प्रश्न: सर, हम ‘चरित्र’ शब्द का अर्थ जानना चाहते हैं|
वक्ता: अभी! आजकल शायद मौसम ही चल रहा है चरित्र(कैरेक्टर) का|
(सभी श्रोतागण हँसते हैं)
वक्ता: अभी सप्ताह भर पहले किसी ने रात के दस बजे एस.एम.एस. पर पूछा, ‘सर कैरेक्टर, चरित्र क्या होता है?’ मैंने जवाब दिया एस.एम.एस. है, शॉर्ट मेसेज सर्विस, तो संक्षेप(शॉर्ट) में ही जवाब देना है| तो मैंने जवाब दिया, ‘जी. एच. ए. एन. टी. ए.’|
(सभी श्रोतागण ज़ोर से हँसते हैं)
वक्ता: घंटा! तो अगर बिलकुल निसंकोच और सीधा-सीधा जवाब चाहती हो, तो जवाब यही है| ‘चरित्र’ माने घंटा!
(सभी श्रोतागण ज़ोर से हँसते हैं)
वक्ता: चरित्र का अर्थ यह है कि हम इतने अंधे हैं कि हम तुम्हारे आचरण के अलावा और कुछ देख ही नहीं पाते!
श्रोता १: आचरण का मतलब?
वक्ता: तुम्हारा व्यवहार| मुझे जड़, पदार्थ के अलावा, कुछ और दिखाई ही नहीं देता| तो मुझे अगर तुमको देखना है तो मैं बस यह देख पाता हूँ कि यह क्या कह रहा है, ये कुछ विशेष प्रकार के कर्म कर रहा है या नहीं कर रहा है और मैं इस तरीके से तुम्हारी कीमत लगाता हूँ, और उसी कीमत को मैंने चरित्र का नाम दे दिया है| चरित्र(कैरेक्टर)!
मैं बिलकुल नहीं जानता कि मन क्या है और मन के तल पर भी, समझ क्या है, यह मैं बिलकुल नहीं जानता| मैं देख सकता हूँ तो सिर्फ शरीर| मैं देख सकता हूँ मात्र आचरण| आचरण और चरित्र एक ही हैं| ‘चर’ मतलब तुम कैसे कार्य कर रहे हो, जी कैसे रहे हो|
चरित्र पर नहीं ध्यान देते हैं, आचरण पर नहीं ध्यान देते हैं| ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि आचरण कहाँ से आ रहा है| यह बात तो कोई यंत्र भी बता देगा कि तुम दाएं जा रही हो या बाएं जा रही हो| यह तो एक छोटा-सा यंत्र भी बता देगा तुम्हें देख कर कि तुम दाएं जा रही हो या बाएं जा रही हो, लेकिन दाएं जाने और बाएं जाने का अर्थ क्या है, यह यंत्र नहीं बता सकता|
आचरण देखने वाले बस यह कहते हैं कि अगर अच्छी लड़की है तो उसको बाएं तरफ ही जाना चाहिए| अगर सुसंस्कृत है, तो उसको बाएं तरफ ही जाना चाहिए| आचरण बताने वाले अंधे हैं, उनको मन नहीं दिखाई देता| उन्होंने तो तय कर रखा है कि जो ऐसा-ऐसा करे, वो अच्छा आदमी और जो ऐसा-ऐसा न करे, वो बुरा आदमी| उनकी नज़र बस वहीं जा कर टिक जाती है कि यह कर क्या रहा है| जबकि कुछ करने का अपने आप में कोई महत्व है ही नहीं| महत्व इस बात का होता है हमेशा कि तुम्हारा करना कहाँ से आ रहा है| तुम जो कर रहे हो उसके पीछे कौन छिपा हुआ है, असली महत्व हमेशा इस बात का होता है|
पर जो आचरण वादी हैं, जो चरित्र की मानसिकता वाले हैं, वो ज़रा भी इस बात को नहीं समझते| उनके लिए तो ज़िन्दगी एक एल्गोरिध्म है| लड़की बाएं जा रही है, तो उसका अच्छा चरित्र है| पर एक दिन लड़की दाएं चल दे तो चरित्रहीन(लूज़ कैरेक्टर)! उसे बिलकुल नहीं पता कि बाएं और दाएं के पीछे बात क्या है, और इसीलिए दुनिया चरित्र वाले लोगों से भरी हुई है| बड़ा आसान है, तुम्हें यही तो सिद्ध करना है न कि ‘मैं चरित्रवान हूँ’, तो बाएं चलते रहो| बाएं चलते रहो, मन में क्या चल रहा है इसकी फ़िक्र किसको है? उन्हें तो हमारा सिर्फ आचरण देखना है, तो आचरण ठीक रखो|
सुना है न- ‘मुहँ में राम, बगल में छोरी’? राम-राम बोलते रहो, आचरण अच्छा रखो| आचरण के पीछे क्या है वो अंधों को दिखाई नहीं देता! गुड मॉर्निंग-गुड ईवनिंग करते रहो, मन में प्रेम है या नहीं, क्या अंतर पड़ता है! आदर का प्रदर्शन करते रहो, वास्तविक सम्मान है या नहीं है, किसको फ़र्क पड़ता है? क्योंकि हम तो अंधे हैं| हमें तो बस वही दिखाई देता है जिसका प्रदर्शन हो रहा है| इसी प्रदर्शन का नाम ‘आचरण’ है|
तुम्हारे मन में कुछ भी चलता रहे, प्रदर्शित बस वही करना जो हम चाहते हैं| बस ठीक है दुनिया चल रही है, मज़े में है| तुम नौकरी करो, दिन-रात अपने बॉस को गाली देते रहो, पर अपना आचरण अच्छा रखो! सब ठीक रहेगा| और बाहर बॉस हो या घर में माँ-बाप हों, क्या अंतर पड़ता है? बात एक ही है| दोनों प्राधिकारी(ऑथोरिटी) हैं| आचरण ठीक रखो| अभी भी तुम देखो न, यहाँ जितने तुम सब बैठे हो, आचरण के तल पर तो सब बहुत अच्छे हो| अभी कोई बाहर वाला यहाँ आए तो कहेगा, ‘क्या बात है, इतने सारे लोग बैठे हुए हैं, यह उपद्रवी लोग हैं, और यहाँ एकदम शांत होकर बैठे हैं, स्थिर हैं, हिलडुल नहीं रहे हैं, शोर नहीं कर रहे हैं, बहुत बढ़िया!’
नहीं कुछ बढ़िया नहीं है| उसने सिर्फ़ आचरण देख लिया है| उसको नहीं पता कि शरीर भले ही न हिल-डुल रहे हो, मन हिल-डुल रहा है, बल्कि मन भारत-भ्रमण कर रहा है| मन कहाँ-कहाँ हो आया वो तुम बता भी नहीं सकते सबको, पर आचरण ठीक है| आचरण में कोई बुराई नहीं है|
आचरण के खेल में तुम पड़ मत जाना, बिलकुल भी नहीं| उसको अंधों के लिए छोड़ दो| जिन्हें कुछ न समझ में आता हो वो चरित्र देख लें और जिनके पास दृष्टि हो, देख पाने कि क्षमता हो, वो असलियत देख लें, तुम्हारे ऊपर है| चुनाव तुम करो, व्यक्ति का आचरण देखना है या व्यक्ति का अंतस देखना है| आचरण देखोगे सुविधा रहेगी क्योंकि वो भी आचरण ही प्रदर्शित करना चाहता है और तुम भी मुसीबत नहीं उठाना चाहते, तो तुम भी सिर्फ़ आचरण ही देखना चाहते हो| तो ठीक है, बला टली, दोनों के लिए सुविधा है|
हाँ! किसी के अंतस में झांकोगे तो असुविधा ज़रूर होगी, गहरी असुविधा होगी| क्योंकि जो लोग झूठ में जीते हैं, सत्य से उनको बड़ी असुविधा होती है| वो सत्य को देखना ही नहीं चाहते| लेकिन जब अंतस में झांकोगे तभी जीवन मिलेगा, नहीं तो जी लो साठ साल, अस्सी साल, मुर्दे ही रहोगे| कमा लो जितना पैसा कमाना है, तुम जीये ही नहीं| बड़ी मूर्खतापूर्ण हरकत की है तुमने, कि पैसा तो बहुत था पर जीने वाला कोई नहीं! इज्ज़त तो बहुत थी पर प्रेम देने वाला कोई नहीं! वो प्रेम अगर वास्तव में चाहिए, जीवन अगर वास्तव में चाहिए, तो अंतस को देखना, आचरण को नहीं| समझ रही हो?
और नज़रें ऐसी रखो जो शरीर के पार भी देख सकती हों| जो सिर्फ़ यही न देखें कि किया क्या जा रहा है, कर्म कैसे हैं? वो कर्म के पीछे का बोध भी देखें, नज़रें ऐसी रखो| हमारी नज़रें ऐसी हैं नहीं, हम सिर्फ कर्म देखते हैं| तुम देखो न कि तुम शिकायतें भी कैसी करते हो लोगों से, ‘तूने ऐसा किया क्यों?’ यही तो कहते हो न? और ‘किया’ माने कर्म| ‘कर्म’ माने आचरण! कभी-कभार ही तुमने किसी को किसी से यह कहते सुना होगा, ‘तू समझता क्यों नहीं?’|’तू करता क्यों नहीं?’ यह शिकायत तो तुमने खूब सुनी होगी! हमारा सारा खेल ही ‘करने’ और ‘न करने’ का है| ‘समझने’ और ‘न समझने’ की बात ही हम कहाँ उठाते हैं?
कोई हो गहराई से नासमझ, पर वो कर वही सब कुछ रहा है जो तुम चाहते हो, तो तुम्हें कोई शिकायत नहीं रहेगी| बात ठीक है या नहीं? हम बड़े ही सतही तरीके से जीते हैं| हमें इससे मतलब है कि किया क्या जा रहा है, उस करने के पीछे कोई बोध है या नहीं, उससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है| प्रेम है या नहीं, कोई फ़र्क नहीं पड़ता| तुम जी रहे हो या नहीं, कोई फ़र्क नहीं पड़ता!
साँस लेने से, उठने-बैठने से, खाने-पीने से तुम ज़िन्दा नहीं कहला सकते| जीवन कोई दूसरी ही चीज़ है| किसी ने कहा है कि ज़्यादातर लोगों को मृत्यु प्रमाण-पत्र मिलता तो है ७५ वर्ष की आयु में है, मरने के बाद, पर वो मर पच्चीस वर्ष की आयु में ही गए होते हैं| ये मृत्यु प्रमाण-पत्र पचास साल देरी से आया| बात समझ रही हो?
जीवन मिला ही नहीं| लाश की तरह ही चल रहे थे| हाँ! हँस बोल रहे थे वो अलग बात है पर उससे जीवन नहीं हो जाता| हँसना-बोलना आचरण मात्र है, उसे जीवन नहीं कहा जाता है|
– ‘ज्ञान सत्र’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।