विचार तीन प्रकार के || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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विचार तीन प्रकार के || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, आपने कहा कि समझ आ जाए, तो जीवन में सोचने-विचारने की आवश्यकता कम हो जाती है| पर क्या समझ विकसित करने के लिए सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है? क्या सोचने-विचारने का जीवन में महत्व है?

वक्ता: सोचने का जीवन में महत्व है, पर यह महत्व तभी तक है, जब वह अपने आप को ख़त्म कर दे|

देखो मन की गतिविधियाँ तीन स्तरों पर होती हैं| सबसे निचला जो स्तर होता है, उसको कहते हैं, सोचने की असमर्थता, उसको कहा जाता है अविचार| इस स्तर पर तुम क़रीब-क़रीब पत्थर जैसे हो, जिसके पास विचारणा की शक्ति ही नहीं है, वह मन की सबसे निचली अवस्था होती है|

उसके ऊपर आती है अवस्था जिसको हम निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स) कहते हैं| हममें से ज़्यादातर लोग उसी में जीते हैं जहाँ पर सोच निरुद्देश्य है, बस सोचे चले जा रहे हैं| तुम बैठे हो, कुछ सोच रहे हो, और बस सोच रहे हो| इसको फ्रायड ने नाम दिया था- निरुद्देश्य विचारणा का सिद्धांत (प्रिंसिपल ऑफ़ रैंडम असोसिएशन)|

तुम ने काला रंग देखा और उसे देखकर तुमको सड़क का काला रंग याद आ गया| सड़क को देखकर तुम्हें अपना घर याद आ गया क्योंकि तुम सड़क से होकर जाते हो| घर याद आया तो घर के लोग याद आ गये, उनको देखा तो कुछ और याद आ गया| एक निरुद्देश्य चक्र जिसका कोई तर्क नहीं, कोई ठिकाना नहीं, ये बस चल रहा है| तो ये मन की दूसरी अवस्था होती है, ये है निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स)| और पहली कौन-सी होती है?

श्रोता १: सोचने-विचारने की असमर्थता|

वक्ता: ठीक है, उसको कहते हैं, अविचार| दूसरी है, निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स)| तीसरी होती है, शुद्ध विचारणा|

निरुद्देश्य विचार से ऊपर आता है, सचेत विचार, जागृत विचार, शुद्ध विचारणा| शुद्ध विचारणा वह होती है, जैसे कि तुम्हारे सामने एक कठिन सवाल हो तो उसे हल करने के लिए तुम्हें शुरुआत में सोचना पड़ता है| अगर तुम ध्यान दो, तो तुम देखोगे कि तुम गहराई से उसमें डूब गए हो और उसे हल करते ही जा रहे हो| सवाल हल करने की प्रक्रिया में एक क्षण ऐसा आता है जब तुम सवाल हल तो कर रहे होते हो, पर तुम सोच नहीं रहे होते|

शुरुआत तो होती है सोचने से, विचारणा से, और वह विचारणा धीरे-धीरे समझ में बदल जाती है| तो ये तीन तरीके के विचार हुए, और उनसे ऊपर जो चौथा होता है, उसे समझ कहते हैं|

सोच वही अच्छी है जो अंततः समझ में परिवर्तित हो जाए| ऐसी सोच बहुत बढ़िया है जो समझ में परिवर्तित हो जाए| दिन भर हम किस सोच में रहते हैं?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स) में|

वक्ता: वह समझ में नहीं परिवर्तित होती, वह बस चलती रहती है, चलती रहती है| तुम ऐसे समझ लो कि निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स) का मतलब है, इस कमरे के भीतर बस घूमते रहना और जीवन भर बस इसी में घूमते रहना|

शुद्ध विचारणा का मतलब है, चला तो कमरे के भीतर ही पर कुछ ऐसा चला कि कमरे के दरवाज़े तक पहुँच गया और बाहर चला गया| दरवाज़े के बाहर क्या है? समझ| निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स) कमरे के भीतर-भीतर ही घूमती रहती है, इसी कमरे से शुरू होती है और दरवाज़े तक पहुँच कर ख़त्म हो जाती है| वह किस में बदल जाती है?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): समझ में|

वक्ता: विचारों का स्थान है जीवन में अगर वह ऐसे हों कि समझ में बदल जाएं| समझ तभी होगी, जब सोच-विचार ख़त्म हो जाए| तब विचार का कोई स्थान नहीं|

-‘संवाद’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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