क्रिकेट और सट्टा

Acharya Prashant

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क्रिकेट और सट्टा
खेल बहुत प्यारी चीज़ है, पर खेल और विज्ञापन दिखाकर सट्टेबाज़ी करने में अंतर है। आज आपको क्रिकेट नहीं, उसके ज़रिए विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। वही क्रिकेटर और सेलेब्रिटी आपको जुआ खेलने, सट्टा लगाने और पान मसाला खाने के लिए प्रेरित करते हैं। इनका अस्तित्व ही सिर्फ़ इसलिए है कि आपको विज्ञापन दिखाकर लूटते रहें। इससे बचने का एक ही समाधान है—भगवद्गीता, वेदांत और बोध ग्रंथों से जुड़ना। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर। मेरा प्रश्न अभी हाल में एक मीडिया में समाचार आ रहा है उसके बारे में है। जिसमें ये बताया गया है कि कर्नाटक के एक इंजीनियर हैं जिन्होंने आईपीएल के दौरान सट्टेबाज़ी में डेढ़ करोड़ रुपये गंवाए, उन्होंने ये पैसा इसमें से बहुत सारा पैसा लोन में लिया था ऊँचे दर के ब्याज़ पर और फिर उसको वापस लेने के लिए उनको प्रताड़ित किया गया और समाज में भी बदनामी होने लगी जिसकी वजह से उनकी चौबीस वर्षीय पत्नी ने आत्महत्या कर ली। उनका एक दो साल का बेटा भी है।

इस समाचार के ऊपर मेरा प्रश्न है कि आचार्य जी जो लालच की वृत्ति है, आप भी बताते हैं कि काफी पुरानी वृत्ति है और जैसे कि अभी आईपीएल चल रहा है तो इन दो महीनों में इसको और भी ज़्यादा बढ़ावा दिया जाता है। समझ में ही नहीं आता कि खेल है या एक एंटरटेनमेंट (मनोरंजन)। और भोगवादिता को बढ़ाने का एक तमाशा बन गया है जिसमें कि हर एक ऐड (विज्ञापन) में ये बेटिंग ऐप्स के ऐड आते रहते हैं और उनको करने वाले भी वही हैं जो खिलाड़ी हैं या फिल्मों की दुनिया से आते हैं जिनके पास पहले से ही काफ़ी पैसा पड़ा हुआ है लेकिन वो और पैसे के लिए इसको और बढ़ावा दे रहे हैं।

तो मेरा प्रश्न ये है कि यह एक दुष्चक्र जैसा बन गया है जिसमें कि जिसके पास पैसा है और वो और पैसा कमाने के लिए हथकंडे अपना रहा है और आम आदमी भी इसमें फँसता ही जा रहा है चाहे वो मध्यम वर्ग हो, चाहे अमीरों की सूची में आने वाले हों, सभी को और ज़्यादा पैसा कमाना है और ज़्यादा पैसा बनाना है। इसका क्या निवारण हो सकता है?

आचार्य प्रशांत: ऐसे में मुझे समझ में ही नहीं आता मैं उत्तर देना शुरू कहाँ से करूँ। क्योंकि कुछ चीज़ें मेरे देखे इतने स्पष्ट रूप से प्रपंची होती हैं कि उनमें ये सिद्ध करना ही बड़ा एब्सर्ड (अतार्किक) लगता है कि इसमें प्रपंच है। कुछ थोड़ा छिपा हुआ हो तो उसको खोलने में भी एक तार्किकता प्रतीत होती है कि चीज़ छुपी हुई थी और हमने किसी तर्क या युक्ति से जो छुपा था उसको ज़ाहिर कर दिया। पर जो चीज़ एकदम ही ज़ाहिर हो, प्रत्यक्ष हो उसके बारे में कौन से तर्क से खुलासा किया जाए।

आईपीएल में क्या हो रहा है इसके लिए तर्क क्या देना है, ‘प्रत्यक्षं किम् प्रमाणं’ जो हो रहा है दिख ही रहा है क्या हो रहा है। वो खिलाड़ी क्या कर रहे हैं, क्या बताऊँ क्या कर रहे हैं, नहीं दिख रहा है क्या कर रहे हैं? और मैं नहीं देखता हूँ, क्रिकेट से पिछले एक दशक से मन उठता जा रहा है लगातार, आईपीएल तो बिल्कुल ही नहीं देखता, टी ट्वेंटी भी नहीं देखता, हाँ टेस्ट मैच हों वो भी ऑस्ट्रेलिया वगैरह में कहीं पर या दक्षिण अफ्रीका में तो देख लेता हूँ, वो भी देख नहीं लेता हूँ बस स्कोर देख लेता हूँ। दिख ही रहा है क्या हो रहा है, क्या बताऊँ उसमें क्या है।

हमारी ज़िंन्दगियाँ जैसे-जैसे और विकृत होती जाएँगी, बर्बाद होती जाएँगी वैसे-वैसे हमें और ज़्यादा जल्दी-जल्दी और इंटेंस सघन तरीक़े से मनोरंजन की ज़रूरत पड़ेगी। वो नशा है जो हमें चाहिए।

आपको मालूम है पहले जब किसी का इलाज करना होता था और जो एनेस्थीसिया (बेहोशी/संज्ञाहरण के लिए) है उसका विज्ञान पूरा विकसित नहीं हुआ था तो लोगों को मॉर्फीन (अफ़ीम का सत्त्व) देते थे। मॉर्फीन क्या होती है? ताकि उनको दर्द का अनुभव न हो, नशा दिया जाता था क्योंकि एनेस्थेटिक्स (बेहोशी की दवा) पूरी जो है वो उतनी विकसित नहीं थी तो नशा दे दिया जाता था कि नशा दे दो और उसका दाँत निकालना है तो नशा दे कर दाँत निकाल लिया या कुछ और करना है, भीतर कुछ घुस गया है शरीर में उसको निकालना है तो उसको माँस खोदना पड़ेगा, जबरदस्त वेदना होगी तो उसको अफ़ीम चटा दो। ये वही है और क्या है।

हम बहुत गंदे समय में जी रहे हैं और ये मैं आपको डराने के लिए नहीं बोल रहा हूँ, मैं ख़ुद बहुत मुक्त और आनंदप्रिय आदमी हूँ, लोग मस्त हैं, आनंदित हैं, हँस खेल रहे हैं, मुझे बहुत अच्छा लगता है। लेकिन अगर आग लगी हुई है और उसके बाद आप हँस खेल रहे हो जलते हुए घर के भीतर, तो मुझे आपको बोलना पड़ेगा न कि साहब हँसना-खेलना ज़रा रोकिए, आग बुझाइए पहले। इंसान ने पृथ्वी पर बहुत सारे दुर्दिन देखे हैं, भयानक अकाल देखे हैं, एक-से-एक दुर्भिक्ष।

भारत में ही पिछले डेढ़ सौ सालों में, आज़ादी से पहले के सौ सालों में न जाने कितने महादुर्भिक्ष पड़े, जबरदस्त अकाल। हमने यूरोप का ब्लैक प्लेग देखा है, हमने चीन में माओ की करतूत देखी है जिससे चीन की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा ही साफ हो गया था। अभी मुश्किल से साठ-सत्तर साल पहले की बात, हमने यूरोप में यहूदियों की तीन-चौथाई आबादी को विलुप्त होते देखा है वो भी अभी मुश्किल से अस्सी साल पहले। हमने बहुत कुछ देखा है लेकिन आज हम जहाँ खड़े हुए हैं वैसा कोई समा मानवता ने पहले कभी नहीं देखा।

आज हम छठे महाविनाश के बीचों-बीच खड़े हुए हैं, शुरू नहीं हो रहा, हम सिक्स्थ मास एक्शटिंक्शन के बीचों-बीच खड़े हैं। ये जो सिक्स्थ मास एक्सटिंक्शन है, ये प्लेग से ज़्यादा भयानक है।

ब्लैक प्लेग ने तो सिर्फ़ यूरोप की कुछ मनुष्यों की आबादी एक अनुपात में कम कर दी थी, हिटलर ने सिर्फ़ यहूदियों की आबादी एक अनुपात में कम कर दी थी, हमारे यहाँ जो अकाल पड़े उन अकालों ने बंगाल की और बिहार की आबादी एक प्रतिशत से कम कर दी थी। लेकिन आज हम जहाँ खड़े हैं, उससे सिर्फ़ मनुष्यों की आबादी नहीं कम होने वाली और सिर्फ़ कुछ प्रतिशत नहीं कम होने वाली, हम पूरे ही साफ होने वाले हैं। जैसे कहते हैं न लॉक स्टॉक एंड बैरल (सम्पूर्णता; सब कुछ), हम ही नहीं साफ हो रहे, बाकी सब प्रजातियों को लेकर साफ़ होने जा रहे हैं।

कुछ बहुत-बहुत भयानक घट रहा है और उसको रोकने के लिए बहुत साहस चाहिए, बहुत चेष्टा चाहिए; उतना दम हममें नहीं है तो हम अपने आप को ये जताकर रखना चाहते हैं कि कुछ बुरा कहीं हो ही नहीं रहा और उसके लिए हम अपने आप को मॉर्फीन दे रहे हैं जिसका नाम है मनोरंजन। उसी मनोरंजन का एक उदाहरण वो है जिसकी आप बात कर रहे हो आईपीएल वगैरह और भी कई तरीक़ों से हमें मनोरंजन की अफ़ीम चटाई जा रही है।

पूरी ये जो राजनीति है, ये क्या है? मनोरंजन ही तो चल रहा है टीवी पर जो चल रहा होता है राजनीति के नाम पर भी, ख़बरों के नाम पर मनोरंजन ही तो है। धार्मिक मसाला जो पूरे देश में इस वक़्त उछला हुआ है मनोरंजन ही तो है, जो बड़े-बड़े इस वक़्त युद्ध चल रहे हैं दुनिया में, कम-से-कम दो बड़े युद्ध चल रहे हैं इस समय, वो शेष विश्व के लिए मनोरंजन ही तो है। मनोरंजन ही तो चल रहा है चारों तरफ़, वो मनोरंजन हमें इसीलिए चाहिए क्योंकि हम बिल्कुल बर्बादी की कगार पर खड़े हुए हैं। भीतर से आप जितना दुखी होओगे न, आपको मनोरंजन की उतनी ही ज़रूरत होगी, इस सूत्र को पकड़ लीजिए, अच्छे से याद कर लीजिए।

जितना आपने अपने लिए गलत ज़िन्दगी चुन रखी होगी, आपको मनोरंजन के लिए उतना बाहर भागना पड़ेगा। और ज़िन्दगी आपकी जितनी गलत होगी, मनोरंजन के आपके तरीक़े भी उतने ही उथले होंगे और घटिया।

एक आदमी जो सही ज़िन्दगी जी रहा है, जिसके जीवन में सार्थकता है, प्रेम है, करुणा है, बोध है वो भी हँसता है, खेलता है, नाचता है, गाता है, पर वो बात पूर्णता की होती है वो आनंद उत्सव होता है उसका। उसकी हँसी में भी एक गहराई होती है, उसके आनंद में एक ऊँचाई होती है। और एक आदमी है जो स्वयं से भाग रहा है अपनी बेईमानी से भागकर के मनोरंजन की तरफ़ गया है उसका मनोरंजन भी बहुत घटिया स्तर का होता है, वो हमें अपने आप में देखने को मिल रहा है।

एक अच्छी किताब पढ़ना अपने आप में एक आनंददायी बात होती है कि नहीं होती है, जॉयफुल अफेयर (आनंदमय मामला)। पढ़ने वाले कितने बच रहे हैं? और जब वो आईपीएल वगैरह शुरू होगा तो जो पढ़ भी रहे हों वो अपनी किताब नीचे रख देंगे। मैं स्कूल के पाठ्यक्रम की बात नहीं कर रहा हूँ, टेक्स्ट बुक्स (पाठ्य पुस्तकें) की बात नहीं कर रहा हूँ मैं। अच्छा संगीत अपने आप में हाइयर हैप्पीनेस (ऊँची प्रसन्नता) का स्रोत होता है कि नहीं, मैं सिर्फ हैप्पीनेस नहीं बोल रहा, हाइयर हैप्पीनेस, जॉय (आनंद) उसका स्रोत होता है कि नहीं?

कहाँ गया अच्छे संगीत वाला मनोरंजन, कहाँ गया अच्छी किताबों वाला मनोरंजन? प्रकृति के सान्निध्य में शांत ही बैठ जाना अपने आप में मनोरंजन होता है कि नहीं? कहाँ गया?

हमारे मनोरंजन का स्तर घटिया-से-घटिया होता जा रहा है। हमें उत्तेजना चाहिए बस, एक्साइटमेंट (उत्तेजना) भी पीछे छूट गया अब हमें टिटिलेशन (गुदगुदी करना) चाहिए। तो इतना काफ़ी नहीं है कि मैच हुआ, हमें उसमें छक्के गिनने हैं और इतना भी काफ़ी नहीं है कि छक्का पड़ा, उसमें अर्धनग्न लड़कियों का नाचना ज़रूरी है कि छक्का पड़ा और उन्होंने नितम्ब घुमाने शुरू कर दिए और इतना भी काफ़ी नहीं है कि लड़कियाँ नाचने लग गईं, साथ में पटाखे छूटने चाहिए हर छक्के पर क्योंकि आप नशे के जितने आदि होते जाते हो, धीरे-धीरे आपको नशे की ख़ुराक (मात्रा) और ज़्यादा-ज़्यादा-ज़्यादा चाहिए होती है। तो पहले शायद कभी यही पर्याप्त रहा होगा कि छक्का लग गया, अब छक्के के साथ पटाखा भी चाहिए और पटाखे के साथ वो लड़कियों का नाच भी चाहिए। आगे कुछ और भी चाहिए होगा क्योंकि नशा भी बेचारा लाचार असमर्थ हो जाता है।

पुराने नशेड़ियों से पूछना, वो कहते हैं पहले जितने में नशा हो जाता था उतने में होता नहीं, हर साल ख़ुराक बढ़ानी पड़ती है। तो इसी तरीक़े से हमारे भी जो मनोरंजन के साधन हैं, उसमें हर साल ख़ुराक बढ़ानी पड़ेगी। पुरानी ख़ुराक हमें टिटिलेट (गुदगुदी) नहीं कर पाएगी। और उस टिटिलेशन की ज़रूरत ही इसीलिए है क्योंकि हमारी ज़िन्दगी काफ़ी बर्बाद है।

हम बात कर रहे थे अभी कि प्रत्येक लाख व्यक्तियों पर कितनी लाइब्रेरीज़ (पुस्तकालय) हैं किस देश में, और उसमें भारत का स्थान एकदम नीचे बॉटम, और सब विकसित देशों का स्थान ऊपर। आप सोचते हो कि अरे ज़्यादा टिटिलेशन और एक्साइटमेंट तो यूरोप में होता होगा, अमेरिका में होता होगा, साहब हमें तो बात उल्टी दिखाई दे रही है; वहाँ तो हमसे सौ गुना ज़्यादा लाइब्रेरीज़ हैं, पर कैपिटा प्रति व्यक्ति।

उन्हें उच्चतर आनंद का, हाइयर हैप्पीनेस का कुछ तो पता है। हमारे लिए तो हैप्पीनेस (प्रसन्नता) का मतलब ही यही हो गया है छक्का लगा, पटाखा फोड़ा, लगे नाचने। मीनिंगलेस टिटिलेशन, ऑल दैट अमाउंट्स टू नथिंग (व्यर्थ उत्तेजना, कुछ भी नहीं है)। आप एक किताब पढ़ते हो, उसमें आनंद है, किताब पढ़ने के बाद आप एक बेहतर इंसान बन जाते हो, तो इस आनंद से कुछ परिणाम निकला, कुछ प्राप्ति हुई। जॉय दैट हैस अमाउंटेड टू बेटरमेंट (आनंद जो बेहतरी में बदल गया है)। ठीक?

आप आईपीएल देखते हो उससे आपको क्या मिल जाता है? किताब से आनंद भी मिला और बेहतरी भी मिली। आईपीएल से क्या मिला? पहली बात तो वो जो हैप्पीनेस मिली वो बिल्कुल निचले स्तर की और बस रात गई बात गई उसके आगे कुछ है ही नहीं। कुछ क्षणों की उत्तेजना मोमेंटरी टिटिलेशन उसके अलावा कुछ नहीं।

खेल बहुत बढ़िया चीज़ होती है, मैंने क्रिकेट देखा भी है, खेला भी है, क्रिकेट में मैं एक थोड़े-से एक स्तर तक खेला हुआ भी हूँ तो मैं क्रिकेट को जानता हूँ, मैं कुछ और खेलों को भी जानता हूँ। खेल बहुत प्यारी चीज़ होती है। आज बहुत दिनों के बाद इस सत्र में आने से ठीक पहले मैं कुछ खेल कर आ रहा हूँ, बीच में तबियत थोड़ी ऊपर-नीचे हो गई थी, आज बाहर निकला। खेलना बहुत प्यारी चीज़ है पर खेल में और विज्ञापन दिखा-दिखा कर सट्टेबाज़ी करने में तो ज़मीन-आसमान का अंतर है न। अगर खेल सिर्फ़ एक ज़रिया बन जाए विज्ञापन दाताओं के लिए तो वो खेल नहीं है भईया, अब वो कुछ और हो गया।

वो मैच तो सिर्फ़ इसलिए है ताकि आपको 'ऐड' (विज्ञापन) दिखाया जा सके, मैच नहीं दिखाया जा रहा, मैच के ज़रिए आपको ऐड दिखाया जा रहा है।

क्रिकेट देखने में मेरी रुचि आज भी है पर वो क्रिकेट है ही नहीं वो तो साजिश है ताकि आपको विज्ञापन दिखाए जा सकें। और विज्ञापनों में किरदार कौन हैं? वही सब जो मैच खेल रहे हैं और आप कभी अपने इन मैच खेलने वाले रोल मॉडल (प्रेरणास्रोत) से पूछते भी नहीं कि भईया तुम्हारे ट्विटर अकाउंट पर दस तुम विज्ञापन की ट्वीट करते हो, तब अपनी एक ट्विट करते हो, हम तुम्हें क्यों फॉलो करें। इसका मतलब तुम्हारी पूरी हस्ती ही सिर्फ़ हमें विज्ञापन दिखाने के लिए है।

वो जो आपका आइडियल (आदर्श) क्रिकेटर है, उसका एग्ज़िस्टेंस अस्तित्व ही सिर्फ़ इसलिए है ताकि वो आपको विज्ञापन दिखाता रहे और आपकी गठरी से माल लूटता रहे। आपने लुटने के लिए उसको अपना रोल मॉडल बनाया है! अब ये खेल है कोई, खेल तो मैं कह रहा हूँ बहुत अच्छी बात होती है, खेलों की कौन ख़िलाफ़त करेगा, लेकिन ये खेल थोड़ी है। आपका जो रोल मॉडल क्रिकेटर है वो कंज़म्पशन (भोग) की मूर्ति है, ही एपिटोमाइजेज़ कंजम्पशन (वह उपभोग का प्रतीक है)। हर चीज का कंज़म्पशन।

आप उससे पूछ लीजिए, प्राइवेट जेट (निजी जेट हवाई जहाज़) उसके पास है, हर तरीक़े का कंज़म्पशन दिखा-दिखा कर आपको लुभा, ललचा वो रहा है, वो तो आपको आपके मास एक्सटिंक्शन (सामूहिक विनाश) की तरफ और तेजी से लेकर जा रहा है, ऐसों को मैं थोड़ी देखना पसंद करूँगा स्क्रीन पर। मैं तब देखता था जब क्रिकेटर, क्रिकेटर होता था, ठीक है वो तब भी ब्रैंड एंडोर्समेंट्स (समर्थन) वगैरह करते थे पर चीजों की कोई सीमा होनी चाहिए, क्रिकेट के बीच में ब्रैंड आना चाहिए या ब्रैंड्स के बीच में थोड़ा-सा क्रिकेट?

कपिलदेव ने तिरासी का वर्ल्ड कप (विश्व कप) जीता था उसके बाद उनका विज्ञापन आता था ‘पामोलिव द जवाब नहीं,’ वो चलता था। भाई विश्व कप जीतकर आया है लड़का उसके बाद वो एक विज्ञापन दे रहा है, उसमें बोलते थे वो पामोलिव द जवाब नहीं, अच्छी बात है शेविंग क्रीम थी। उतना ठीक है समझ में आता है, वर्ल्ड कप चैंपियन (विश्व कप विजेता) है।

अब यहाँ पर आईपीएल में कल के लड़के घुसे हुए हैं और वो आपको बोल रहे हैं, 'आओ बेटिंग करो बेटिंग करो।' उसी से वो आत्महत्या हो गई वो आप बता रहे हो करोड़ डेढ़ करोड़ का उसने कर्ज़ा उठा लिया था। और यहाँ बीस-बीस, बाईस-बाईस साल के लड़के करोड़पति अरबपति हुए जा रहे हैं आईपीएल खेल-खेल कर और पीछे उनके लोग साधारण पब्लिक आत्महत्या कर रही है, और इस बात पर न तो कोई नैतिकता का तकाज़ा है न कोई कानूनी नियम क़ायदा है।

भारत पर क्रिकेट की जो गिरफ्त है, भारतीयों को उस पर बहुत-बहुत गहरा पुनर्विचार करने की ज़रूरत है, बहुत गलत लोगों को आपने अपना आदर्श बना लिया है, बहुत गलत लोगों को।

हम वैसे ही समाप्त हो रहे हैं, चाहे भारत राष्ट्र हो चाहे समूचा विश्व हो, हम सब जा तो अब समाप्ति की ओर ही रहे हैं और वो जो पूरी समाप्ति की दर है उसको और बढ़ा रहे हैं, एक्सिलरेट (त्वरित) कर रहे हैं आपके ये सब रोल मॉडल। कोई अच्छा, कोई ऊँचा काम बता दीजिए जिसमें आपका कोई रोल मॉडल आपको कभी नजर आया हो? पर्यावरण के लिए आपने इनमें से किसी को पहल करते देखा? पशु पक्षियों के लिए आपने इनमें से किसी को पहल करते देखा? ये पहल करते बस इस बात के लिए कि जुआ खेलो, सट्टा खेलो और कमला पसंद खाओ। पान मसाला, गुटका इसको बेचने में ये सबसे आगे हैं।

और देश की और विश्व की जो बड़ी-से-बड़ी समस्याएँ हैं उन पर ये मौन हैं, मूँक हैं, इनकी हिम्मत नहीं होती कि कहीं अन्याय हो रहा है उसका विरोध कर सकें, इन्हें पता ही नहीं होगा, ये कौन से बड़े सजग और जागरूक प्राणी हैं, इन्हें कुछ पता ही नही होगा दुनिया में चल क्या रहा है, तो क्या आएँगे किसी मुद्दे पर अपना विरोध या समर्थन बताने, ये जानते ही नहीं कुछ, तो ऐसे ही हैं।

मैं पूछ रहा हूँ किसी ढंग के मुद्दे पर आपने अपने किसी आदर्श को, नायक को, रोल मॉडल को बोलते देखते सुना? पानी समाप्त हो रहा है हम प्यासे मरने वाले हैं और एक दूसरे का गला काट-काट कर मरने वाले हैं। वॉटर स्कार्सिटी (पानी की कमी) पर आपका कौन-सा क्रिकेटर या कौन-सा रोल मॉडल बोलने आया बताइए? धार्मिक कट्टरता बढ़ती ही जा रही है इस पर कौन-सा आपका क्रिकेटर बोलने आया है बताइए? उल्टे ये तो कई तरीकों से कट्टरता को बढ़ाने में सहायक हो रहे हैं, कई इनमें से ऐसे हैं।

एक्यूआई बिगड़ता ही जा रहा है एयर क्वालिटी इंडेक्स (वायु गुणवत्ता सूचकांक)। दिल्ली एनसीआर में अगर आप रहते हो तो आपकी औसत उम्र दस से पन्द्रह साल घट गई, आपके दिल्ली वाले ही कौन से क्रिकेटर हैं जो इसके बारे में एक लफ्ज़ भी बोल रहे हैं बताइए। क्योंकि वो दिल्ली में रहते ही नहीं है, वो तो विदेशों में रहते हैं, आपके पैसे से विदेशों में रहते हैं और आप दिल्ली के गैस चेम्बर में सड़-सड़ के मरिए। हर दिन जो आप दिल्ली एनसीआर में बिता रहे हैं, हर दिन पर आपकी ज़िन्दगी से कुछ घंटे कम हो जा रहे हैं। चौबीस घंटे अगर आपने दिल्ली में बिताए हैं तो आपकी ज़िन्दगी से कुछ घंटे कम हो गए, हर चौबीस घंटे पर कुछ घंटे कम हो गए। और दिल्ली एनसीआर के जो बड़े नाम हैं क्रिकेट में, उनसे पूछिए कि तुम्हारे ट्विटर अकाउंट पर ये सब तो कभी नहीं आता, भाई। हमारी जान जा रही है और तुम हमें जुआ-ज़िन्दगी खेलना सिखा रहे हो।

नशा, सिर्फ़ नशा। यमुना की दुर्दशा पर आपका कोई रोल मॉडल कभी बोलने आया? क्यों भाई, यमुना चीन में बहती है क्या या पाकिस्तान में कि तुम्हें कोई मतलब नहीं है, हम राष्ट्रवादी लोग हैं भाई, चीन, पाकिस्तान में कुछ भी रहो हमें क्या मतलब है। तो यमुना भी हमारे देखे चीन में होगी। यमुना छोड़ दो गंगा को लेकर के हमारा कोई रोल मॉडल आ रहा है कुछ बोलने? और हम जानते हैं क्या कि गंगा जी की अभी क्या दुर्दशा है, कोई फर्क पड़ रहा है हमको? कल अभी बात हो रही थी, आपको ही बोले देता हूँ —

गंगाजी की हालत क्या है ये जानना हो तो गूगल पर जीडी अग्रवाल सर्च कर लीजिएगा, जीडी अग्रवाल आईआईटी कानपुर, तो पता चलेगा गंगाजी की हालत क्या है।

कौन-सा आपका एंटरटेनर (मनोरंजक) चाहे वो एक्टर हो चाहे प्लेयर हो चाहे लीडर हो, ये लीडर भी तो इंटरटेनर ही है और क्या है, लीडर तो लीडर है ही इसीलिए क्योंकि बहुत बढ़िया इंटरटेनमेंट करते हैं, एक नंबर का मनोरंजन करते हैं सब नेता। तो इन सब इंटरटेनर्स से पूछिए कि मेरी गंगा जी की ये हालत क्यों है और कल वो अगर नहीं रहेंगी तो कौन ज़िम्मेदार होगा पूछिए इनसे। और इस पर कभी क्यों नहीं तुम कुछ बोलते हो, पूछिए।

अपनी शांति के लिए मैं बहुत प्रयास करता हूँ कि मैं इन मुद्दों पर सोचूँ ही नहीं, सोचता हूँ तो गुस्सा आता है तो मैं अपने लिए ये कोशिश करता हूँ कि जो सकारात्मक समाधान है, मैं अपने आप को उस तक ही सीमित रखूँ। और समाधान क्या है? समाधान ये रहा, बौद्ध दर्शन, वेदांत जिसकी आज चर्चा हो रही थी। अष्टावक्र गीता, उपनिषद्, ये समाधान है तो मैं अपनी पूरी ऊर्जा इसमें लगा देता हूँ।

जिन चीज़ों की आप बात कर रहे हो कि लोग जुआ खेलने के लिए, बेटिंग के लिए और एस्ट्रोलॉजी (ज्योतिष) के लिए, इन चीजों में ऐप्स में फँसते जा रहे हैं और आत्महत्याएँ हो रही हैं और हर तरीक़े की बर्बादी हो रही है, मैं उस बारे में सोचने लगूँ तो मन बहुत खिन्न हो जाता है, तो मैं उस तरफ़ देखने से थोड़ा बचता हूँ पर आपने सवाल पूछ लिया आज। मैं अपना पूरा ध्यान इस पर रखना चाहता हूँ गीता पर, भगवद्गीता पर, क्योंकि समाधान तो यहीं से है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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