प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। इन दो पंक्तियों ने मुझे अन्दर तक स्पर्श किया है: “वक़्त है कम, लम्बी मंज़िल, तुम्हें तेज़ क़दम चलना होगा। हे परम तपस्या के पथिकों, तुम्हें नूतन पथ रचना होगा।” परन्तु इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद और आपकी दो विडियोज़ जिनका शीर्षक ‘नयी कहानी’ और ‘एक छोटी सी चेतावनी’ है, इनको देखने के बाद यह नहीं समझ पा रहीं हूँ कि मेरे लिए नूतन पर क्या है और इस नूतन पथ का निर्माण कैसे किया जा सकता है।
आचार्य प्रशांत: नूतन पथ वास्तव में व्यक्तिगत पथ होता है। उसकी मंज़िल नूतन होती है, पथ तो व्यक्तिगत ही होता है। सबको अपना-अपना रास्ता बनाना पड़ता है पुराने जंगलों से, एक नयी साझी मंज़िल की ओर।
नयी इसीलिए क्योंकि वो पुराने जंगलों का हिस्सा नहीं है, हम जंगल में पैदा होते हैं। वो जंगल हमारे बाहर भी है, वो जंगल हमारे भीतर भी है। सब उसी जंगल में हैं; अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग परिस्थितियों में, पर हैं जंगल में ही। उस जंगल से बाहर जो है वो नया है, जंगल बहुत आदिम है, बहुत पुराना है। पुराना इस अर्थ में है कि उसमें दोहराव-ही-दोहराव है।
जो चीज़ दोहराने लग जाए, आप जानते हैं न कि वो पुरानी है? इस जंगल में दोहराव-ही-दोहराव है, ये जंगल हमारा जीवन है, इसी के बीच से रास्ता बनाना है। तो वो व्यक्तिगत रास्ता ही होगा, आपकी क्या परिस्थितियाँ हैं उसके अनुसार आपको आगे बढ़ना होगा, नेविगेट (मार्ग ढूँढना) करना होगा। जंगल में आप कहाँ खड़े हैं, उस बिन्दु के अनुसार आपको देखना होगा कि कौनसी राह बाहर की ओर जाती है, एक की राह दूसरे की नहीं हो सकती।
पुराने ऋषि-मुनियों की जो राह थी वो आपकी नहीं हो सकती, आज के भी जो सफल लोगों की राह है वो आपकी नहीं हो सकती। किसी सिद्ध जन की, किसी महापुरूष की जो राह है, आप उसकी नक़ल या उसका अनुसरण नहीं कर सकते। उन्होंने वो किया जो उनके लिए सही था, आपको वो करना होगा जो आपके लिए सही है। हाँ, आप जो भी करें, उसमें ख़याल ये रखना है कि आपका रास्ता आपको जंगल के बाहर ले जाता हो, जंगल में और न फँसा देता हो।
जब मैं कह रहा हूँ कि आपको अपनी व्यक्तिगत राह बनानी होगी, तो मेरा आशय ये नहीं है कि आप अपनी मर्ज़ी से, कोई भी अगड़म-बगड़म रास्ता चुन लें। रास्ता आपको ही चुनना है, आपको ही बनाना है, पर शर्त ये है, इस तरह से बनाना है कि रास्ता मुक्ति की ओर जाता हो और अन्धेरे की ओर नहीं। ये ज़िम्मेदारी सबको अकेले ही उठानी पड़ती है।
आपसे पहले, आपके अलावा जिन लोगों ने वो नयी रोशनी पायी, वो अधिक-से-अधिक आपको भरोसा दिला सकते हैं कि देखो हमने पायी तो तुम भी पा सकते हो। लेकिन उनके द्वारा पायी गयी रोशनी आपकी अपनी रोशनी नहीं हो सकती। जैसे उन्होंने स्वयं संघर्ष किया और अपना रास्ता ख़ुद बनाया वैसे ही आपको भी अपना रास्ता ख़ुद ही बनाना पड़ेगा।
दूसरों की सहायता और योगदान एक सीमा तक ही काम आएगा। कोई मार्गदर्शक, कोई गुरू आपका हाथ पकड़कर आपकी जगह आपका रास्ता नहीं चल सकता।
लगातार सतर्क रहिए, देखते रहिए कि आप जो कुछ कर रहें हैं वो रोशनी की दिशा में है या अन्धेरे की, शान्ति की दिशा में है या अशान्ति की, आज़ादी या ग़ुलामी। ये सतर्कता अगर आप रख रहे हैं, तो फ़िर श्रद्धा रखिए कि धीरे-धीरे जंगल काटते हुए आप आगे बढ़ेंगे।