HIDP से फ़ायदा क्यों नहीं हो रहा? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

3 min
79 reads
HIDP से फ़ायदा क्यों नहीं हो रहा? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, असल में होता क्या है कि कुछ बातों से हम सम्बद्ध हो पाते हैं, तो उसे अमल भी कर पाते हैं लेकिन कई बातें ऐसी हैं जो सिर्फ लेक्चर तक ही रह जाती हैं, मतलब की वो सिर्फ़ बातें बन कर ही रह जाती हैं ।

वक्ता: बिल्कुल रह जाएँगी। ये HIDP सेशन चल रहा है और इसमें तुम्हें बताया जा रहा है कि अगर पानी गन्दा है, तो तुम्हें बीमारियाँ लगेंगी। तुम्हें बताया जा रहा है कि गन्दा पानी पीने से बीमारियाँ लगेंगी ही। पानी मान लो तुम्हारा मन है, और गंदगी कंडीशनिंग। और तुम्हें बताया जा रहा है कि गन्दा पानी पीने से क्या-क्या बीमारियाँ लग सकती हैं? तुम समझ भी गये हो कि ऐसा हो सकता है, ये मन के तरीके हैं और अगर इस तरीक़े से गड़बड़ हो जाए तो ज़िंदगी नर्क हो सकती है। यहाँ बैठ कर तुम्हें सब समझ में आ गया। लेकिन जैसे ही तुम यहाँ से बाहर निकले, बाहर निकल कर तुम फ़िर उसी भीड़ का हिस्सा बन गये। तुम पर अब भीड़ का नशा चढ़ गया है। तुम्हारे सामने फिर आ गया पानी और उसमें मक्खी गिर गयी है। तुम नशे में हो, भीड़ के नशे में। तुम उसी पानी को गटक कर पी गये। फिर तुम्हें HIDP याद आया और याद आया कि ये पानी पीने से बीमारियाँ हो सकती हैं। पर तुम कहते हो कि HIDP व्यर्थ है। तुम कहते हो कि मैं बाहर आया और मैंने वो गंदा पानी पी लिया, मैं फ़िर से ऐसा हो गया। तुम क्यों वापस ऐसे हो जाते हो? अगर तुम्हें अभी कुछ समझ में आया है और अगर तुम अपने हितैषी हो, तो तुम इस ध्यान की अवस्था को क्यों नहीं रख पाते हो?

अभी तुम्हारी फ़ोटो खींची जाये तो तुम्हारे शांत चेहरे आयेंगे, सब ध्यान से सुन रहे हो। और फिर जब तुम बहार जाओगे, तो देखना अपने चेहरों को। तुम ये अपने साथ क्यों हो जाने देते हो?

तुम्हारे भीतर कुछ भी अपना नहीं है जो स्थिर रह सके। ‘मैं किसी भी बाहरी प्रभाव से अपने आप को विचलित नहीं होने दूँगा’ तुम ऐसा क्यों नहीं कर पाते हो? क्योंकि तुमने एक धारणा पाल रखी है कि जीवन तो संघर्ष ही है और जो चल रहा हैं उसे चलने दो, कोई उसे बदल नहीं सकता। किसने कह दिया की जीवन एक हार का नाम है? तुमसे किसने कह दिया की यहाँ जो बातें हो रही हैं वो बंद कमरे के लिए हैं। ये जो हो रहा है, जो कहा जा रहा है सिर्फ यही अमल करने योग्य है, व्यावहारिक है। लेकिन तुम कहते हो कि ये तो ऐसे ही सिर्फ़ सिद्धांत है।

यह जीवन है, यही व्यावहारिक है पर सिर्फ़ तभी जब तुम इस पर अमल करो। कुछ भी व्यावहारिक कैसे होगा अगर तुमने फैसला ले ही लिया है कि तुम करोगे ही नहीं। ‘मुझे तो मानना ही नहीं है। ये होते कौन हैं कुछ बोलने वाले, मैंने १८ – २० साल की दुनिया देखी है, मैं कोई बच्चा नहीं हूँ। मैं नहीं मान रहा।

अब जब तुमने फैसला कर ही रखा है तो कुछ भी फायदा कैसे हो जायेगा?

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories