दहेज का सही नाम || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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दहेज का सही नाम || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आप कभी दहेज जैसी कुप्रथा के ऊपर कुछ क्यों नहीं बोलते?

आचार्य प्रशांत: विचार नहीं आया कि इस पर भी अलग से कुछ बोला जाना चाहिए। संबंधों पर खूब बोला है, प्रेम पर बोला है, माया पर बोला है, लालच पर बोला है, झूठ पर बोला है। असल में एक तल से नीचे की चीज़ का ख़्याल आना मुश्किल हो जाता है। पर अब पूछा गया है तो ज़रूर बोलेंगेंl

मेरे लिए कल्पना करना ही मुश्किल है कि कोई किसी का साथ पैसे लेकर के करेगा। तो मैं कैसे बोलूँ इसपर? मैं मुश्किल पाता हूँ, इस बात को कल्पित करना, उस आदमी की शक्ल को चित्रित करना, जो कह रहा है कि मैं किसी के साथ हो सकता हूँ, लम्बे समय के लिए, उम्र भर के लिए भी अगर मुझे पैसे मिलेंगे। और पैसे नहीं मिलेंगे तो नहीं होऊँगा। ये थोड़ा-सा विचार से बाहर की बात है तो शायद इसलिए नहीं बोला आज तक​।​

और मेरे लिए मुश्किल है ऐसी महिला की भी कल्पना करना जो किसी ऐसे पुरुष के घर जाकर के बैठ जाती है, उसके बर्तन माँज रही है, उसके बच्चे पैदा कर रही है, जिसने उससे संगति करी थी पैसे लेकर केl तो इसपर मेरे लिए चुटकुला बनाना आसान है, उत्तर देना थोड़ा तक़लीफ का काम हैl मैं क्या बोलूँ? मतलब, क्या बोलूँ? इसपर किसी को झापड़ मारा जा सकता है, ज़वाब नहीं दिया जा सकताl

कोई आपके पास आकर के बोले कि मैं तुम्हारा हो सकता हूँ पर दस लाख देना पहले या बोले कि देखो अब मेरी फ़लानी नौकरी लग गई है तो मेरा रेट बढ़ गया है। ऐसे आदमी को विवाह मंडप में थोड़े ही ले जाओगे, उसको पागलखाने ले जाओगेl

तो ये चीज़ ऐसी है जिसको क्या समझाऊँ मैं? इसमें आत्मा-परमात्मा समझाऊँ मैं, इसमें मन, चेतना, समाधि समझाऊँ; मैं क्या बोलूँ? कैसे झेलते होंगे ऐसे लोग एक-दूसरे को? कैसे कुछ साल भी साथ रह लेते होंगें? वो जिस गाड़ी पर चल रहा है, वो दहेज में लाई है; चला कैसे लेता है? वो जिस बिस्तर पर सो रहे हैं, वो दहेज में लाई है; तुम्हें उत्तेजना भी कैसे हो पाती है? तुम्हें सेक्सुअल एक्साईटमेंट (यौन उत्तेजना) भी कैसे होगा, ख़्याल नहीं आएगा कि ये बिस्तर क्या चीज़ है?

आप कुछ मेरी मदद कर सकते हों तो बता दीजिए। मेरे मिले तो बड़ा असंभव है इसपर बहुत टिप्पणी करना। प्रेम तो बहुत-बहुत दूर की बात है, यहाँ तो खेल नफ़रत का भी नहीं है; ये तो सीधे-सीधे सौदेबाज़ी हैl रिश्ते की शुरूआत से ही इस बात की तैयारी है कि रिश्ते में प्रेम तो कभी हो ही नहीं सकता। और फिर ऐसे रिश्ते से संतानें जन्म लेंगीं, वो कैसी होंगीं? और फिर जिस लड़की से तुम दहेज माँग रहे हो, तुम्हें उससे सम्मान भी चाहिए; वो कैसे सम्मान दे लेगी तुमको? कैसे?

ये लड़की कैसी है जिसने स्वीकार कर लिया ऐसे के साथ जाना? और इसे पहले भी तो पता रहा होगा न कि बाप महोदय दहेज के लिए पैसा जोड़ रहे हैं; ये उस संग्रह को अपनी मूक सहमति देती कैसे रही? जानती तो रही ही होगी कि ये सब पैसा मेरे लिए जोड़ा जा रहा है, इसने विरोध क्यों नहीं किया? भाग ही काहे नहीं गई, उसी दहेज वाले पैसे में से कुछ निकाल के? ये ज़्यादा अच्छा है, सदुपयोग हैl

प्र२: आचार्य जी, सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहता हूँ, मैं इसपर अपना विचार रख रहा हूँ और मैं इस प्रथा के बिलकुल ही ख़िलाफ हूँ लेकिन फिर भी मैं अपने विचार रख रहा हूँl

इसमें जैसा कि आपने कहा कि लड़का-लड़की आपस में संबंध कैसे स्थापित कर पाते हैं , लेकिन इसमें लड़के और लड़की से ज़्यादा उनसे जुड़ा हुआ जो समाज है, उसकी सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका है इस कुप्रथा को आगे बढ़ाने में। तो उस सामाजिक दबाव में, माता पिता की वजह से या जिस परिवेश में रह रहे हैं, उसके दबाव में आकर के ये प्रथा जो है, चलती ही जा रही है। तो उसमें लालच भी है, तुलना भी हैl

एक-दूसरे से तुलना लोग करते हैं कि नहीं, ये आपका बेटा है उसको इतना मिला और फिर जो ये मेरा बेटा है इसको कितना। तो इस तरीके की तुलना और लालच, दहेज को जन्म देती हैl तो इसमें मैं समझता हूँ कि लड़की-लड़के का ज़्यादा रोल नहीं है बल्कि समाज और अभिभावक की भूमिका ज़्यादा है।

आचार्य: (व्यंग्यपूर्वक हँसते हुए) तो और ताज्जुब की बात हो गई (श्रोतागण हँसते हैंl ये लड़का कैसा है जिसके नाम पर दूसरे पैसा ऐंठ रहे हैं? पुरुष कहलाने योग्य है ये कि इसके नाम पर दूसरे जाकर के पैसा ऐंठ रहे हैं, वो भी किससे? इसकी होने वाली पत्नी सेl ये तो और ज़्यादा गिरी हुई बात हैl कोई स्वाधीन व्यक्ति तो ये होने नहीं देगा अपने साथl

और दूसरी बात ऐसा भी नहीं है कि समाज के दबाव में हो रहा हैl आप जो दहेज लेते हो, समाज को जाता है क्या? उस पैसे से मज़े तो ख़ुद ही करते हो नl ऐसा थोड़ेही है कि वो गाड़ी समाज के लिए ली हैl गाड़ी लेकर समाज सेवा में लगा देते हैं क्या?

तो पैसा तो ख़ुद ही भोगते हो कि नहीं? दहेज में बिस्तर आया है, उस पर चचा-ताऊ थोड़े ही सोते हैंl तो समाज वगैरह की कोई बात नहीं है, और समाज माने क्या? समाज में तो हम भी हैं। हमसे पूछ लिया करो कितना दहेज लेना है। किस समाज की बात कर रहे हो? समाज तो हम स्वयं बनाते हैं अपना, स्वयं चुनते हैंl

रिश्तेदारों की भी बात कर रहे हो तो अपने सब रिश्तेदारों को बराबरी की अहमियत देते हो क्या? जो कोई निकल जाए बिलकुल ही गिरे हुए स्तर का रिश्तेदार, उससे तो संबंध तोड़ ही लेते हो न? तो ये तो तय करना तुम्हारा ही काम है कि रिश्तेदारों में किसकी सुननी है किसकी नहींl और ये बात मुझे और अभी ताज्जुब की लग रही है कि किसी का रिश्तेदार उसे इतना मज़बूर कर सकता है कि वो कह रहा है, मुझे दहेज चाहिए।

कैसे? ऐसी क्या मज़बूरी है?

पर फिर बात अगर — जैसे कह रहे हैं — बढ़ाएँगे, तो फिर व्यापक तौर पर देखो तो फिर सब समझ में आ जाएगाl मज़बूरी क्या है, तैयारी हैl उसने जान लगाकर के नौकरी ही इसीलिए हासिल करी थी कि इस नौकरी में ज़्यादा दहेज मिलता हैl लड़की की आधी परवरिश ही इस हिसाब से हुई थी कि ऐसी हो जाएगी तो इसके लिए सरकारी नौकर मिल जाएगा या डॉक्टर मिल जाएगाl

तो वो ऐसा थोड़े ही है कि किसी एक पल का निर्णय है दहेज लेने या देने का; वो तो पीछे से प्रक्रिया ही पूरी चल रही है नl लड़की जिस दिन पैदा हुई थी, उसी दिन उसके नाम पर एफ डी (फिक्स्ड डिपाजिट अर्थात सावधि खाता) खोल दी गई थीl और लड़का पैदा ही ऐसे हुआ था कि पहले तीन लड़कियों का गर्भपात कराया गया था, तब वो लड़का पैदा हुआ थाl

जो लड़का पैदा ही इस हिसाब से हुआ है कि तीन बार गर्भपात कराया गया क्योंकि लड़कियाँ थीं, इस लड़के के लिए दहेज वसूलेंगे कि नहीं वसूलेंगे इसके माँ-बाप? उन्हें दहेज नहीं वसूलना होता तो तीन बार गर्भपात क्यों कराया होता पहले? तो कहानी बहुत पुरानी है, बहुत पीछे से चल रही हैl

जानते हो! अधिकांश परिवारों में — भारतीय मध्यम वर्ग की बात कर रहा हूँ —जो सबसे छोटा बच्चा होता है, वो क्या होता है? लड़काl मतलब समझते हो? या तो इतनी लड़कियाँ पैदा की गईं इस उम्मीद में कि लड़का आ जाए, फिर जब लड़का आ गया तो रोक दिया गया कार्यक्रमl या फिर लड़कियों की हत्या करते गए, करते गए, करते गए, जब तक लड़का नहीं आ गयाl तो जहाँ जन्म के साथ ही इरादे ऐसे हों, वहाँ दहेज नहीं लिया जाएगा तो क्या लिया जाएगा?

बात ही बड़ी घिनौनी सी है, इसपर क्या बोलें और कितना बोलें? जिसको हम एक आम परिवार कहते हैं, जिसको हम एक आम ज़िंदगी कहते हैं, उसमें बहुत कुछ, बहुत ज़्यादा घिनौना हैl

प्र३: आचार्य जी, मुझे लगता है कि प्रायः जो शादियाँ होती हैं वो अरेंज्ड मैरिजेस होती हैंl जब लड़की, लड़के के घर जाती है तो वहाँ पर एक अपना प्रभुत्व दिखा सकती हैकह लो कि कितने अमीर घर से है या क्या लेकर आई है​​, तो वहाँ उसके पास सेटलमेंट (समायोजन) में कुछ लाभ हो सकता है कि लड़का शायद उसको शुरुआत में तो इज्ज़त दे कि वो अमीर है या इतना कुछ लेकर आई है; बाद का मुझे नहीं पता (हँसते हुए)l और मैं बिलकुल विरोध में हूँ इसके पर मुझे ऐसा लगता है कि शायद ऐसा होता होगाl

आचार्य: इसके विरोध में होना भी अपमान की बात हैl इस मुद्दे का विचार करना ही बड़ी बेईज्ज़ती की बात हैl ये कौन-सा आदमी है, जो इस बात पर किसी औरत को महत्व दिए दे रहा है कि वो पैसा लेकर के आई हैl ये पुरुष के स्तर पर वेश्यावृत्ति नहीं हो गई? आप किसी को पैसा देकर के, किसी महिला को पैसा देकर के उससे संबंध बनाओ तो उस महिला को आप क्या बोलते हो? वेश्याl और वही महिला जब दहेज का पैसा लाकर के किसी पुरुष से संबंध बनाती है तो सारे पुरुष क्या हो गए? अब पुरुषों की वेश्यावृत्ति के लिए हमारी भाषा में शब्द भी नहीं हैl होना चाहिए नl दहेजियाl ठीक है? ये वेश्या का पुल्लिंग है। क्या? दहेजियाl क्योंकि इसने क्या किया? इसने पैसा लेकर के संबंध बनायाl अंग्रेजी में है, जिगोलो (पुरुष जो रुपए लेकर जरूरतमंद महिलाओं को स्वयं का शरीर बेचने का कार्य करता है)l

हम प्रेम जानते भी हैं? नहीं न, बिलकुल नहीं न! ये एक चीज़ है जिससे हम बिलकुल अपरिचित हैं एकदम! लवलेस (प्रेमरहित)! अब पैसा कहाँ से आ गया?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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