दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए || पंचतंत्र पर (2018)

Acharya Prashant

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दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए || पंचतंत्र पर (2018)

प्रश्नकर्ता: कुछ दिन पहले आपका एक सत्र देख रहा था, उसमें अपने बोला था कि आज के साधक को संसार से उतना ख़तरा नहीं है, जितना समकालीन, आज के गुरुओं से है। मेरे कुछ दोस्त भी कुछ समकालीन गुरुओं के पास जाते हैं। कृपा करके इस विषय पर थोड़ा और प्रकाश डालें ताकि मैं भी इस बात को पूरा देख पाऊँ और दोस्तों तक भी पहुँचा पाऊँ।

आचार्य प्रशांत: क्यों बोलूँ इस विषय पर? दुनिया में इतना कुछ है जिस पर बोला जा सकता है और जिस पर बोला जाना चाहिए। मैं वो सब छोड़ करके इस मलिन विषय को क्यों उठाऊँ?

पहले तो ज़िंदगी ही छोटी-सी, फिर उस छोटी-सी ज़िंदगी में इन सत्रों का समय और थोड़ा-सा। उस छोटे से समय में मैं सच्चाई की बात करूँ, सौंदर्य की बात करूँ, प्रेम की बात करूँ, परमात्मा की बात करूँ, या ढोंगी गुरुओं की बात करूँ? तुम क्यों मेरा मुँह गंदा कराना चाहते हो? और मैं क्या प्रकाश डालूँ, जानते नहीं हो क्या?

मेरा काम है सच्चाई की बात करना। तो बस यही कसौटी है –

जहाँ पाओ कि किसी-न-किसी तरीक़े से, किसी-न-किसी तर्क से, किसी भी चाल या किसी भी विधि से, किसी भी कारण से अंधेरे की पैरवी हो रही है, वहाँ से बच लेना।

निंदा करने का लोभ बड़ा है, लेकिन मेरे पास निंदा से भी आगे का कुछ है। मैं जिसकी बात कर रहा हूँ, वो इतना सुंदर है, इतना प्यारा है, इतना रसीला है कि मैं उसकी बात छोड़ करके मल की, गंदगी की बात क्यों करूँ? बोलो।

मुझे समय मिलेगा तो मैं कबीर साहब के भजन गाऊँगा, मुझे समय मिलेगा तो मैं प्रेम में बिताऊँगा।

एक तो इस जीव, इस शरीर के पास, हमने कहा कि समय ही ज़रा-सा है, अब किस-किसकी निंदा करते रहें?

चलो, कर लेते हैं निंदा; तुम माँगोगे तो कर भी देंगे तुम्हारा दिल रखने के लिए। बताओ, किसकी बुराई करवाना चाहते हो? कर देते हैं, पर उससे क्या होगा? दस मिनट कर देंगे किसी की बुराई। करोड़ों घूम रहे हैं जिनकी बुराई की जा सकती है, किसकी-किसकी करेंगे? अपनी भी कर देंगे। कर दी, तो? क्या मिल गया?

निंदा के लायक शायद बहुत लोग हैं, पर निंदा करना अपना ही समय ख़राब करना है न। जितनी देर बुराई करी, उतनी देर में कुछ सार्थक कर लिया होता, कुछ सुंदर कर लिया होता। जितनी देर ये इशारा करके बताते रहे कि “देखो, उसका घर कितना गंदा है! छी!” उतनी देर में अपना घर साफ़ कर लिया होता।

और मैं इंकार नहीं कर रहा कि हो सकता है कि दूसरे का घर गंदा हो, ये एक तथ्य हो सकता है कि दूसरे का घर गंदा हो, पर तुम इस तथ्य से क्यों चिपकना चाहते हो? है गंदा तो है। और अगर तुम्हें बहुत अखर रही है ये बात कि दूसरे का घर गंदा है, तो जाकर साफ़ कर दो। निंदा में समाधान तो कुछ नहीं, बस रस है।

अभी थोड़े ही देर पहले मैं पढ़ रहा था, कबीर साहब कह रहे थे कि कंचन के आकर्षण का संवरण करना आसान है, सोना लुभाता हो तो उस लोभ का सामना करना आसान है, स्त्री लुभाती हो, उस लोभ का भी सामना करना आसान है, लेकिन निंदा रस में जो आकर्षण है, उसका सामना करना बड़ा मुश्किल है। तुम सब कुछ त्याग सकते हो, निंदा रस को त्याग पाना बड़ा मुश्किल है। और ये कह करके मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा कि दुनिया में गंदगी नहीं है; है, पर ये क्यों आवश्यक है कि तुम उसमें जाकर गोता मारो?

गंदगी से दो ही तरह का रिश्ता रखा जा सकता है – या तो उसकी उपेक्षा करो या उसकी सफ़ाई करो। उसकी कहानी सुनाने से तो कुछ नहीं होगा। अगर सफ़ाई नहीं कर सकते, तो उपेक्षा कर दो, कि “छोड़ो, साफ़ तो कर नहीं सकते हैं।” और अगर है दमख़म, है सामर्थ्य, है प्रेम, तो लग जाओ, भाई, साफ़ ही कर दो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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