अलग-अलग धर्म क्यों हैं? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2015)

Acharya Prashant

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अलग-अलग धर्म क्यों हैं? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2015)

श्रोता १: सर, हर धर्म में ये जो अलग-अलग पैटर्न्स बनाये हुए हैं कि पूजा करो, नमाज़ पढ़ो । इनका क्या मतलब है?

वक्ता: *(*ऊपर की ओर इशारा करते हुए) वो सूरज है ।

तुमने यहाँ से देखा तो यह नीम का पेड़ बीच में है । नीम के पेड़ के माध्यम से देखा । ठीक है?

सूरज बहुत तेज चमकता है । इंसान की आँख में इतनी औकात नहीं होती कि सीधे उसको देख पाए । तो तुमने सूरज को कैसे देखा? नीम के पेड़ के नीचे से देखा ताकि पत्तियों की थोड़ी-सी छाया रहे ।

पर तुमने सूरज को देख लिया । समझ लिया कि कुछ है; जिससे जिंदगी चलती है, जो हमारी सारी ऊर्जा का स्रोत है ।

तुम सूरज को जान गयी । लेकिन तुमने सूरज को नीम के पेड़ के माध्यम से जाना । तो तुमसे पूछा गया कि सूरज कैसा है? तो तुमने कहा, “मैं बताती हूँ सूरज कैसा है” । और तुमने सूरज बनाया, जिसमें सूरज के साथ-साथ नीम के पत्ते भी शामिल थे ।

उसके बाद किसी और से कहा गया कि पता करो कि हमारा जीवन किससे चल रहा है? कौन है जो हमें रोशनी और ऊर्जा देता है? अब सूरज को तो सीधे देखा नहीं जा सकता । इंसान की तो इतनी हैसियत ही नहीं है । तो उसने चश्मा लगाकर देखा । देख लिया, लेकिन किसके साथ देखा?

सभी श्रोता *(एक स्वर में) *:** चश्मे के साथ ।

वक्ता: तो अब उससे पूछा गया कि “बताओ बताओ सूरज कैसा है?” तो उसने एक किताब लिख दी । उस किताब में सूरज जितना था, सो था, साथ में बहुत सारा चश्मा था । फिर किसी और का नंबर आया । उसकी इतनी हिम्मत नहीं कि ऊपर मध्यान में चढ़े हुए सूरज को देख ले । तो उसने ढ़लते हुए सूरज को देखा; जो बादलों के थोड़ा पीछे हो रहा था । तो उसने भी थोड़ा देख लिया, पर आधा देखा और साथ में बादल भी देखे । और उसने भी अपना एक ग्रन्थ लिखा, जल्दी-जल्दी । तो ग्रन्थ में सूरज तो था ही लेकिन साथ में बादल भी थे ।

और सूरज भी कितना था…?

सभी श्रोता *(एक स्वर में) *:** आधा ।

वक्ता: ठीक है? समझ आ रही है बात?

किसी ने उगता हुआ सूरज देखा । किसी ने बरसात का सूरज देखा । किसी ने अमेरिका में बैठकर देखा । किसी ने अफ्रीका में बैठकर देखा । और सबने देखा सूरज लेकिन आधा-तिरछा देखा या किसी माध्यम से देखा ।

अब जो देखने वाले थे, वो चले गए । जिन्होंने देखा था, वो चले गये । उनकी लिखी किताबें बची हैं । किताबों में ज़िक्र किसका है- ‘सूरज का और चश्मे का’ । सूरज तो पढ़ने वाले जान नहीं पाते क्योंकि सूरज तो बताने की चीज़ नहीं है । सूरज तो अनुभव करने की चीज है । सूरज तो जान नहीं पाते । हाँ, चश्मे को जान जाते हैं ।

तो अब पहले और दूसरे में बड़ी लड़ाई चल रही है । दोनों अब हैं नहीं । पहला, अब एक धर्म का नाम है । जबकि ‘पहला’ कब का मर गया । और उसी तरह से दूसरा अब एक दूसरे धर्म का नाम है । दूसरे के धर्म को मानने वाले सारे लोग चश्मे की पूजा करते हैं । और पहले के धर्म को मानने वाले सारे लोग नीम के पेड़ की पूजा करते हैं । इनके लोगों के अनुसार सूरज चश्मा है । और उनके लोगों के अनुसार सूरज नीम का पेड़ है ।

और ये लड़ रहे हैं खतरनाक तरीके से और मार-काट के ख़त्म कर रखा है- “यह गलत है । बात करते हैं । हमारी देवी थीं उन्होंने साक्षात सूरज देखा था । और हमें अच्छे से पता है कि सूरज हमेशा नीम के पेड़ के साथ ही होता है ।” और इन्होंने कहा- “*न*, हमारे यहाँ अवतार हुए थे, स्वर्ग से उतरे थे । उन्होंने साक्षात दर्शन किये थे सूरज के । और हम आपको बता रहें हैं कि सूरज हमेशा चश्मे के साथ ही होता है ।”

सूरज तो गया । सूरज की बात कौन करे? चश्मे की बात चल रही है । तो चश्मों, नीम के पेड़ और बादलों को लेकर लड़ाईयाँ हैं । सूरज की तो कोई बात ही नहीं, हो ही नहीं सकती बात ।

श्रोता २: सर, सूरज को कैसे पहचाने?

वक्ता: सूरज को कैसे पहचाने? खुद जानना पड़ता है । जितने ग्रन्थ होते हैं, उनमें साफ़-साफ़ देखो कि चश्मा कितना है और सूरज कितना है । इतनी अक्ल होनी चाहिए । पढ़ते वक्त ध्यान से देखो ।

~ ‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित । स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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