जब कुछ समझ न आए कि क्या करें || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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जब कुछ समझ न आए कि क्या करें || आचार्य प्रशांत (2019)

आचार्य प्रशांत: जब भी कभी मन में यह प्रश्न आये कि आचार्य जी क्या करूँ, किसी भी सन्दर्भ में यह प्रश्न आये — वह किस्सा कुछ भी हो सकता है। वह यह भी हो सकता है कि पुरानी गाड़ी हटा कर अब एक नयी गाड़ी लेनी है। वह यह भी हो सकता है नया घर बनवाना है। वह यह भी हो सकता है कि बेटे को शिक्षा कैसी दिलवानी है — कोई भी मुद्दा, कोई भी किस्सा हो सकता है। उस किस्से के अंत में अगर प्रश्न है, ‘क्या करूँ?’ तो क्या करना है? यह सब अच्छे से समझ लीजिए — ‘जो कर रहे हैं, उस पर गौर करना है। कुछ नया नहीं करना है।’

अच्छा ऐसे समझिए, एक व्यक्ति है जिसकी आँखों पर पट्टी बँधी हुई है। वह कैसे चल रहा है?

श्रोता: ठोकरें खाता हुआ।

आचार्य: ठोकरें खाता हुआ। किसी भी दिशा में आढ़ा-तिरछा, टेढ़ा चल रहा है न। अब वह पूछे, “आचार्य जी क्या करूँ?” और मैं उसे कुछ सुझा दूँ, “अब यह करो। ऐसा करो, अब तुम बाएँ जाओ।“

थोड़ी देर पहले तक वह किस दिशा जा रहा था? मान लीजिए दाएँ जा रहा था। वह दाएँ जब जा रहा था तो कैसे चल रहा था?

श्रोता: ठोकरें खाता हुआ।

आचार्य: अब मैं कह दूँ कि बाएँ जाओ, पर अब वह बाएँ भी जाएगा तो कैसे चलेगा?

श्रोता: ठोकरें खाता हुआ।

आचार्य: पहले भी क्या खा रहें थे?

श्रोता: ठोकरें।

आचार्य: अभी भी क्या खा रहें हो?

श्रोता: ठोकरें।

आचार्य: नया कर्म, पुराने कर्म से बहुत भिन्न नहीं हुआ क्योंकि कौन नहीं बदला?

श्रोता: कर्म करने वाला।

आचार्य: कर्म करने वाला नहीं बदला न, कर्ता नहीं बदला। तो जब भी कहो कि कोई समस्या है और प्रश्न आये कि अब क्या करे, तो क्या करना है? कुछ नया नहीं करना है क्योंकि अभी हम नया कर ही नहीं सकते। वह लगेगा नया, होगा नहीं।

हमें क्या करना हैं? हमें रुक जाना है। हमें पूछना हैं, “अभी मैं क्या कर रहा हूँ? अभी मैं ठोकरें खा रहा हूँ। फ़िलहाल मैं क्या कर रहा हूँ?”

श्रोता: ठोकरें खा रहा हूँ।

आचार्य: ठोकरें खा रहा हूँ। उस पर गौर करना है ─ ये ठोकरें खा क्यों रहा हूँ? बार-बार, बार-बार गौर करोगे, ‘ठोकरे खा क्यों रहा हूँ?’ हाथ खुद ही जाएगा(सिर के पीछे हाथ ले जाते हुए), पट्टी खोल दोगे। अब जो कर्म होगा वह वास्तव में नवीन होगा; अब कोई नया कर्म हो पाएगा। ठोकरें खाना बंद हो जाएगा। लेकिन अगर पट्टी बाँधे-बाँधे तुम बार-बार यही पूछो, "अब क्या करें, अब क्या करें?” तो तुम आगे चलो, पीछे चलो, दाएँ जाओ, बाएँ जाओ, ऊपर जाओ, नीचे जाओ, जहाँ भी जाओगे, ठोकर ही खाओगे।

तो जब भी प्रश्न उठे कि क्या करें, लालच में मत पड़िएगा कि कुछ नया उपाय पता चल जाए कुछ और करना का; थमिएगा और कहिएगा कि कर तो बहुत कुछ अभी ही रहा हूँ। चूँकि कुछ कर ही रहा हूँ तभी तो समस्या है भाई!

कोई समस्या न होती तो क्या मैं पूछता कि क्या करें? तो यह मत पूछो कि क्या करें, देखो कि जो कर रहे हो उसमें गड़बड़ हो क्यों रही है। गड़बड़ करने वाले तुम ही हो। जब तक तुम्हारा बदलाव नहीं होगा, तुम कुछ भी करते चलो, उसकी मूलभूत गुणवत्ता सुधरेगी नहीं।

समस्या की जड़ तक जाओ। समस्या से भागो नहीं। तुम्हीं समस्या हो। भाग कर जहाँ भी जाओगे, समस्या को साथ लेकर जाओगे। भागने से क्या होगा? देखो कि जो कर रहे हो उसमें ठोकरें क्यों लग रही हैं।

YouTube Link: https://www.youtube.com/watch?v=k9RdlvCUg_Y

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