मैं आपसे ही खुल कर बात क्यों कर पाता हूँ ? || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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मैं आपसे ही खुल कर बात क्यों कर पाता हूँ ? || आचार्य प्रशांत (2014)

प्रश्न: सर, एक प्रश्न है निजी जीवन से, जैसे की यहाँ पर होते हैं तो यहाँ पर कुछ भी पूछने में परेशानी नहीं लगती। पर जैसे मैं अभी कहीं यात्रा पर गया था, तो वहाँ जो प्रेरणास्रोत थे, उनसे कुछ भी पूछने में अजीब लगता था। डर लगता था। पर यहाँ पर जब भी प्रश्न आता है तो एकदम पूछ लेता हूँ। ऐसा सर, यहाँ और वहाँ अलग क्यों था?

आचार्य प्रशांत: आप गए हैं, मान लीजिये किसी ऐसे राजनीतिक नेता की सभा में, जो इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि लड़ो, जूझो, इस पर आक्रमण कर दो, उसको मार दो। और वो इसी कारण प्रेरणास्रोत है क्योंकि उसने अपनी ये विशिष्ट विशेषता बना रखीं हैं। इसी कारण वो प्रेरणास्रोत है। आप उससे कैसे पूछ पाओगे कि थोड़ा शान्ति के बारे में बताइए न, सहजता क्या होती है, आप यह बात ही नहीं कर पाओगे। क्योंकि वहाँ, उसके चारों ओर उसके होने से जो पूरा माहोल है, वो उस प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व से ही निकल रहा है। आप किसी बिजनेस टाइकून से मिल रहे हो, आप उससे कैसे पूछ पाओगे कि अपरिग्रह क्या होता है? त्याग क्या होता है? आपको उससे वही सवाल पूछने पड़ेंगे, जैसा उसका व्यक्तित्व है। अब आपका सवाल उसके व्यक्तित्व को देख कर तो नहीं आ रहा। पर पूछने पर पाबन्दी है। पूछ तो वही सकते हो न जैसा उसका व्यक्तित्व है। और हर प्रेरणास्रोत के साथ यही भीषण समस्या है, वो व्यक्तित्व लेकर घूमता है। वो कहता है कि एक तरीके का रास्ता है। उसी पर आप मिल रहे हो। एक प्रेरणास्रोत है।

मिस यूनीवर्स है, अब आप उससे कैसे पूछ पाओगे कि शरीर मिथ्या है कि नहीं है? बड़ी दिक्कत है न। अब जा रहे हो आप, सशस्त्र बलों के मुखिया से मिल रहे हो, और वो संवाद ही इस बात पर दे रहा है कि हमने फलानी लड़ाई में किस तरह से दुश्मनों का संघार किया था। आप उससे कैसे पूछ पाओगे कि अहिंसा क्या परम धर्म है या नहीं है?

आपको पता है कि यहाँ पर तो हिंसा की ही वकालत हो रही है, तो सवाल घुट जाएगा। सवाल को उसके व्यक्तित्व के अनुरूप होना पड़ेगा, और फ़िर कोई सवाल है ही नहीं। जब आपको सवाल पूछना ही है जो उसके व्यक्तित्व से मेल खाता हो, तो फ़िर सवाल क्या पूछा? फ़िर तो आपने उसका बस समर्थन किया। सवाल नहीं पूछा। और हर प्रेरणास्रोत यही चाहता है कि उससे सवाल ही ऐसे पूछे जायें जिससे उसका व्यक्तित्व चमके। उसके व्यक्तित्व पर आंच आती हो, ऐसा सवाल आप नहीं पूछ पाएँगे। कभी किसी शिक्षक से, उदाहरण दे रहा हूँ, ऐसा सवाल नहीं पूछ पाएँगे जो उसके विषय से बाहर का हो। पूछ पाओगे?

आप सचिन तेंडुलकर से मिलने गए हो, आप उससे कोई बड़ा बौद्धिक सवाल नहीं पूछ सकते। दिक्कत हो जाएगी। आप ये पूछ लो कि “आप ख़ुद को कैसे प्रोत्साहित रखते हैं?” “क्या आप सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं क्रिकेट में या कोई और?”, और आपने कोई बड़े बोध-पूर्ण सवाल पूछ लिए, तो उसका भी अपमान होगा और आपका भी हो जाएगा। आपको सवाल वही पूछना पड़ेगा जिसमें वो और निखर कर सामने आये।

‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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