जीवन ऐसा क्यों है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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जीवन ऐसा क्यों है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: जीवन ऐसा क्यों है? क्यों कदम-कदम पर धोखा है, कष्ट है, चिंता है, बोरियत है, बेचैनी है?

वक्ता: जीवन ऐसा कहाँ है? मुझे बता दो इस अस्तित्व ऐसा क्या है जो तुम्हें उदास दिखाई देता है? क्या तुम्हें बादल उदास दिखाई देते हैं? क्या तुम्हें फूल उदास दिखाई देते हैं? जानवर भी थोड़े बहुत कष्ट में हो सकते हैं, पर उदास नहीं दिखाई देंगे। उदासी पर तो मनुष्य का ही अधिकार है। केवल आदमी है जो दुःख में जिये जा रहा है, वरना अस्तित्व में दुःख कहीं नहीं है।

यह सब कुछ जो तुम्हें चारों ओर दिखाई देता है, वह कहाँ से आया है? यह आ कहाँ से रहा है इसको समझो, ध्यान से देखो। तुम सब सुख चाहते हो ना? इसलिए शिकायत कर रहे हो कि दुःख क्यों है। यही बात है ना? सुख सब चाहते हो, शिकायत यही है कि दुःख क्यों है। सुख की तुम्हारी अपनी परिभाषा हो सकती है, पर एक बात पक्की है कि सुख सबको चाहिए। इसलिए ये तकलीफ़ है कि दुःख क्यों है। मैं तुमसे पूछ रहा हूँ, ‘क्या बिना दुःख के सुख हो सकता है?’

श्रोतागण: नहीं सर।

वक्ता: जब तक तुम गहरे से दुखी नहीं हो, क्या ये संभव है कि तुम सुखी हो जाओ? परीक्षा का परिणाम आने वाला है, और तुम्हें गहरा तनाव है। परिणाम आता है, और तुम पास हो जाते हो, बड़ा सुख होता है। क्या वह सुख हो सकता था बिना तनाव के? क्या तुम्हें सुख का ज़रा भी अनुभव होता अगर पहले तनाव नहीं होता, अगर तुम पहले भी प्रसन्न होते, मुक्त होते?

तुम्हें दुःख इसलिए है क्योंकि तुम्हें सुख चाहिए, बहुत सारा। बिना दुःख के सुख हो ही नहीं सकता। जीवन का एक नियम है, उसे ध्यान से समझना। तुम जो चाहते हो, तुम्हें उसके विपरीत का भी निर्माण करना ही पड़ेगा, वरना जो तुम चाहते हो वो तुम्हें मिल नहीं पायेगा।

(एक पोस्टर की और इंगित करते हुए) ये तुम्हारे सामने क्या अक्षर दिखाई दे रहे हैं? तुमको दिखेगा की अक्षर गहरे रंग में हैं, काले रंग में। क्या तुम कुछ भी पढ़ सकते थे अगर इनके पीछे एक सफ़ेद पृष्ठभूमि न होती? तो तुमको अगर काले को जानना है, तो सफ़ेद का निर्माण करना ही पड़ेगा, वरना तुम काले को भी नहीं जान पाओगे। काले को जानना है अगर तो उसके पीछे सफ़ेद का होना आवश्यक है।

तुम इतना ज़्यादा चाहते हो कि जो तुम चाहते हो, उसके विपरीत को आमंत्रित कर लेते हो। जो तुम्हें चाहिए उसका विपरीत जब तक नहीं है, तो जो तुम्हें चाहिए वो मिलेगा कैसे? तुम सब कहते हो कि तुम्हें चैन चाहिए, मैं तुमसे कहता हूँ की अगर तुम्हारे पास चैन होता, तो क्या तुम चैन चाहते? तो चैन चाहने के लिए बेचैन होना पड़ेगा। ये बड़े मज़े की बात है। तुम सबको सफलता चाहिए, उसका आश्रय समझ रहे हो? भविष्य में सफलता चाहिए- इसका अभिप्राय क्या है? कि अभी क्या है तुम्हारे पास?

श्रोतागण: असफलता।

वक्ता: अब तुमने गहराई से स्वीकार कर रखा है कि भविष्य में सफलता चाहिए ही चाहिए। तुम जी ही भविष्य के लिए रहे हो की भविष्य बड़ा सुन्दर बने, उसमें कुछ मिले। और अगर तुम्हें भविष्य में कुछ मिले, तो इसका अर्थ है कि वर्तमान में तुम्हारे पास…?

श्रोतागण: कुछ नहीं है।

वक्ता: तुम्हारे जीने के ढर्रों ने जीवन को ऐसा कर रखा है, वरना अस्तित्व में दुःख कहाँ है? तुमने जीवन को दुःख से भर रखा है। तुम बड़े-बड़े ख्वाब सजाते हो कि कल सुन्दर होगा। अब जब कल सुन्दर होगा तो निश्चित ही वर्तमान कुरूप है, गन्दा है। और मन भर जाता है वर्तमान की कुरूपता से, कुछ नहीं रखा है। अभी में क्या रखा है? कल होगा ख़ास, कोई ऐसी घटना, जब जीवन विशेष हो जाएगा। जिए जा रहे हो कल के लिए। अब कल के लिए जिए जा रहे हो और आज में कष्ट भरा है, दुःख भरा है, तो इसमें ताजुब्ब क्या है?

दुःख है नहीं, तुमने दुःख बनाया है। दुःख तो अस्तित्व में है ही नहीं। ध्यान रखना इस बात को। ये सवाल मुझसे आज कोई पहली बार नहीं पूछा जा रहा। कितने ही लोग हैं जो यही सवाल कितने अलग-अलग तरीकों से पूछ चुके हैं। कोई पूछता है, ‘बेचैनी क्यों है?’ कोई पूछता है, ‘दमन क्यों है?’ लेकिन मूलतः सब यही पूछ रहे होते हैं कि दुःख क्यों है, और आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसके दुःख का कारण वो खुद ना हो।

मैंने बहुत ढूँढा है, मुझे आज तक ऐसा कोई नहीं मिला जिसका दुख कहीं बाहर से आया हो। जो भी दुखी है उसका दुःख उसकी अपनी इजाद है। अस्तित्व ने कोई फैसला नहीं कर रखा तुम्हें दुःख देने का। अस्तित्व की तुमसे कोई लड़ाई नहीं है, कोई बैर नहीं है। उसने नहीं तय कर रखा है की जीवन में दुःख होना ही चाहिए। तुम लगे हुए हो कि जीवन दुखी हो, और दुःख नहीं होता तो दुःख पकड़-पकड़ कर लाते हो। दुःख नहीं होता तो खींच-खींच कर लाते हो।

ये जो तुमने महत्वकांक्षाएं पाल रखी हैं, तुम्हीं ने पाली हैं ना? जीवन ने तो नहीं कहा, ‘ये करो वो करो’। तुम इन्हें लेकर आये हो और भरे हुए बैठे हो। जीवन में तुमने धारणाएं पाल रखी हैं कि मनोरंजन होगा, मज़े करेंगे, और ये जो मनोरंजन की चाहत ही यही बताती है की वर्तमान बोरियत से भरा हुआ है। और वर्तमान तो बोरियत से भर ही जाएगा जब मन लगा हुआ है कि कहीं और जाकर मनोरंजन होगा। जब मनोरंजन वहाँ है तो बात तय है कि यहाँ बोरियत है।

दुःख से जीवन को तुमने भरा है। तुम्हें ज़िन्दगी का जो भी कष्ट है, वो तुम्हें किसी और ने नहीं दिया है, तुम ही उत्तरदायी हो। तुम्हारे अलावा दुःख कहीं और से नहीं आ रहा, दुःख का जो भी प्रकार हो। दुःख के हज़ार प्रकार हैं, पर ये पैदा तुमने ही किया है। मांग-मांग कर, मांग-मांग कर। और ये भूलना मत, ये द्वैत का नियम है, कि जो तुम्हें चाहिए उसका विपरीत तुरंत पैदा हो जाएगा। तो तुमने सफलता जैसे ही मांगी, तुमने घोषणा कर दी कि ‘मैं अभी असफल हूँ’। तुमने सुख जैसे ही माँगा तुमने घोषणा कर दी कि ‘मैं अभी….

श्रोतागण: दुखी हूँ।

वक्ता: ये जीवन का नियम है, जो मांगोगे उसका विपरीत तुरंत पैदा हो जाएगा। क्योंकि विपरीत न पैदा हो तो ये मिलेगा कैसे?ये बात स्पष्ट हो रही है?

श्रोतागण: जी सर ।

वक्ता: जीवन जैसा है, उसे वैसा जानो। पूरे तरीके से जानो, डूब कर जानो। मांग मत रखो। जानने पर ध्यान रखो, ज़रा समझो। मानो नहीं, जानो। तुम जानते कुछ नहीं, मांगते बहुत कुछ रहते हो, ये मिल जाए, वो मिल जाए। और क्या मिल जाए उसकी कोई समझ नहीं, पर मांगे रहते हो । मांगने से मन हटाओ। ध्यान जागृत करो, समझ जागृत करो। ये मांगना हट जाएगा।

जितने कष्ट हैं, जितनी तुमने बातें कहीं, वो सब समझ में आ जाएगा। समझ में आया नहीं कि गायब। जैसे सपना गायब हो जाता है। जगे नहीं, सपना गायब। तुम्हें पता चलेगा कि ये तो असली था ही नहीं।

‘मैं बेहोश था इस कारण मुझे ऐसा लग रहा था।’

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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