बड़ा काम करो, छोटे काम स्वतः हो जाएँगे || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

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बड़ा काम करो, छोटे काम स्वतः हो जाएँगे || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक भजन पढ़ा जिसमें गुरु शिष्य को आदेश देते हैं कि जंगल जाकर ऐसी लकड़ी लेकर आओ जो न सूखी हो और न गीली हो। इसका मर्म समझाने की कृपा करें।

आचार्य प्रशांत: यह करीब-करीब ऐसा है जैसे जेन क़ुआन। कि लकड़ी लाना पर ऐसी लकड़ी लाना जो न गीली हो न सूखी हो। उसको खोजो जो पदार्थ नहीं है। तुम्हें रोटी चाहिए, उसको खोजो जो पदार्थ नहीं है वो तुम्हें रोटी दे देगा। इस वाक्य को तीन बार मन में दोहराओ। गुरु चेले से कह रहा है ‘तुझे रोटी चाहिए न, पूरी दुनिया रोटी के लिए दीवानी है। तू उस आटे की रोटी खा जो अन्न से उत्पन्न नहीं है। तुझे रोटी ही चाहिए न। तू उसको खोज जो पार्थिव नहीं है, भौतिक नहीं है। रोटी तुझे मिल जाएगी अपनेआप मिल जाएगी।‘ समझ रहे हो आप। और तुझे रोटी सेकने के लिए लकड़ी चाहिए तू वो लकड़ी खोज जो इस दुनिया की नहीं है।

आशय यह कि उसको खोज जो इस दुनिया का नहीं है लकड़ी तुझे फिर अपनेआप मिल जाएगी। तू अपना असली काम कर बाक़ी काम तेरे अपनेआप कोई और कर देगा। ऐसे समझ लो कि बड़ा स्थूल बड़ा क्रॉस एग्जाम्पल है लेकिन फिर भी काम का है। कोई बड़े ओहदे का अधिकारी होता है वो दिनभर अपना काम करता है और शाम को घर लौट के आता है, अपने कमरे में लौट के आता है तो वो क्या पाता है? खाना तैयार है, बिस्तर तैयार है, सफ़ाई कोई कर गया है, कपड़े कोई धो गया है। यह सब सुविधाएँ उसे उसके पीछे न जाने कौन दे जाता है। बात समझ रहे हो। और वो अधिकारी यह पता करने की चेष्टा भी नहीं करता कि मुझे यह सब किसने दे दिया। वो यह नहीं कहता कि सुबह तो मैं गया था तो बिस्तर और चादर गन्दी और सिलवटों भरी छोड़ के गया था, अभी लौट कर आता हूँ तो मेरा बिस्तर किसने तैयार कर दिया।

यह इनाम मिलता है आपको कि आपने दिनभर जो काम किया वो बहुत-बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण था, तो आपके छोटे काम आपकी पीठ पीछे अपनेआप हो जायेंगे। कोई और कर जाएगा। तुम वो काम करो जो बड़ा और महत्वपूर्ण है छोटा काम तुम्हारे पीठ पीछे कोई अपनेआप कर जाएगा। लेकिन जिनमें श्रद्धा नहीं होती वो क्या करते हैं? वो बड़ा काम किनारे रखकर वो छोटे की फ़िक्र में दिनभर लगे रहे जाते हैं। कि सब्जी काट लूँ, सब्जी ले लाऊँ, घर की पुताई कर दूँ, सफ़ाई कर दूँ और जीवन उनका फिर इसी में बीत जाता है। और उनसे पूछो कि बड़ा काम क्यों नहीं कर रहे तो वो कहेंगे फिर यह छोटा कौन करेगा! छोटा अपनेआप हो जाता है और अगर तुम्हारे जीवन के छोटे काम उलझे हुए हैं तो इससे संदेश साफ़ है, तुम बड़े की परवाह नहीं कर रहे इसीलिए तुम्हारे छोटे काम भी उलझे हुए हैं।

दो तरफ़ा सज़ा मिल रही है तुमको। बड़ा तुम कर नहीं रहे और छोटा तुम्हारे करने के कारण उलझ गया है। बड़ा तुम कर ही नहीं रहे और छोटा हो क्यों नहीं रहा? क्योंकि तुम उसे कर रहे हो। तुम दोनों ओर से मार खाए, तुम कहीं के नहीं रहे। यही कहानी है न ज़िंदगी की। बड़ा किया नहीं छोटा हुआ नहीं। बड़ा तो किया ही नहीं और छोटा करना चाहा पर वो हुआ नहीं। जो बड़ा करते हैं छोटा उनका अपने आप हो जाता है, जैसे तोहफ़ा मिलता हो। जैसे वज़ीफ़ा मिलता होकि तुमने कमाया नहीं कोई आकर दे गया क्योंकि तुमने वो किया जो उचित था। और क्यों दे दिया तुमको यह तोहफ़ा? ताकि अगली सुबह तुम फिर उचित काम कर सको। अधिकारी को पीछे से क्यों यह सुविधा मुहैया कराई जाती है? ताकि उसका समय व्यर्थ के कामों में बर्बाद न हो और वो अगली सुबह उठे और फिर जो सही काम है वो कर सके।

छोटी सुविधाएँ तुम्हें इसलिए नहीं दी जाती कि छोटा बहुत बड़ा इनाम हो गया। छोटी सुविधा तुम्हें इसलिए दी जाती है ताकि तुम बड़े की ओर एकाग्रता से निर्विग्न होकर रत रह सको। समझ में आ रही है बात। और यह शिकायत तुम कभी करते भी नहीं न कि यह बड़ा काम नहीं हुआ। काम अटकते कौन से हैं सारे? अब यह भी बड़ी मज़ेदार बात है। जो बड़ा करने निकला, उसका बड़ा न हो यह कभी होता नहीं। और जो छोटा करने निकला उसका छोटा काम भी हो जाए यह भी कभी होता नहीं। जो बड़ा करने निकले उसकी हैसियत के बावजूद फ़र्क नहीं पड़ता तुम्हारी क्या हैसियत है, उसकी सीमित हैसियत के बावजूद उसको बड़े में सफलता मिल जाती है सिर्फ़ इसलिए कि वो करने तो निकाला। तुम्हारा इरादा, तुम्हारा पहला क़दम, तुम्हारा निष्कपट कर्म ही तुम्हारी सफलता बन जाता है। तुम करने निकले सफलता मिल गयी और जब छोटा करने निकलते हो तो पूरी ताकत लगा देते हो और सफलता फिर भी नहीं मिलती।

यह बिलकुल उल्टा गणित है। बड़ा आसानी से हो जाता है और छोटा कभी पूरा ही नहीं होता। बड़ा तुम्हारी छोटी हैसियत के बावजूद हो जाता है और छोटा तुम्हारी बड़ी से बड़ी हैसियत के बावजूद नहीं होता। कल हमने जीजस का जो कथन कहा था उसे दोहराएँगे- ‘जिन्हें बहुत है उन्हें और मिलेगा और जिन्हें कुछ नहीं है उनसे वो भी छिनेगा जो उनके पास है।’ छोटे में खेलोगे तो बड़े से तो हाथ धोया ही, छोटे को भी गँवा दोगे। और जो बड़े की सेवा करेगा वो बड़े को तो तत्काल पाएगा ही, छोटा उसे पीठ पीछे इनाम की तरह मिल जाएगा। लो, दिया। इतने बड़े- बड़े तुम काम कर रहे हो तुमसे बर्तन थोड़ी धुलवाएंगे, बर्तन तुम्हारे पीठ पीछे कोई और धो जाएगा। होटलों में होता है न तुम सवेरे कमरा बन्द कर के घूमने निकल गये और शाम को लौट के आये तो कमरा चकाचक। आयी बात समझ में।

छोटे में मत उलझना। पहली बात तो वह छोटा है और दूसरी बात उससे उलझ के कोई जीतता नहीं। पहली बात तो वो छोटा है और दूसरी बात उससे उलझ कर के कोई...(जीतता नहीं) पहली बात तो छोटा है और दूसरी बात उस छोटे से भी तुम हार खाओगे। दोनों तरफ से मारे जाओगे, जीते तो कुछ मिला नहीं क्यों? क्योंकि वो छोटा है। और हारे तो बड़ी बेईज्ज़ती- कि किससे हारे? छोटे से हारे। लड़ो तो बड़ी लड़ाई, झुको तो बड़े के सामने।

रोटी की ख़ातिर तो यह (पास में सोया हुआ कुत्ता) भी परेशान नहीं रहता, सुरक्षा की ख़ातिर तो यह भी परेशान नहीं है। देखो, उसको (कुत्ते को) देखो। हम हैं जो पेट को रोटी और मन को सुरक्षा देने के लिए पगलाए रहते हैं। एक सवाल पूछ रहा हूँ, ऐसे पंद्रह-बीस कुत्ते हो चारों ओर तुम्हारे, तुम बीच में ऐसे सो लोगे? पंद्रह-बीस अंजाने कुत्ते जिन्हें तुम जानते नहीं, तुम्हारे पालतू कुत्ते नहीं भाँति-भाँति के कुत्ते। पंद्रह-बीस अंजाने कुत्ते हों तुम बीच में ऐसे सो लोगे? आदमी ही है जो छोटी उलझनों में पड़ा हुआ है, पेट को रोटी कहाँ से मिलेगी और मन को सुरक्षा कहाँ से मिलेगी। तुम्हारे पास पैसा है न? इतना तो है कि शाम की रोटी ख़रीद कर कहीं से खा लोगे तुम तब भी परेशान हो। इसकी शाम की रोटी कुछ पक्का नहीं, कुछ तय नहीं कहाँ से आएगी या आएगी कि नहीं आएगी। इसके पास न एक रूपया है न रोटी का भंडार है, तुम इस हालत में होते तुम्हारा क्या होता? तुम्हारी जेब में एक रुपया नहीं और तुम्हारे पास रोटी का कोई ज़रिया नहीं जैसे इसके पास नहीं है, तुम ऐसे सो रहे होते?

तुम्हारे मन में आग लगी होती, तुम्हारा दिल धड़-धड़ धड़-धड़ कर रहा होता। और इतना ही नहीं है न सिर्फ़ तुम्हारे पास एक रूपया नहीं, न सिर्फ़ तुम्हारे पास शाम की कोई आश्वस्ति नहीं रात की, तुम बीस कुत्तों से घिरे बैठे हुए हो। यह तुम्हारी हालत होती अब बताओ तुम क्या करते? तुम कहते हे गंगा मैया! ले ही चल। यह देखो, कभी-कभी इनके चरण स्पर्श कर लिया करो, कुछ चीजें सीख लोगे इनसे। वो देखो एक और देवता आ गये, हमारी ही बात चल रही है। और उन्हें इससे भी मतलब नहीं है कि अभी हमारी तारीफ़ हो रही है। तुम्हारी तो तारीफ़ हो रही हो तो तुम कब्र से बाहर निकल के सुनने आ जाओ, मरे से जी जाओ। और यह सोते से उठने को तैयार नहीं है। करे रहो तारीफ़, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वैसे तुम अभी गरियाओ उसको- ‘कुत्ता, लोट रहा है जमीन पर।‘ उसे कोई फ़र्क पड़ता है?

और वो यहाँ इसलिए नहीं आया है कि तुम परमतत्व की चर्चा कर रहे हो। उसे घूमना है फिरना है इसीलिए आया है, देखा तुमको, चला गया। वो ध्यान लगाए बिना ही सहज है और तुम ध्यान लगा-लगा के भी मिमियाते ही जाते हो। कुछ नहीं सुना, तुम्हारी बदकिस्मती यह है कि तुमने हज़ारों- करोड़ो प्रवचन सुने। गुरुओं से नहीं उनको तो आज पकड़ा है हाथ में, तुम जिस दिन पैदा हुए थे उसी दिन से तुम प्रवचन सुन रहे हो। गलत गुरुओं से बहुत कुछ सुन लिया है न इसलिए अब ऋषियों से और कबीरों से सुनना पड़ता है ताकि जो चादर मैली कर ली है वो जरा साफ़ भी हो सके। उनकी चादर मैली हुयी ही नहीं। उन्हें कभी किसी से शिक्षा मिली ही नहीं, वो प्रकृतिस्थ थे। उनके ऊपर कोई एक आख़िरी बोझ है तो वो मात्र देह है, प्रकृति है। सामाजिक, शैक्षणिक, संस्कारिक कोई बोझ नहीं उनके ऊपर।

प्र: तो फिर तो यह समझते ही नहीं हैं।

आचार्य: तुम जिसे समझ कहते हो वो नासमझी है। तुम क्या समझते हो?

प्र: तो फिर सारी दुनिया में सिर्फ़ आदमी ही क्यों बिगड़ गया है?

आचार्य: क्योंकि आदमी में सुधरने की, उठने की सबसे ज़्यादा सम्भावना थी। जैसे कि तुम्हें गाड़ी दी गयी हो, तुम ले तो किसी भी दिशा जा सकते हो न। परम सम्भावना थी आदमी में कि वो देह को भी लाँघ जाए, इनमें वो सम्भावना नहीं है। यह देह को नहीं लाँघ सकते, यह अपनी देह के वश में ही रहेगा हमेशा। समझ रहे हो न। इसकी ऋतु आएगी तो इस पर कामवासना छाएगी ही छाएगी। इसे भूख लगेगी तो यह रोटी के पीछे दौड़ेगा ही दौड़ेगा। इसे नींद आएगी तो इसके लिए सबसे ऊँची चीज़ क्या हो जाएगी, नींद।

आदमी में सम्भावना थी कि वो देह को पार कर जाता तो आदमी को गति की शक्ति दी गयी थी। आदमी से कहा गया था कि जो बन्धन स्वान के पास है वही तेरे ऊपर भी है, कौन सा बन्धन? प्रारंभिक बन्धन कौन सा? शरीर का। लेकिन तुझे यह शक्ति दी जा रही है कि तू पैदा तो स्वान जैसा हुआ है वही देह का बन्धन ले कर लेकिन तू मरे स्वान जैसा नहीं। तू मरे अपना बन्धन तोड़ करके। कुत्ते को यह सुविधा नहीं है कि वो जब मरे तो कुत्ता न हो, वो मरेगा भी तो कुत्ता ही मरेगा। आदमी को यह हक़ था, यह अनुग्रह था कि वो आदमी तो पैदा हुआ है। आदमी पैदा होना माने कुत्ता पैदा होना, कोई अंतर नहीं है। पैदा तो वो आदमी हुआ है लेकिन जब वो मरे तो आदमी की हदों से आगे जाकर करके मरे।

लेकिन आदमी ने उल्टा कर लिया। जैसे कि जो वाहन तुम्हें दिया गया हो ऊर्ध्वगमनके लिए तुम उसका प्रयोग कर लो पाताल गमन के लिए अधोगमन के लिए। तुम्हें हक़ दिया गया था कि तुम अपनी बेड़ी (खोल सको) और आदमी ने क्या किया? आदमी ने उस हक़ का इस्तेमाल कर लिया बेड़ी तोड़ने के लिए नहीं, पचास बेड़ियाँ और पहनने के लिए। कुत्ते के पास एक बेड़ी थी, वह एक बेड़ी पहने जीवन भर फिरता रहेगा और वही एक बेड़ी पहने-पहने मर भी जाएगा। आदमी एक बेड़ी पहन कर पैदा होता है और मरता है तो उसके पास सौ बेड़ियाँ होती है। कोई होता है एक बुद्ध, एक कबीर जो बेड़ी के साथ पैदा हुआ था लेकिन मरता है आजाद। वैसा लाखों में एक होता है, यह दुर्भाग्य मानवता का कि वैसा लाखों में एक ही क्यों होता है।

प्र: आचार्य जी, फिर यह बहुत असम्भव जैसा लगने लग जाता है, आप बोल देते हो कि एक बुद्ध और एक कबीर हुए हैं, बुद्ध और कबीर तो करोड़ों में से एक हुए हैं।

आचार्य: तो तुम क्यों नहीं हो सकते? एक ही तो होना है। करोड़ो में करोड़ो में? तो तुम करोड़ो पर ध्यान दे रहे हो कि एक पर?

प्र: ध्यान तो करोड़ों पर ही जाता है।

आचार्य: तुम्हारा ध्यान करोड़ों पर जा रहा है। करोड़ों में एक। और यह लोकेश कितना है एक है कि पाँच है? तो करोड़ों में एक और लोकेश क्या है? एक तो करोड़ों में लोकेश भी तो हो सकता है।

प्र: एक डर बन जाता है।

आचार्य: मेरे लिए है ही नहीं। मेरे लिए नहीं है।

प्र: शायद मैं भी उसमें नहीं आ सकता।

आचार्य: अब देखो मर्ज़ को छिपाएँ क्या? यह बात तो बिलकुल ठीक है। अगर तुम हरकतें वही करोगे जो करोड़ों लोग कर रहे हैं, तो तुम्हारा हश्र भी वही होगा जो करोड़ों लोगों का है। मत करो ऐसी हरकतें।

प्र: तो यह मामूली बात से तो काम चलेगा नहीं?

आचार्य: मामूली से क्या मतलब है, गैर-मामूली हैं सब। देख नहीं रहे हो कैसे-कैसे अंजाम, करतूतें, कमाल करके दिखा रहे हैं, वो सब गैर-मामूली हैं। यह(कुत्ता) क्या है? मामूली है। मामूली होना आसान है कि गैर-मामूली? करोड़ों में एक होना आसान है, मुश्किल है करोड़ों जैसा होना। और वो मुश्किल काम हम रोज़ कर रहे हैं, हमारी पीठ चरमरा गयी है वो मुश्किल काम करते-करते, हमारा सीना छलनी हो गया है। आसान काम क्या है? करोड़ों में एक होना। मुश्किल काम क्या है? करोड़ों जैसा होना। क्यों वो मुश्किल काम करे जा रहे हो।

जानते हो न कितना मुश्किल है भीड़ के साथ चलना? रोज़-रोज़ आत्मा का हनन करना पड़ता है। करना पड़ता है कि नहीं करना पड़ता है? क्यों कर रहे हो इतना मुश्किल काम, इतना गैर-मामूली काम।

प्र: लेकिन इतनी बार सुनने के बाद भी बात समझ में क्यों नहीं आती? ओशो के साथ भी लाखों लोग थे।

आचार्य: क्योंकि अभी मेरी बात सुनोगे फिर मोबाइल उठा लोगे, करोड़ों जैसी हरकतें करोगे तुम। मोबाइल उठा कर तुम क्या करते हो? परमात्मा का नम्बर डाईल करते हो। उन्हीं करोड़ों लोगों में से किसी एक को पकड़ लोगे, उसी के जैसे हो जाओगे फिर से। यही करते हो कि नहीं करते हो? आप अपने दुश्मन हो तो कोई क्या करे? तुम ऐसा करते हो कि मेरी बात सुनते, तुममें और प्यास जगती। मेरी बात सुनने से पहले तुमने एक अध्याय पढ़ा होता, सुनने के बाद तुम दूने वेग से दो अध्याय और पढ़ते तो काहे को तुम मुश्किल में फँसते! तुम तो कहते हो कि आज का कोटा पूरा हो गया। तुम तो सत्य की भी राशनिंग करते हो। मैंने तो दो घंटे दे दिये, इनको गुरुदेव को, अब कुछ कुनबे कुटुंब की सुध ले कि न लें? नौकरी-चाकरी दाना-पानी भी तो देखना है न या इनका भाषण ही सुनते रहेंगे। तो भाषण ख़त्म हुआ और फिर मोबाइल शुरू।

अब तुम चक्कर में पड़ जाते हो। तुम कहते हो माने क्या? भाषण जितना ज़्यादा सुनें मोबाइल उतना दूर होता जाएगा? तुम कहते हो फिर तो हमें चुनाव नहीं करना पड़ेगा हम जानते हमें क्या सुनना है। अगर मुकाबला भाषण और मोबाइल में है, सत्य और संसार में है तो फ़ैसला हो चुका। क्या? जय संसार की!

प्र: संसार में इतना रस क्यों दिखता है आचार्य जी?

आचार्य: पिटे बहुत हो और क्या। कोई गहरी बात थोड़ी ही है। एक घटिया पिक्चर है नाम नहीं याद उसका, उसमें क़ादर खान और शक्ति कपूर है। कौन है? क़ादर खान और शक्ति कपूर। क़ादर खान उसमें अँधा भिखारी बना बैठा है, याद आ गयी? वो अँधा भिखारी बन कर बैठा है और क्या कर रहा है? गली के मोड़ पर बिलकुल बैठा है, भीख माँग रहा है। शक्ति कपूर आता है, बोलता है कि तू अँधा है? वो कहता है,‘हाँ’तो उसके कटोरे में जितने सिक्के होते है वो निकालने लगता है। तो वो बोलता है मत निकाल, यह सिक्के नकली हैं। क़ादर खान बोलता है शक्ति कपूर से मत निकाल, यह सिक्के नकली हैं। वो बोलता है, ‘तू तो अँधा है तुझे कैसे पता चला कि यह नकली हैं?’ बोलता है, ‘आँखें अंधी हैं, नाक थोड़ी अंधी है।‘ पूछा, ‘नाक से क्या करता है?’ बोलता है, ‘नाक से मैं जौनपुरियों को पहचान लेता हूँ।‘ कहता है,‘कैसे?’ बोलता है, ‘सिर से उनके जो खुशबू-बदबू जो आती है, उससे।‘ तो यह सब चल रहा है प्रलाप, इतने में अँधा भीखारी खटाक से चाकू निकालता है और उसके लगा देता है। बोलता है, ‘चल आ जा पीछे वाली गली में।‘ उसने पूछा- ‘तू तो अँधा था?’ बोलता है, ‘अंधों के लिए ही अँधा था।‘ वो उसको ले जाता है पीछे और लूटता है अच्छे से, ज़्यादा तो था ही नहीं उसके पास जो भी था वो लूटता है।

शक्ति कपूर कहता है, ‘लूट तो लिया ही है, अब मुझे जहाँ जाना था वहाँ का रास्ता भी बता दे।‘ पूछता है, ‘कहाँ जाना था?’ तो वह बताता है, ’फ़लानी जगह जाना था।‘ बोलता है, ‘ऐसा कर सीधे जा, वहाँ से बायाँ मुड़ ले, फिर वहाँ से फिर बायाँ मुड़ ले, फिर वहाँ से फिर बायाँ मुड़ ले फिर वहाँ एक लाल बत्ती आएगी, उससे सीधे चले आना।‘ शक्ति कपूर बोलता है- ‘ठीक- ठीक- ठीक, ऐसे पहुँच जाऊँगा वहाँ?’ बोलता है, ‘नहीं, ऐसे करके तू फिर वापस यहीं पहुँच जाएगा।‘ तो शक्ति कपूर बोलता है, ‘वापस क्यों आऊँ?’ वो कहता है, ‘ताकि मैं तुझे दोबारा लूट लूँ।‘

शक्ति कपूर पूछ रहा है, ‘पर मैं इस रास्ते पर चल के यहाँ दोबारा क्यों वापस आऊँ?’ तो क़ादर खान बोलता है, ‘फिर मैं तुझे फिर से लूट लूँगा।‘ अब यह बात मज़ाक की तो थी । पर मैंने देखा है और कहा यह संसार है, यहाँ बता-बता के लूटा जा रहा है और तुम इतने खौफज़दा हो कि तुम जानते-बूझते लुट रहे हो। पहली बात तो खौफज़दा हो और दूसरी बात शक्ति कपूर वाले पात्र की तरह ही बेवकूफ हो। इतने बेवकूफ हो कि अँधे भिखारियों से लुट रहे हो। वो तुम्हें बता रहे हैं कि ऐसे जाओ, फिर ऐसे जाओ, फिर ऐसे जाओ फिर लाल बत्ती आएगी उससे सीधे चले आना वहाँ मैं मिल जाऊँगा। वो पूछ रहा है पर तुम तक वापस क्यों आऊँगा? बोल रहा है ताकि मैं तुझे दोबारा लूट लूँ। ताकि मैं तुझे..

तुम्हें अच्छे से पता है की वो जो रास्ते तुम्हें दिखा रहे हैं, उन रास्तों को वो दिखा ही इसीलिएरहे हैं, ताकि वो तुम्हें दोबारा लूट सकें, फिर तिबारा लूट सकें, फिरचौबारा लूट सकें। फिर भी तुम उन्हीं के दिखाए रास्तों पर चल रहे हो। तुम इतने बेवकूफ और इतने डरे हुए । और वो बेवकूफी स्वभाव नहीं है तुम्हारा लेकिन फिर भी तुम उसी को दर्शाते हो उसी को जीते हो। निरा पागलपन है, बुद्धू बन रहे हो अब क्या बताऊँ क्यों? तुम्हारी मर्ज़ी है इसीलिए। तुम भी ऊब नहीं रहे हो। तुम्हें कोई कुत्सित रस मिलता है। आज ऋषिकेश चलेंगे बहुत अनूठा प्रयोग करने जा रहे हैं हम वहाँ पर। तो यह विडियो क्लिप अगर यू ट्यूब पर देख सके तो देखिएगा। यह इतनी ही जितनी मैंने कहानी बतायी, ठीक इतनी ही पाँच-सात मिनट की बस क्लिप उपलब्ध है देखना ज़रूर।

वैसे तो कुछ नहीं है सिर्फ़ हास्य है, कॉमेडी है। लेकिन बात कितनी उसने पते की बोल दी ऐसे जा, ऐसे जा, ऐसे जा और फिर यहीं वापस आ जाना ताकि मैं तुझे फिर से लूट लूँ। तुम्हें दिख ही नहीं रहा कि जो तुम्हारे पथप्रदर्शक बने हुए हैं वही तो तुम्हें लूट रहे हैं, और वो बता के लूट रहे हैं। तेरी कह के लूँगा और तुम तब भी दिए जा रहे हो। अब सोमनाथ को ।मज़ा आएगा।यह आदमी बढ़िया है, यह वाला अध्यात्म ठीक लगा। इसमें फ़िल्मी गाने भी हैं, क़ादर खान भी है, और तो और शक्ति कपूर भी है। समझे, वो हम पर इतना हावी है कि कह के ले रहे हैं।

प्र: कैसे पता चलेगा कि हम एक सही तरफ़ अग्रसर हो रहे हैं या अपने में ही उलझे हुए हैं?

आचार्य: रोज़ के जीवन को देखो। और क्या रोज ही रोज क्या हो रहा है हमारे साथ उसको देखो। सरल जीवन में युक्ति की, छल की, लम्बे-चौड़े उपायों की ज़रुरतत नहीं पड़ती। अगर जीवन में पाओ कि इन सबकी बड़ी ज़रुरत है तो थोड़ा ध्यान से देखना कि क्या हो रहा है। गुरू भी उपाय लगाता है पर वो निश्चिंतता के बिंदु से लगाता है। उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं हो जाएगा अगर उपाय न चला तो। हमें यह देखना होगा कि अगर हमें जीवन सरलता से जीने में बाधा आ रही है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने बाधा पकड़ ही रखी है। लेकिन उसका लक्षण यही होगा कि जीवन के सहज बहाव में बाधा कितनी आ रही है और वो पता लगने लगता है। जब इस तरह के संकेत मिलने लगे न तो सतर्क हो जाना चाहिए। कैसे संकेत? किसी से कुछ बोलने से पहले दो बार सोचना पड़ रहा है, सहज उत्तर देना बाधित हो गया है, चीज़ें लुकानी-छिपानी पड़ रही हैं तो जान जाना चाहिए कि छोटी-छोटी बातें हैं।

अब फ़ोन है।फ़ोन में तीन तरह की सिक्योरिटी लगानी पड़ रही है। अब यह करके तुम फ़ोन की चोरी तो नहीं रोक रहे हो? यह करके तुम फ़ोन को चोरों से तो नहीं बचा रहे हो? यह कर के तुम फ़ोन को किससे बचा रहे हो? अपनों से। फिर तुम्हें देखना पड़ेगा कि जिनको तुम अपना कह रहे हो उनसे क्या रिश्ता है। सन्देश भेजे, उसके बाद बार-बार वाट्सअप डिलीट कर रहे हो तो फिर तुम्हें पूछना पड़ेगा कि माज़रा क्या है? पुलिस से तो नहीं छुपा रहे न कि रोज़ व्हाट्सअप डिलीट करना पड़ रहा है। किससे छुपा रहे हो? उनसे जिनको अपना बोलते हो, तो यह रिश्ता क्या है?

जीवन ऐसा हो कि जो मन में आया बक दिया। जैसे वो पीछे, चल रहा हो किसी का प्रवचन, होगे तुम कहीं के धुरंदर हम भैंस है। जीवन भैंस की तरह होना चाहिए। हमें तो रंभाना है, तुम्हें पसन्द आये कि ना आये। अब मेरी ख़ातिर वो रम्भाना बन्द कर दे तो वो अपने भैंस शिखर से नीचे आ गयी। हम क्यों ऐसी ज़िंदगी जीना शुरू कर देते हैं, जिसमें दूसरे हम पर इतना हावी हो गए कि जीवन ही जैसे श्रृंखला बन गया हो उपायों की, युक्तियों की। सुबह से शाम तक क्या करते हैं? लुका-छिपी खेलते हैं। अरे! इससे अच्छा थोड़ा सामने आकर खेल लो। मैं इनकार नहीं कर रहा, कई बार बीमार की चिकित्सा के लिए ही कुछ अवधि तक उसे विशेष भोजन पर रखना पड़ता है। लेकिन कुछ अवधि तक उसे विशेष भोजन पर रखना पड़ता है। लेकिन कुछ अवधि तक। इस तरह की सारी चिकित्साएँ सावधिक होनी चाहिए। अगर वो जीवन ही बन जाए कि अब आजन्म ऐसे ही चलेगा तो मामला ठीक नहीं है।

इसी तरीक़े से व्यापार में है, इसी तरह से बाजार में है, इसी तरीक़े से हर जगह है। कर्म निश्चिन्त रहे, बेफ़िक्र। खुल के खेलने में मज़ा है। सहम-सहम के, ठहर-ठहर के, इधर-उधर बार-बार देख-देख के खेलने में क्या मज़ा है? देखो वो भैंस की तरफ जा रहे हैं, बताओ कौन जीतेगा? कौन जीतेगा? कौन जीतेगा? यह भैंस को हरा पाएँगे कभी? सबसे बड़ी उत्सुकता यह है कि दोनों में संवाद कैसे होगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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