आचार्य प्रशांत: प्रश्नकर्ता कह रहे हैं कि आपको अपनी बातों का, अपने सन्देश का प्रचार क्यों करना पड़ता है, अगर ये बातें सही हैं तो लोग खुद-ब-खुद आएँगे सुनने के लिएI ऐसा तुम्हारे अनुभव में है? दुनिया ऐसी है? ये पट्टी तुम्हें किसने पढ़ा दी? ये आदर्श तुम्हें किसने सिखा दिया? और इतने अन्धे हो गये हो कहानियों और आदर्शों के सामने कि ज़मीन पर चल क्या रहा है तुम्हें इसकी कुछ खबर ही नहीं हैI एकदम आँख खोलकर देख नहीं पाते या न देखने में ही तुमने कोई स्वार्थ जोड़ लिया है? तुम कह रहे हो कि अगर आपकी बात सच्ची है तो लोग खुद-ब-खुद आएँगेI अच्छा! चलो देखते हैंI
बात तुम कर रहे हो सोशल मीडिया की और अन्य सब जो मीडिया हैं, मुझे बताना जो सब टॉप इनफ्लुएंसर्स हैं, और जिनके भी सबसे ज़्यादा टॉप फॉलोवर्स वगैरह हैं, वो सच्चे लोग हैं? बताओ नI तुम्हें ये सपना आ भी कहाँ से गया कि सच्ची बातों की ओर लोग अपनेआप आकर्षित होते हैं? तुम होते हो क्या अपनेआप आकर्षित? जिन्होंने ये सवाल पूछा है, जो भी इनका नाम हो, ये खुद भी चैनल पर दो ही स्रोतों से आएँ होंगे, सम्भावना यही हैI या तो यूट्यूब पर जो हम विज्ञापन देते हैं, वो देखकर आए होंगे, या जो यूट्यूब पर शॉर्ट्स जाते हैं, वो देखकर आए होंगेI
जो असली, सच्चे, खरे-खरे वीडियो हैं, वेदान्त पर, सत्य पर, मुक्ति पर, गीता पर, उपनिषदों पर, सन्तों पर, उनके तो ४०० व्यूज़ नहीं आतेI और तुम बता रहे हो कि लोग सच की ओर अपनेआप खिंचे चले आते हैंI ये कौन से लोग हैं? पूरी पृथ्वी पर ४०० ही हैं ऐसेI कह रहे हैं, ‘सच को भी प्रचार की ज़रूरत पड़ने लग गयी?’
सच को ही प्रचार की ज़रूरत पड़ती हैI झूठ तो खुद ही आकर्षित करता है, कि नहीं करता है? हलवा-कचौड़ी की दुकान हो, और बगल में बेल का शरबत हो, या नीम के लड्डू हों, किसकी तरफ जाओगे बेटा? कहाँ पर दुकान के सामने बहुत लंबी कतार दिखाई देगी?
और साहब फ़रमा रहे हैं कि अगर आप सच्चे हैं तो आपको प्रचार की क्या ज़रूरत?
कोई गन्दगी उछाल दो, उसके पीछे कतार लग जाती है, क्योंकि हमें भरोसा दिला दिया गया है हम मक्खियाँ हैंI गन्दगी देखी नहीं कि झपट पड़ते हैंI सफाई हमको जानलेवा लगती हैI
मक्खी को फ़िनायल की गन्ध कैसी लगती है? वैसे ही लोगों को हमारे चैनल के वीडियो लगते हैं, तो उनको फिर घेरना पड़ता हैI और काहे के लिए अन्यथा लोगों से योगदान माँगते हैं, डोनेशन (दान) माँगते हैं? छोटी-सी संस्था है, सबसे ज़्यादा खर्चा होता किस चीज़ में है? सबसे ज़्यादा खर्चा होता है लोगों को सुनाने मेंI
तुम स्थिति की भयावहता देखोI इस युग की इतनी ये भयानक स्थिति है कि हम लोगों को पैसे दे-देकर ज़बरदस्ती सुनवा रहे हैं, कि सुनोI हाँ, वो सुन लेता है, उसके बाद हो सकता है उसमें से कुछ लोग नियमित रूप से सुनना शुरू कर देंI लेकिन वो सुने, पहली बार सुने, इसके लिए संस्था बहुत सारा पैसा खर्च करती है और इसी में लगता है, क्योंकि न तो सोशल मीडिया के एल्गोरिथम (कलन विधि) डिज़ाइन्ड (अनुरुप) है स्पिरिचुअल कंटेंट (आध्यात्मिक सामग्री) को प्रमोट (बढ़ावा) करने के लिए, स्पिरिचुअल भी क्या बोलूँ, स्पिरिचुअल भी हो ज़ाता है अपनेआप अगर उसमें भूत-प्रेत और जादू-टोना और कद्दू के रस की बात हो, तो वो अपने-आप आगे बढ़ ज़ाता हैI लेकिन कोई यथार्थ बात हो तो...
इंस्टाग्राम देखा है? अभी खोल के देखना उसकी फीड में, आप कोई भी हो, आपकी फीड में क्या आ रहा होगा? और दनादन एक के बाद एक, और उसके बीच में मेरा थोबड़ा, वो बर्दाश्त करेगा? वो बर्दाश्त नहीं करेगा तो इंस्टाग्राम डाउन (नीचे) हो जाएगाI तो इंस्टाग्राम क्यों अपनेआप मेरी बातों को प्रमोट करेगा? उनका पैसा देना पड़ता है, तब जाकर के वो, वो जो फीड चल रही होती है, कभी ऊपर के उभार की कभी नीचे के उभार की, उसके बीच में ये (अपने चेहरे की ओर इशारा करते हैं) सामने आ जाता हैI
और चमत्कार ये है कि तब भी कुछ लोग सब्सक्राइब कर लेते हैंI उनमें से बहुत सारे तो छोड़कर निकल जाते हैं, अनसब्सक्राइब कर देते हैंI आप सब भी ऐसे ही आये हो यहाँ परI जिन्होंने सवाल पूछा है वो खुद भी ऐसे ही आये हैं, तब भी ऐसा सवाल पूछ रहे हैं तो मैं क्या बताऊँ? इसमें न कोई शर्म की बात है न छुपाने की बात है, २०१८ के अन्त तक चैनल के कुछ ३०००-५००० सब्सक्राइबर रहे होंगेI आप समझ रहे हो? २०१८ का अन्त भी नहीं, २०१९ के अक्टूबर तक १०,०००-१५,००० सब्सक्राइबर थे बसI
बाकी सब कोई ऐसा थोड़े ही हुआ है कि दुनिया अचानक स्वर्ग बन गयी है तो लोग टूट पड़े और मिलियन कर दियेI ये लोग नहीं टूट पड़े, अंधाधुंध पैसा लगा है उसमेंI लोगों का बस चले तो रिपोर्ट कर-करके चैनल बैन (बंद) करवा देंI ये बातें सुनना कौन चाहता है? ये ठूँसा जा रहा है लोगों कोI पूछते हैं, ‘आप तो ऐड (विज्ञापन) बहुत देते हैं’, भाई, एक ऐड इसलिए दिया जाता है ताकि, कोई माल हो जो बिक जाएI ये दूसरे तरह का हैI यहाँ पर जो माल है वही विज्ञापन हैI इतनी-सी खुली बात दिखाई नहीं पड़ रही है?
वो जो प्रचार में आपके सामने विज्ञापन आता है उसमें ये कहा जाता है—‘आचार्य प्रशांत को सुनो बहुत महान व्यक्तित्व हैं? ये बोला जाता है? या पूरा वीडियो ही सीधे रख दिया जाता है? लो देखोI तो तुम्हें पैसे देकर कहा जा रहा है, ‘लो वीडियो देखो’, ‘लो वीडियो देखने के २० रुपये लोगे? लो देखोI’ २०-२० रुपये एक-एक वीडियो को देखने के दिये जा रहे हैंI और फिर ये कहते हैं, ‘प्रचार क्यों कर रहे हैं?’
नहीं करते, हमारा क्या जाता है? तुम तक बात नहीं पहुँचेगी बसI हम तक तो पहुँचनी थी तो पहुँच चुकी हैI प्रचार नहीं करेंगे तो तुम तक नहीं पहुँचेगीI चाहते हो ऐसा तो बताओI तो थोड़ा-सा सम्वेदना और सहानुभूति के साथ स्थिति को समझते हुए चीज़ों को देखा करिएI अब ये १२-१३-१४ ये वो, ‘वैलेंटाइंस डे’ का तमाशा है, तो आप पाओगे कि चैनल पर इससे रिलेटेड (सम्बन्धित) शॉर्ट वीडियोज़ डलेंगेI आपको लग सकता है उनको देख करके, ‘पर इसमें आध्यात्मिक क्या है?’
भाई, पहली बात तो ये कि वो अलग से तो रिकॉर्ड किये नहीं गये हैंI ऐसी ही किसी बातचीत में से ६० सेकंड निकाल करके उसका शॉर्ट बनाया जाता है, तो अगर ये पूरी बातचीत आध्यात्मिक है तो इसके बीच का ६० सेकंड क्या हो गया? तामसिक हो गया? कुत्सित हो गया? गर्हित हो गया? ये कैसे हो सकता है?
हाँ, वो निकाला इस तरह से जाता है कि सुनने वाले को रोचक लगेI और फिर उसके नीचे लिखा रहता है पूरे वीडियो का नाम पट्टी मेंI तो नतीजा ये होता है कि जब आप शॉर्ट वीडियोज़ डालते हैं तो उसके साथ वो जो उसका मदर वीडियो होता है, जो २०१७ में छपा था और उसके २५६ व्यूज हैं अभी तक, जब आप शॉर्ट वीडियो डाल देते हो उससे निकाल के तो अचानक उस मदर वीडियो में तेजी आ जाती हैI लोग उसको देखना शुरू कर देते हैं और यही मिशन हैI यही तरीका है, समझ में आ रही है बात?
झूठ चल जाएगा बिना प्रचार केI सच को बच्चे की तरह पालन पड़ता है छोटे सेI सच महाशक्तिशाली है, अतिसामर्थ्यवान है अपने लिएI लेकिन हमारा सच तो बहुत दुर्बल हैI अन्तर समझो, जब मैं कह रहा हूँ कि सच को बच्चे की तरह पालना पड़ता है तो मैं हमारे सच की बात कर रहा हूँI हमारा झूठ बहुत ताकतवर है या हमारा सच? हमारा झूठ बहुत ताकतवर है, तो हमें अपने सच को बहुत सम्भालना पड़ता है, बहुत सहेजना पड़ता है, खिलाना-पिलाना पड़ता हैI वही काम संस्था कर रही हैI छोटा-सा, नन्हा-सा सच हैI और उसको जो कुछ भी खिलाया-पिलाया जा सकता है, सब खिला-पिला दिया जाता हैI इसी को दे दो, इसी को दे दोI और आपको भी यही करना पड़ेगा अपनी ज़िंदगी मेंI