ऐश्वर्य बिना जीना क्या || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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ऐश्वर्य बिना जीना क्या || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं जब आपको पर्सनली (व्यक्तिगत तौर पर) मिला था, आपने 'ऐश्वर्य' शब्द के बारे में मुझसे थोड़ा सा कहा था कि जीवन में ऐश्वर्य होना चाहिए और जब मैं आध्यात्मिक ग्रन्थ घर पर और यहाँ भी पढ़ता हूँ तो उसमें ऐश्वर्य शब्द है। और उस वक़्त आपने मुझे जीवन में संगीत को उतारने को भी कहा था। ‘संगीत जीवन में लाओ’ ऐसा आपने बोला था।

'ऐश्वर्य' शब्द मूल रूप से, आपने बताया था वीडियो में कि वो ईश्वर से आया है। तो मेरे जीवन में, जब मैं ऐश्वर्य के बारे में सोच रहा हूँ तो ज़्यादातर विचार तो ये प्राकृतिक या भौतिक, ऐसा रहता है, संगीत के अलावा। तो मैं ये जो 'ऐश्वर्य' शब्द है, उसको पूरी तरह से समझ नहीं पाया हूँ।

आचार्य प्रशांत: ईश्वर से ही आया है 'ऐश्वर्य' शब्द। सांसारिक तौर पर जिस तरह से इसका इस्तेमाल हो जाता है, अध्यात्म में वैसा नहीं है ऐश्वर्य। संसार में तो जब ऐश्वर्य कह देते हो तो वो सुनायी देता है क़रीब-क़रीब अय्याशी जैसा, मौज, मज़े, भोग। ऐश्वर्य से इन सब शब्दों का कुछ सम्बन्ध लगता है, है न?

नहीं, अध्यात्म में जब ऐश्वर्य कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है — ऊँचाई, विभुता। विभूति योग है न गीता में। ऊँचाई, विभुता, वही ऐश्वर्य है। जीवन में, चेतना में जो कुछ भी ऊँचे-से-ऊँचा हासिल हो सकता हो, उसको ऐश्वर्य कहते हैं। तो श्रीकृष्ण कहते हैं, “शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ”, तो राम होना शस्त्रधारियों का ऐश्वर्य हुआ। “पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ”, तो गरुड़ होना पक्षियों का ऐश्वर्य हुआ। वो उच्चतम है जो उन्हें हासिल हो सकता है। ये इशारों में बात हो रही है। ऐसा नहीं है कि हम कह रहे हैं कि छोटी गौरैया को बड़ा बाज़ बन जाना चाहिए।

तुम्हारी चेतना की जो भी उच्चतम स्थिति तुम्हें सम्भव है, तुम उसे पाओ, यही जीवन का ऐश्वर्य है।

और उच्चतम स्थिति पर कोई विराम, कोई सीमा नहीं लगी हुई है। उच्चतम असीम है। ऊँचा, ऊँचा और फिर और ऊँचा, यही ऐश्वर्य है। ऐश्वर्य का मतलब ये नहीं है कि बहुत सारा भोग लिया। ऐश्वर्य का मतलब है कि तुम्हारे हर अनुभव में गहराई होनी चाहिए। तुम जो कुछ भी कर रहे हो, उसमें तुम अपनी सीमाओं को और अपने बन्धनों को चुनौती दो और आगे और आगे बढ़ो। ऐश्वर्य फिर उत्कृष्टता का ही दूसरा नाम हुआ। किसका दूसरा नाम हुआ?

श्रोता: उत्कृष्टता।

आचार्य: उत्कृष्टता का, एक्सीलेंस (श्रेष्ठता) का। सुन रहे हो तो सुनने का ऐश्वर्य क्या है? समझना। एक श्रोता का ऐश्वर्य क्या हुआ? बोध, कि ऐसा सुना, ऐसा सुना कि समझ गये, ये ऐश्वर्य है। और ऐसा देखा, ऐसा देखा कि दर्शन हो गये, तो देखने का ऐश्वर्य क्या है? दर्शन। जीने का ऐश्वर्य क्या हुआ? मुक्ति। प्रेम का ऐश्वर्य क्या हुआ? योग। या कह लो कि प्रेम का ऐश्वर्य है जो ऊँचे-से-ऊँचा हो सकता है, उसको चाहना। प्रेम का ऐश्वर्य है कि जो उच्चतम सम्भव है, दिल तो हमारा उस पर आया है। किसी नीचे वाले से नैन नहीं लड़ा लेंगे, ये ऐश्वर्य है।

सैनिक का ऐश्वर्य क्या हुआ, जीत जाना? शहीद हो जाना? न विजय न वीरगति, सैनिक का ऐश्वर्य है उच्चतम संग्राम में जूझ जाना। बात समझ में आ रही है? कि लड़ तो रहे ही हैं, सबसे ऊँची लड़ाई लड़ेंगे, ये ऐश्वर्य है। दुकानदार का, विक्रेता का ऐश्वर्य क्या है? अरे! मुस्कुरा तो रहे ही हो, बताओ (एक श्रोता को सम्बोधित करके कहते हैं)। बेच तो रहे ही हैं, सबसे ऊँची चीज़ बेचेंगे। बेच तो रहे ही हैं, सबसे ऊँची चीज़ बेचेंगे, ये ऐश्वर्य है। या फिर बेच तो रहे ही हैं, जो उच्चतम मुनाफ़ा कमा सकते हैं बेचकर, वो कमाएँगे, ये भी ऐश्वर्य है। या फिर बेच तो रहे ही हैं, क्यों न बेचते-बेचते ख़ुद भी बिक जाएँ, ये भी ऐश्वर्य है। लोग वो सब बेचते हैं जो उनके पास है। हमने कुछ ऐसा बेचा कि ख़ुद को ही बेच आये, ये ऐश्वर्य है।

कमाने का ऐश्वर्य क्या है? लोग कमाते हैं, सब ज़्यादा-ही-ज़्यादा कमाना चाहते हैं, थोड़ा और मिल जाए, थोड़ा और मिल जाए। हमने वो कमा लिया जो कमाकर और कमाने की चाहत ख़त्म हो जाती है, ये ऐश्वर्य है। बात आ रही समझ में? रुकने का ऐश्वर्य क्या है, कि रुके हुए हैं पर जो दौड़ रहे हैं, उनसे आगे निकल गये। दौड़ने का ऐश्वर्य क्या है? ऐसा दौड़े, ऐसा दौड़े कि अब दौड़ने की ज़रूरत ही नहीं रही। पाने का ऐश्वर्य क्या है? इतना पाया कि पाना छूट गया। छोड़ने का ऐश्वर्य क्या है? सब छोड़ दिया कि सब पा लिया।

सम्बन्धों का ऐश्वर्य क्या है? कि दूसरा इतना क़रीब आया, इतना क़रीब आया कि मिट ही गया, अब वो दूसरा है ही नहीं। सम्बन्ध ही नहीं बचा, योग हो गया। सम्बन्ध के लिए तो दो चाहिए न? अकेले हो गये भाई! जहाँ दो हों वहाँ पर ऐश्वर्य है दोनों का एक हो जाना या दोनों का अकेला हो जाना। समझ में आ रही है बात?

तो अध्यात्म कोई श्लोक रटने का काम नहीं है, ज़िन्दगी की बात है। दुकान पर हो तो वहाँ भी ऐश्वर्य की सम्भावना है। घर में हो तो वहाँ भी ऐश्वर्य की सम्भावना है। चल रहे हो, खा रहे हो, जो कुछ भी कर रहे हो जीते हुए, हर जगह ऐश्वर्य की सम्भावना है और ऐश्वर्य के लिए ही आदमी जो कुछ भी करता है, वो करता है। देखा नहीं है कि हम सन्तुष्ट नहीं होते हैं। हम सन्तुष्ट इसीलिए तो नहीं होते हैं क्योंकि उच्चतम मिला नहीं। जिन्होंने खूब कमा लिया वो भी सन्तुष्ट हैं क्या? उच्चतम नहीं मिला न अभी। अब आया समझ में?

प्र: जी।

आचार्य: यही ऐश्वर्य है! (हँसते हुए कहते हैं) समझ गये तो ऐश्वर्य है। पर ये ऐश्वर्य वैसा नहीं है कि हीरे–मोती मिल गये या चेक मिल गया या नोट मिल गये तो जेब में डाल लिया। ये ऐश्वर्य वो है जिसे बार–बार कमाना होता है। यही तो आनन्द है इसका। तो समझ गये तो ठीक, बार-बार समझो न! लगातार समझो, समझते ही रहो। समझना जीवन बन जाए, एक पल की बात न रहे फिर वो। वो तुम्हारी अचल स्थिति बन जाए, तब ऐश्वर्य है। ऐश्वर्य में निरन्तरता है तो आनन्द है और ऐश्वर्य अगर पल भर का है तो पीड़ा है। फिर तो ये ही कहोगे कि पलभर को भी क्यों मिला, और तड़पा गया!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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