धुआँ-धुआँ ज़िन्दगी || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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धुआँ-धुआँ ज़िन्दगी || नीम लड्डू

आदमी यूँ ही नहीं सिगरेट, शराब पीता; उसे कुछ चाहिए जो उसे मिल नहीं रहा इसलिए वो सिगरेट से क्षुधापूर्ति करना चाहता है। एक सिगरेट से बात बनती नहीं इसलिए दूसरी सिगरेट पीता है, दूसरी सिगरेट से भी बात बनती नहीं तो तीसरी पीता है, चौथी पीता है, पीता ही जाता है। जब सिगरेट बहुत पी ली बात नहीं बनी तो फिर और तरह के नशे करेगा क्योंकि उसे कुछ चाहिए।

तुम्हें क्या लग रहा है कि सिगरेट सब अनपढ़ पी रहे हैं, जिन्हें पता ही नहीं है सिगरेट का क्या अर्थ है? तुम्हें क्या लग रहा है उन्हें अंजाम पता नहीं? उन्हें अंजाम पता है, लेकिन उन्हें कुछ चाहिए जो उन्हें मिल नहीं रहा। अंजाम की वो परवाह नहीं कर रहे।

सिगरेट तब छूटती है जब कुछ ऐसा मिल जाता है जिसके सामने सिगरेट बहुत छोटी हो, और मैं सिगार की बात नहीं कर रहा। तुम्हारा भरोसा नहीं, सिगरेट छोटी करने के लिए सिगार ले आए!

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