प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। मैं ब्रह्मकुमारी में गयी थी, उसमें कहा जाता है कि कोई दीदी या दादी हैं, जिनके शरीर में आत्मा आती है और वही फिर बात करती है तो ये बात मुझे बहुत भ्रमित करती है, ये मेरा पहला प्रश्न है। और दूसरा प्रश्न ये है कि मैं शाकाहारी हूँ मगर मेरा परिवार माँसाहारी है, पर वो मेरी भावनाओं का सम्मान करते हैं। कई बार मुझे लगता है कि मैं उन्हें माँसाहार भोजन करने से मना करूँ लेकिन उनका ये तर्क होता है कि हिटलर शाकाहारी था और हम जानते हैं कि उसने क्या किया और उसके विपरीत मदर टेरेसा मछली खाती थीं और माँसाहारी थीं लेकिन वो एक महान इन्सान थीं।
आचार्य प्रशांत: मछलियों के लिए?
प्र: मुझे नहीं पता लेकिन अगर आप हिटलर और मदर टेरेसा की तुलना करेंगे…
आचार्य प्रशांत: मैं कुछ और पूछ रहा हूँ।
प्र: हाँ जी।
आचार्य प्रशांत: महान व्यक्ति क्या मछली के लिए थीं जिन्हें वह खाती थीं?
प्र: जो भी उन्होंने कुछ किया…
आचार्य प्रशांत: मछली के लिए?
प्र: नहीं।
आचार्य प्रशांत: उन्होंने जो कुछ किया मछली के लिए, इसलिए महान थीं? (सत्र के बीच में एक बिल्ली आ जाती है) आप कहते हो आप एक महान व्यक्ति हो और आप इस बेचारी बिल्ली को खा जाओ। आप किसके लिए महान हो? इस बिल्ली के लिए महान हो? (बिल्ली को पकड़ने की असफल कोशिश करते हुए स्वयंसेवी को मना करते हुए) उसे जाना ही नहीं है, वो म्याऊँ-म्याऊँ कर रही है, उसे सुनना है। आने दो उसको, छोड़ दो।
प्र: उनके कहने का अर्थ है कि…
आचार्य प्रशांत: आप पहले मेरी बात का जवाब दे दीजिए।
प्र: हाँ जी।
आचार्य प्रशांत: आप बहुत महान हैं। आपने अभी-अभी मुर्गे की गर्दन मरोड़ी है। मैं मुर्गे से पूछना चाहता हूँ, आप कितने महान हैं। मुझे मुर्गे से बात करनी है। (प्रश्नकर्ता कोई जवाब नहीं देतीं) नहीं, मेरी मुर्गे से बात कराइए।
प्र: वो तो मैंने हत्या की है।
आचार्य प्रशांत: नहीं, मैं मुर्गे से बात करना चाहता हूँ। (प्रश्नकर्ता के बगल में बैठे श्रोता की ओर इशारा करते हुए) ये जो नीचे बैठा हुआ है, ये मुर्गा है, ठीक है? आप बिलकुल महान हैं और आप इसकी गर्दन मरोड़ रही हैं। अब उसको माइक दीजिए। ये कितनी महान हैं?
श्रोता: नहीं, बिलकुल भी महान नहीं हैं।
आचार्य प्रशांत: जवाब मिल गया? ये कितनी अहंकार की बात है न कि उन्होंने एक प्रजाति के साथ अच्छा किया, किसी ने भी — मैं नहीं जानता किसका नाम लिया जा रहा है, किसी का भी नाम लिया जा सकता है। और वो समाज में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो बोलते हैं हम अच्छे लोग हैं, महान लोग हैं लेकिन हम खून पीते हैं जानवरों का। मैं जानवरों से पूछूँगा न कि आप कितने महान हैं।
और ये किस तरीके का तर्क है? लॉजिक में एकदम मूलभूत शिक्षा भी नहीं हुई। कि कह रहे हैं, 'देखो, हिटलर शाकाहारी था लेकिन इतने लोगों को मार दिया, इससे क्या सिद्ध होता है? इससे क्या सिद्ध होता है?' कौन दावा कर रहा है कि शाकाहारी होने भर से आप अच्छे आदमी हो जाएँगे? लेकिन ये कहा जा रहा है कि अगर शाकाहारी नहीं हैं तो अच्छे आदमी नहीं हो सकते।
एक छोटी सी चीज़ होती है — नेसेसरी बट नॉट सफिशिएंट (आवश्यक लेकिन पर्याप्त नहीं)। थोड़ा भी पढ़ा-लिखा आदमी है तो इस बात को समझता है; *नेसेसरी बट नॉट सफिशिएंट*। आपको यहाँ सभा स्थल में प्रवेश करने के लिए आधार कार्ड दिखाना है और अपनी आरटीपीसीआर रिपोर्ट दिखानी है। आप (केवल) आधार कार्ड दिखाएँ और भीतर आना चाहें तो हम आपसे क्या कहेंगे? नेसेसरी है, सफिशिएंट नहीं है।
इसी तरीके से शाकाहारी होना अनिवार्य है पर काफ़ी नहीं है, सम्पूर्ण नहीं है। आप शाकाहारी होकर भी हिंसात्मक हो सकते हो। लेकिन अगर आप माँसाहारी हो तो आप हिंसात्मक हो ही, नहीं तो मुर्गे की गवाही दिलवा दीजिए। वो बोल दे बहुत अच्छे आप हैं, दुनिया भर की भलाई करते हैं, मेरी गर्दन मरोड़ कर मेरा खून पीते हैं, बड़े अच्छे आदमी हैं।
मैं एकदम साफ़-साफ़ आपसे कहना चाहता हूँ, कोई अच्छा आदमी हो ही नहीं सकता अगर वो पशुओं, पक्षियों, मछलियों का खून पीता है तो। बात खत्म, चाहे वो कोई भी हो। वो बुरा ही आदमी है। चाहे वो आपके घर वाले हों, आपके बच्चे हों, आपके पति हों, आपकी सासू माँ हों, चाहे वो आपके द्वारा पूजे जा रहे कोई संत वगैरह हों, कोई मदर हों, कोई फ़र्क नहीं पड़ता। अगर वो जानवरों की हत्या करते थे, तो वो बुरे लोग थे। मत कहिए उन्हें संत वगैरह। हत्या, हत्या होती है।
इतना ही कम है क्या कि मनुष्य योनि में पैदा हुए हो तो एक न्यूनतम हिंसा तो करनी ही पड़ती है पत्तियाँ खाने में भी, अन्न खाने में भी। तुम और बढ़-चढ़कर हिंसा करना चाहते हो। और जब बढ़-चढ़कर ही हिंसा करनी है तो कहीं भी रुकते क्यों हो? मैं तो कहता हूँ, फिर आदमी का माँस क्यों नहीं खाते? अगर जानवर का माँस खाकर भी अच्छे आदमी कहला सकते हो, तो आदमी का माँस खाकर भी अच्छे आदमी कहला सकते हो। क्या, समस्या क्या है?
आप ऋषिकेश में हैं, यहाँ पर अभी ये बिल्ली आयी थी, यहाँ से निकलिएगा, यहाँ पर गायें हैं और उनके छोटे-छोटे बछड़े हैं। समझाने की ज़रूरत क्या हैं, उनको देखकर आपको नहीं दिखता कि जो आदमी इन्हें काटता, मारता, खाता हो वो अच्छा आदमी नहीं हो सकता? आप महिला हैं, आपको वो बछड़ा है छोटा, उसमें अपने बच्चे की छवि नहीं दिखाई देती? और कैसे आप ऐसे लोगों के साथ रह सकती हैं जो पशुओं के छोटे बच्चों का गला रेतते होंगे?
प्र: इसीलिए मुझे ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया में मेरा कोई दोस्त नहीं है, मतलब पूरा समाज ही ऐसे है तो क्या…
आचार्य प्रशांत: मैं एक प्रश्न पूछ रहा हूँ, हम सब परिवारों में रहते हैं। हमारे परिवार में ही हमारा कोई प्रियजन हो, हमारा भाई हो, बहन हो, चाचा-ताऊ हों, हो सकता है पिता ही क्यों न हों, हम उन्हें पाएँ कि वो घर में बलात्कार कर रहे हैं तो क्या करेंगे आप, बोलिए। आपका छोटा भाई है, बड़ा भाई है, आपके चाचा-ताऊ हैं, वो घर में बलात्कार कर रहे हैं, आप क्या करेंगे? आप कहेंगे कि भाई, इट्स देयर लाइफ एण्ड दे आर ऐनटाइटिल्ड टू देयर ओन लिबरल ओपीनियन (ये उनका जीवन है और वो अपने मत के लिए स्वतंत्र हैं)? आप कहेंगे? आप क्या करेंगे?
प्र: छोड़ देंगे।
आचार्य प्रशांत: पहली बात तो रोकेंगे, दूसरी बात छोड़ देंगे। वही काम आप तब क्यों नहीं करते जब पशुओं की हत्या की जाती है आपके घर में? सिर्फ़ इसलिए क्योंकि स्पीशिज़्म (प्रजातिवाद) है। पशुओं की जान की कीमत आप नहीं लगाते। मनुष्य का बलात्कार हो रहा हो, आप तुरन्त कहेंगे अगर मेरा बाप भी बलात्कार कर रहा है तो बाप को भी छोड़ दूँगा। तो बाप अगर माँस खा रहा है तो बाप को क्यों नहीं छोड़ सकते? बलात्कार तो फिर भी बलात्कार है, यहाँ तो हत्या हो रही है सीधे।
प्र: वो ही समझाने की कोशिश करते हैं तो वो इस तरह के अपने विचार देने शुरू कर देते हैं। वो कहते हैं कि हम आपकी आज़ादी का सम्मान करते हैं कि आप मांसाहार भोजन का सेवन नहीं करते।
आचार्य प्रशांत: मैं बलात्कार करने की आपकी स्वतंत्रता का भी सम्मान करता हूँ।
प्र: नहीं, वो मेरे इस निर्णय का सम्मान करते हैं।
आचार्य प्रशांत: तो ये जो रेस्पेक्ट वाली चीज़ है और फ्रीडम वाली चीज़ है, ये तो वाहियात बात है न। क्या बलात्कार करने की आज़ादी है? (नहीं है) तो हत्या करने की आज़ादी कैसे हो सकती है? किसी की जान लेना फ्रीडम कहलाता है क्या?
प्र: तो उन्हें कैसे रोकें?
आचार्य प्रशांत: आप कैसे रोकेंगी अगर घर में बलात्कार हो रहा हो तो?
प्र: मैं तो छोड़ दूँगी।
आचार्य प्रशांत: बस यही करिए।
प्र: धन्यवाद। और मेरा पहला प्रश्न ब्रह्मकुमारी संस्था के ऊपर था कि दादी के शरीर में कैसे आत्मा आ जाती है।
आचार्य प्रशांत: मत बुलवाइए इस विषय में।
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