जो होता है वो क्यों होता है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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जो होता है वो क्यों होता है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्नकर्ता: सर हम चीज़ें अट्रैक्ट (आकर्षित) करते है। अगर हमारा कोई एक्सीडेंट भी हुआ है तो वो हमने अट्रैक्ट किया है। सर, ये बात समझ नहीं आती।

आचार्य प्रशांत: नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। ये ऐसे ही है। अट्रैक्शन (आकर्षण) वगैरह कुछ नहीं है। ये तो कॉज़ एंड इफ़ेक्ट (कार्य-कारण) की बड़ी लम्बी चेन (श्रृंखला) है। और इसको तो तुम सीधे-सीधे देख सकते हो। एवरीथिंग दैट इज़ हैपनिंग इन दिस वर्ल्ड इज़ कॉज़ एंड इफ़ेक्ट (इस जगत में जो भी हो रहा है सब कार्य-कारण की श्रृंखला है)। बस ये है कि कॉज़ इतने सारे हैं और इफ़ेक्ट्स इतने सारे हैं कि उनको स्टोर करने के लिए सुपर कम्प्यूटर से भी बड़ा कम्प्यूटर चाहिए। तुम्हें अगर सारे कॉज़ और सारे इफ़ेक्ट पता हों तो तुम फ्यूचर प्रेडिक्ट कर सकते हो। एज़्युमिंग (मान लो) कि सबकुछ मैकेनिकल है। एज़्युमिंग कि फ़्री विल जैसा कुछ नहीं है तो उसमें अट्रैक्शन वगैरह कुछ नहीं है।

तुम कह रहे हो तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ। तुम यहाँ नीचे निकलते हो, अब ये बताओ कि ये तुम जा रहे हो और ये ट्रक आ रहा है। क्या इसी मूवमेंट पर ये पक्का नहीं है? और ये दस मीटर की दूरी है, बस ध्यान से देखना ये दस मीटर की दूरी है बस ये तुम जा रहे हो ये ट्रक आ रहा है और ट्रक ड्राइवर ने पी रखी है। अभी बस दस मीटर की दूरी है। ट्रक ड्राइवर की जो हालत है, क्या यहीं पर ये पक्का नहीं हो गया कि वो तुम्हें ठोकेगा ही ठोकेगा। कॉज़ क्या हुआ? कॉज़ ये है कि इस प्वाइंट ऑफ टाइम पे, टी इस इक्वल टू टी टाइम पर कॉज़ ये है कि ट्रक तुमसे सिर्फ़ दस मिनट की दूरी पर है। एंड द ड्राइवर इज़ इनेब्रिएटेड, ड्राइवर ने पी रखी है। तो बिना एक्सीडेंट हुए ही पहले से ही पक्का है कि एक्सीडेंट होगा।

दुनिया की कोई ताकत एक्सीडेंट रोक नहीं सकती। ट्रक की जो मशीनरी है, इंजन है वो ठीक है। तो ये भी नहीं हो सकता कि अचानक वो खराब हो जाए और ट्रक रुक जाए अपने आप। कोई और गाड़ी कहीं से आ नहीं रही है कि वो बीच में आ जाएगी। तो बिना एक्सीडेंट हुए ही अब ये पक्का है कि तुम मरने वाले हो। एक्सीडेंट की प्रतीक्षा करनी भी बेकार है। यहीं पक्का हो गया, अभी एक्सीडेंट हुआ नहीं, पर पक्का हो गया है कि तुम मरने वाले हो। दस मीटर की दूरी है, पक्का है। यहाँ पर साफ़-साफ़ दिख रहा है कि मैं खत्म हूँ। ठीक वैसे जैसे कि अगर कोई पेशेंट हो और कैंसर की लास्ट स्टेज में हो तो डॉक्टर बता देते हैं कि, एक महीना बचा है। कोई ताकत इसको बचा नहीं सकती, गया। वैसे ही तुम्हारा यहाँ पक्का है।

इसको और पीछे ले जाओ। मतलब तुम्हारे मरने का कारण क्या था? कि ये ट्रक यहाँ पर है। इस समय पर ये ट्रक यहाँ पर है और इस ट्रक के होने से ही पक्का हो गया कि तुम गये। अच्छा अब अपनेआप को हटा दो। इस ट्रक का यहाँ होना क्या पक्का नहीं था जब ये ट्रक यहीं पर था (कुछ दूरी पीछे की ओर संकेत करते हुए)? जब ये ट्रक यहाँ पर है तो उसका पक्का है कि वो यहाँ पर भी होगा और इतने समय में ही होगा। मतलब तुम्हारा मरना तभी पक्का था जब ये ट्रक यहाँ पर था।

और पीछे ले जाओ, और पीछे ले जाओ, और पीछे ले जाओ। जिस दिन उस ट्रक के आयरन के ओर (अयस्क) की खुदाई हो रही थी। उसी दिन पक्का हो गया था कि तुम इसी से मरोगे।

बात समझ में आ रही है?

तो इसमें तुमने कोई अट्रैक्ट नहीं कर लिया है अपनी मौत को। ये सीधा-सीधा कॉज़ एंड इफ़ेक्ट का साइकिल है। ये सीधा-सीधा कॉज़-इफ़ेक्ट का साइकिल है। इसमें कोई अट्रैक्शन वाली बात नहीं है। हमें वो कॉज़ एंड इफ़ेक्ट दिखता नहीं है तो हमें लगता है कि जो कुछ हो रहा है वो रैंडम (यादृच्छिक) है। रैंडम कुछ नहीं है। हर चीज़ कॉज़-इफ़ेक्ट के एक इनफ़ाइनाइट (अनन्त) नेटवर्क से निकल रही है।

अब तुम चढ़ते हो ट्रेन पर, एक लड़की चढ़ती है ट्रेन पर और तीन साल बाद एक खानदान शुरू हो जाता है (श्रोतागण हँसते हैं)। फिर उनके बच्चे होते है और उनके बच्चे होते और उनके बच्चे होते हैं। छः जनरेशन बाद जो घटने वाला है क्या वो उसी दिन ही नहीं तय हो गया था जिस दिन तुम दोनों एक्सीडेंटली एक ही डब्बे में चढ़ गये थे? और उससे पहले, और उससे पहले, और उससे पहले।

प्र: ऐसा है तो सब चीज़ डिसाइडेड (निर्धारित) है।

आचार्य: इसमें बस एक मैंने एज़म्प्शन (कल्पना) करा था दैट देयर इज़ नो स्पेस फ़ॉर फ़्री विल और उस फ़्री विल का स्पेस वाकई ज़िन्दगी में होता नहीं है हज़ार में से नौ-सौ-निन्यानवे मौकों पर।

हज़ार में कोई एक होता है जो कहता है, ‘ये मैं कर क्या रहा हूँ? साला हार्मोनल एक्शन है, मैं एक्साइट हो रहा हूं, बॉडी अराउज हो रही है और मैं बहका चला जा रहा हूँ।’ हज़ार में कोई एक बोलता है। सिर्फ़ इस बन्दे के ऊपर कॉज़ एंड इफ़ेक्ट काम नहीं करता। नौ-सौ-निन्यानवे लोगों का तो ये होना ही होना है कि अभी यहाँ पर एक बन्दी आ जाए बिलकुल और फिर अपनी हालत देखो। अगर मैं हज़ारो जनों को बैठा दूँ तो नौ-सौ-निन्यानवे सिर होंगे जो उधर ही चले जाएँगे। सारा ऑब्ज़र्वेशन उधर होने लगेगा, गयी — लिसनिंग खत्म, कहाँ का अटेंशन, काहे का ऑब्ज़र्वेशन! सब खत्म।

तो किसी एक के साथ ऐसा होता है या ये कह लो कि हम सबके साथ हज़ार में से एक मौके पर ऐसा होता है कि फ़्री विल ऑपरेट करती है। वरना हम बिलकुल मेकेनिकल तरीके से चलते हैं। बिलकुल प्री प्रोग्राम्ड तरीके से। उसी का नाम कंडीशनिंग है। उसी का नाम कॉज़ एंड इफ़ेक्ट है कि बटन दबाया पंखा चालू। इसी का नाम मैकेनिकल होना है। इसी का नाम कॉज़ एंड इफ़ेक्ट है। इसी का नाम कंडीशनिंग या प्रोग्रामिंग है।

आ रही है बात समझ में?

प्र: सर, ये तो आ गयी पर वो वाली बात नहीं आयी जिसमें आपने कहा, सब डिसाइडेड है।

आचार्य: सब डिसाइडेड में मैंने कहा कि एक कंज़म्प्शन है कि फ़्री विल नहीं है। अगर सब एक बराबर भोंदू हों। अगर सभी सोये हुए हों, सभी नशेड़ी हों तो पक्का है कि कॉज़ एंड इफ़ेक्ट ही चलेगा। कॉज़ एंड इफ़ेक्ट की चेन टूटती है बीच-बीच में जब कोई एक आदमी अटेंटिव हो जाता है, कि कोई एक बन्दा ही जब अटेंटिव हो जाता है, तब टूटती है। लेकिन अफसोस की बात ये है कि जैसा मैंने कहा वो हज़ार में से एक मौके पर टूटती है। नौ-सौ-निन्यानवे मौकों पर तो बस कॉज़-इफ़ेक्ट , कॉज़-इफ़ेक्ट , कॉज़-इफ़ेक्ट।

कॉज़-इफ़ेक्ट क्या है? कॉज़-इफ़ेक्ट ये है कि मैं तुम्हें कुछ बोलूँ और हम सबके बटन्स होते हैं। तुम देखो इस पर प्रयोग होता है साइकोलॉजी में। हर बन्दे को कुछ दो तीन शब्द ऐसे होते हैं उसकी ज़िन्दगी में, जिनको वो सुन लेता है तो वो एक्साइट हो जाता है, एंग्री हो जाता है। इसी तरीके से दो तीन वर्ड्स होते हैं उसकी ज़िन्दगी में, वो दो तीन जो वर्ड्स हैं न किसी का नाम भी हो सकते हैं। वो दो तीन वर्ड्स होते हैं ज़िन्दगी में, वो उनको सुन लेता है तो वो सेटल डाउन हो जाता है। कम्फ़र्टेबल महसूस करने लगता है। ये हमारे बटन्स हैं। ये कॉज़ एंड इफ़ेक्ट हुआ।

अब मान लो ये कोई बन्दा है। ये एक्सवाइज़ेड सुनते ही एंग्री हो जाता है। अब मुझे पता है मैं बोलूँगा एक्सवाइज़ेड ये गुस्सा हुआ। और मुझे पता है एबीसी सुनते ही शान्त जाता है। अब देखो यहाँ क्या कॉज़-इफ़ेक्ट ये चल रहा है कि एक्सवाइज़ेड (गुस्सा होने का अभिनय करते हुए), एबीसी (शान्त होने का अभिनय करते हुए)। और ये चल रहा है (दोहराते हुए) और ये चल रहा है। और ये तब तक चलता रहेगा जब तक ये अटेंशन में नहीं आ जाता। अटेंशन में आते ही ये रुक जाएगा।

ये कहेगा, ‘मैं कर क्या रहा हूँ, ये हो क्या रहा है मेरे साथ? दुनिया बोलती है एक्सवाइज़ेड, मेरे को खुंदक आ जाती हैं। दुनिया बोलती है एबीसी मैं कूल हो जाता हूँ। ये क्या बेवकूफ़ी चल रही है?’ पर वो सिर्फ़ ज़ीरो-प्वाइंट-वन-परसेंट केसेज़ में होता है बाकी टाइम तो हमारा ऐसा ही है। तुम देखो न कोई आता है तुमसे एक बात बोल देता है और तुम्हें पहले से ही पता है ये बात सुनते ही मेरे खुंदक आनी है। कुछ लोग होते हैं उन्हें कोई खास गाली दे दो तो तुम्हें मारने दौड़ेंगे। वही गाली किसी और को दो वो नहीं मारने दौड़ेगा।

जेल्टेड लवर्स होते हैं। बन्दी धोखा देकर भाग गयी है जो भी उनके साथ हुआ। उस बन्दी का नाम उनके सामने ले लो। उसी नाम की कोई और बन्दी आ जाए। कितनी भी सही हो उसके साथ नहीं जाएँगे वो। वो नाम सुनते ही उनका....।

कॉज़ एंड इफैक्ट इस ए ब्यूटीफुल थिंग एस फ़ायर्स मैटर गॉस। दैट एलाउज़ प्रेडिक्टिबलिटी एंड कॉज़-इफ़ेक्ट मस्ट बी देयर अदरवाइज़ द वर्ल्ड विल बीकॉम वेरी अरेटिक (कार्य-कारण सुन्दर चीज़ है जब तक वो पदार्थ पर हो क्योंकि इससे पदार्थ पूर्वानुमानित हो जाता है अन्यथा जगत अनिश्चित हो जाएगा)।

तुम यहाँ पर आओ और इस ट्यूब का स्विच ऑन करो और ये ऑन होने से इनकार कर दे। ये कहे, ’कॉज़ एंड इफ़ेक्ट कोई ज़रूरी थोड़े ही है। करेंट आज फ़्लो करेगा पर हम जलेंगे नहीं।’ तुम पानी को उबालो और सौ डिग्री हो जाए। वो कहे, ‘आज मूड नहीं आज एक-सौ-पाँच पर।’ तुम पानी को उबालो और वो बोले, ‘आज मूड नहीं है। तुमसे किसने कह दिया कि हंड्रेड आते ही मेरा उबलना पक्का है?’ तो बड़ी दिक्कत हो जाएगी।

तो कॉज़ एंड इफ़ेक्ट इज़ ब्यूटीफुल थिंग बिकॉज़ इट कीपस द वर्ल्ड प्रिडिक्टेबल एंड ऑर्डरली। मैटर में कॉज़ एंड इफ़ेक्ट बहुत शानदार चीज़ है, होनी चाहिए। तुम्हें पता होना चाहिए कि इतने टेम्प्रेचर पर ये इसका कम्बशन प्वाइंट (दहन बिन्दू) आ गया। तुम्हें पता होना चाहिए कि इतने प्रेशर पर ये गैस लिक्विफ़ाई (द्रव में बदलना) हो जाएगी। ठीक है न? तुम्हें पता है कि ज़ीरो केल्विन अप्रोच नहीं हो सकता। एंड ऑल दैट इज़ वेरी ओके (और वो सब ठीक है)।

तुम यहाँ पर इस बुक को उछालो और तुमको अगर एयर का रजिस्टेंस भी पता है तो तुम पूरा कैलकुलेट कर सकते हो कि कितनी देर में वापस आएगा तुम्हारे हाथ में, ये सब कॉज़ एंड इफ़ेक्ट है। पर जब बन्दों के साथ यही चीज़ होनी शुरू हो जाती है तो बड़ी दिक्कत हो जाती है। ये चीज़ मैटर के साथ हो कोई प्रॉब्लम नहीं, होनी ही चाहिए। पर ये चीज़ हमारे साथ भी होती है। अभी से पता है कि तुम्हें क्या खबर दे दी जाए, तुम्हारा मूड खराब हो जाएगा। अभी से पता है तुमसे क्या बोल दिया जाए तो तुम्हारा मूड अच्छा हो जाएगा। ये कॉज़ एंड इफ़ेक्ट हो गया।

अगर हम ऐसे जी रहे हैं तो फिर हममें और रुमाल में क्या फ़र्क है? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम दस लोग बैठो साथ में और गॉसिप न करो? ठीक जैसे ये पक्का है कि सौ डिग्री हुआ नहीं कि पानी उबलेगा। वैसे ही अगर ये पक्का है कि तुम लोग साथ बैठे और गॉसिप होगी तो तुम मैटर हो। फिर तुम ज़िन्दा नहीं हो तुम मैटर हो। समझ रहे हो।

क्या ये हो सकता है कि वो बेल (घंटी) बजी और बाहर से आवाज़ न आये। और अगर ये बिलकुल पक्का है कि कॉज़ है बेल का बजना और इफ़ेक्ट है आवाज़ का आना, तो क्या ये ज़िन्दा लोग हैं?

प्र: ये मैटर (पदार्थ) है।

आचार्य: ये मैटर है। बेल बजी नहीं, आवाज़ आएगी। ये मैटर है। दिक्कत है न। कभी ऐसा भी तो हो कि पानी बोले, ‘आज नहीं या आज थोड़ा जल्दी, आज पिच्चानवे पर उबलते हैं।’ ऐसा होता ही नहीं।

कभी ऐसा भी तो हो कि तुम बोलो, ‘न। आज नहीं। बेल बजे या कुछ भी हो जाए, मैं वही नहीं करूँगा जो हमेशा से करता आया हूँ।’ आइ हैव फ़्री विल, आइ ऍम नॉट डिपेंडेंट अपॉन कॉज़ (मेरे पास मुक्तेक्षा है, मैं किसी कारण पर निर्भर नहीं।)। वो फ़्री विल देखने को नहीं मिलती न।

प्र: सर, वो फ़्री विल पॉज़िटिव-नेगेटिव दोनों होती है।

आचार्य: पॉज़िटिव-निगेटिव तो लेबल हैं, लेबल। फ़्री विल बस फ़्री होती है। फ़्रीडम पॉज़िटिव-निगेटिव नहीं होती। वो लेबल तो तुम लगा देते हो। किसी को तुम्हारी फ़्रीडम पसन्द आयी तो क्या बोलेगा?

प्र: पॉज़िटिव फ़्रीडम।

आचार्य: और किसी को फ़्रीडम तुम्हारी नहीं पसन्द आयी, तो क्या बोलेगा?

प्र: नेगेटिव फ़्रीडम।

आचार्य: तुम्हें खुद अपनी फ़्रीडम पसन्द आयी, तो तुम क्या बोलोगे?

प्र: पॉज़िटिव फ़्रीडम।

आचार्य: तुम्हें अपनी ही फ़्रीडम पसन्द नहीं आयी, तो तुम क्या बोलोगे?

प्र: नेगेटिव फ़्रीडम।

आचार्य: फ़्री विल सिर्फ़ फ़्री विल होती है उस पर कोई लेबल लगाने की ज़रूरत नहीं है

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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