हम जिनसे प्यार करते हैं, वो हमसे नफरत क्यों करते हैं?

Acharya Prashant

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हम जिनसे प्यार करते हैं, वो हमसे नफरत क्यों करते हैं?

प्रश्नकर्ता: हम जिनसे प्यार करते हैं, वो हमसे नफ़रत क्यों करते हैं?

आचार्य प्रशांत: तकलीफ़ क्या है? आप तो प्रेम कर ही रहे हैं। प्रेम तकलीफ़ की चीज़ थोड़े ही है। आप तो अपने मन का काम कर ही ले रहे हैं न? आपको क्या करना था? प्रेम। और आपने प्रेम कर लिया, अब तकलीफ़ क्या है?

पकड़े गए! तकलीफ़ तो है। हमें सिर्फ प्रेम ही भर नहीं करना था, कामना कुछ और भी थी। क्या कामना थी? दूसरे से उत्तर भी मिले, कुछ लाभ भी हो, कुछ मान सम्मान हो। प्रेम भर करना अगर आपका उद्देश्य होता तो आपको कौन रोक सकता है? कौन है जो किसी को प्रेम करने से रोक सकता है, करो न प्रेम। पर प्रेमीज़न आते हैं कहते हैं “मेरा प्रेम विफल गया” मुझे बात ही नहीं समझ में आती! कहता हूँ, "प्रेम विफल कैसे जा सकता है? वह तो बड़ी आंतरिक बात है।" तुम्हें कोई जेल में डाल दे, बेड़ियाँ पहना दे तो भी तुम्हारे प्रेम पर आँच नहीं आ सकती, प्रेम को बेड़ी नहीं पहनाई जा सकती, हाथ को पहनाई जा सकती है। तुम्हारा प्रेम विफल कैसे हो गया?

तो बोलेंगे, “अरे! वह किसी और की हो गई।”

तो प्रेम करना था कि क्या करना था?

“नहीं प्रेम तो करना था पर सुहागरात तो कहीं और मना रही है न!”

तो सीधे बोल न तुझे चाहिए क्या था, प्रेम वगैरह की बात क्यों कर रहा है? जिस्म चाहिए था वह मिला नहीं, तो कह रहा है मेरा प्रेम विफल हो गया। प्रेम तूने किया ही कब था? प्रेम तो बहाना था कुछ पाने का। बहाना चला नहीं तो अब आँसू बहा रहा है।

सिर्फ प्रेम करिए। दूसरा भी हो सकता है नफ़रत इसलिए करता हो क्योंकि उसको पता है हम सिर्फ प्रेम नहीं कर रहे हैं, प्रेम में उम्मीद छुपी हुई है। प्रेम अगर असली है तो उम्मीदों के साथ नहीं होगा।

नाप-तोल थोड़े ही है प्रेम कि, "आज एक लीटर हमने दिया है तुमको, देखो! हिसाब रख लेना!" बड़े दिन बीत गए वह लौटा ही नहीं रहा है, लिए ही जा रहा है तो बुरा लग रहा है।

प्रेम बड़ी स्वतन्त्रता की बात है, कोई नहीं रोक सकता आपको, किसी की हिम्मत नहीं। करिए और डंके की चोट पर करिए, देखते हैं कौन रोक लेगा। जिससे प्रेम है वह भी आपसे कहे कि तुमसे नफ़रत करता हूँ, बोलो “कर लो, हम जो करते हैं वह करने से तुम हमें नहीं रोक पाओगे, तुम्हें जो करना है वह तुम करो। वह तुम्हारा निजी मामला है, हमें मतलब ही नहीं।”

वह दूसरा व्यक्ति बोले, “मुझे तुमसे नफ़रत है” आप कहिए, “वह तुम्हारा निजी मसला है, तुम जानो, उसका हमसे क्या लेना-देना? तुम अपने मन में क्या खिचड़ी पका रहे हो वह तुम्हारा पर्सनल , व्यक्तिगत मामला है, तुम जानो, हमें तो यह पता है हमें क्या करना है।”

तू हमें भूल भी जाए तुझे हक़ है लेकिन, हमारी बात और है हमने तो मोहब्बत की है।

तुझे हक़ है तू जो करना चाहे करे, हमारी बात और है, हमने तो मोहब्बत की है। हमें जो करना है हम करेंगें, तुम्हें जो करना है तुम करो। यह कहाँ का गणित है कि, "हम इतना प्यार करते हैं उधर से कुछ आता नहीं"? जब यह प्रश्न उठे तो अपने आप से पूछिए कि, "मैं माँग क्या रही हूँ?" आमतौर पर उत्तर आएगा, "मैं भी तो प्रेम ही माँग रही हूँ, प्यार दो, प्यार लो।" तो समझिएगा कि प्यार देने की चीज़ तो हो सकती है लेने की बिलकुल नहीं। दिया जा सकता है, लिया नहीं जा सकता और माँगा तो बिलकुल ही नहीं जा सकता। ‘आई हियरबाई रेकुएस्ट यू टु लव मी' (मैं तुमसे प्रेम करने की प्रार्थना करती हूँ)। "महोदय, सविनय आवेदन है कि कृपया थोड़ा प्रेम अता फरमाएँ।" ऐसे थोड़े ही।

दीजिए! बादशाहत की बात है। दिल खोल कर दीजिए, मालकिन हैं आप, रानी हैं, हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं है, खूब दीजिए। जो आपके पास है आप दे रही हैं, जो उनके पास है वह दे रहे हैं। आपके पास प्यार है, उनके पास नफ़रत है, दोनों मजबूर हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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