प्रश्न: सर, आपकी ऐसी सोच कैसे बनी कि परीक्षा के परिणाम पर नहीं, परीक्षा की पढ़ाई पर ध्यान दें?
वक्ता: मुझे ज़िंदगी में कभी ऐसा नहीं लगा, कभी भी, कि अगर मैं किसी परीक्षा में फेल हो जाऊँगा, तो मेरी कोई हैसियत नहीं रहेगी|
श्रोता १: ये सोच कहीं से तो आई होगी न?
वक्ता: कहीं से नहीं आई| बच्चा होता है, वो भी ठीक मेरे जैसा होता है| उसे भी नहीं लगता कि मझमें कुछ कमी है| बच्चे के अन्दर ये सोच डाली जाती है कि अगर परीक्षा का परिणाम अच्छा नहीं आया तो तेरी कोई हैसियत नहीं है| मैं बस भाग्यशाली हूँ कि मेरे अन्दर वो बात नहीं डाली गई| बच्चों के साथ अन्याय ये हो जाता है कि उनके माँ-बाप बिल्कुल नासमझ हैं| वो ख़ुद हीनता से ग्रस्त होते हैं, और वो अपनी हीनता बच्चे पर भी लाद देते हैं| आजकल तो इतने छोटे-छोटे से बच्चों को माँ-बाप घुड़सवारी सिखा रहे हैं| क्यों? क्योंकि बापू जी खुद कभी ज़िन्दगी में गधे पर नहीं बैठ पाए|
(श्रोतागण हँसते हैं)
तो बच्चे को घोड़े पर बैठा रखा है, और बच्चा चिल्ला रहा है|
(श्रोतागण हँसते हैं)
सारी दिक्कत यही है कि सिर्फ माँ-बाप ही ऐसा नहीं कर रहे हैं, पूरा मीडया, पूरी शिक्षा व्यवस्था, पूरा समाज, जितने भी तुम पर प्रभाव हो सकते हैं, सब तुमको ये जताने में लगे हुए हैं कि तुममें कोई कमी है| जो कार बनाता है, वो क्या कह कर कार बेच रहा है? ‘अगर तुमने मेरी बनाई कार नहीं खरीदी, तो तू बेकार’| तो उसकी कार बिके इसके लिए ये ज़रूरी है कि पहले वो तुम्हें बेकार सिद्ध करे| कोई सूट बनाता है, सूटिंग के कपड़े, वो कह रहा है, ‘द कम्पलीट मैन(पूर्ण पुरुष)’| क्या संदेश दे रहा है? ‘अगर तुमने ये नहीं खरीदा तो तू पुरुष नहीं है, कम्पलीट मैन(पूर्ण पुरुष) तो है ही नहीं|
अब ये सब चल रहा है, और तुम इसके शिकार हो जाते हो| मेरे साथ एक फ़ायदा ये था कि मैं बचपन से ही ज़िद्दी बहुत था| कोई अगर ये बताने आ जाए न कि तुममें ये कमी है, तो ठेंगा! कोई अगर बोल देता था कि तुम्हारी सूरत ठीक नहीं है, तो मैं और गन्दी सूरत बनाकर उसको दिखाता था| कोई अगर बोल दे कि तू मोटा है, तो मैं और पेट निकाल कर खड़ा हो जाता था कि ‘ले देख, तुझे जो लग रहा है वो तो कम है, मैं तो और ज़्यादा मोटा हूँ’|
एक बात समझ लो अच्छे तरीके से: तुममें कोई कमी नहीं है| कोई भी तुम्हें ये जताने आये कि तुममें कोई कमी है, तो सुनो ही मत| कोई तुमसे अगर बोलने आए कि बी.टेक. कर लो वरना बेवक़ूफ़ रह जाओगे, तो भगा दो उसको| कोई बोले कि तुझे ऐसी ऐसी नौकरी नहीं मिली, तो तू बेवक़ूफ़ रह गया, तो भगा दो उसको| किसी भी तरीके से कोई तुम्हें अपूर्णता का एहसास कराए, तो उसकी मत सुनो| और हर कोई चाहता है कि वो तुम्हें यह एहसास कराए कि तुममें कोई खोट है क्योंकि जब तुमको लगेगा कि तुममें कोई खोट है, तब ही तो तुम उसकी सुनोगे|
पूरा खेल क्या चलता है? ‘तुममें कोई खोट है, मैं उसे ठीक कर सकता हूँ, मेरे पास आओ, आओ मेरी दुकान में आओ| अरे तुम काले हो, आओ मैं तुमको ये क्रीम दूँगा’| अरे तुम्हारी लम्बाई ठीक नहीं है, आओ| तुम्हारे बाल ठीक नहीं है, आओ मेरी दुकान में आओ, मैं तुम्हारे बाल सीधे कर दूँगा| और तुम पहुँच जाते हो अपने बाल सीधे करवाने| दिमाग सीधा करो, बाल नहीं|
कार खरीद कर और फर्नीचर खरीद कर ज़िन्दगी नहीं बन जाती है| नौकरी करके ज़िन्दगी में कुछ नहीं मिल जाता है, कि नौकरी मिल गयी है तो कुछ हो जाएगा| बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों से पढ़कर, जो लोग हिन्दुस्तान में सबसे ऊंचे पढ़े-लिखे लोग कहलाते हैं, वो सब भी फ़ालतू ज़िन्दगी जी रहे हैं| कोई स्विट्ज़रलैंड घूम आता है, कोई मॉरिशस घूम आता है और यही उनका सुख है, इससे ज़्यादा कोई सुख नहीं है उनके पास| सुख के नाम पर क्या है? एक गाड़ी है, एक ई.एम्.आई. पर खरीदा हुआ घर, एक बीवी, जो अब बुढ़ा रही है, और दो बच्चे, जो अब खून पीने को तैयार हो रहे हैं| और इसको वो कहते हैं, माय लाइफ(मेरी ज़िंदगी)! और रोमांच दिखाने के लिए क्या करते हैं? साल में एक बार जो हाफ-मैराथन होती है, उसमें दौड़ लेते हैं, और कहते हैं, ‘मेरी ज़िंदगी रोमांच से भरी हुई है’| तुम्हें ऐसा होना है?
श्रोता १: सर, इसमें गलत क्या है? वो चाहतें हैं ऐसा करना|
वक्ता: उन्हें पता होता कि ज़िन्दगी में क्या चाहने लायक है, तो ऐसे हो जाते? ये वही लड़की है, जो संस्थान की सबसे मेधावी छात्रा होती थी| क्यों? क्योंकि बचपन से माँ-बाप ने बताया था कि अच्छी बच्चियाँ पढ़ती हैं| फ़िर माँ-बाप ने बताया कि अच्छी बच्चियाँ शादी कर लेतीं हैं, और पति के प्रति वफादार होतीं हैं, तो वो ऐसा कर रही हैं| उसे पता कुछ है ज़िन्दगी का मतलब? माँ-बाप ने बता दिया! वो बचपन से ही अच्छी बच्ची है| उसे अपना कहाँ कुछ पता है| उसके आगे की पूरी क्या कहानी है, वो भी मुझे पता है क्योंकि उसके माँ-बाप को पता है| वो ठीक वैसी ज़िन्दगी जीने वाली है, जैसी उसकी माँ ने जी थी| उसे अभी से पता है कि आगे क्या होगा| ऐसे जीना है? जहाँ सब कुछ पहले से ही पता हो?
श्रोता २: सर, कैवल्य, मुक्ति हमें चाहिए होती है, जो ऐसे आती नहीं है| मैं आपकी सभी बातों को मान रहा हूँ, पर आपका जो मानसिक तल है, वो बहुत ऊँचा है|
वक्ता(व्यंग्य करते हुए): धन्यवाद! अब आगे बोलो| ये बोल कर भी, पता है तुम क्या कर रहे हो? तुम कह रहे हो कि आपका जो मानसिक तल है, वो तो ऊँचा है, और मैं तो कहीं और हूँ, नीचे| तुम समान तल पर ही हो, बस तुम फ़ालतू डरे हुए हो| तुम मेरे साथ चलो अभी
(श्रोतागण हँसते हैं )
मैं गंभीरता से बोल रहा हूँ, और कोई तरीका नहीं है| तुम अगर इसी दिनचर्या में ही घुसे रहोगे जिसमें तुम जी रहो, तो कुछ नया होगा कहाँ तुम्हारे साथ? तुम रोज़ कॉलेज आते हो, रोज़ घर चले जाते हो, रोज़ कॉलेज आते हो, रोज़ घर चले जाते हो, टिफ़िन लेकर आते हो, उसमें परांठा होता है और सब्ज़ी होती है, परांठा सब्ज़ी खाते हो, फिर घर चले जाते हो| फिर टी.वी देखते हो, थोड़ी अवारागर्दी करते हो, फिर बिस्तर में घुस कर सो जाते हो| फिर सुबह उठते हो, फिर कॉलेज| तुम ऐसे ही चलते रहोगे, तो कुछ नया कब होगा तुम्हारे साथ? अभी तुमसे पहले वाला बैच आया था, उनको मैंने सौ दफा समझाया कि कुछ नया कर लो, कुछ नया कर लो|
श्रोता ४: सर आपने ऍम. बी. ए. की प्रवेश परीक्षा पास की| अगर आप नहीं कर पाते तो?
वक्ता: तो वो भी सहन किया है न मैंने| मैंने सिविल सर्विस(प्रशासनिक सेवा) की परीक्षा भी दी थी| घर में सभी प्रशासनिक सेवा में थे, तो मुझे भी वहीं जाने के लिए कहा गया| मुझे जो विभाग मिला, वहाँ जाने का मेरा मन नहीं हुआ| तो मैंने छोड़ दिया|
श्रोता २: सर, जैसा की आप काफ़ी ज़िद्दी थे, तो आप सीधे प्रवेश परीक्षा देने से मना ही कर दते| क्या आपने अपनी कंडिशनिंग के कारण वो परीक्षा दी?
वक्ता: जहाँ भी मुझे पता चला है कि ये चीज़ एक कंडीशनिंग से आ रही है, वहां मैंने सीधे मना कर दिया है| ऐसा लगभग असंभव होता है कि किसी का सिविल सर्विस(प्रशासनिक सेवा) में चयन हो जाए और उसके बाद वो वहाँ जाने से मना कर दे| सन २००० में, मैं हिन्दुस्तान में ऐसा अकेला था जिसका सिविल सर्विसेज(प्रशासनिक सेवा) में और ऍम. बी. ए. प्रवेश परीक्षा में एक साथ चयन हुआ था| जैसे ही समझ में आया कि मन नहीं है, मना कर दिया, और मना कर के भूखा नहीं मर रहा हूँ| मस्त हूँ, तुम्हारे सामने बैठा हूँ| वहाँ रहता तो आज बहुत वरिष्ठ अधिकारी होता, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम्हारे सामने बैठा हूँ मज़े में हूँ|
श्रोता ३: सर, ये विचार जो भी आप बता रहे हो, जो भी आपने हमें बताये, आपको इस सब की प्रेरणा कहाँ से मिली?
वक्ता: थोड़ा अनछुआपन होना चाहिए| मैं रातों में कम सोता था, मुझे अच्छा लगता था इधर-उधर घूमना| अगर घर से बाहर नहीं निकल पाता था, तो मैं घर में ही घूमता था, छत पर चला जाता था| वहाँ पर खड़ा हो जाता था, चुपचाप बैठ जाता था |
श्रोता ३: सर ये तो ज़रूरी नहीं है कि आपने जो किया वही सही है?
वक्ता: नहीं, बिल्कुल ज़रूरी नहीं है| अगर तुम ऐसा करोगे, तो जो भी होगा, वो ‘तुम्हारा’ होगा|
श्रोता ३: जी, सर|
वक्ता: वो तुम्हारे मन पर जो इधर-उधर की हज़ार बातें हैं, उनका तो नहीं हो सकता न?
श्रोता ४: सर, मैं भी कभी-कभी अगर ऐसा कुछ करता हूँ, तो लोग कहते हैं कि पागल है|
वक्ता: जो कहते हैं उनकी ज़िन्दगी कि तरफ देख लो| तुम्हें वहाँ पर मस्ती, नाच, बेफ़िक्री नज़र आती है? जो तुम्हें सीखे दे रहे हैं, उनके चेहरों पर तुम्हें क्या नज़र आता है? डर नज़र आता है या बेखुदी नज़र आती है? थोड़ी तो आँख रखो, जवान आदमी हो| कुछ अपना भी विवेक होगा या नहीं होगा? जो तुमसे बात कर रहा है, ज़रा उसकी ज़िन्दगी की ओर देखो| खुद तो मरा-मरा है, तुम्हें क्या बता रहा है|
एक छात्रा थी| एम.बी.ए सेकंड इयर में| तो वो अपना किस्सा बताती है कि उसके परिवार वाले शादी के लिए बहुत जोर दाल रहे थे| तो बोलती है कि मैंने देख लिया है कि शादी करके क्या होता है| उसने अपने माँ-बाप से कहा, ‘तुम प्रमाण हो इस बात का कि शादी नहीं करनी चाहिए’| जो तुम्हें कह रहे हैं कि ऐसा-ऐसा जीवन जियो, सबसे पहले उनसे पूछो, ‘तुम्हें ऐसी ज़िन्दगी जीकर क्या मिला? जो हमें बता रहे हो, तुम्हें ऐसी ज़िन्दगी जी कर क्या मिला? ज़रा-ज़रा सी बात पर डर जाते हो, दो कदम अकेले चलने का साहस तुममें नहीं है, तुम हमें सीख देने आ जाते हो कि ऐसे जीना चाहिए’|
श्रोता ५: सर, हम उनसे कहेंगे…
वक्ता: तुम क्यों कहोगे कुछ दूसरों को? तुम्हें दिख गया, तुम चल दो वहाँ से| तुम्हें कुछ कहना ही क्यों है? अब दिख गया है, तो चल दो वहाँ से| और ये इतना मुश्किल नहीं है, इसमें ऐसी कोई कठिनाई नहीं है| जब ये होने लगेगा, तब पता है तुम क्या कहोगे? ‘ये इतना आसान था, हमने आज तक किया क्यों नहीं? हम क्यों फंसे रहे फ़ालतू? क्यों ज़िन्दगी खराब करते रहे? ये तो इतना आसान था’|
अपने भीतर थोड़ा अनछुआपन रखो| जैसे जंगल होता है न, वैसा| जैसे जंगली फूल होता है, वैसा|
– ‘संवाद’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।