों का मेरे सामने बैठना वर्जित है। नहीं तो महाराज मेरे सामने बैठकर बताते कि मैं कृष्ण से ऊपर का हूँ, कृष्ण एक इंसान ही तो थे, मैं उनसे ऊपर की बात करूँगा, तो मैं उनको बिलकुल ऊपर ही रखता बात करने के लिए। बात करते-करते ऊपर पहुँचाता।

मैं आपकी संभावना से इंकार नहीं कर रहा हूँ। निश्चित रूप से आपमें कृष्ण जैसी संभावना हो सकती है लेकिन अपने यथार्थ को तो देखो पहले। संभावना तो ठीक है। संभावना रूप में तो हम सब सत्य मात्र हैं, परम ब्रह्म हैं लेकिन उस संभावना से क्या होता है, अपनी ज़िंदगी को तो देखो। देखो जी कैसे रहे हो, अपनी हस्ती को देखो, उसके बाद तुम कह रहे हो, "मैं कृष्ण से आगे निकल जाऊँगा!"

पहले तुम वो तो समझ लो जो कृष्ण ने कहा है, आगे निकलने की बात तो बहुत बाद की है। पर अनादर! गीता के प्रति अनादर, सब ग्रंथों के प्रति अनादर। और ये अनादर फैलाने में सबसे आगे हैं आजकल के जितने व्यवसायी और पेशेवर गुरु लोग हैं। क्योंकि इनका धंधा चलेगा नहीं अगर तुम्हें गीता समझ में आ गयी, इतना बताए देता हूँ।

ये सिर्फ उस दिन तक चल सकते हैं जिस दिन तक तुम कृष्ण से दूर हो। जिस दिन तुमको कृष्ण और अष्टावक्र समझ में आने लग गए, गुरु महाराज का धंधा तुरंत बंद हो जाएगा क्योंकि तुम्हें दिख जाएगा कि ये गुरु महाराज एक नंबर के ठग हैं। गुरु महाराज तो मौज करके निकल लेंगे, उनका तो काम था जीवन का सुख भोगना। तुम्हें खूब बेवकूफ बनाया उन्होंने, जीवन में खूब सुख भोगा। दस-बीस-चालीस साल और जीएँगे अपना, निकल लेंगे, मज़े मारेंगे।

रोज तुम्हें बुद्धू बनाकर के वापस जाते हैं और पेट हिला-हिलाकर खूब हँसते हैं कि आज फिर पूरे हिंदुस्तान को बेवकूफ बनाया मैंने। वो निकल लेंगे, रह जाएँगे पीछे धर्म के खण्डित और दूषित अवशेष। उनका तो कुछ नहीं, उन्होंने तो मज़े मार लिए, लेकिन नुकसान वो धर्म का बहुत बड़ा कर जाएँगे और कर गये हैं। ये है सबसे बड़ा ख़तरा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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