बहुत प्रेम चाहिए सच बोलने के लिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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बहुत प्रेम चाहिए सच बोलने के लिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: बहुत प्रेम चाहिए दूसरे को आइना दिखाने के लिए, बहुत प्रेम चाहिए दूसरे से सच्ची बात बोलने के लिए। क्योंकि सच्ची बात बोलने में ख़तरा है न, क्या ख़तरा है? उसको कड़वी लगेगी, उसको कड़वी लगेगी तो? वो कुछ कड़वाहट तुम्हें भी चखा देगा। तुम जिसको कड़वी बात बोलोगे वो पलटकर कड़वा वार तुम पर भी करेगा न, वो वार तुम तभी सह सकते हो जब तुम्हारे भीतर प्रेम हो। इसलिए मैं बोल रहा हूँ कि दूसरे से कड़वी और सच्ची बात बोलने के लिए बड़ा प्रेम चाहिए।

कहो कि मुझे मालूम है, मैं बहुत आसानी से, सरलता से तुझसे मीठी-मीठी और झूठी बातें करूँ और तू भी मुझे झूठी और मीठी बातें करता रहेगा और रिश्ता आराम से चलता रहेगा। पर नहीं, अगर मैं तुझसे नफ़रत करता होता तो मैं रिश्ते को आराम से चलने देता पर कद्र करता हूँ भई तुम्हारी और प्रेम करता हूँ तो इसीलिए सच्चाई बोलूँगा। मैं करूँ क्या, सच्चाई चीज़ ही ऐसी है की कड़वी लगती है। सच्चाई कड़वी होती नहीं है, लगती है।

सच्चाई चीज़ ही ऐसी है कि तुम्हें कड़वी लगने वाली है। और मुझे मालूम है, तुम्हें जानता हूँ, तुम्हें अगर मैंने कोई एक कड़वी बात बोली तो तुम मुझे पाँच कड़वी बात बोलोगे, लेकिन मैं तैयार हूँ, मैं झेलूँगा। क्यों झेलूँगा? क्योंकि प्रेम है। और अध्यात्म बहुत-बहुत-बहुत सम्मान देता है सच्चाई को।

तो दूसरा बहुत आदरणीय है, दूसरा बहुत प्यारा है, दूसरा बहुत मूल्यवान है उस सीमा तक जिस सीमा तक हमारा उसका सच्चाई का रिश्ता है। और जहाँ तक रिश्ते के अन्य पहलुओं की बात है; भाड़ में जाए, झूठ ही तो है। कचरे की कितनी परवाह करनी है, सर पर रखकर घूमेंगे क्या कचरे को? जहाँ कहीं कूड़ा-कचड़ा हो उसके प्रति बड़ी बेदर्दी रखता है, बड़ी बेरुख़ी, एकदम ही अपेक्षा का भाव। कूड़ा-कचड़ा उठाकर फेंक दो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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