विवाह में आमतौर पर लड़की की उम्र लड़के से कम क्यों होती है?

Acharya Prashant

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विवाह में आमतौर पर लड़की की उम्र लड़के से कम क्यों होती है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सामान्यतया यह देखा जाता है कि विवाह के लिए लड़की की आयु लड़के से कम होती है। कृपया इस विषय पर कुछ कहने की कृपा करे।

आचार्य प्रशांत: उसके प्राकृतिक कारण हैं, उसका प्रेम से थोड़ी कोई संबंध है। वो तो आप जानते ही हैं जो भी प्राकृतिक कारण है, उसमे मैं क्या बताऊँ, सब यहाँ पर वयस्क बैठे हैं, आपको पता ही है। लड़कों में यौन परिपक्वता एक उम्र में आती है, लड़कियों में उससे थोड़ा पहले ही आ जाती है, तो जो गणित लगाया जाता है वो ये कि उनकी शादी ऐसे करो कि दोनों की 'सेक्सुअल ऐज' बराबर हो। लड़के की 'सेक्सुअल ऐज' अगर बारह से शुरू होती है, तो लड़की की कब से शुरू होती है? दस से, लड़के की चौदह से शुरू होती है तो लड़की की बारह से शुरू हो जाती है, तो शादी करते वक़्त कह दिया जाता है कि ठीक है, जब लड़की दो साल पहले से ही शुरू कर चुकी है, तो फिर दो साल छोटी लाओ ताकि दोनों की 'सेक्सुअल ऐज' बराबर हो। एक तो ये बात थी। ये कारण शारीरिक हुआ।

दूसरा कारण कुछ हद तक सामाजिक है। लड़का उम्र में जितना ज्यादा बड़ा होगा लड़की से, उतना उसके लिए आसान हो जाएगा लड़की पर प्रभुत्व चलाना, लड़की को डोमिनेट करना। इसलिए जो पितृसत्तात्मक समाज होते हैं, निष्ठावान पितृसत्तात्मक, उनमें ऐसा भी होता है कि लड़का, लड़की से सात-सात, आठ-आठ साल भी उम्र में बड़ा है। दक्षिण भारत में जाओ, वहाँ पांच साल का फ़ासला तो रखते ही है, क्योंकि जितना उम्र में और अनुभव में बड़ा होगा पुरुष, स्त्री पर नियंत्रण करना और आधिपत्य करना उसके लिए उतना आसान हो जाएगा न। लड़की बीस की है, वो अभी पढ़ ही रही है, लड़का अट्ठाइस का है, वो चार साल से नौकरी कर रहा है, तो आराम से उसको वो फिर- "चल यहाँ बैठ!" तो ये कारण हैं, कुछ थोड़ा शारीरिक कारण है, कुछ सामाजिक कारण है। उसका अध्यात्म से, प्रेम से कोई लेना देना नहीं है।

और आगे बढ़ोगे तो और कारण मिल जाएँगे। लड़की जितनी कम उम्र की रहेगी, पुरुष को वो उतने समय तक युवती के रूप में उपलब्ध रहेगी। समझ रहे हो न? जितने कम उम्र की है, उतने ज़्यादा समय तक पुरुष के सामने वो एक युवती की तरह खड़ी हो सकती है। अब ज़्यादा उम्र की है, तो जल्दी बुढ़ा जाएगी, पुरुष की यौन इच्छाएँ पूरी नहीं होंगी, तो वो कहता है, "और छोटी लेकर के आओ, लंबी चलेगी।" इसलिए तो कई लोग फिर बुढ़ापे में बिल्कुल छोटी-छोटी उम्र की लड़कियों से शादी करते हैं। पचपन के हैं, निकाह हो रहा है पंद्रह की से, वो भी चौथा। ये कोई प्रेम थोड़ी उदित हुआ है?

और आगे बढ़ना है, तो और समझलो। जितनी कम उम्र की रहेगी, उतना ज़्यादा उम्र तक सेवा कर पाएगी, क्योंकि जब आप स्त्री घर लाते हो तो सेविका भी तो लाते हो, कपड़े धोएगी, बर्तन माँजेगी, बहुत कुछ करेगी। कम उम्र की है तो लंबी चलेगी। और समझ लो, जितनी कम उम्र में उसको घर लाओगे, संतान पैदा करने का उतना ज़्यादा अवसर रहेगा। अब चालीस की उम्र में अगर वो ब्याह के ही आई है, तो बच्चे कब पैदा करेगी? तो तभी ले आओ जब वो बीस की है, तो फिर बीस-पच्चीस साल का लंबा अंतराल मिलेगा उसे गर्भवती करने के लिए। तो ये सब तीर-तिकड़म लगते रहे हैं, इनका सत्य से, अध्यात्म से, प्रेम से कोई लेना देना नहीं है। स्त्री होना आसान बात नहीं है।

प्र: तो क्या विवाह-शास्त्र ऐसा कुछ बनाया नहीं गया है?

आचार्य: कौन बनाएगा?

प्र: जो समझ रहे हैं, वही बनाएँगे।

आचार्य: तो आप बनाइये न।

सामाजिक प्रथाएँ-परम्पराएँ उन्होंने ही रची हैं, जिनके हाथ में ताकत थी और अभी तक ताकत स्त्रियों के हाथ में रही नहीं है। तो ये सब जो आप प्रथाएँ-परम्पराएँ देखती हैं, इनमें से अधिकांशतः शोषण मूलक हैं। मर्दों ने रची थी, और उनमें से बहुत सारी प्रथाएँ ऐसी हैं, जिनका उद्देश्य ही स्त्रियों का शोषण था। उस शोषण से बाहर निकलने का तरीका समझदारी ही है, ज्ञान ही है, प्रकाश ही है, अध्यात्म ही है।

प्र: पहले तो स्वयंवर का प्रचलन था, उसमें स्त्री को वर चुनने का अधिकार था, फिर ये उल्टा कैसे हो गया?

आचार्य: जब स्वयंवर होते थे, तब भी सब स्त्रियाँ स्वयंवर नहीं करती थी। लाखों में कोई एक स्वयंवर कर रही होती थी, तो आप उसको कोई व्यापक अर्थ नहीं दे सकती। फिर स्वयंवर कौन-सी बड़ी महान बात हो गई? जिससे प्रेम हुआ है उस बेचारे को तीर चलाना आता ही नहीं और स्वयंवर में कह रहे हो कि आओ और तीर उठा कर के मछली की आँख भेदो, और बाहर वो बैठ कर के माथा फोड़ रहा है अपना। तो स्वयंवर तो ऐसे बता रहे हो जैसे पता नहीं महिलाओं के लिए वो कितनी अधिकार की और गर्व की बात हो। तुम प्रेम करने से पहले ये देखोगी क्या कि वो मछली कितनी अच्छी तरीके से मारता है? फिर स्वयंवर में आ ही वही सकते थे, जो राज पुरुष हो। राजकुमारी को अगर किसी साधारण पुरुष से प्रेम हो गया हो, तो उसे मिलेगा क्या स्वयंवर से? उसको तो सभा कक्ष में प्रवेश भी नहीं करने दिया जाएगा। कर्ण तक को बोल दिया गया था- "सूत-पुत्र है, हट!"

थोड़ी देर पहले मैंने कहा था- सब प्रथाएँ बुरी नहीं होती, न सब प्रथाएँ भली होती हैं। बोध के प्रकाश में देखो, कहाँ तुम्हारा कल्याण है, उधर को बढ़ो, उसी दिशा का पालन करो।

प्र: पुराने दिनों में व्रत के विशेष दिनों में कुछ विशेष नियम बनाये जाते थे, जैसे शुक्रवार के व्रत में तामसिक भोजन ग्रहण न करना। इसका क्या महत्व है?

आचार्य: पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा ये बुधवार, शुक्रवार जानते ही नहीं। आप चन्द्रमा से पूछोगे- आज शुक्रवार है, बुधवार है, वो कहेगा- ये क्या होता है? उस बेचारे को ये भी नहीं पता कि तुमने हफ्ते में सात दिन रखे हैं। तभी तो तुमने न जाने कितने संवत चला रखे हैं; एक बताएगा कि आज फलाना वर्ष है, वो एक संख्या दे देगा और तुम दूसरे संवत का पालन करोगे वो दूसरा वर्ष बता देगा, अब कौन सा वर्ष सही है, बताओ? तो ये सारे वर्ष, ये सारे वार आदमी का निर्माण है, इनमें कोई सत्य नहीं है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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