शादी कर क्यों नहीं लेतीं? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

Acharya Prashant

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शादी कर क्यों नहीं लेतीं? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। मेरा प्रश्न ये है कि हम लोग अपनी फ़ैमिली, जहाँ से हम बोलना, सीखना, सब कुछ, बचपन से शुरू करते हैं, उनके खिलाफ़ अगर खड़ा होना पड़े, क्योंकि वो कुछ समझ ही नहीं रहें हैं। कितना भी समझाओ, उनको पता भी है कि वो ग़लत कर रहे हैं, पर फिर भी वो ये मानने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि वो मम्मी-पापा हैं। जो यह मानकर चलते हैं कि ‘हम कर रहे हैं तो हम सही कर रहे हैं, तुम्हारी भलाई के लिए कर रहे हैं।‘ यह समझ में नहीं आता है कि उस टाइम (समय) पर क्या करना चाहिए?

ये चीज़ मेरी लाइफ़ में अभी हो रही है, हमको शादी नहीं करनी है। अभी मेरी उम्र तेईस साल है, और हम यूपीएससी की प्रेपरेशन (तैयारी) कर रहे हैं। वो लोग ज़बरदस्ती बोल रहे हैं कि शादी करो, शादी करो। दो साल पहले फ़िक्स (तय) हुआ था पर कोरोना की वजह से पेंडिंग (स्थगित) हो गया है। तो उसमें ये लोग कह रहे हैं कि शादी कर लो, शादी।

हम पूछ रहे हैं क्यों करनी है शादी? नहीं करनी है, मन नहीं कर रहा है। ऐसा नहीं है कि पहले से मेरा ये था कि हमको शादी नहीं ही करनी है। पहले यही था कि हाँ, शादी-बच्चे-घर, जो चीज़ देखते आए हैं, वही चीज़ दिमाग में चलती थी कि हाँ, सही बात है, ये लोग कह रहे हैं।

पर जब से हम आपको सुनने लगे हैं तब से यही लगता है कि शादी नहीं करनी चाहिए। अभी शादी, जहाँ से हम सोच रहे थे कि यहाँ से सब कुछ ठीक हो जाएगा, जो अभी कर रहे हैं हम, वो सब सही हो जाएगा, अभी जिस चीज़ से परेशान हैं, वो सब शादी के बाद सही हो जाएगी। पर आपको सुनने के बाद ऐसा लगता है कि नहीं शादी हुई तो वहीं से सब ख़त्म हो जाएगा। तो हमको ये नहीं करना है।

और वो लोग हैं—ज़बरदस्ती शादी करो, शादी नहीं करोगी तो—हम मर जाएँगे। शादी करनी ही पड़ेगी;नहीं तो इज़्ज़त चली जाएगी। हम समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। अब हम शादी फ़िक्स (तय) कर दिए हैं, कैसे तोड़ दें? तुम्हारे कहने से तो तोड़ेंगे नहीं।

और ये भी लग रहा है कि अब घर पर हैं, तो दिन भर एक ही बात को लेकर पढ़ने नहीं दे रहे हैं लोग। उसकी वजह से बहुत ज़्यादा पढ़ाई में भी डिस्टर्ब (विघ्न) हो जा रहा है। एग्ज़ैम (परीक्षा) आने वाला है, पर समझ नहीं आ रहा है क्या करें?

दिन भर एक ही चीज़ का रोना लगा रह रहा है कि शादी कर लो। मम्मी-पापा सामने रोने लगते हैं एकदम से। नहीं समझ में आ रहा है, ऐसे टाइम (समय) पर क्या करें? न भाग सकते हैं। ऐसा लग रहा है कि घर से अगर निकल भी गए तो भी नहीं देखा जाएगा, नहीं झेला जाएगा। ऐसे टाइम (समय) पर क्या करना चाहिए;जब घर वाले ही सुनने को नहीं तैयार हैं?

कभी-कभी लगता है कि मर जाएँ! इससे अच्छा कोई रास्ता नहीं दिखता है, तो फिर यही लगता है कि छोड़ो, हटाओ, पढ़ने देंगे नहीं, शादी करनी नहीं, क्या करें?

आचार्य प्रशांत: नहीं तो शादी कर क्यों नहीं लेतीं?

प्र: क्योंकि नहीं करनी है शादी।

आचार्य: अरे! क्यों नहीं करनी है? कर लो। क्यों नहीं करनी है?

प्र: क्योंकि जिससे लोग शादी करा रहे हैं, वो सही इंसान नहीं है।

आचार्य: क्यों सही नहीं है? कैसे पता?

प्र: क्योंकि हम लोग उसके बारे में पहले से जानते हैं।

आचार्य: क्या जानते हो?

प्र: उसका नेचर (व्यवहार), उसका रहने का तरीक़ा, सब कुछ।

आचार्य: क्या होना चाहिए सही नेचर (व्यवहार)?

प्र: अब वो नहीं पता, पर नहीं करनी है शादी।

आचार्य: देखो, जब तक तुम्हें ये साफ़-साफ़ नहीं पता होगा कि तुम जो कर रहे हो, वो क्यों कर रहे हो? तुम कैसे अपने विरोधियो के प्रति कोई साफ़ रुख़ रख पाओगे? ये भी तो हो सकता है कि माँ-बाप ही सही बोल रहे हों? अगर तुम्हें यह साफ़-साफ़ नहीं पता कि तुम सही कैसे हो, तो तुम दूसरे को ग़लत कैसे ठहरा पाओगे? फिर तो बस संशय रह जाएगा कि मुझे लगता है— मुझे नहीं करनी चाहिए, शायद वो लड़का ठीक नहीं है—मुझे लगता है। एक धुंधली सी भीतर से भावना रहेगी, कुछ स्पष्टता रहेगी नहीं। दूसरे का पुरज़ोर विरोध भी कर सको इसके लिए आवश्यक है कि पहले साफ़-साफ़ पता हो कि हम सही हैं या नहीं।

मैं कह रहा हूँ, तुम यही मान के क्यों नहीं चलती कि माँ-बाप सही बोल रहे हैं? मान लो कि सही बोल रहे है फिर? निकालो न कि तुम्हारे पास क्या तर्क आता है; ये सिद्ध करने को कि वो ग़लत बोल रहे है। और अगर तुम्हारे पास ठोस, ताकतवर, पर्याप्त तर्क आ जाता है कि माँ-बाप ग़लत हैं तो उसके बाद फिर तुम्हें कोई नहीं रोक सकता, फिर तुम किसी की नहीं सुनोगी।

अभी अगर तुम संशय में हो और दूसरे लोग तुम पर कुछ अंकुश लगा पा रहे हैं, तो उसकी वजह ही यही है कि तुम्हें ख़ुद स्पष्टता नहीं है कि जो क़दम उठा रही हो;वो कितना सही है, कितना ग़लत है। ज़िंदगी में आधी-अधूरी स्पष्टता से काम नहीं चलता। अर्जुन वाली हालत रहती है वर्ना कि मैदान पर खड़े भी हैं, लड़ाई भी नहीं करनी। आ भी गए हैं कवच और अस्त्र-शस्त्र धारण करके। रथ पर भी चढ़ गए हैं, बीचो-बीच पहुँच गए हैं, पूरी सेना अपने पीछे खड़ी कर ली है और सेना आपका मुँह देख रही है कि भैया जी सिग्नल दीजिए। और स्वयं को ही पूरी आश्वस्ति, एकदम पक्का भरोसा है ही नहीं कि लड़ाई करनी भी चाहिए।

तो तुम पहले पूरा पक्का भरोसा तो करो कि तुम्हें शादी नहीं करनी है। कारण तो ढूंढो, कोई कारण बताओ पूरा। ऐसे नहीं होता कि नहीं, बस नहीं करनी है। ऐसे वाले ज़रूर करते हैं। बस वो इधर-उधर दो चार महीने टाल के, फिर उनकी हो जाती है। ऐसे तो हर कोई कर रहा होता है। हिंदुस्तान में ख़ासतौर पर कौन लड़की होती है जो बोलती है— नहीं, मुझे तो करनी है, करनी है, अभी कराओ। ऐसे कोई बोलता है? तो यहाँ तो सभी ऐसे ही बोलती हैं कि नहीं करनी, नहीं करनी है, फिर चार महीने में कर लेती हैं।

आपकी बात में और आपके संकल्प में बल तभी होगा जब आपके पास स्पष्टता होगी। स्पष्टता ले करके आइए कि आप उम्र में जहाँ खड़ी हैं जीवन में, जहाँ हैं आप, वहाँ आप के लिए विवाह क्यों अनुचित है, यदि अनुचित है तो। मुझे नहीं पता, आपका जीवन है।

अगर शादी ठीक नहीं है, तो साफ़-साफ़ लिख करके बताओ कि क्यों नहीं ठीक है। ठीक वैसे जैसे—यूपीएससी की तैयारी कर रहे हो, तो आपसे कोई सवाल पूछा जाएगा, पर्चे में तो ये थोड़े ही लिख सकती हो, वहाँ पूछा जाएगा कि आपको इस बारे में क्या कहना है, अपने तर्क दीजिए। तो ऐसे उत्तर दे लोगी, ‘मुझे तो ऐसा ही लगता है मैं क्या करूँ?’ और दस में से दस नंबर मिल जायेंगे फिर?

ऐसा ही सवाल आया कि आपके इलाके से दो उम्मीदवार खड़े हुए हैं। मान ली लीजिए कुछ भी है पार्षद का चुनाव है या किसी का भी, लोकसभा का—‘बताइए, आप किसको वोट देंगी? तो उत्तर में ऐसे लिखोगी—“नहीं मैं फ़लाने को वोट नहीं दूंगी। (कोई भी नाम हो सकता है, हरीश, मोहन) पूछेंगे, अच्छा क्यों नहीं वोट दोगी? क्योंकि वो लड़का अच्छा नहीं है। अच्छा, क्यों नहीं अच्छा है? क्योंकि उसका नेचर अच्छा नहीं है। नेचर में क्या अच्छा नहीं है? कैसे पता कौन सी तरह का नेचर अच्छा होता है? नहीं, हमें ऐसा ही लगता है” ऐसा उत्तर आप दे सकते हैं यूपीएससी में?

जब यूपीएससी में नहीं दे सकते हो तो ज़िंदगी में कैसे दे सकते हो? भावनाओं से वेग इम्प्रेशन (धुधंला तासीर) से काम नहीं चलता। शार्प-क्लैरिटी (तीक्ष्ण स्पष्टता) चाहिए होती है। और जब वो क्लैरिटी आ जाएगी, तो माँ-बाप ख़ुद ही पीछे हट जाएँगे। अभी अगर माँ-बाप तुम्हारे साथ रसा-कशी कर भी रहे हैं तो पता है उन्हें कि यह लड़की अभी ख़ुद अधर में है। इसको अभी ख़ुद पक्का भरोसा नहीं है, क्या करें, क्या न करे?

जब उन्हें तुम्हारी आँखों में एक स्थिरता दिख जाएगी कि अब लड़की एक निश्चय पर पहुँच चुकी है और अब वहाँ दृढ़ है, तो फिर वो ख़ुद ही दखलंदाज़ी नहीं करेंगे। अभी तो उन्हें उम्मीद दिख रही है। अभी उनको दिखता है कि थोड़ा धक्का और मारेंगे तो इसकी गाड़ी चल देगी और सीधे पंडाल पर आकर रुकेगी।

मैंने बार-बार बोला है न आपके साथ कोई ज़ोर आज़माइश तभी करता है; जब उसे सफ़ल होने की उम्मीद दिखती है। वो दोनों जने तुम्हारे सामने बैठ के काहे को रोते हैं? उन्हें पता हैं—तुम आंसुओं से पिघल जाओगी, गल जाओगी, बरसात होगी, भट्ट से गल गई मिट्टी की तरह—अच्छे से जानते हैं।

देखो, ये जो संसारी गृहस्थ लोग होते हैं, ये और कुछ जाने न जाने, कुछ बातें उन्हें पूरी पता होती है। उसमें ये ज़बरदस्त एक्सपर्ट (निपुण) होते हैं। किसी से बात कैसे उगलवानी है, किसी के सामने किस तरह से अच्छा बन के रहना है, कोई सुन न रहा हो, तो उसके आगे दो आंसू टपका दो, किसी को झूठ-मूठ का ग़ुस्सा दिखा दो, नक़ली विनम्रता दिखा दो, हे-हे करके बोलो- ‘आइए, बैठिए, लड्डू खाइए।‘ ये सब दुनियावाले ख़ूब जानते हैं। और वो ये भी जानते हैं कि ये सब चालें चलानी किस पर होती हैं।

ये सब चालें, वो अनाड़ी लोगों पर ही चलाते हैं, जहाँ उनको दिख जाता है कि बेटा यहाँ दाल गलेगी नहीं, वहाँ वो फिर कोशिश करना बंद कर देते हैं। और मैं अपनी ओर से कुछ बोल ही नहीं रहा। मेरे ऊपर तो इलज़ाम तो तुम आने मत देना कि इनकी वजह से मेरी शादी नहीं हुई। मैं तो कह रहा हूँ, मानकर चलो कि माँ-बाप ही सही बोल रहे हैं। कामेन्ट करने लग गए हैं लोग—“कुंवारों का बेताज बादशाह।“ और कोई उपाधि मिली न मिली हो जीवन में, ये उपाधि मिलवा दी तुम लोगो ने!

मैंने क्या किया है? मेरी ओर से तुम्हारे माँ-बाप बिलकुल ठीक बोल रहे हैं। अब ज़िम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है कि तुम सही तर्क, एकदम साफ़ स्पष्टता के साथ ले करके आओ कि वो ग़लत क्यों बोल रहे हैं। इतना भरोसा दिला रहा हूँ, अगर तुम वो सही तर्क ला पाईं, तो फिर माँ-बाप भी पीछे हट जाएँगे।

अभी आप जो दबाव अनुभव कर रहे हो—वो जितना बाहर से है न, उतना ही भीतर से भी है;क्योंकि आपको ख़ुद अभी कुछ भी निश्चित नहीं है। पहले निश्चित तो करिए। ये राह ऐसी नहीं है कि जिस पर डगमग-डगमग चला जा सके। इसपर बहुत डट कर चलना पड़ता है। ये आम रास्ता नहीं है;ये रस्सी पर चलने वाली बात है, टहल नहीं सकते, बहुत सतर्कता चाहिए। आपके पास जब वो सजगता होगी तो आप पार निकल जाओगे। नहीं तो मैं कहता हूँ, रस्सी पर चलने की शुरुआत ही मत करो। थोड़ा सा आगे बढ़ो, फिर गिर जाओ, फिर हाय!हाय! करो, आचार्य ने मरवा दिया! मैं अपना क्यों ख़राब करूँ सब?

तो पहले एकदम पक्का कर लो कि हाँ, यही है मेरे लिए। जान गई हूँ, यही है। उसके बाद फिर आगे बढ़ो। नहीं तो शादी वगैरह में कोई बुराई थोड़ी न हैं। कर ही लो।

प्र: उन लोग के हिसाब से ये है कि शादी करो, फिर जैसे सब लोग रहते हैं— शादी, घर-परिवार, बच्चे, बस ज़िंदगी ख़त्म।

आचार्य: यही है। और क्या? प्रकृति ने काहे को पैदा किया है? इसीलिए तो किया है। सही बोल रहा हूँ न? ये तो हाल है! बेटा, जब तैयारी पूरी नहीं होती न तो लड़ाई में नहीं उतरते। जो रास्ता मैं बताता हूँ— वो कुरुक्षेत्र का रास्ता है, वो उनके लिए है— जिन्होंने तैयारी पूरी कर ली हो। ऐसे ही टहलते-टहलते मैदान में आ जाओगी, मारी जाओगी। पहले तैयारी पूरी करो।

प्र: क्या करें?

आचार्य: गीता पढ़ा रहा हूँ, गीता पढ़ो, ठीक है। कम से कम छह महीने। इस साल के अंत तक गीता पढ़ो। फिर देखते हैं। (थोड़े ठहराव के बाद) गीता से क्या होगा! गीता तो हमारे घर में भी है!

प्र: नहीं, नहीं गीता की बात नहीं हैं। अगले दो महीने बाद शादी है। इसलिए हम सोच रहे थे कि,.

प्रतिभागी: श्रोतागण हँसते हैं।

आचार्य: यहाँ सबसे ज़्यादा पता है, यहाँ बैठे हुए हैं, सौ-डेढ़ सौ लोग, सबसे ज़्यादा कौन हँस रहे हैं? जब निश्चित कर ही चुके हो, दो महीने बाद शादी है। उसकी तिथि भी निर्धारित कर ली है, तो मुझसे क्या बात करने आए हो? कि आचार्य जी आइए, श्लोक पढ़ दीजिए! एक काम करो ख़ुद नहीं पढ़ी जा रही है न;तो उस लड़के को पढ़वा दो गीता। उसको कहो— देखो अगर हमसे प्यार करते हो— तो आचार्य जी की शिविर में चले जाओ। एक बार यहाँ भेज दो, बाकी काम अपने आप हो जाता है। कोई शिविर ऐसा नहीं होता—जिसमें कम से कम एक दर्जन दर्द भरी कहानियाँ न उठती हो—शादीशुदा लोगों की। कुँवारे अपने आप शन्ट (राह बदल लेना) हो जाते हैं। कहते हैं—अगर ऐसा होना है;तो नहीं चाहिए बाबा!

चलिए, अब इससे अधिक मैं कुछ नहीं बोल सकता;अलग राह बड़े संकल्प से चली जाती है, बड़ी स्पष्टता से चली जाती है। और उस पर कम ही लोग चल पाते हैं, इसीलिए उस पर चलने वालों को लाभ बहुत होता हैं।

उतना लाभ अगर जीवन में चाहिए हो, तो ही उस राह की सोचो। क्योंकि उस राह में लाभ बहुत-बहुत है, लेकिन क़ीमत भी बहुत चुकानी पड़ती हैं। पहले भीतर ये दृढ़ता पैदा करो कि वो राह चलनी है। उसके बाद सब अपने आप हो जाएगा। ठीक है? चलो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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