बोध सशक्त प्रेरणा है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

8 min
68 reads
बोध सशक्त प्रेरणा है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: जहाँ मोटिवेशन है, वहां डीमोटिवेशन भी आएगा| मोटिवेशन शब्द ही तभी अर्थपूर्ण है जब पहले डीमोटिवेटीड हो| जो डीमोटिवेटीड है उसी को ही तो मोटिवेशन चाहिए न| मतलब मोटिवेशन तुम सबको चाहिए| मतलब तुम सबने पक्का ही कर लिया है कि हम पहले डीमोटिवेटीड होंगे| ये कहाँ की समझदारी है? मोटिवेट कौन होगा? जो पहले मोटिवेटीड नहीं है, उसी को तो कोई आगे मोटिवेट करेगा| या कुछ पढ़ेगा तब मोटिवेट होगा? तो तुम सब मोटिवेट होना चाहते हो और कहते हो कि डीमोटिवेशन समस्या है| डीमोटिवेशन समस्या है, तो मोटिवेशन कैसे आएगा? डीमोटिवेशन तो तुम्हारे लिए वरदान है क्योंकि तुम्हें मोटिवेशन चाहिए|

श्रोता: सर अगर हम किसी प्रश्न का जवाब देते हैं और सामने वाला इंसान हमें डीमोरलाईस कर देता है, तो जो मेरा है, जो मैंने बोला है, वो कैसे हमें डीमोरलाईस कर देता है?

वक्ता: उसको पूरा हक है करने का जो भी वो कर रहा है| सवाल ये नहीं है कि वो क्या कर रहा है, सवाल ये है कि, तुम उस पर इतना निर्भर क्यों कर रही हो?

श्रोता: अहंकार आ गया|

वक्ता: बात पकड़ो, करीब-करीब बात यही है| आत्म-सम्मान को ठेस पहुँच गयी|

श्रोता: सर किसे ठेस पहुँच गयी?

श्रोता: अहंकार है सर|

वक्ता: देखो क्या है| मुझे तुमसे ठेस पहुंचे इसके लिए आवश्यक है कि मैं अपनी छवि तुम पर निर्भर रखूं| मैं कहूँ कि अगर तुम बोलोगी कि मैंने बहुत अच्छी बात की, तो मैं खुश हो जाऊँ, तुम बोलोगी कि बेहुदा परपंच बता कर चले गये, तो मैं निराश हो जाऊँ| ये तभी होता है जब आदमी अपने आप पर बिल्कुल ध्यान ही न दे| ये तभी होता है जब मुझे खुद न पता हो कि मैं क्या बोल रहा हूँ| अगर मुझे अपना पता है तो दूसरे के बोलने को मैं अपनी छवि नहीं बना सकता| तुम जो बोल रही हो न कि कोई आ कर डीमोटिवेट कर देता है, दूसरा कोई डीमोटिवेट तभी कर सकता है जब तुम उस पर निर्भर हो| तुम निर्भर ही नहीं हो तो वो डीमोटिवेट कैसे करेगा? पर तुम्हारे लिए निर्भर होना ज़रूरी है| क्यों? क्यूंकि मोटिवेट भी तो उसी को करना है| तुम मोटिवेट होने के लिए भी तो किसी और पर ही निर्भर करते हो न कि कोई आये और दो -चार गाने सुनाये कि, ‘उठो वीर शस्त्र उठाओ, युद्ध करो, हे! अर्जुन’, और तब तुम मोटिवेट होते हो कि आकर किसी ने कुछ बोला| लगातार तलाश में रहता हो कि कोई आकर मोटिवेट कर दे| अब जो तुम्हें मोटिवेट कर सकता है वो…

श्रोता: डीमोटिवेट भी कर सकता है|

वक्ता: सब समझदार हो, सब समझ गये| जिसको तुमने ये हक दे दिया कि वो मोटिवेट कर दे, उसको तुमने ये हक भी तो दे दिया की वो तुम्हें…

श्रोता: डीमोटिवेट कर दे|

वक्ता: अब मरोगे न| तुमने अपनी कमान दोनों तरीके से उसके हाथ में दे दी, कि इधर से भी हमें थामो और इधर से भी थामो| अब वो तुमको ता-ता-थय्या नचा रहा है, तो ये तो होना ही है| तुम कैसे रोक पाओगे? पर तुम बड़े आतुर रहते हो कि सर कुछ मोटिवेशनल बात बताइये न और वहीँ सर झड्का दें ज़रा सा, फिर कहते हैं कि सर ने हमारे आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाई| हम कह रहे थे मोटिवेशनल बात बताइये और इन्होंने हमें डांट लगा दी| इस तरह के तो हमारे खेल चलते हैं|

किसी पर आश्रित मत रहो, बिल्कुल भी नहीं, न मोटिवेशन के लिए, न किसी को आदर्श बनाओ| पूरे तरीके से खुले रहो, लेकिन आश्रित किसी पर नहीं| सबको प्यार दो, लेकिन आश्रित किसी पर नहीं| ये समझ रहे हो बात को?

जब मुझे ये पता है कि मैं कौन हूँ और मैं कर क्या रहा हूँ, तो मुझे मोटिवेशन किसी और से क्यों चाहिए? जीवन मेरा, मन मेरा, कर्म मेरा और मुझे चाबी भरने कोई और आएगा| तो क्या तुम आदमी हो फिर? जीवन मेरा, समझ मेरी, कर्म मेरा, तो मोटिवेशन किसी और से क्यों चाहिए? क्यों? बस अपने में पूरे रहो| किसी की ओर मत देखो| जितना दे सकते हो दो, पर पाने की अपेक्षा मत करो| जितना बांट सकते हो बांटो| कोई गिरा हुआ है, बेशक उसको सहारा देकर उठा दो| पर खुद गिरो, तो अपने आप उठो|

कोई और गिरा हुआ है और तुम्हारी सामर्थ्य है, तो हाथ बढ़ा दो हाथ, पर खुद गिर जाओ तो अपेक्षा में मत लेटे रहो कि अब कोई आएगा और उठाएगा, तब तक थोड़ा लेट लेते हैं ५ मिनट, हमने ५-७ लोगों को उठाया हुआ है, आज का दिन है टेस्ट करने का कि इसमें से कितने एहसान फरामोश हैं| जिसको उठा सकते हो, गिरे को तो उठा दो, पर खुद गिर जाओ तो स्वयं उठो| ये मैं अहंकार की बात नहीं कर रहा की हम किसी का सहारा नहीं लेते| अरे जब तक दम है तब क्यों! हाँ जिस दिन ऐसा हो जाएगा कि गिर कर बेहोश ही हो जायेंगे, उस दिन तो और कोई आ कर उठा ही देगा| अभी मैं क्यों निर्भर रहूँ कि आये कोई और मोटिवेट करे कि, ‘वीर कीचड़ है, ये स्थान तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं है उठो’| अरे कीचड़ है, तो तुम्हें भी दिखना चाहिए, बदबू उठ रही है|

श्रोता: सर जो इंसान अपने आप को मोटिवेट करता है, उसके बारे में कुछ बताइए|

वक्ता: जो सेल्फ-मोटिवेशन है, वो वास्तव में मोटिवेशन है ही नहीं| मोटिव का अर्थ होता है- लालच, कि ये मेरा मोटिव है, मैं ये पाना चाहता हूँ| जो सेल्फ-मोटिवेशन होता है वो वास्तव में मोटिवेशन होता ही नहीं है, वो तो आपका सहज कर्म होता है| मोटिवेशन हमेशा बाहरी होता है| सेल्फ-मोटिवेशन, मोटिवेशन है ही नहीं, वो तो आपकी समझ से प्रेरित तात्कालिक कर्म है| वो उसी समय होगा| मैं समझ गया किसी बात को और मैंने कर डाला, अब इसमें मोटिवेशन क्या| लालच हमेशा बाहरी होता है| बाहर कुछ पाना|

हम आमतौर पर जिसको सेल्फ-मोटिवेशन बोलते हैं, वो कहने को सेल्फ-मोटिवेशन है, पर वो है बाहरी ही| अब उदाहरण के लिए दो बच्चे हैं, एक नहीं पढ़ रहा है और एक पढ़ रहा है| जो पढ़ रहा है उसको आप बोलोगे कि सेल्फ-मोटिवेटीड है, जो नहीं पढ़ रहा है उसको कोई और आ कर बोले तो आप कहोगे कि ये बाहरी मोटिवेशन की तलाश में है| पर आप ज़रा बारीकी से देखिये कि ये हो क्या रहा है| वो जो दूसरा आदमी है जो पढ़ रहा है वो भी पढ़ सिर्फ इसीलिए रहा है कि आगे कुछ पा सके| क्या इन दोनों में से किसी को भी पढ़ाई से प्रेम है?

श्रोता: नहीं, सर|

वक्ता: तो इन दोनों का ही मोटिवेशन बाहरी है| ये दोनों ही कोई बाहरी चीज़ पाना चाहते हैं और उसी लालच में पढ़ रहे हैं| मार्क्स पाना चाहते हैं, नौकरी पाना चाहते हैं, जो भी पाना चाहते हैं, उसके लालच में पढ़ रहे हैं| ऐसा लग सकता है कि एक सेल्फ-मोटिवेटीड है और दूसरा, ऐसा लग सकता है कि इसमें सेल्फ-मोटिवेशन की कमी है, पर दोनों में ही जो मोटिवेशन है वो बाहरी है, पूरी तरह बाहरी है| अपना तो वो होता है जब मैं कहता हूँ कि ये रही किताब और आ रहा है पढ़ने में मज़ा| हमे न खाना है, न पीना है, हमें पढ़ने में मज़ा आ रहा है| चलो निकलो सब बाहर हमें पढ़ने दो जरा| अब ऐसे आदमी को क्या मोटिवेशन की ज़रुरत है ? और जीवन में अगर कोई कुछ पायेगा तो यही पायेगा क्योंकि इसे इस किताब के साथ मज़ा आने लग गया है| ये किताब अब इसके लिए साधन नहीं रही कि इस किताब के माध्यम से कुछ पा लेगा, इसे इस किताब में ही मज़ा आने लग गया है| अब इसका मज़ा ही इसको बहुत मजे में रखेगा| लगातार अब ये मौज में है|

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories