उन्हें डर नहीं लगता, तो मुझे क्यों लगे? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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उन्हें डर नहीं लगता, तो मुझे क्यों लगे? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आप जिन लोगों के विरोध में बोल रहे हैं, जिनके बारे में इतना खुलकर बोल रहे हैं, वो लोग तो बहुत शक्तिशाली हैं। उनके पास राजनैतिक शक्ति है, मीडिया की ताक़त है, हर जगह वहीं छाये रहते हैं और पैसे का तो कहना ही क्या! अपार पैसा उनके पास। न जाने किस-किस तरीक़े से वो हर चीज़ों को इन्फ्लूएन्स (प्रभावित) करते रहते हैं। उनकी ताक़त देखकर और आपका उनके ख़िलाफ़ इतना खुले तौर से उनके ख़िलाफ़ बोलना, मुझे तो काफ़ी डर लगता है कि कहीं वो कुछ कर न दें, कहीं कुछ ग़लत न कर बैठें, आपको डर नहीं लगता?

आचार्य प्रशांत: वो सब झूठ बोलकर के भी नहीं डरते, मुझे सच बोलने में भी डर लगे? जिस सच के साथ होने पर भी डर दूर न हो वो सच किस काम का? जब कभी भी सच बोलने में डर लगने लगे, तो अपनेआप को थोड़ा धिक्कार लेना कि दूसरा कोई है वो झूठ भी खुलेआम बोल रहा है, छाती चौड़ी करके, उसको झूठ बोलने में डर नहीं लग रहा, मुझे सच बोलने में डर क्यों लगे?

प्र: मगर आचार्य जी, आपको कुछ हो गया तो?

आचार्य: देखो हो तो सभी को जाना है कुछ-न-कुछ, अमर तो यहाँ पर कोई है नहीं। जो भी कुछ आपके पास यहाँ है वो ख़त्म तो होना ही है। कोई और आपको नहीं ख़त्म करेगा, हर तरीक़े से या किसी भी तरीक़े से, तो समय आपको ख़त्म करेगा, काल ख़त्म करेगा। वो सबकुछ समय ख़त्म कर दे उससे पहले मैं उसका कुछ सार्थक उपयोग कर लूँ, यही सही है न? तो अपनेआप को बचाकर कहाँ तक रखूँगा? और बचाकर करूँगा क्या?

जो कुछ भी है वो नष्ट तो हो ही जाना है, वो नष्ट हो जाए उससे पहले उसका जो सही प्रयोग है वो हो जाए, अच्छी बात है। समय है मेरे पास, कुछ बातें हैं बताने के लिए, वो लोगों तक पहुँच जाएँ बस।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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