Panchatantra

Consciousness and the material || On Mundaka Upanishad (2021)
Consciousness and the material || On Mundaka Upanishad (2021)
14 min

तस्माच्च देवा बहुधा संप्रसूताः साध्या मनुष्याः पशवो वयांसि । प्राणापानौ व्रीहियवौ तपश्च श्रद्ध सत्यं ब्रह्मचर्यं विधिश्च ॥

tasmācca devā bahudhā saṃprasūtāḥ sādhyā manuṣyāḥ paśavo vayāṃsi prāṇāpānau vrīhiyavau tapaśca śraddha satyaṃ brahmacaryaṃ vidhiśca

And from Him have issued many gods, and demigods and men and beasts and birds, the main breath

ऐसे नहीं प्रसन्न होती हैं देवी || आचार्य प्रशांत, दुर्गा सप्तशती पर
ऐसे नहीं प्रसन्न होती हैं देवी || आचार्य प्रशांत, दुर्गा सप्तशती पर
45 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते, आचार्य जी। आजकल नवरात्रि के दिन चल रहे हैं। और मैं देख रहा हूँ कि बहुत समय से जितने विडियोज़ हैं, उनपर लोगों के नवरात्रि से जुड़े प्रश्न आ रहे हैं। उसमें से एक प्रश्न था जो मुझे लगा कि आपके सामने उसे रखना काफ़ी ज़रूरी है। यह

क्या बच्चे भगवान का रूप होते हैं? || पंचतंत्र पर (2018)
क्या बच्चे भगवान का रूप होते हैं? || पंचतंत्र पर (2018)
21 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, अगर शांति के लिए कोई कर्तव्य या वादा तोड़ना पड़े, तो उससे क्या कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता?

आचार्य प्रशांत: शांति के लिए वादे रखने भी पड़ सकते हैं।

प्र: जैसे मैं भीष्म की बात कर रहा हूँ।

आचार्य: हाँ, ठीक है। शांति इतनी ऊँची चीज़ है कि

कभी भी अन्याय मत करो || पंचतंत्र पर (2018)
कभी भी अन्याय मत करो || पंचतंत्र पर (2018)
5 min

प्रश्नकर्ता: अन्याय को सहना कितना ग़लत है जब पता हो कि अन्याय हो रहा है और मजबूरी है कि आवाज़ नहीं उठा सकते?

आचार्य प्रशांत: 'न्याय' शब्द समझिएगा। 'न्याय' शब्द का अर्थ होता है, साधारण भाषा में, जिस चीज़ को जहाँ होना चाहिए, उसका वहीं होना। जो चीज़ जहाँ हो,

मगरमच्छ की दुविधा || (2018)
मगरमच्छ की दुविधा || (2018)
5 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। आपके सान्निध्य में आने के बाद एक नए का जन्म हुआ है। मैं बदला हूँ। अब इस नई रोशनी में पहले जैसा मैंने जीवन जीया, उसके प्रति निष्पक्ष और बेपरवाह हो रहा हूँ। पुराने ढर्रे हल्के हैं, लेकिन कभी-कभी उनके प्रभाव में कुछ और हो जाता

खोदा पहाड़ निकली चुहिया || पंचतंत्र पर (2018)
खोदा पहाड़ निकली चुहिया || पंचतंत्र पर (2018)
34 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। जीवित गुरु का क्या अर्थ है? संतजन जीवित गुरु को अधिक महत्व देते हैं, पर कभी-कभी ये भी कहते हैं कि ये हवाएँ, ये जल, ये पर्वत, ये जानवर, ये सब भी मेरे गुरु हैं। आप भी कहते हैं, “ये तुमने क्या कर दिया, तुमने मुझको

बन्दर और मगरमच्छ की दोस्ती || पंचतंत्र पर (2018)
बन्दर और मगरमच्छ की दोस्ती || पंचतंत्र पर (2018)
30 min

आचार्य प्रशांत: पंचतंत्र में एक कहानी आती है, छोटी-सी, सरल, साधारण, उसको आधार बनाकर प्रश्न पूछा है। कहानी है बंदर और मगरमच्छ की। कहानी कहती है कि एक जामुन के पेड़ पर नदी किनारे बंदर रहता था। बंदर को नाम भी दे दिया गया है, ‘रक्तमुख’। लाल-लाल मुँह था न,

घर-घर की वही कहानी! || पंचतंत्र पर (2018)
घर-घर की वही कहानी! || पंचतंत्र पर (2018)
24 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, देखने पर पाता हूँ कि सुख से गहरा लगाव है और फिर शायद इसी वजह से किसी विशिष्ट स्थिति का इंतज़ार करता रहता हूँ।

आचार्य प्रशांत: विशिष्ट स्थिति क्या है? सुख का इंतज़ार कर रहे होगे।

प्र: इस लगाव से कैसे उबर सकता हूँ?

आचार्य: उबरने की

लालच बहुत आता है, क्या करूँ? || पचतंत्र पर (2018)
लालच बहुत आता है, क्या करूँ? || पचतंत्र पर (2018)
3 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। आप कहते हैं कि पंचतंत्र की सारी कहानियाँ स्वार्थ की हैं, तो हम स्वार्थ से ऊपर कैसे उठें? कृपया समझाएँ।

आचार्य प्रशांत: ये जो अभी तुमने सवाल करा, ये काफ़ी है। स्वार्थ के अपने ना प्राण होते हैं, ना पाँव होते हैं, स्वार्थ तुम्हारे सहारे पर

अक़्ल बड़ी कि भैंस? || पंचतंत्र पर (2018)
अक़्ल बड़ी कि भैंस? || पंचतंत्र पर (2018)
11 min

प्रश्नकर्ता: पहले ‘मोगली’ का चरित्र हुआ करता था, इसका मतलब वो हम लोगों से बेहतर था?

आचार्य प्रशांत: ये पूरा शिविर तुम्हारे लिए सार्थक हो गया अगर ये ख़्याल तुम्हें उठा है। तुम भूल जाना चार दिन क्या हुआ, अगर इस एक बात को भी तुम अपने साथ रख सको।

हमसे अच्छा तो हमारा डॉगी है || पंचतंत्र पर (2018)
हमसे अच्छा तो हमारा डॉगी है || पंचतंत्र पर (2018)
9 min

आचार्य प्रशांत: बुद्धि अगर आध्यात्मिक नहीं है, अगर समर्पित नहीं है, तो उसे काट मार जाता है; वो चलती तो है, पर आत्मघाती दिशा में। ख़ूब चलती है बुद्धि, अपना ही नुकसान करने के लिए ख़ूब चलती है।

तुम मिलो किसी आदमी से जो अपना ही ख़ूब नुकसान किए जा

लालच करोगे तो डर लगेगा || पंचतंत्र पर (2018)
लालच करोगे तो डर लगेगा || पंचतंत्र पर (2018)
9 min

आचार्य प्रशांत: मैं आईआईटी में था, उन दिनों रैगिंग हुआ करती थी ज़बरदस्त। ये जो फ़स्ट यिअर (प्रथम वर्ष) के लड़के आएँ नए-नए, इनको नाम दिया जाता था 'फच्चा'; फ़स्ट यिअर का बच्चा यानी फच्चा। इनको डरा दिया जाए। रैगिंग का अर्थ ही यही था, उसके साथ दुर्व्यवहार हो रहा

आदिमानव ने तो खूब मज़े किये || पंचतंत्र पर (2018)
आदिमानव ने तो खूब मज़े किये || पंचतंत्र पर (2018)
26 min

आचार्य प्रशांत: कल हम बात कर रहे थे कि प्रकृति से तो परमात्मा भी छेड़खानी नहीं करता, तुम्हारी छोटी-सी बुद्धि उससे क्या छेड़खानी कर लेगी! क्यों उसके साथ दाँव खेलते हो?

आपने शक्कर की बात करी है। दो बीमारियाँ, मधुमेह और ओबेसिटी (मोटापा) पिछले सौ साल की हैं, पहले भी

बुद्धि तो घास ही चरेगी || पंचतंत्र पर (2018)
बुद्धि तो घास ही चरेगी || पंचतंत्र पर (2018)
13 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। मैं अभी कानपुर में जिनके घर रुकी हूँ, उनका चार साल का एक लड़का है जिसके दोनों पैरों में एलर्जी और त्वचा की कुछ समस्याएँ हैं। काफ़ी इलाज के बावजूद भी उसे कोई लाभ नहीं मिल पाया है।

मैंने बच्चे की माँ को समझाया कि बच्चे

गुस्सा करना बुरी बात है || पंचतंत्र पर (2018)
गुस्सा करना बुरी बात है || पंचतंत्र पर (2018)
3 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसे शक आता है या जलन उठती है तो हम घुटने टेक देते हैं, इन सब पर तो हमारा वश ही नहीं होता। घुटने टेकने की हमारी बहुत गंदी आदत है, तो उसे कैसे रोका जाए?

आचार्य: नहीं, घुटने टेकने तक भी ठीक है, उसके आगे के

अरे, पढ़ाई में क्या रखा है! || पंचतंत्र पर (2018)
अरे, पढ़ाई में क्या रखा है! || पंचतंत्र पर (2018)
11 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सत्र में आने से मेरी जो ग्रोथ (प्रगति) की डिटर्मिनेशन (दृढ़ संकल्प) होती है, वो कम हो जाती है। मुझे लगता है, सब सही तो है, तो क्यों ग्रोथ करना? लेकिन आज की दुनिया में ग्रोथ तो ज़रूरी है, ख़ासकर मैं जिस क्षेत्र से हूँ उसमें, और

शक़ करना अच्छी बात है || पंचतंत्र पर (2018)
शक़ करना अच्छी बात है || पंचतंत्र पर (2018)
7 min

प्रश्नकर्ता: मैं जब ग्रंथों, गुरुओं और बुद्धपुरुषों के पास जाता हूँ, तो मेरे मन में तत्काल श्रद्धा जग जाती है, मन एकदम से चिल्ला उठता है कि यही हैं सच्चे गुरु, पर बाद में यही एहसान-फ़रामोश मन संदेह करने लगता है।

आचार्य जी, मेरी मनोस्थिति आपके सामने है। कृपया मार्गदर्शन

दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए || पंचतंत्र पर (2018)
दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए || पंचतंत्र पर (2018)
4 min

प्रश्नकर्ता: कुछ दिन पहले आपका एक सत्र देख रहा था, उसमें अपने बोला था कि आज के साधक को संसार से उतना ख़तरा नहीं है, जितना समकालीन, आज के गुरुओं से है। मेरे कुछ दोस्त भी कुछ समकालीन गुरुओं के पास जाते हैं। कृपा करके इस विषय पर थोड़ा और

जानवरों से दोस्ती करके तो देखो || पंचतंत्र पर (2018)
जानवरों से दोस्ती करके तो देखो || पंचतंत्र पर (2018)
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सादर प्रणाम। आप जानवरों की कथाएँ पढ़वा रहे हैं, और मेरी समस्या ये है कि मुझे तो छोटे-छोटे जीवों से भी डर लगता है। कैसे इनसे डरना बंद करूँ? क्या मुझमें शरीर बोध ज़्यादा है?

आचार्य प्रशांत: शुरुआत कर लो। जिससे प्यार हो जाता है, जिससे दिल

हँस लो, रो लो, मज़े करो || पंचतंत्र पर (2018)
हँस लो, रो लो, मज़े करो || पंचतंत्र पर (2018)
8 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कैसे पता करूँ कि अगर कोई मुझे कुछ समझा रहा है, तो वो मेरे लिए ठीक है या नहीं? कैसे पता करूँ कि मेरी ज़िंदगी अंधेरे की तरफ़ बढ़ रही है, या रोशनी की तरफ़?

आचार्य प्रशांत: बात सीधी है। नज़र साफ़ होने लगी हो, बेहतर दिखाई

धूर्त जुलाहा और राजकुमारी || पंचतंत्र पर (2018)
धूर्त जुलाहा और राजकुमारी || पंचतंत्र पर (2018)
10 min

आचार्य प्रशांत: जिज्ञासा आई है, पंचतंत्र की एक कहानी है, उसको आधार करके प्रश्न भेजा है। कहानी मैं पहले सुना देता हूँ।

कहानी है कि एक जुलाहे को एक राजकुमारी के रूप से आसक्ति हो जाती है। वो जानता है, राजकुमारी है, उस तक उसके हाथ पहुँच नहीं सकते, तो

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टूटफूट ही वो जरिया है जो आपको बताएगा कि आपके पास कुछ ऐसा भी है जो टूट नहीं सकता। जब सब बिखरा पड़ा होगा उसके बीच ही अचानक आपको पता चलेगा, अरे एक ऐसी चीज है जो नहीं बिखरी बड़ा मजा आएगा। उसके बाद यही लगेगा कि इसको और बार-बार पटको और जितना बार-बार पटको और जितना यह नहीं टूटता उतना इसमें विश्वास और गहरा होता जाता है और आदमी और खुलकर खेलता है। यह सबके पास है। यह सबके पास है। हमें इसका पता इसीलिए नहीं है क्योंकि हमने इसको कभी आजमाया ही नहीं।
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बेवजह की मान्यता है कि संसारी वह, जो भोगता है, और आध्यात्मिक आदमी वह, जो त्यागता है। अगर मामला राम और मुक्ति का हो, तो आध्यात्मिक व्यक्ति संसारी से ज्यादा संसारी हो सकता है। शृंगार का अर्थ है स्वयं को और आकर्षक बनाना, बढ़ाना—ऐसा जो तुम्हारे बंधन काट दे। जो करना हो, सब करेंगे—घूमना-फिरना, राजनीति, ज्ञान इकट्ठा करना, कुछ भी हो; कसौटी बस एक है—‘राम’। जो राम से मिला दे, वही शृंगार और वही प्रेम।
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प्रेम तो जीवन में उतरता ही तब है, जब उसका (परमतत्व) आगमन होता है, अगर वो नहीं आया जीवन में तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुम्हारा सिर अभी अगर झुका ही नहीं उस पारलौकिक सत्ता के सामने, तुम्हारा सिर अकड़ा ही हुआ है, तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुमने प्रेम जाना ही नहीं है, झूठ बोल रहे हो अपने आप से भी कि तुम्हें प्रेम है, प्रेम है। होगा तुम्हारा बीस साल, पचास साल का रिश्ता, कोई प्रेम नहीं है। प्रेम अध्यात्म की अनुपस्थिति में हो ही नहीं सकता। जिसको अध्यात्म से समस्या है, उसको प्रेम से समस्या है।
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Love relates to the topmost point because love knows that the purpose is topmost. If you are to serve the topmost purpose, then you have to relate to the topmost point in the others being. So, the student will come to me and seek not flesh but wisdom from me or whatever I can give, some knowledge, something, the intent is very different, desire wants blind gratification, love wants illuminated liberation, the very intent.
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आपको क्या करना था? प्रेम। और आपने प्रेम कर लिया, अब तकलीफ़ क्या है? आपको सिर्फ़ प्रेम ही भर नहीं करना था, कामना कुछ और भी थी। क्या कामना थी? दूसरे से उत्तर भी मिले, कुछ लाभ भी हो, कुछ मान-सम्मान हो। दूसरा भी नफ़रत इसलिए करता हो क्योंकि उसको पता है कि हम सिर्फ़ प्रेम नहीं कर रहे हैं, प्रेम में उम्मीद छुपी हुई है। प्रेम बड़ी स्वतंत्रता की बात है—'तुझे हक़ है, तू जो करना चाहे, करे।' प्यार देने की चीज़ तो हो सकती है, लेने की बिल्कुल नहीं।
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No wise man will ever take your problem seriously, believe me. For the wise one, all your problems are bad jokes—not even worthy of a sound laughter. But then he says, "You know, I can see through. You cannot. So, I'll give up my right to laugh at you. I'll instead pretend to be serious." "Yes, yes, yes, of course! We have a problem!" He says, "You know, there was a time I was so much like you. These same things were big issues even to me. But I know they can be outgrown.
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मदद का एकमात्र अर्थ होता है चेतना को उसके अंजाम तक ले जाना। इसके अलावा मदद का कोई अर्थ नहीं होता। कमज़ोर की सेवा करने का अगर मतलब यह है कि कमज़ोर, कमज़ोर बना रहे, तो यह सेवा नहीं, साज़िश है। कमज़ोर की हमेशा मदद ही नहीं करनी होती, संहार भी बहुत ज़रूरी होता है। दुर्बल की तो एक ही सहायता हो सकती है कि उसको दुर्बल रहने ही मत दो। पर यदि कमज़ोरी ताकत बनना ही नहीं चाहती, तो उसका संहार करना भी सीखो।
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यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: | तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ||3. 9||

अन्वय: यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र (यज्ञ के लिए किए कर्म के अलावा अन्य कर्म में) लोकोऽयं (लगा हुआ) कर्मबन्धनः (कर्मों के बन्धन में फँसता है) कौन्तेय (हे अर्जुन) मुक्तसङ्गः (आसक्ति छोड़कर) तत्-अर्थ (यज्ञ के लिए) कर्म (कर्म) समाचर (करो)

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Revenge and retribution, these are small things for a wise man like Shri Krishna. The wise ones do not get hurt easily; why will they clamour for revenge? What is Dharma then? Please always remember, “The rise of consciousness is the path of Dharma. We begin as animals, we must end, dissolve, as pure consciousness. That is Dharma.”
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The question should be which one is relevant to you? What will you do by enquiring about Shri Krishna’s grace? That’s Shri Krishna’s prerogative, right? Shri Krishna will take care of his grace if he has to offer grace. Whatever he has to do, we do not know what grace is. We do not know who Shri Krishna is. How does it concern us to go into matters of his grace? What is it that’s in your control? Your own preparation, your own willingness. So, you take care of that.
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The Gita is useful because its setting is extremely relatable. Just like us, Arjuna does not know himself—he's a victim of multiple identities and all kinds of conditioning. Therefore, the Gita is about letting Arjuna know who he is, and this illumination enables him to do what he must. So, first of all, see that you are Arjuna. Then, step by step, verse by verse, there will be some resolution.
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समाज ने हमें सिखाया है कि खुश रहना चाहिए। इस सीख को हमने इतना सोख लिया है कि यह बात बिल्कुल अंदर तक पैठ गई है। और जो जितना प्रकट करे कि वह प्रसन्न है, उसके बारे में जान लीजिएगा कि वह आनंदित तो नहीं ही है, वह वास्तव में भीतर से दुखी है। प्रकृति में सुख का अर्थ होता है 'भोग'। तो जो आपको सिखा रहे हैं कि हमेशा हैप्पी नज़र आओ, वे वही लोग हैं जो आपको भोग की तरफ़ प्रेरित कर रहे हैं।
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देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः। परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 11

अर्थ: यज्ञ से देवताओं को आगे बढ़ाओ, तो वो दैवत्य तुम्हारी उन्नति करेंगे। इस तरह परस्पर (आपस में) उन्नति करते हुए तुम परम श्रेय प्राप्त करते हो।

काव्यात्मक अर्थ: *यज्ञ से देवत्व बढ़े देवत्व से

Quiet the Mind to Receive Krishna's Wisdom
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No, no, you don't have to be empty of anything. You just have to be empty of the choice to use anything in your defense. You are born with ammunition; you don't have to keep the ammunition aside. Let the gun be there with you—just don't fire at the teacher. That's all that Shri Krishna is saying. You don't have to empty the gun. Keep it loaded; it's all right.
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Who are the people who never understand Shri Krishna? The ones whose minds are full of Karmakand. If your mind is full of Karmakand, Shri Krishna himself has very clearly said, you will never understand the Gita because Karma Kand deals with desire, because whatever you do, you do for the sake of desire.
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प्रेम ही ज़िंदगी को अर्थ, आज़ादी और सच्चाई देता है, लेकिन हमारे जीवन में किसी भी क्षेत्र में प्रेम नहीं होता। जब मामला Loveless होता है, तो हर आदमी भागना चाहता है—अपने काम से, रिश्तों से और खुद से भी। हमें खुद से भी प्यार नहीं है। हमारा समाज और अर्थव्यवस्था ऐसी नौकरियां देती ही नहीं, जिनसे प्यार हो सके। न कंपनियां प्यार के कारण बनती हैं, न जॉब्स ऐसी होती हैं कि कोई उनसे चाहे भी तो प्रेम कर सके। हम काम से कैसे प्रेम कर लेंगे?
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 10
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सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेषः योऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ १० ॥

अर्थ: सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्मा ने कहा था कि यज्ञ के द्वारा ही वृद्धि को प्राप्त करोगे। यह यज्ञ ही तुम लोगों को अभीष्ट फल देगा और कामधेनुतुल्य सर्वाभीष्टप्रद होगा।

काव्यात्मक अर्थ:

सगुण हो बंधन चुना

ज्ञान वगैरह से पहले फिजिकली और मेंटली स्ट्रांग बनना पड़ेगा?
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हमने ज्ञान को बड़ी एक परालौकिक चीज़ बना दिया है की ज्ञान माने आसमानों पर क्या हो रहा है। वही ज्ञान है। कभी मैंने आपसे कहा कि उपनिषद् साफ-साफ बताते हैं। विद्या और अविद्या दोनों चाहिए। और आसमानों की बात तो बाद में हो जाएगी। उपनिषद् कहते हैं कि जो ज़मीन की बात नहीं समझता, वो अगर आसमानों की बात करे तो दो चांटा लगाओ उसको।
शिक्षा माने क्या? बच्चे को कैसे बताएं?
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शेक्सपियर क्यों पढ़ा रहे हो बताओ? और होगा कोई वाजिब कारण। निश्चित रूप से है। बाद में दिखाई पड़ता है कि हां एक माकूल, सही उचित वजह थी। पर उस वक्त अगर उसको ये बात नहीं पता चल रही है तो उसके लिए चीज उबाऊ हो जाती है। ये अंग्रेजी भी नहीं है। ‘दाऊ शाल्ट’— एक तो हिंदी में बात कर ले यार तू। ‘दाऊ शाल्ट’। प्यार, स्पष्टता ये सब एक साथ चलते हैं। आजादी, जिज्ञासा ये सब एक साथ चलते हैं। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आपकी जिंदगी प्यार से वंचित रह जाती है। और इससे बड़ी सजा दूसरी नहीं होती।
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The saints don't display affection at all. Affection actually means disease. Affection means disease. The saints have no affection. The saints have love and love has nothing to do with affection. Affection and affliction go together. It is not affection that characterizes a saint. It is love that characterizes him. Affection and dryness, they go together. Together always. And affection and love, they never go together. So you have to be very clear about what accompanies what.
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If all that the Ego wants is liberation from itself, which means coming to see its own non-existence, then the only way to see its non-existence is by paying attention to itself. The more the Ego pays attention to itself, it sees that it does not exist. The more the Ego remains attached to this and that, all the sensory inputs, the Ego feels that is real and this is real.
Redefine Love This Valentine’s Day
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The purest definition of love is when the mind is very, very joyful, and that joy shows up in all your relationships. Love is your internal joy spilling over. Love is not about trying to find love. Love is about letting yourself be absolutely free! That is it! Love is not object-based. Love is not about - 'I love this person,' or 'I love this work,' or 'I love this book.' Love is your inner state of mind.
श्रीकृष्ण कब अवतरित होंगे?
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जब-जब तुम सच्चाई की ओर नहीं बढ़ते, तब-तब जीवन दुख, दरिद्रता, कष्ट, रोग और बेचैनियों से भर जाता है। अधर्म अपने चरम पर चढ़ जाता है, और विवश होकर तुम्हें आँखें खोलनी पड़ती हैं। तब मानना पड़ता है कि तुम्हारी राह ग़लत थी, और ग़लत राह को छोड़कर तुम्हें सत्य की ओर मुड़ना पड़ता है। अतः जब तुम अंधेरे को पीठ दिखाते हो, तो श्रीकृष्ण को अपने समक्ष पाते हो। यही श्रीकृष्ण का अवतरण है।
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
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श्लोक: नियतं कुरु कर्म, त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न, प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥3.8॥

काव्यात्मक अर्थ:

कर्म के परि त्याग से, श्रेष्ठ है नि यत कर्म । कर्मयात्रा पर चल पड़े, जि स क्षण लि या जीव जन्म॥

आचार्य जी: श्रीमद्भगवद्गीता गीता, तीसरा अध्याय कर्म का विषय है, पिछले सत्र में

उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
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यह आदमी जो अपने ऊपर हंसना शुरू करता है, यह अकर्ता हो जाता है। नॉन-डूअर हो जाता है। नॉन-डूअर का मतलब यह नहीं कि अब नॉन-डूइंग हो गई। डूइंग तो बहुत होगी! ज़बरदस्त होगी! घनघोर होगी! कल्याणप्रद होगी! ऑसपिसियस होगी! डूइंग होगी, डूअर नहीं होगा। पर कर्ता नहीं होगा। और जो यह कर्ता-हीन कर्म होता है, "द डीड विदाउट डूअर", इसके क्या कहने! यह फिर अवतारों की लीला समान हो जाता है। यह जीवन को खेल बना देता है। यह पृथ्वी पर स्वर्ग उतार देता है। यह बहुत पुराना जो कैदी है, उसे आकाश की आज़ादी दे देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
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मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
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The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
प्रेम और मोह में ये फर्क है
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जहाँ प्रेम है, वहाँ मोह हो नहीं सकता, और जहाँ मोह है, वहाँ प्रेम की कोई जगह नहीं है। मोह में सुविधा है, सम्मान है। प्रेम तो सब तोड़-ताड़ देता है—पुराने ढर्रें, पुरानी दीवारें, सुविधाएँ, आपका आतंरिक ढाँचा, और जो सामाजिक सम्मान मिलता है। प्रेम सब तोड़ देता है। प्रेम इतनी ऊँची चीज़ है कि आप उसमें पुरानी व्यवस्था का विरोध नहीं करते, पुरानी व्यवस्था को भूल जाते हो। प्रेम और मोह दो अलग-अलग दुनियाओं के हैं।
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
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श्रीमद् भगवत गीता प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग

धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

धृतराष्ट्र ने कहा, “हे संजय! धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और पांडवों ने क्या किया?”

आचार्य प्रशांत: जिज्ञासा से आरंभ हो