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बुद्धि तो घास ही चरेगी || पंचतंत्र पर (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। मैं अभी कानपुर में जिनके घर रुकी हूँ, उनका चार साल का एक लड़का है जिसके दोनों पैरों में एलर्जी और त्वचा की कुछ समस्याएँ हैं। काफ़ी इलाज के बावजूद भी उसे कोई लाभ नहीं मिल पाया है।

मैंने बच्चे की माँ को समझाया कि बच्चे को जो तकलीफ़ है, वो रक्त की शुद्धता और परिवार में मधुमेह के इतिहास की वजह से है, तो इसलिए उन्हें मीठे शर्करायुक्त उत्पादों, जंक फ़ूड इत्यादि बंद कर देना चाहिए। पर माँ ने फिर तर्क दिया कि अगर बच्चे बचपन में चॉकलेट , आइसक्रीम और जंक फ़ूड नहीं खाएँगे, तो कब खाएँगे।

यहाँ पर बच्चे को जो तकलीफ़ है, उसमें पहला कारण परिवार में मधुमेह का इतिहास है और दूसरा कारण माताजी की सोच है। मैं स्वयं एक डॉक्टर हूँ और पाया है कि पंचानवे प्रतिशत मामले केवल हमारी ग़लत मान्यताओं और सोच की वजह से हैं।

आपके सम्पर्क में आने के बाद अध्यात्म और स्वास्थ्य एक जैसे ही दिखने लगे हैं; दोनों की शुरुआत हमसे होती है। आचार्य जी, इस पर थोड़ा प्रकाश डालिए।

आचार्य प्रशांत: आदमी क्या है, ये समझना पड़ेगा। एक छोटी-सी कहानी से शुरुआत करते हैं। वो आदमी के मन और उसके शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर है। ऐतिहासिक कहानी है; कहानी कम है, तथ्य ज़्यादा।

आदमी जंगल-जंगल भटकता था छोटे-छोटे समूहों में, बीस, पचास, सौ के कबीलों में। भटकता था, तमाम तरह के कंद-मूल, फल, पत्ते इकठ्ठा करता था, खाता था। जानवरों को भी मारता था, उन्हें भी खाता है। ये कृषि से पहले की बात है, आदमी ने अभी खेती शुरू नहीं करी थी। आदमी पंचानवे प्रतिशत मामलों में वैसे ही जी रहा था जैसे अन्य पशु जीते हैं।

उसकी बुद्धि विकसित हो चली थी, लेकिन बुद्धि अभी भी इतना आगे नहीं निकली थी कि वो अपने प्राकृतिक तौर-तरीक़े छोड़ दे। बुद्धि विकसित हुई थी, तो आदमी ने एक प्रकार की भाषा ईजाद कर ली थी। आग, पत्थर को घिसकर कुछ उपकरण, अस्त्र बना लिये थे, दीवारों पर आकृतियाँ उकेरने लगा था, कला की शुरुआत हो गई थी। घूमता-फिरता रहता था।

फिर बुद्धि ने उसे सुझाया कि ये जो गेहूँ का पौधा है, अगर इसको किसी जगह पर बो दिया जाए तो सुविधा रहेगी। “कहाँ इधर-उधर फिरते हैं अन्न के लिए? हम जहाँ हैं, वहीं अन्न का क्यों न आयोजन कर लें?”

तो इस तरह खेती की शुरुआत हुई। फिर आदमी ने जहाँ बो दिया गेहूँ, वहीं पर रुकने लग गया। वो पहला गाँव था। तो पहला गाँव ऐसे विकसित हुआ। जहाँ गेहूँ बो दिया गया है, वहीं बगल में आपको रहना पड़ेगा। क्यों रहना पड़ेगा? क्योंकि अब बोया है तो उसकी सुरक्षा भी करोगे।

आदमी की बुद्धि ने पहली बार कुछ ऐसा किया महत्वपूर्ण तरीक़े से जो जानवर कभी नहीं करते हैं, और किया ये पेट के लिए ही गया। सोचा यह गया कि अन्न ज़्यादा होगा तो ख़ुशहाली आएगी, शरीर भी बेहतर होगा। देखने को क्या मिला? देखने को ये मिला कि पैदावार बढ़ी तो बच्चे भी बढ़ गए। और बच्चे ज़्यादा चाहिए थे क्योंकि खेतों की देखभाल के लिए ज़्यादा हाथों की ज़रूरत होती है। लेकिन जहाँ हाथ है, वहाँ पेट भी है; हाथ अगर बढेंगे तो पेट भी बढ़ेंगे। तो ले-देकर आपने जितना अतिरिक्त उपजाया, वो उपजाने वालों की ही भूख शांत करने में निकल गया; हाथ कुछ नहीं आया।

पहले जनसंख्या एक तरीक़े में चलती थी एक सीमा में, क्योंकि आपको तो लगातार चलते रहना है, तो बहुत ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर ज़ोर ही नहीं था। बच्चे भी एक बोझ होते थे। आपको लगातार चलना है और आप बच्चा लादे-लादे चल रहे हो; बच्चा बोझ था। अब बुद्धि ने सुझाया कि नहीं, अब बच्चा एक असेट (सम्पत्ति) है, एक धन है, तो बच्चे बढ़ने लगे। बच्चे बढ़ने लगे तो खेतों में काम भी ज़्यादा होने लगा, लेकिन जब बच्चे बढ़े हैं तो खेत भी ज़्यादा चाहिए।

स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ा?

स्वास्थ्य पर ये असर पड़ा कि जहाँ बहुत सारे लोग रुके हुए हैं, वहाँ संक्रामक रोगों का फैलना बहुत आसान हो जाता है। तो पहले संक्रामक रोग कम फैलते थे, अब एपिडेमिक (महामारी) ज़बरदस्त रूप से फैलने लगे। पहले कबीले कितने लोगों के? बीस, पचास। अब गाँव में पाँच सौ लोग हैं, अब बीमारी फैलेगी तो कितने जाएँगे एक साथ? सीधे पाँच सौ जाएँगे।

दूसरी बात, जब तुम घूम-घूम करके तमाम तरीक़े के फल, अनाज, पत्ते, सब्ज़ी और कंद-मूल सब इकठ्ठा करते थे, तो तुमको विविध प्रकार का भोजन मिलता था, खाने में एक विविधता, डायवर्सिटी होती थी, वो गई; नतीजतन आदमी का शरीर कमज़ोर पड़ने लगा। पूरे प्रमाण हैं इस बात के कि जिस दिन से खेती की शुरुआत हुई है, उस दिन से आदमी कमज़ोर ही पड़ता गया है लगातार।

खेती से पहले आदमी जैसा था और आज का आदमी जैसा है शारीरिक रूप से, उनकी कोई तुलना नहीं है। हम बहुत कमज़ोर हो चुके हैं, क्यों? क्योंकि मन ने हमें बताया, क्योंकि बुद्धि ने हमें सुझाया कि हमारी बेहतरी इसमें है कि हम आगे बढ़ें, अपनी कबीलाई संस्कृति को, अपनी जंगली संस्कृति को त्याग करके हम खेती करें। क्या मिला? जो मिला वो सामने है।

बुद्धि कर सकती है कुछ ऐसे काम जो प्रकृति से आगे के दिखते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि हमने जब भी कुछ ऐसा करना चाहा है जो प्रकृति से आगे का है, तो हम प्रकृति से भी पिछड़ गए हैं। हम अपनी बुद्धि लगाकर ये सोचते हैं कि हम प्रकृति का उपभोग कर रहे हैं, हम सोचते हैं कि हम प्रकृति को समझते हैं—और प्रकृति का ही तो सीधा संबंध शारीरिक स्वास्थ्य से है न? खेल उल्टा पड़ जाता है।

गेहूँ का आपने इस्तेमाल किया, उसमें इस्तेमाल तो आपका हो गया न; गेहूँ आपको खा गया, आप कमज़ोर हो गए। मज़े किसके आ गए? मज़े गेहूँ के आ गए।

गेहूँ, जो जंगल की एक आम घास थी, आज दुनिया में गेहूँ-ही-गेहूँ है। दुनिया पर कौन राज कर रहा है? गेहूँ। नहीं तो गेहूँ की क्या औक़ात? जंगल में पड़ा रहता, जैसे और घासें हैं। आज गेहूँ राजा है।

इसी तरीक़े से, दुनिया में इंसान के बाद, आप जानते हैं, सबसे ज़्यादा प्रजातियाँ किन मैमल्स की, स्तनधारियों की है? गाय-भैंस इत्यादि। हम सोचते हैं कि हमने उनको पाला है; हमने उनको नहीं पाला, उन्होंने हमको पाला है, क्योंकि सेवा तो हम उनकी कर रहे हैं न। हम उनकी सेवा कर रहे हैं और उनकी तादात बढ़ा रहे हैं। भाई, खेत तुम्हारी सेवा करता है, या तुम खेत की सेवा करते हो?

श्रोतागण: हम खेत की सेवा करते हैं।

आचार्य: तुम जी सको इसके लिए आवश्यक है कि खेत जीता रहे, तो तुम मरकर भी खेत को ज़िंदा रखते हो। कौन किस पर राज कर रहा है?

तो ये बहुत सोच का मुद्दा है कि वो सब कुछ जो आपको लगता है कि आपको आगे बढ़ाएगा, आपको वाक़ई आगे बढ़ा रहा है क्या? आपकी कोई तरक़्क़ी हो रही है क्या? अगर जीवन का लक्ष्य शांति है, सीधी-सी बात, तो आप जो कुछ कर रहे हैं, उससे आपकी शांति में इज़ाफ़ा हुआ है क्या?

शारीरिक स्वास्थ्य भी आपको चाहिए, न हो वो तो आप अशांत हो जाते हो। मन का, बुद्धि का, उद्योग का, इंडस्ट्री का, टेक्नोलॉजी (तकनीक) का इस्तेमाल करके आपने इतने सारे खाद्य-पदार्थ विकसित कर लिये हैं, वो सब खा करके शरीर वाक़ई सबल होता है क्या? ये इतने सप्लीमेंट (पूरक पोषण) लेने की ज़रूरत कैसे पड़ने लगी?

मैं कह रहा हूँ, पुराना आदमी जंगल में फिरता था और आपसे कहीं ज़्यादा तगड़ा था। आपको इतने सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत कैसे पड़ने लगी? आपके पास तो विज्ञान है, तकनीक है, सब कुछ है। बुद्धि के चलते आपने जो कुछ करा है, वो आपको प्रकृति से भी आगे नहीं ले गया। आपको लगा है कि आप प्रकृति से आगे जा रहे हो, वो आपको प्रकृति से भी पीछे कर देता है। ये बड़ी अजीब बात है।

आत्मा है, प्रकृति है, बुद्धि है, ठीक? आत्मा है, प्रकृति है, बुद्धि है। आदमी की ख़ासियत है बुद्धि। प्रकृतिबद्ध तो आदमी भी है और पशु भी हैं, पर जानवरों और आदमियों में जो अंतर है, वो अंतर है बुद्धि का।

हम सोचते हैं कि बुद्धि हमें शांति तक ले जाएगी, आत्मा तक ले जाएगी। ये तो छोड़ दीजिए कि बुद्धि आपको आत्मा तक ले जा पा रही है, शांति तक ले जा पा रही है, बुद्धि तो आपको जानवरों के तल से नीचे गिरा दे रही है। जानवर आपसे ज़्यादा स्वस्थ हैं प्राकृतिक रूप से। बिना बुद्धि का जानवर बिना किसी सप्लीमेंट के आपसे ज़्यादा स्वस्थ है। बिना बुद्धि का जानवर, बिना किसी सप्लीमेंट खाए और बिना कोई दवाई खाए आपसे ज़्यादा स्वस्थ!

तो आपकी बुद्धि आपको आत्मा तक ले जाएगी, ये तो बात दूर की है, आपकी बुद्धि ने आपको जानवरों के तल से भी नीचे गिरा दिया—मैं स्वास्थ्य की बात कर रहा हूँ। शांति तो बहुत दूर की कौड़ी है, निराकार ब्रह्म तो बहुत दूर की कौड़ी है, हमने तो शारीरिक स्वास्थ्य भी खो दिया। होशियारी महँगी पड़ी!

हमेशा हमें लगा यही है कि हम जो कर रहे हैं, अपनी बेहतरी के लिए कर रहे हैं; वो होता नहीं है। और जानते हो ख़तरनाक बात? जब तुम कुछ ऐसा कर रहे हो जो तुम्हें लगता है कि तुम्हारे लिए ठीक है, तो उस वक़्त पर ये साबित नहीं किया जा सकता कि तुम कुछ ग़लत कर रहे हो। बड़ा मुश्किल है, कैसे साबित करोगे? फिर कैसे रोकोगे किसी को होशियारी दिखाने से? एक ही तरीक़ा है – एक अकारण श्रद्धा हो, एक दिली समर्पण हो; नहीं तो रोका नहीं जा सकता। पहले भी नहीं रोका जा सकता था, अब तो बिलकुल ही नहीं रोका जा सकता। आज आपके पास टेक्नोलॉजी की बड़ी ताक़त है, आप जो चाहे कर लें।

और सिद्धांत हैं, उसूल हैं, प्रिंसिपल्स हैं जो बताते हैं कि आप जो चाहें, वो आपको करने का हक़ है, पर्सनल राइट्स (व्यक्तिगत अधिकार) हैं, पर्सनल फ़्रीडम (व्यक्तिगत आज़ादी) है। आप जो चाहें, वैसा कर सकते हैं। तो आप जो करना चाहें, वो करने की आपको ताक़त भी दे दी गई है और हक़ भी। कौन रोकेगा आपको? अज्ञान नहीं रोक सकता, विज्ञान ने तो ताक़त ही दी है, कानून आपके समर्थन में है और तर्क से साबित किया नहीं जा सकता क्योंकि तर्क सारे आपके पक्ष में हैं।

बात बस इतनी-सी है कि जब आप गणना कर रहे होते हो कि मुझे लाभ होगा या नहीं होगा, तो आप कभी पूरी गणना नहीं कर सकते, क्योंकि आदमी के छोटे से भेजे में हर बात नहीं समाती है। आदमी ने ऐतिहासिक रूप से बड़ी गणनाएँ करी हैं, वो गणनाएँ ग़लत नहीं हैं, बस अधूरी हैं, और चूँकि अधूरी हैं, इसीलिए बहुत ज़्यादा ग़लत हैं।

मैं सुनाया करता हूँ न वो ऋषि और गाय वाली कहानी। बिल्ली पाली, फिर ये पाला, फिर वो पाला, फिर गाय पाली; घर ही बस गया। जब गाय पालते हो तो गणना तो करते ही हो, हिसाब तो लगाते ही हो। हिसाब ये होता है कि गाय आएगी, दूध मिलेगा। पर तुम पूरी गणना, पूरा कैल्क्युलेशन नहीं कर पाते, कर सकते ही नहीं। पूरी बात इसको (दिमाग़ को) समाती नहीं।

तुम उसमें ये देख लोगे कि मुझे दूध मिलेगा, तुम ये नहीं समझ पाओगे कि दूध मिलेगा तो कोई दूसरी चीज़ें तुम खाना छोड़ दोगे। और दूध आसानी से मिलने लग गया तो पहली बात— तुम्हारे आहार में से कुछ चीज़ें बाहर हो जाएँगी और दूसरी बात— उन चीज़ों को पाने के लिए तुम जो श्रम किया करते थे, वो श्रम करना भी बंद कर दोगे।

मन ये तो देख लेता है कि मिला क्या; किस क़ीमत पर मिला, ये अक्सर नहीं देखता। और कुछ चीज़ें तो ऐसी हैं जिसका मन कभी हिसाब लगा ही नहीं सकता है। तुमने पाल लिया एक पशु, अब उसका ख़्याल लगातार तुम्हारे मन में कौंधेगा, कि नहीं? रात में सो रहे हो, बाहर ज़रा-सी खड़खड़ हुई कि चौंककर उठोगे, "कोई मेरी गैय्या तो नहीं ले जा रहा! साँप तो नहीं आ गया!" हिसाब कैसे लगाओगे उस चैन का जो तुमने खो दिया? कैसे हिसाब लगाओगे?

फिर मन एक चाल चलता है, मन कहता है, “मैं जिस चीज़ का हिसाब नहीं लगा सकता, उसको हिसाब से बाहर ही कर देता हूँ। शांति की क़ीमत नहीं पता, तो ऐसा करते हैं कि कह देते हैं कि शांति की क़ीमत शून्य है। बड़ी मुश्किल हो रही है ये पता करने में कि जो चैन खोया है, उस चैन की क्या क़ीमत थी, तो ऐसा करते हैं कि हिसाब से, समीकरण से, इक्वेशन से चैन को बाहर ही कर देते है। उसको बाहर कर दिया, अब हमारा समीकरण हमें बता रहा है कि ये सौदा मुनाफ़े का है।”

ये ऐसी-सी बात है कि जैसे एक तरफ़ लिखा हो (X+Y+Z) और दूसरी तरफ़ लिखा हो एक हज़ार। और X है सौ, Y है दो सौ, और आपको पता नहीं है कि (X+Y+Z) ज़्यादा बड़ा है या एक हज़ार ज़्यादा बड़ा है। क्यों नहीं पता? क्योंकि Z की क़ीमत आपको नहीं पता है।

लेकिन हल तो निकालना ही है कि राइट हैंड साइड (दायाँ भाग) बड़ा है या लेफ़्ट हैंड साइड (बायाँ भाग) बड़ा है, तो आप कहते हो, “ऐसा करो, Z को हटा ही दो। अब X और Y हुए तीन सौ और दूसरा पक्ष है एक हज़ार, तो एक हज़ार जीत गया, ठीक। अब ठीक है। हल हो गया, सवाल हल हो गया।”

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