
प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी, मैं 2018 से जुड़ा हूँ। आपके सेशन्स में भी दो-तीन बार आ चुका हूँ, आपने मेरे बहुत सारे क्वेश्चन्स भी जवाब दिए हैं। मैं यूएस में रहता हूँ। आपको विश्वास नहीं होगा, आपने हमेशा अनुकंपा और ग्रेस की बात की है, जो को-इंसिडेंटली अध्यात्म की तरफ़ लेकर आ जाता है।
मैं सिर्फ़ दो दिन के लिए आया था, मतलब मेरे पिताजी की तबियत ख़राब है, पर कुछ अर्जेंट काम था। तो मैंने जब देखा दो दिन पहले कि आप ट्वेंटी नाइन को यहाँ आने वाले हैं, मुझे लगा, “अरे, दैट इज़ सो बैड, क्योंकि मैं सत्ताईस को वापस जा रहा हूँ यूएस और आपसे मिल भी नहीं पाऊँगा।” लेकिन आज सुबह ही गॉट चेंज्ड फ्रॉम ट्वेंटी नाइन टू ट्वेंटी फाइव, और मैं इतना खुश हुआ।
पापा हॉस्पिटल में हैं, उनकी तबियत अभी ठीक है, अभी बेटर है।
आचार्य प्रशांत: यहाँ पर ही हैं?
प्रश्नकर्ता: हाँ यहीं पर हैं। तो मुझे इतना अच्छा लगा, आपसे मिलके, आज मौका मिल गया, दैट इज़ ऑसम।
आचार्य प्रशांत: चलिए, जल्दी स्वस्थ हो जाएँ।
प्रश्नकर्ता: एक और प्रश्न था, आचार्य जी। कल रात को मैं अपने दोस्तों के साथ बैठा था। मेरे कॉलेज के फ्रेंड्स थे, बीस-पच्चीस साल से नहीं मिले। उनको भी मैं अध्यात्म की तरफ़ लाने की कोशिश करता हूँ, उनको मैंने बहुत सारी बुक्स गिफ्ट कीं। वो आपसे नहीं जुड़े हैं, लेकिन मैंने बुक्स उनको गिफ्ट कीं।
आचार्य जी, जब भी उनसे बात होती है न, वो ये कहते हैं कि “सॉरी।” लेकिन मेरे जीवन में मैंने गलत रिश्ते, गलत चीज़ें की थी, जिसकी वजह से मेरे जीवन में दुख आया। ठीक है, और उसके बाद ही मैं आपसे जुड़ा। नहीं तो अगर वो दुख नहीं होता मेरे जीवन में, तो शायद मैं नहीं आया होता। तो मेरे दोस्त बोलते हैं, एक तरीके से, “बडी यू मेड मिस्टेक्स” तुम्हारे जीवन में दुख है, इसलिए तुम अध्यात्म में आए। हम क्यों आएँ?” और मैं इसका जवाब नहीं दे सकता था, उनको ऐसा लगता है, वो कहते हैं कि “अच्छा, दुख है तभी अध्यात्म की तरफ़ आने की ज़रूरत है, अगर हमारे पास दुख नहीं है, तो फिर क्यों आए?”
आचार्य प्रशांत: क्योंकि दुख डिफ़ॉल्ट हमारी सिचुएशन (स्थिति) होती है, तो ऐसा कोई नहीं होता जिसके जीवन में दुख न हो। दुख एक डिफ़ॉल्ट स्टेट है, जो सबकी ज़िंदगी में होगा ही होगा, हम पैदा ही दुख में होते हैं। तो उनके भी है, बस उन्हें पता नहीं है। और यह और ज़्यादा ख़तरनाक बात है कि दुख है, लेकिन या तो आपने उसको दबा रखा है या आप उसके ऑपोज़िट एंड, सुख पर जाकर किसी तरीके से बचने की, एस्केप करने की, एंटरटेनमेंट की कोशिश करते रहते हैं।
ऐसा कोई नहीं हो सकता जिसकी ज़िंदगी में दुख न हो, वह सिर्फ़ वही है जो मुक्त है। सिर्फ़ जो मुक्त होता है, वही कह सकता है कि मेरी ज़िंदगी में दुख नहीं है।
दुख तो सबकी ज़िंदगी में है, तो कोई बोले, “मेरे पास दुख नहीं है, तो मैं क्यों आऊँ?” तो उसको फिर अपनी ज़िंदगी का पता ही नहीं है कि उसको कितना दुख है।
प्रश्नकर्ता: एक दोस्त ने तो इतना बुरी तरह बोल दिया, वह बोल ही नहीं पाया। बोलता है, “यार, यह सब लूज़र्स के लिए होता है, जिनकी लाइफ़ में सब कुछ ठीक नहीं होता, वही अध्यात्म की तरफ़ आते हैं। जिनके जीवन में सब बढ़िया है, उन्हें इसकी कोई ज़रूरत नहीं होती।”
आचार्य प्रशांत: जो यह बोल रहे हैं, हो सकता है कि वो अपनी ओर से सही बात बोल रहे हों, पर उनसे अगर यह पूछा जाए कि लूज़र माने क्या? लाइफ़ माने क्या? और सब बढ़िया माने क्या? तो उनके पास शायद कोई जवाब होगा नहीं। उनको कुछ भी नहीं पता कि वो क्या बोल रहे हैं, ख़ाली शब्द हैं जो वो उछाल रहे हैं।
प्रश्नकर्ता: जीवन में मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मैं पूरी तरह मुक्त हो गया हूँ, लेकिन आचार्य जी जीवन के बहुत सारे दुख और दर्द, जो मैं इंटरनली जिनको सही समझता था, वो नहीं हैं। आपको विश्वास नहीं होगा, मैं जबलपुर, मध्य प्रदेश का हूँ, जिसे आप कहते हैं, मध्य उत्तर भारत के लोग, बिल्कुल टिपिकल, हर उस चीज़ पर विश्वास करता था: पुनर्जन्म, मरने के बाद एक ऐसी दुनिया होती है, और ये होने वाला है, वो होने वाला है। हर एक चीज़ जिसको हम कहते हैं न, हर उस चीज़ में विश्वास करता था। और ये सब जो गलत धारणाओं की वजह से जो दुख देखा है न आचार्य जी मैंने, इसलिए मैं उसको रिलेट कर पाता हूँ। शायद उन लोगों के पास वो सब नहीं था, मेबी दे आर ओके, कभी-कभी लगता है।
आचार्य प्रशांत: ठीक है, जिसको नहीं अभी बात समझ में आ रही।
प्रश्नकर्ता: धन्यवाद, आचार्य जी। मैं दिल से कह रहा हूँ, मैं बहुत-बहुत आपका आभारी हूँ, बहुत ज़्यादा आभारी हूँ।