प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। आपके सान्निध्य में आने के बाद एक नए का जन्म हुआ है। मैं बदला हूँ। अब इस नई रोशनी में पहले जैसा मैंने जीवन जीया, उसके प्रति निष्पक्ष और बेपरवाह हो रहा हूँ। पुराने ढर्रे हल्के हैं, लेकिन कभी-कभी उनके प्रभाव में कुछ और हो जाता हूँ। अभी कल भी ऐसा कुछ हुआ और मैंने उसे होते देखा।
आचार्य जी, लेकिन मैंने तो दोनों को देखा। इसे पूरी तरह समझ नही पा रहा हूँ। कृपया समझाने की कोशिश करें।
आचार्य प्रशांत: ये चलेगा, बहुत समय तक चलेगा। दोनों मौजूद रहेंगे। मुक्ति इतनी सस्ती नहीं होती कि एक झटके में हासिल हो जाए। अभी तो बहुत समय तक दोनों मौजूद रहेंगे, और जब तक दोनों मौजूद हैं, तब तक पल-पल तुम्हारी परीक्षा होती रहेगी। परीक्षा यह है कि इन दोनों में से तुम चुनोगे किसको।
(ऑनलाइन प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करते हुए) आज जो हमने पहला सवाल लिया, आप उस पर वापस जाइएगा। अगर आप ऑनलाइन नहीं हैं तो वापस जा करके उसको पुनः सुन लीजिएगा।
तो नर मगर हो तुम। कौन हो तुम? नर मगर हो तुम। और तुम्हारे सामने अभी बहुत समय तक दोनों मौजूद रहेंगे। दोनों कौन? बंदर भी और बीवी भी। और बहुत समय तक तुम्हें चुनाव करना पड़ेगा, बार-बार चुनाव करना पड़ेगा, क्योंकि पूर्णतया छोड़ तुम दोनों में से किसी को भी नहीं पाओगे—न बंदर छूटेगा, न बीवी छूटेगी।
बंदर और बीवी से मतलब समझ रहे हो न? बीवी छोड़ने के लिए नहीं कह रहा हूँ। डर जाता हूँ, जाने क्या अर्थ कर लो।
बंदर कौन? वो दिशा जहाँ से ज्ञान का मीठा फल आने लगा है तुमको। और बीवी कौन? भीतर बैठी वो वृत्ति जो तुमको अंधेरे में ही रखना चाहती है, जो तुमको देह से ही लिप्त रखना चाहती है। बाहर के किसी व्यक्ति को मैं बीवी का नाम नहीं दे रहा हूँ, तुम्हारी ही देहगत वृत्ति को कह रहा हूँ मादा मगर।
तो इन दोनों में तुम्हे बार-बार चुनाव करना ही पड़ेगा – प्रकृति है और आत्मा है। और अकेले हो तुम, मनुष्य योनि में जन्म ले करके जिसे चुनाव का हक़ है – या तो प्रकृति को चुन लो या आत्मा को चुन लो।
जानवरों को यह समस्या आती ही नहीं क्योंकि उनको चुनाव करना ही नहीं है। क्यों नही करना? क्योंकि उनका चुनाव पहले ही हो चुका। उन्होंने किनको चुन लिया? प्रकृति को। आत्मा वाला विकल्प ही नहीं खुला उनके लिए। आदमी मँझधार में है। आदमी को चुनना है और एक बार नहीं चुनना, बार-बार, लगातार चुनना है। सौ बार तुम सही निर्णय ले लो, एक सौ एकवीं बार ग़लत निर्णय की संभावना अभी भी है।
कोई ये न कहे कि बुद्धत्व प्राप्त हो गया है, अब तो हम कभी ग़लत निर्णय लेंगे ही नहीं। हो सकता है कि तुमने जीवन में सौ बार सही चुना हो, हो सकता है कि अब ग़लत चुन लो। और इसका उलट भी उतना ही सही है, सौ बार ग़लत चुनने के बाद एक सौ एकवीं बार सही चुनने की संभावना भी है।
तो ये जो तुम्हें हक़ मिला है चुनाव का, ये तुम्हारा बड़ा अभाग भी है और बड़ा सौभाग्य भी है। सौभाग्य इसलिए है कि फ़र्क़ नही पड़ता तुम्हारा अतीत कैसा रहा है, हो सकता है कि तुमने अतीत में बहुत-बहुत ग़लतियाँ की हों, लेकिन अतीत की सारी ग़लतियों के बाद तुम आज भी सही चुनाव कर सकते हो और दुर्भाग्य इसलिए है कि हो सकता है कि तुम अतीत से बड़े साधक हो, बड़े सत्यनिष्ठ हो, लेकिन फिसलने की संभावना अभी भी है, ग़लत चुनाव का ख़तरा अभी भी है।
तो लगातार तैयार रहिए। मैं किसी चमत्कार इत्यादि की बात नहीं करता हूँ, क्योंकि कोई चमत्कार होते नहीं। जो चमत्कार है, वो लगातार है। जीवन चमत्कार है, उसके अतिरिक्त कोई चमत्कार नहीं। चमत्कारिक रूप से अचानक निर्वाण नहीं मिल जाएगा। एक लंबी प्रक्रिया है; एक घटना नहीं है। कभी नहीं कह पाओगे कि अमुक दिन, अमुक समय आसमान से मुक्ति उतरी और मुझे उपलब्ध हो गई, बिलकुल नहीं।
लम्बी और अंतहीन प्रक्रिया है। अब ये बात सुनकर थोड़ी निराशा हुई होगी। लम्बी कह दिया तो ठीक, अंतहीन भी कह दिया! हाँ, मैं कह रहा हूँ कि अंतहीन भी है। आख़िरी साँस तक भी सम्भावना है कि तुम फिसल सकते हो। आख़िरी साँस तक सतर्कता चाहिए। हाँ, वो सम्भावना न्यून-न्यून-न्यूनतम हो जाएगी, क़रीब-क़रीब शून्य हो जाएगी; पूर्णतया शून्य तो कभी भी नहीं होगी।
पूर्णतया शून्य तो उसको हुआ तब मानना, जब उसे न्यूनतम करके देह से मुक्त हो जाओ। वो तुम्हारी महासमाधि होगी। उस महासमाधि से पहले तो निरन्तर सजगता के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।