सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम-रहित || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम-रहित || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, मैं परीक्षा में न अनुत्तीर्ण हो जाऊँ, इस वजह से पढ़ता हूँ। ऐसा क्यों नहीं होता कि प्रेम है इसलिए पढ़ूँ?

वक्ता: तुम्हारे लिए पढ़ने का मतलब ही यही है – पढ़ाई से कुछ और पाना। और उसमें भी फिर तुम्हारा दोष नहीं है। ये बात ही प्रभावों की है। बचपन से कभी यह तो बोला ही नहीं गया न कि इसलिए पढ़ो क्योंकि पढ़ने में खूबसूरती है। हमेशा यही कहा गया “पढ़ोगे, लिखोगे तो बनोगे नवाब।” अब यह तो नहीं कहा गया, “पढ़ो, लिखो क्योंकि पढ़ने में मौज है।” बल्कि यह कहा गया, “इसलिए पढ़ो, लिखो ताकि नवाब बन सको।”

अब अगर बिना पढ़े-लिखे ही कोई नवाब बन सकता हो, तो कोई क्यों पढ़े-लिखे? क्योंकि असली चीज़ क्या है? नवाब बनना। पढ़ना-लिखना तो बस एक तरीका है, एक माध्यम है, नवाबी का। अगर नवाबी बिना पढ़े-लिखे ही मिल जाये, तो फिर क्यों पढ़े-लिखे? आप सड़क पर चलते हो कहीं पहुँचने के लिए। अगर उड़ कर ही वहाँ पहुँच जाओ, तो सड़क की ज़रूरत ही क्या है?

तुम्हारे लिए पढ़ाई एक सड़क की तरह है, जिसका तुम प्रयोग कर रहे हो कहीं और पहुँचने के लिए। इसीलिए तुम्हें पढ़ाई से प्यार नहीं है, क्योंकि आज तक किसी को सड़क से प्यार नहीं हुआ है। सड़क का तो बस उपयोग किया जाता है, और उपयोग करके उसे छोड़ दिया जाता है। तुम पढ़ाई का बस उपयोग करते हो, शोषण करते हो, कि कुछ नंबर आ जाएँगे, उन नंबरों से नौकरी लग जाएगी, नौकरी से पैसा मिल जाएगा, और फिर पता नहीं तुम्हारी क्या-क्या कल्पनाएँ हैं।

तो तुम शोषण कर रहे हो पढ़ाई का। अपनी पुरानी किताबों को देखो तुमने उनके साथ क्या किया है? पिछले सेमेस्टर की किताबों को देखो, तुम उनके साथ क्या किया? तुम बिल्कुल समझ जाओगे कि क्यों तुम्हारे लिए है? तुमने करीब-करीब शोषण किया है उन किताबों का। तो प्यार थोड़ी है पढ़ाई से, तुम्हें किताबों की संगति अच्छी थोड़ी ही लगती है।

आज तुम्हें पता चल जाये कि बिना पढ़े भी तुम्हारे नंबर आ जाएँगे, तुम पढ़ोगे नहीं। आज तुम्हें पता चल जाए कि बिना कॉलेज जाए भी तुम्हें डिग्री मिल जाएगी, तुम कहोगे ,”ठीक! डिग्री लेने भी नहीं आऊँगा, कोरियर कर देना।” तो जब तुम्हारी नज़र पढ़ाई पर है ही नहीं, तो तुम्हें पढ़ाई से प्रेम कैसे हो सकता है। पढ़ रहे हो यहाँ, नज़र है वहाँ। वहाँ क्या है? वहाँ परिणाम है ,वहाँ नौकरी है। पढ़ाई यहाँ है, नज़र वहाँ है, तो अब पढ़ाई में मन लगे कैसे?

तुम पढ़ने के लिए कभी पढ़ो तो। आज तुम्हें पता चल जाये किसी एक अध्याय से परीक्षा में कोई प्रश्न नहीं आएगा, तो तुम उस अध्याय को पढोगे नहीं। अब तुम मुझे बता दो कि तुम्हारा रिश्ता क्या है पढ़ाई से? किताब कभी पूछती होगी तुमसे, “ये तो बताओ तुम मेरे कौन हो?” तो तुम कहते होगे “शोषक।” बुरा लग रहा है न सुनने में? सोचो तुम्हें सुनने में बुरा लग रहा है, किताबों को कितना बुरा लगता होगा? तुम उनको कैसे घृणा की नज़र से देखते हो। “फिर सामने आ गयी,” और जैसे ही नज़रों से हटती है, कैसे खुश हो जाते हो। “समय खत्म हुआ पढ़ने का चल हट।”

किताब से तुम्हारा सम्बन्ध क्या है? ज्ञान से तुम्हारा सम्बन्ध क्या है? तुम देखो कि ज्ञान से तुम्हारा सम्बन्ध ही घृणा का है। घृणा के सम्बन्ध में कहाँ से चैन मिलेगा तुमको? हमारा रिश्ता किताब के साथ ही नहीं, सबके साथ नफरत का है। घर में जो कुछ है, सब से तुम्हें नफरत ही है। ऐसे ही है, उपयोग करते हो बस, बस उपयोग करते हो। जिस दिन उपयोग खत्म हो जायेगा, उस दिन रिश्ता कुछ नहीं बचेगा।

कोर्ट में किन मुद्दों पर तलाक के मुकदमे आते हैं, जानते हो? “किसी ने मेरी पत्नी के ऊपर एसिड डाल दिया, अब रात में इसकी शक्ल देखता हूँ, तो मुझे नींद नहीं आती। चीखें मारकर उठ जाता हूँ। मुझे तलाक चाहिए।” उसके शरीर से ही ये संपृक्त था, उसके शरीर का ही उपयोग कर रहा था, वो शरीर ही नहीं रहा, तो इसके साथ अब क्यों रहेगा। बेचारे वृद्धों के लिए इतने सारे वृद्धाश्रम बने हुए हैं। कॉलेजों में लड़के वो टी-शर्ट पहनकर घूमते हैं जिस पर लिखा होता है “माई डैड इस एन ए.टी.ऍम.(मेरा बाप पैसा देने वाली मशीन है), और वही बाप जब बूढ़ा हो जाता है, तो उसको वृद्धाश्रम में डाल देते हैं।

अभी कुम्भ का मेला हुआ था इलाहबाद में। हर साल इलाहबाद में कितने ऐसे मामले होते हैं कि बच्चे बूढ़े माँ-बाप को लेकर आते हैं कि कुम्भ के मेले में गंगा स्नान कराएँगे, और उन्हें वहीं छोड़कर भाग जाते हैं। कोई उनसे पूछे कि क्यों छोड़कर भाग आए, तो बोलते हैं, “गंगा किनारे मरेगा, तो स्वर्ग जायेगा बूढ़ा।” ये तो तुम्हारा रिश्ता है अपने जीवन में, हर वस्तु से, हर व्यक्ति से। अब प्रेम कहाँ से आएगा? प्रेम तो बेशर्त होता है। वो कुछ माँगता नहीं है कि मुझे तुमसे कुछ मिले। और तुमने भाषा सिर्फ़ व्यापार की सीखी है कि जहाँ फ़ायदा हो रहा हो, बस वहीं जाओ। प्रेम फ़ायदा नहीं देखता।

तुम तो किताब के पास भी बस फ़ायदे के लिए जाते हो। जिस दिन किताब के पास प्रेम से जाओगे, उस दिन देखना पढ़ने में कितना मज़ा आएगा। जब तक फ़ायदे की, नफ़े-नुकसान की भाषा तुम्हारे मन पर छायी रहेगी, तब तक तुम प्रेम नहीं जान पाओगे। और तुम्हें लगातार उसका ही प्रशिक्षण मिल रहा है। हर कोई तुमसे यही कह रहा है कि देखो तुम्हारा फ़ायदा कहाँ है। हर कोई तुम्हें ऐसे ही आकर्षित कर रहा है। जब तक तुम उसी भाषा को सुन रहे हो, और उसी भाषा में बात कर रहे हो- नफ़ा-नुकसान, लाभ-हानि- तब तक तुम्हारी ज़िंदगी नरक जैसी ही रहेगी, क्योंकि उसमे प्रेम नहीं रहेगा। समझ रहे हो?

(मौन)

मौज करो। और कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं है। चुप बैठ जाओ, जो होना है, हो रहा है। जीवन उत्सव है, जीवन प्रेम है। (व्यंग्य करते हुए) तुम कह रहे हो, “नहीं, कुछ घपला है।” (हँसी)

चलो ठीक है। तुम भी कहीं नहीं जा रहे, मैं भी कहीं नहीं जा रहा, फिर मिलेंगे।

– संवाद सत्र पर आधारित स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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