मूरख सब सरताज हैं, कायर सब जाँबाज़ हैं || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2020)

Acharya Prashant

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मूरख सब सरताज हैं, कायर सब जाँबाज़ हैं || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी! मैंने पाया कि हाल-फ़िलहाल में जितने यूट्यूब चैनल्स तेज़ी के साथ आगे बढे हैं, उनमें एक बात साझी है कि उनके जो किरदार चैनल पर दिखाए जाते हैं, वे सभी व्यवस्था से गुस्सा है, चिढ़े हुए हैं, अपनेआप को पीड़ित दिखाते हैं और गाली-गलोच कर रहे हैं।

मेरा सवाल यह है कि गाली देना और दूसरों पर अपनी खीज निकालने का ये कैसा ट्रेंड है और ये आज तेज़ी से प्रसारित क्यों हो रहा है?

आचार्य प्रशांत: ये सब कमज़ोर लोगों और कायरों की बिलकुल तयशुदा निशानी होती है। व्यवस्था खराब हो सकती है, स्थितियाँ खराब हो सकती हैं, मैं बिलकुल इंकार नहीं कर रहा हूँ लेकिन जो आदमी हौंसले पर चलता है, जो आदमी भीतर ज़रा और कर्मठता रखता है, वो अपनी ऊर्जा गाली देने में और फ्रस्ट्रेशन (झुँझलाहट) निकालने में ज़ाया नहीं करता, वो आगे बढ़कर के व्यवस्था को बदलता है। किसी-न-किसी छोटे तरीके से एक सार्थक शुरुआत करता है।

वो ये नहीं करता कि वो गाली देने को ही धन्धा बना ले। वो ये नहीं करता कि वो व्यवस्था का मज़ाक उड़ाने को ही अपना पेशा बना ले, वो ये नहीं कर सकता। ये जो कोई कर रहा है, समझ लो कि वो तो अब स्वयं चाहेगा कि व्यवस्था खराब ही बनी रहे क्योंकि व्यवस्था खराब बनी रहेगी, तभी तक तो वो व्यवस्था को गाली दे पाएगा , तभी तक तो उसका धन्धा चलेगा।

व्यवस्था सही हो गयी तो इनका धन्धा कैसे चलेगा? तो आगे बढ़ें, जो लोग कहते हैं कि व्यवस्था से फ्रस्ट्रेटेड हैं, परेशान हैं और कोई शुरूआत करें, कोई बदलाव दिखाएँ , गालीबाज़ी से क्या होगा?

देखो! अपनों के बीच में किसी भी शब्द का इस्तेमाल कर लो, क्या फ़र्क पड़ता है, ठीक है! तुम भी हॉस्टल में रहे हो, मैं भी हॉस्टल में रहा हूँ। दोस्तों-यारों के बीच में गालीबाज़ी चल रही है आपस में, वो एक बात होती है। ठीक है!

वो एक बात है लेकिन तुम अगर गाली देने की रोटी खा रहे हो, तुम्हारा धन्धा ही इसी बात का चल रहा है कि मैं गालियाँ दूँगा और फिर मुझे इसके पैसे मिलेंगे, तो तुम बहुत फिर नीच प्रवृत्ति का जीवन बिता रहे हो। ये बहुत ही निम्न तल का जीवन हो गया न ?

प्र: किसी को यूट्यूब चैनल पर खीजते हुए, झुँझलाते हुए देखना आनन्ददायक कैसे हो सकता है? मैं ऐसे दर्शकों की मानसिकता समझना चाहता हूँ।

आचार्य: क्योंकि, वो जो गाली दे रहा है स्क्रीन पर और वो जो स्क्रीन को देख रहा है, वो दोनों एक समान कायर और कमज़ोर हैं। तो वो आदमी जो स्क्रीन को देख रहा है, उसकी जो अपनी कमज़ोरी है और उसकी जो अपनी बुज़दिली है वो सत्यापित हो जाती है। वो वैलिडेट (सत्यापित) हो जाती है। समझ रहे हो?

कि मैं अकेला थोड़ी ही बुज़दिल और कमज़ोर हूँ। देखो! वो जो स्क्रीन पर है और यूट्यूब स्टार, यूट्यूब सेलेब्रिटी (प्रसिद्ध व्यक्ति) बन गया है, वो भी तो क्या कर रहा है? वो भी बस फ्रस्ट्रेट होकर सिस्टम को गालियाँ दे रहा है। तो फिर मैं छोटा आदमी नहीं हूँ, गलत आदमी नहीं हूँ क्योंकि जो स्क्रीन पर है, वो बिलकुल मेरे जैसा है और वो तो बड़ा आदमी बन गया । मैं उसके जैसा हूँ तो मैं भी छोटा नहीं हूँ, इसका मतलब। देखो! वो मेरे जैसी ही तो बात कर रहा है। तो इसलिए फिर ऐसे लोग स्टार बनते हैं।

देखो! किसी का यार बनने का या किसी का दिली, ज़िगरी बनने का, ये तो बहुत पुराना तरीका है न , उसकी कमज़ोरियों को प्रोत्साहन दो। दूसरी ओर अगर तुम किसी को बताओगे कि कमज़ोरी ज़रूरी नहीं है, तुममें ताकत आ सकती है, तुम बदलाव ला सकते हो, तुम मेहनत करो थोड़ी, तो वो आसानी से न तुम्हारी बात सुनेगा, न तुम्हें अपना दोस्त, हितैषी मानेगा।

प्र: आचार्य जी, सोशल मीडिया में बुलींग , (धमकाना) मॉकिंग (उपहास करना) और रोस्टिंग (किसी को नीचा दिखाना ) इसका चलन क्या है? इस पर आपके क्या विचार हैं? ये क्यों है और इससे हम क्या समझ सकते हैं समाज के बारे में?

आचार्य: इससे हम यही समझ सकते है कि जो आपकी ऊर्जा किसी सही, सार्थक, सकारात्मक काम में जानी चाहिए थी, वो जा रही है गाली-गलोच करने में। बस यही है, ये तो हमेशा का तरीका रहा है, कोई नयी बात थोड़े ही है। ये ऐसा थोड़ी है कि सोशल मीडिया शुरू हुआ है तो ये बुलींग या रोस्टिंग शुरू हो गयी है । ये तो गली-मोहल्लों में हमेशा से होता था।

वो एक हैं, गली में कोई गप्पूजी, गप्पूजीकी उम्र हो गयी बत्तीस साल, अभी भी हैं बेरोज़गार , घर पर पिताजी का दिया खाते हैं, बेरोज़गार थे फिर भी पच्चीस में शादी कर ली, बत्तीस तक होते-होते तीन बच्चें पैदा कर लिए हैं।

अब ये करते क्या हैं पूरी गली में, गली में जितने लौंडे हैं सबको धमकाते हैं , धकियाते हैं, क्योंकि बेरोज़गार हैं, कुछ करने को नहीं है। बाहर जाकर किसी को चाँटा मार दिया, गली में गुंडई दिखाते हैं। तो बुलींग , रोस्टिंग कोई आज की बात थोड़ी ही है, ये तो हमेशा से रही है। वो ही तुमको अब स्क्रीन पर देखने को मिलती है।

प्र: जब दो लोग लड़ रहे होते तो वो पचास लोगों का जो घेरा लगता है, वही जो सब्सक्राइबर जैसे हैं यूट्यूब के।

आचार्य: बिलकुल, जब ये दो लोग गली में लड़ रहे होते तो पचास लोग घेरा लगाकर खड़े हो जाते थे, अब वही पचास लोग यूट्यूब पर आपके सब्सक्राइबर बन जाते हैं। फिर आपकी जो कुंठा होती है, ठीक है! उस पर थोडा मलहम लगता है कि मैं भी कुछ हूँ। वैसे तो आपकी कोई हैसियत नहीं ज़माने में, आपको अच्छे से पता है, आपके भीतर ना कोई सामर्थ्य है, ना कोई काबिलियत है, ना आपने मेहनत करी है, ना आपने कोई ज्ञान अर्जित करा है, ना आपने कोई कुशलता अर्जित करी है, ना आपने कुछ करके दिखाया है।

जब कुछ नहीं करके दिखाया है तो एक काम तो कर ही सकते हो न, क्या? यूट्यूब पर आओ और इधर-उधर कुछ भी बकना शुरू कर दो। और यूट्यूब पर भी आकर के अगर आप कोई ढंग की बात बोलोगे, जो पता करने के लिए पहले स्टडी करनी पड़ती है, जो पता करने के लिए पहले रिसर्च करनी पड़ती है, सालों-साल मेहनत के बाद जो आपको ज्ञान मिलता है, अगर वो आकर के यूट्यूब पर बताओगे तो आपको बहुत कम लोग सुनेंगे।

प्र: ऐसे बहुत से लोग हैं जो गहराई से शोध करके काफ़ी अच्छी सामग्री बना रहे हैं।

आचार्य: बिलकुल ऐसे बहुत लोग हैं जो बहुत अच्छा कॉन्टेंट प्रोड्यूस (सामग्री उत्पादन) कर रहे हैं, उनको सुनने वाले पाँच हज़ार लोग भी नहीं हैं। तो उनको कोई नहीं सुनेगा लेकिन जब आप आकर के वही बिलकुल एकदम निचले तल की घटिया बातें करोगे तो पूरी भीड़ इकट्ठा हो जाएगी और ताली मारेगी। ये आज से नहीं हो रहा, ये हमेशा से होता आया है, कोई नयी बात नहीं।

प्र: पहले कहा करते थे कि निचले तल का कॉन्टेंट जो होता है वो पोर्नोग्राफी (कामोत्तेजक) होता है या फिर एडल्ट (वयस्क ) चीज़े होती हैं।

आचार्य: इसको वर्ड पोर्न (शाब्दिक अश्लीलता ) बोलना चाहिए। जो गली-गलोच करके काम आगे बढ़ता है यूट्यूब पर इसे वर्ड पोर्न बोलना चाहिए।

प्र: ये भी आपकी मूल वृत्तियों को उत्तेजित करता है?

आचार्य: बिलकुल, बिलकुल! जैसे हम कहते हैं कि कामवासना आपकी सबसे निचली टेंडेंसी होती है, वैसे ही कायरता भी तो आपकी सबसे निचली टेंडेंसी है न! कि जैसे कोई सैनिक सीमा पर खड़ा होकर के गालियाँ दे रहा हो, सैनिक अगर असली सैनिक है तो वो गलियाँ नहीं देता है, वो चुप रहता है, चुप रहता है और जब ज़रूरत पड़ जाती है तो गोली चला देता है। ठीक है न! भगत सिंह अंग्रेज़ों को जाकर गलियाँ दे रहे थे क्या? चन्द्रशेखर आज़ाद गालियाँ दे रहे थे? सुनी है इनके मुँह से एक भी गाली?

प्र: नहीं।

आचार्य: वो चुप हैं, चुप हैं, चुप हैं और जब ज़रूरत पड़ी तो सीधे गोली चली या बॉम्ब चला। अब गोली चलाने या बॉम्ब चलाने का गूदा ही नहीं है, ये जो नये लड़के हैं इनमें। और गोली चलाना या बॉम्ब चलाना मानें ज़रूरी ही नहीं कि हिंसा या उग्रवाद या आतंकवाद हो। गोली चलाना, बॉम्ब चलाना मानें वो काम करना जो करने के लिए हिम्मत चाहिए। वो काम जो सही भी है और हिम्मत भी माँगता है, वो काम।

गोली चलाने का मतलब ये नहीं कि सामने किसी को गोली ही मार दी। ठीक है! कोई आन्दोलन भी हो सकता है, जिसको करने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। वो आन्दोलन तो ये कर नहीं सकते, हो सकता है कि कोई संगठन बनाने के लिए, कोई संस्थान बनाने के लिए बड़ी मेहनत लगती हो, वो ये कर नहीं सकते। तो फिर ये क्या कर रहे हैं, ये ऐसे हैं कि जैसे कोई जा रहा है उसको कुछ बोल दिया और पाँच लोगों ने ताली बजा दी।

इसमें दुख मुझे इस बात का होता है कि इनकी ऊर्जा का बड़ा अपव्यय हो रहा है। वही ऊर्जा सही दिशा में जा सकती थी और वो ऊर्जा ऐसे बेवकूफ़ी वाले कामों में जा रही है, तो मेरी सलाह इनको यही है कि जवान हो, तुम्हारे पास अभी समय भी है, ताकत भी है, उसका सही इस्तेमाल करो। ठीक है! क्यों ये सोच रहे हो कि तुम्हारे सामने बस यही रास्ता है। बहुत सुन्दर और बड़े राजसी रास्ते भी हो सकते हैं लेकिन उन पर चलने के लिए काबिलियत और पात्रता पहले तुम्हें पैदा करनी पड़ेगी।

प्र: आचार्य जी! एक यूट्यूबर हैं, वे यूट्यूब और सोशल मीडिया पर पशु कल्याण और वीगनिज़्म (करुण शाकाहार) पर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें हमेशा लोगों तक पहुँच बढ़ाने की कोशिश करनी पड़ती है। वहीं दूसरी ओर ऐसे यूट्यूबर्स हैं जिनकी पहुँच लोगों तक काफ़ी ज़्यादा है, अगर ऐसे यूट्यूबर्स भी ये काम शुरू कर दें तो एक वीडियो से करोड़ों-अरबों लोगों तक अच्छी बात पहुँच सकती है।

आचार्य: बिलकुल हो सकता है, और ये बड़ी माया है कि जो लोग अच्छा काम कर रहे हैं उन्हें कोई सुनने वाला नहीं और जिन्हें सुना जा रहा है, उन्हें सुना ही इसलिए जा रहा है क्योंकि वो घटिया से घटिया काम कर रहे हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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