लड़के छेड़ते हैं, क्या शादी कर लूँ?

Acharya Prashant

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लड़के छेड़ते हैं, क्या शादी कर लूँ?
जीवन में कोई श्रीकृष्ण जैसा ही आ जाए, तो बिल्कुल करो शादी, पर ये कोई वजह नहीं है कि 'मैं निकला करती थी, मुझे लड़के छेड़ते थे, तो मैंने शादी कर ली।' यदि कोई छेड़छाड़ करे, तो विरोध करो, मार्शल आर्ट्स सीखो, इतनी मज़बूत बनो कि एक लगाओ अच्छे से। लेकिन इसके बावजूद भी कोई छेड़ के चला गया, तो उसे बहुत भाव मत देना, क्योंकि यह इतनी बड़ी बात नहीं कि इसकी वजह से ज़िन्दगी के निर्णय बदल दिए जाएँ। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। आज रास्ते में जब मैं आ रही थी, तो यूट्यूब पर देखते टाइम कुछ ऐसा ही सिनेरियो था, कि एक लड़की का रेप हुआ और वो लड़की पढ़ने जा रही थी। तीन लड़कियाँ थीं, उनमें से एक लड़की को कुछ लोगों ने गाड़ी में बिठा लिया और कहीं दूर ले गए, एंड शी वाज़ किल्ड ऑल्सो। एंड द क्रिमिनल्स वर नॉट प्रॉसिक्यूटेड बिकॉज़ एविडेंस सही नहीं था। और पुलिस ने भी उस एविडेंस को टैम्पर कर दिया था जिस वजह से वो बरी हो गए, और फिर वो केस आगे नहीं बढ़ पाया। तो मतलब, ये एक ना बहुत ही इनसिक्योर्ड सी फीलिंग लाता है हमारे अंदर — ऐज़ अ वुमन।

तो मेरे दिमाग में पहली चीज़ ये आ रही थी — या तो मैं बॉक्सिंग सीख लेती हूँ और एकदम मस्कुलर हो जाती हूँ कि कोई मेरे आगे आए, तो मैं मैनहैंडल कर सकूँ इन लोगों को। या मैं एक लाइसेंस्ड गन ले लेती हूँ टू प्रोटेक्ट मायसेल्फ़। आई विल कैरी इट इन माय पर्स। क्योंकि सिनैरियो तो ऐसे बहुत आएँगे, जहाँ पे मैं अकेली होती हूँ रास्ते में, आई ऐम विद अ कैब ड्राइवर मेबी माय क्वेश्चन इज़ वेग, बट सर, इसका सोल्यूशन क्या है? ऐज़ अ वूमन, आर दीज़ द टू ऑप्शन्स व्हिच आर कमिंग टू माय माइंड?

आचार्य प्रशांत: इसका त्वरित समाधान तो कुछ भी नहीं है। ये तो लगभग ऐसा है जैसे कोई पूछे कि दिल्ली की हवा इतनी ख़राब है — क्या करें? ये तो बहुत पीछे से जो धारा चली आ रही है न, ये उसकी विरासत है। अब भोगना पड़ेगा। देह धरे का दंड है ये तो।

अब अपना कर्तव्य ये है कि यथाशक्ति ये माहौल, गंदगी जो है इसको साफ़ करते चलो। लेकिन जो साफ़ करने निकला भी है न हवाओं को, साँस तो उसे भी उन्हीं दूषित हवाओं में ही लेनी पड़ेगी। साफ़ करते-करते भी साँस तो उसे गंदी हवा में ही लेनी पड़ेगी। ये बहुत पीछे का बोझ है, जो हमारे ऊपर पड़ा हुआ है। तो इसका कोई रामबाण इलाज है नहीं कि कैसे हम कर दें कि भारत में या इधर दिल्ली में लड़की बिल्कुल सुरक्षित महसूस करने लगे। रातों-रात कुछ नहीं हो सकता।

प्रश्नकर्ता: सर, इसीलिए मेरे अंदर ऐसे — मतलब टू ओवरकम दिस फीलिंग ऑफ पावरलेसनेस — ऐसे तर्क आ रहे थे दिमाग में, एंड आई वाज़ प्रीटी सीरियस अबाउट इट कि हाँ, गन तो होनी चाहिए। मतलब टैंजिबल सोल्यूशन्स निकालता है दिमाग।

आचार्य प्रशांत: हाँ तो तब तक के लिए, जब तक कि हम वहाँ नहीं पहुँच पाते जब समाज ही ऐसा नहीं है कि इस तरह की बात किसी के दिमाग में भी आए — रेप ये सब। तब तक के लिए तो कुछ इस तरह के ही कामचलाऊ उपाय ही करने पड़ते हैं। जिसमें से एक होता है कि पुलिस व्यवस्था बेहतर हो, रातों को बेहतर पुलिसिंग हो, लॉ एंड ऑर्डर जो जुडिशियल सिस्टम है — वो फास्टर हो और ज़्यादा तेजी से इसमें निपटारे हों, कन्विक्शन्स हों।

ये सब आप कर सकते हैं। उसमें ये भी आता है कि आप — वह जो स्प्रे गन होती है, वो सब अपने पास रखें या मार्शल आर्ट्स सीखें। उसमें ये भी आता है कि जो सावधानियाँ बरतने को कहा जाता है, कि गाड़ी में बैठ रहे हो तो गाड़ी का नंबर जो है, तुरंत किसी ग्रुप पर पहले एक बार फॉरवर्ड कर दो। अपनी लाइव लोकेशन जो है, उस ग्रुप पर डाल दो। ग्रुप से बहुत फायदे होते हैं। एक बड़ा ग्रुप बना दीजिए अपने जानने के लोगों का — 10-20 लोगों का। कहीं बैठे हैं, उसमें अपनी लाइव लोकेशन डाल दी।

तो इनमें से कोई भी बहुत अच्छा उपाय नहीं है, लेकिन यही कामचलाऊ उपाय हैं जो अभी करने पड़ेंगे। और इसको मानना पड़ेगा कि ये तो पीछे का दंड है जो हमें भुगतना पड़ रहा है। हमारा जैसा समाज रहा है, जैसी सोच रही है, जैसा इतिहास रहा है वो सब मिल-जुल के अब इस स्थिति पर आए हैं। हमारा कर्तव्य है इस स्थिति को बेहतर बनाएँ ताकि आगे आने वाली पीढ़ियों को ये कम भुगतना पड़े। क्या कर सकते हैं? यही है —

एक ख़तरा है, पता है, जिसके साथ जीना पड़ता है। और आगे के लोगों को ये ख़तरा कम हो — इसके लिए दुनिया को, समाज को बेहतर करने की हम कोशिश करते हैं।

आपने जो बातें सोची हैं — सब अपनी जगह ठीक हैं, वो सब कर भी लीजिए। उनसे कुछ तो ये ख़तरा टलता ही है। गन-वन वग़ैरह जो भी है, अपना रामपुरी देख लीजिए, घूँसेबाज़ी अच्छा है, बढ़िया है। देखिए, दुनिया जब तक ऐसी रहेगी न कि इंसान के पास जीने के लिए कोई सही वजह, मक़सद नहीं है — तो उसको बहुत बड़ी बात लगेगी सेक्स। और इधर क्या करा है इन्होंने न, दिल्ली के आसपास के इलाकों में कि उन्होंने लड़कियाँ मारी हैं बिल्कुल बेतहाशा। जो सब होता है न — इंफैंटिसाइड, फीटिसाइड — इतनी मार दी, इतनी मार दी है कि गाँव में शादी करने के लिए भी इनको लड़की मिलती नहीं है।

ये सब प्रथाएँ भी चलती हैं कि एक ही लड़की मिली है तो उससे तीन भाइयों ने एक साथ शादी कर ली। ये सब चल रहा है। और जिन जगहों पर उतना बुरा नहीं है सेक्स रेशियो, वहाँ से लड़कियाँ लाई जाती हैं इस क्षेत्र में ब्याहने के लिए — कि पूरे गाँव में कम से कम एक की तो शादी हो जाए। ये हालत कर दी है, तो ये डेस्परेशन बहुत है। एक तो ज़िन्दगी में करने के लिए कोई काम नहीं, कोई ऐसी चीज़ नहीं जिससे प्यार कर सको। और दूसरा ये है कि लड़की भी नहीं है, तो फिर वहाँ से विस्फोटक एक स्थिति पैदा हो जाती है।

तो जैसे किसी को कोई बीमारी हो जाती है — वो उसके साथ अपना जो काम है ज़िन्दगी का वो थोड़ी छोड़ देता है न। पर पता होता है कि ये ख़तरा है और लगातार है, शरीर के भीतर ही है। बहुत बुरा लग रहा है कहने में, पर इसको एक बीमारी की तरह ही मानना पड़ेगा कि शरीर के साथ एक ख़तरा जुड़ा हुआ है, तो उसका लगातार ख़याल रखना है, कि कोई चीज़ कभी भी दुर्घटना हो सकती है।

फिर कह रहा हूँ, ये बहुत बुरा लग रहा है बोलते हुए, क्योंकि आप कोई ऊँची बात सोच रहे होते, आप किसी और तल पर विचार कर रहे होते या ध्यान में होते — उसकी जगह आपको ये सोचना पड़ेगा कि कोई मेरे शरीर को तो नहीं हानि कर दे। ये बिल्कुल गिराने वाली बात है, मुझे पता है। क्या करें? आप लोगों का दिन में इसीलिए सत्र करते हैं। रात में आपको यहाँ बुला करके फिर पाँच बार, छ: बार मुझे पूछना पड़ता है, कि काउंसलर जो आपके हैं, उनसे — कि “तुम्हारे जितने आए थे, सब पहुँच गए घर?”

अब दो बजे... आज जैसे कितना लंबा चल पा रहा है। आज इतना लंबा इसीलिए चल पा रहा है क्योंकि मुझे ये नहीं है कि रात बहुत हो गई है। हालाँकि अब होने लगी, पर यही मैं अब रात में खींच दूँ 2:00 बजे तक — और उसमें महिलाओं को ही मैंने बुला रखा हो तो वो घातक हो जाएगी स्थिति। तो आप लोग दिन में आ सको, इसलिए दिन का सत्र रखते हैं।

यहाँ हुआ था — संस्था में ही हुआ था। यहाँ से बस पास में ही जाने के लिए निकली, यहीं पर काम कर रही थी। यहाँ से निकली रात में, वो उसको कहीं और ही ले गया और वो चीखी-चिल्लाई, हाथ-पाँव चलाए, घूँसा-वूँसा मारा — तो वहीं सड़क पर उतार के भाग गया। ये सोचो, ये आपके साथ एक मेट्रोपॉलिटन में हो रहा है। भारत अभी भी दो-तिहाई कहाँ रहता है? और उत्तर भारत तो अभी 80% गाँव में रहता है, यहाँ अर्बनाइज़ेशन नहीं है। गाँव की लड़की का क्या हाल होगा?

प्रश्नकर्ता: सर, एक चीज़ मैंने अपने फ्रेंड सर्कल में भी यही नोटिस किया है कि हमें फिर ऐसा लगता है — फिर वो बहुत ही, मतलब घटिया-सी सोच आ जाती है हमारे अंदर — कि वी शुड ऐक्चुअली गेट मैरिड टू अ रिच मैन, लाइक अ रिच गाई बिकॉज़ फॉर सिक्योरिटी। ये मैंने ख़ुद को भी देखा है ऐसा सोचते हुए।

आचार्य प्रशांत: हाँ, वो मुझे मालूम है।

प्रश्नकर्ता: बट बाद में इसी चीज़ को देखो कि ये क्या रीज़न हुआ? मतलब ये क्या ऐसा होता है?

आचार्य प्रशांत: आप जो बोल रहे हो वो कोई ऐसा नहीं है कि वो बड़ी गिरी हुई बात है, तो नहीं बोली जानी चाहिए क्योंकि वही हो रहा है। और जो कर रहे हैं, हम उनको एकमुश्त दोषी भी नहीं ठहरा सकते कि “अरे ये तूने क्या किया, तूने पैसों के लिए एक अमीर लड़के से शादी कर ली?” वो और क्या करती? ये सब जानता हूँ मैं।

प्रश्नकर्ता: बहुत इस चीज़ से ख़ुद को मतलब ऐसा लगता है कि यार, ये कितनी घटिया बात है।

आचार्य प्रशांत: हाँ, ये न घटिया बात है, पर मैं ये भी जानता हूँ कि ये घटिया बात स्वीकारनी क्यों पड़ती है। मैं इस बात को स्वीकार नहीं करता, पर मैं देख पाता हूँ कि ये निर्णय कहाँ से आ रहा है। आप उसको दबाव में रखोगे — ये तो किराए पे घर भी नहीं देते हैं कई बार। इसको किराए पर घर नहीं दोगे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट तुम्हारा है नहीं। घर वाले जब देखते हैं कि लड़की अपनी राह पर चल रही है तो अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं। वो कहते हैं, “भैया जब तू अपने हिसाब से जी रही है, तो हमसे किसी तरह की मदद की उम्मीद मत रख। देख ले भाई अपना हिसाब-किताब।”

अब उसे रहने को घर नहीं ठीक से, कोई कहीं समर्थन नहीं। ऑफिस में जाए तो ऑफिस में उल्टा माहौल है। ऑफिस से बाहर निकले तो ये है। फिर आप करियर की शुरुआत करते हो तब — तो बहुत पैसा तो आपको मिलता नहीं। और वही वो दिन है जब आप पर शादी का सबसे दबाव है। अब बहुत तो आप कमा नहीं रहे शुरू-शुरू में ही। घर वालों से भी दबाव पड़ रहा है। दुनिया साथ नहीं दे रही है। तो लड़की टूट कर के स्वीकार कर लेती है — “हाँ भाई, दिखाओ कौन-सा अमीर लड़का है। शादी कर लेती हूँ।”

फिर वो देखती है कि उसकी बहनों ने, जिन्होंने ये वाला रास्ता ले लिया है और बहनें तो सब मौज कर रही हैं। तो कहती है कि यार, मैं ही पागल हूँ। ये मेरा मुँह देखो कैसा हो गया है काम करते-करते, उसके मुँह पर धूल लगी हुई है वो धूप में भी निकल रही है, ये सब है। और बहनें बिल्कुल मुफ़्त का माल, सजी-बजी, एकदम सेक्सी बनके घूम रही हैं और बता रही हैं कि मैरिटल ब्लिस है हमारी, और बढ़िया चल रहा है सब। ये तो हमारा बहुत ख़याल रखते हैं और ऐसा है वैसा है — देन द गर्ल सकम्ब्स, मैं वो जानता हूँ और जितना जो कर सकता हूँ, वो करता भी हूँ संस्था में। पता नहीं चलता है हमारे यहाँ पर, लगभग 50% हैं लड़कियाँ, महिलाएँ। पर पीछे-पीछे जितना उनके लिए चुपचाप करा जा सकता है, करते हैं।

करना मत लेकिन ये सब। मैंने एक से पूछा था, मैंने कहा, “यार, इतना ही तो मिलेगा न — कि पहले ख़तरा था कि चार अपरिचित लोग रेप कर सकते हैं, अब निश्चित है कि एक परिचित आदमी रेप करेगा,” तो इतना भी बेहतर नहीं है ये विकल्प। बस इतना था कि पहले वाला अपरिचित होता। अब वाले को परिचित कहोगे, पर होगा तो देखो अभी भी वही। हाँ, पहले वाला कोर्ट में घसीटा जा सकता था। इस वाले को तो कोर्ट में भी नहीं ले जा सकते।

अभी साहब, शायद पता नहीं हमारे कोर्ट ने फ़रमाया है कि अगर बेस्टियालिटी कर रहे हो… वो समझते हो क्या होता है? अप्राकृतिक सेक्स कर रहे हो अगर तुम पत्नी के साथ — तो ये कोई गुनाह नहीं क्योंकि तुम पति हो। तो तुम किसी अमीरज़ादे को पकड़ लो — 99% होना तो वही है और आप शिकायत भी नहीं कर पाओगे।

कानून ने सेक्स को शादी के इतने केंद्र में रखा है कि कंसमेशन ऑफ मैरिज ही माना जाता है जब सेक्स हो गया। उसके बिना मैरिज ही अधूरी है। इतना ही नहीं है कि तलाक हो जाएगा, आप पर सज़ा का मुक़दमा चलाया जा सकता है, ये कहकर कि आपने क्रूरता करी है पति की सेक्सुअल माँगों को पूरा न करके, तो ये क्रूरता है। बेचारा, देखो सूख के काँटा हो गया है, (पन इंटेंडेड), भूखा था। वैसे पत्नी भी यही इल्ज़ाम पति पर लगा सकती है, छ: महीने की शायद मियाद होती है। छ: महीने तक पति कहे कि बाबा जी का ब्रह्मचर्य चल रहा है, तो पत्नी कह सकती है कि ऑल वेरी डर्टी। डर्टी इधर भी है, डर्टी उधर भी है।

कम से कम वह डर्ट पकड़ो जिसे साफ़ करा जा सकता हो। एक संस्थागत डर्ट पकड़ोगे, इंस्टीट्यूशनलाइज़्ड डर्ट पकड़ोगे, तो उसको साफ़ करना थोड़ा और मुश्किल होगा।

और एक और बात है — ये छेड़ाछाड़ी कोई कर भी दे न, तो बहुत भाव मत दिया करो। बिल्कुल समझ में आता है, मुझे भी क्रोध आएगा। मेरा शरीर है, कोई ऐसे ही आगे-पीछे से कंधा छू दे, तो भी — “क्यों छू रहा है भाई इतना?” बिल्कुल ठीक है। हमारे शरीर को छूने का हक़ तुम्हें किसने दे दिया? बिल्कुल सही बात है।

पर देखो, अध्यात्म क्या सिखाता है? देह-भाव से मुक्ति ही तो। देह है — हम नहीं हैं। तुमने हमारी देह गंदी कर भी दी, तो हमें नहीं गंदा कर दिया। समझ में आ रही बात? हमें गंदी करवानी नहीं है, हम बिल्कुल नहीं चाहते कि कोई यूँ ही आकर के हमें छुए, पर है एक से एक। कोई आकर के छू के, छेड़ के चला भी गया, तो भी बिल्कुल, हम भरपूर उसका विरोध करेंगे। लेकिन उसके बाद भी अगर हो गया, तो उसको लेकर मत बैठ जाओ। हम उसको लेकर बैठ जाएँ? सुबह बस में जा रहे थे, किसी ने भीड़-भरी बस में छेड़ दिया, छू दिया। उसके कारण अब पूरा दिन काम में नहीं लगा रहे, तो ये ज़्यादा बड़ा नुकसान हो गया। ये ज़्यादा बड़ा नुकसान है।

हम बिल्कुल नहीं चाहते कि कोई छेड़छाड़ी करे। लेकिन अगर हो गई, तो हम उसको अपनी सही ज़िन्दगी के रास्ते में आने नहीं देंगे। क्योंकि एक नुकसान तो चलो सुबह कर गया, अब हम ये नहीं करेंगे कि उसको लिए-लिए घूम रहे हैं। अरे ठीक है, आप चल रहे होते हैं, कौवे होते हैं वो आकर कई बार टट्टी कर देते हैं। एक बार मेरे तो सीधे यहीं (सिर पर) कर गया था। अब तो मैं क्या करूँ? कोई कौआ है, वो आकर के कर गया हमारे ऊपर टट्टी तो उसको याद किए थोड़ी घूमेंगे? क्यों भई कर गया, कोशिश करेंगे अगली बार लगाए दो उसको। पर उसके बाद भी कभी ऐसा हो जाए — तो बहुत भाव मत दिया करो।

बहुत सारी लड़कियाँ बहुत ज़्यादा इस मामले को लेकर संवेदनशील हो जाती हैं। तुमने देखा, "हाउ यू आर स्टेयरिंग ऐट मी।” अरे क्या देखा? क्या कर रहा है? वासना है और क्या है उसमें? तुम इतना क्या उसको विलक्षण, अद्भुत चीज़ की तरह बता रहे हो? वासना है और क्या है? कुत्तों में भी होती है। छिपकली में भी होती है, कीड़ों में भी होती है, वासना है। उसमें यू जस्ट सॉ व्हाट ही डिड, ऐसे क्या बता रहे हो?

वासना है, वासना के रूप हैं। ही जस्ट ग्रोप्ड मी — वासना है। हम बिल्कुल नहीं चाहते ग्रोपिंग हो और हम बिल्कुल चाहते हैं कि तुम्हारे हाथ इतने मजबूत हों कि ग्रोपिंग हो तो एक लगाओ अच्छे से। लेकिन उसके बाद भी कोई कुत्ता आकर के इस तरह कुछ कर जाए — तो ये इतनी बड़ी बात नहीं है कि उसकी वजह से अपनी ज़िन्दगी के निर्णय बदल दो।

यू नो, सिंस द डे आई वॉज़ ग्रोप्ड इन दैट बस, आई हैव बीन थिंकिंग आई शुड गेट मैरिड! ये क्या तर्क है? छोटी-सी बात से…

और मैं मैरेज के ख़िलाफ़ नहीं हूँ, ये सब जानते हैं। मैं बस ये कह रहा हूँ कि इस कारण से शादी मत कर लेना कि दुनिया भर में कुत्ते घूम रहे हैं, उनसे रक्षा करवाने के लिए मैंने शादी कर ली। मैं कह रहा हूँ, इस कारण से शादी मत कर लेना। बाक़ी कोई बहुत अच्छा, ऊँचा कारण मिल जाए, जीवन में कोई श्रीकृष्ण जैसा ही आ जाए, तो बिल्कुल करो, छोटी-सी शर्त है बस ये। पर ये कोई अच्छी वजह नहीं है कि “मैं निकला करती थी, मुझे लड़के छेड़ते थे, तो मैंने शादी कर ली।” इस वजह से नहीं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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