प्रश्न: सर, ऐसा कहा जाता है कि जब तक कोई दर्द न मिला हो, तब तक कुछ और मिलता नहीं।
वक्ता: हाँ, सही कहा है जिसने कहा है कि जब तक दर्द नहीं मिलता तब तक और नहीं मिलता। और क्या नहीं मिलता? चीख़े नहीं मिलती, आँसू नहीं मिलते, कष्ट, पीड़ाएं, दुःख, पस, मवाद, ये सब दर्द के साथी हैं। उसी के साथ आते हैं। जिसने कहा सो कहा, तुमने सुना क्यूँ ये सब। हमसे ज्यादा समझदार तो जानवर हैं, वह भी ये बात नहीं मानेंगे। अस्तित्व में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसने दर्द को पकड़ रखा हो। आदमी ही है बस और फिर तुम गाने बनाते हो, ‘जब दर्द नहीं था सीने में, तब ख़ाक मज़ा था जीने में’। सुना है? वो गा रहा है अपनी दर भरी आवाज़ में और तुम, आह ये महावाक्य। अरे दर्द होना चाहिए, ऐसे लोगों को तो और दर्द देना चाहिए। जब दर्द में ही जीवन का रस है, तो आओ थोड़ा दर्द हमसे भी लो। हम भी तुम्हें रस देने के इच्छुक हैं। फिर जीवन में इतना दर्द हो जाता है कि चेहरे से टपकता है। जहाँ जाते हो, वहाँ पीछे दर्द की धारा बहाते चलते हो। और बहुत दर्द भरी दुनिया हो गयी है हमारी, इसीलिए चारों तरफ देखो दर्द ही दर्द है। कौन- कौन इच्छुक हैं दर्द के लिए? क्या मिलेगा तुम्हें दर्द से? जीवन आनंद है, जीवन मौज है। दर्द तो भूल का परिणाम होता है, दर्द नासमझी का परिणाम है, दर्द धोखे का परिणाम है। दर्द जीवन नहीं है| किसने ये बात तुम्हारे मन में भर दी कि दर्द जीवन है? दर्द तुम्हें मिलता है तुम्हारी चालाकियों से, तुम्हारी कुटिलताओं से। दर्द तुम्हें मिलता है जब तुम सोचते हो कि तुम बहुत ख़ास हो, तुम ये कर लोगे और तुम वो कर लोगे। जीवन की टेढ़ी चाल देती है दर्द। एक जटिल मन को मिलता है, दर्द। दर्द उसको मिलता है जो प्रेम नहीं जानता, दर्द उसको मिलता है जिसका अहंकार खूब घना होता है। बिमारी है, दर्द।
श्रोता: सर जो प्रेम जानता है, दर्द उसे सबसे ज्यादा मिलता है।
वक्ता: क्या दर्द मिलता है?
श्रोता: सर जैसे ये मेरा फ्रेंड है, इससे दोस्ती हो गयी है, इस पर विश्वास हो गया है। इसने धोखा दे दिया तो दर्द तो होगा ही।
वक्ता: जिससे तुम्हें प्यार हो गया था तो तुम चाहते थे वो तुम्हें धोखा न दे। किस प्रकार का धोखा न दे?
श्रोता: सर, इग्नोर न करे।
वक्ता: तो तुम प्यार इसलिए करते हो कि वो तुम्हें इग्नोर न करे? जवाब दो|
श्रोता: सर भरोसा न तोड़े।
वक्ता: क्या भरोसा है तुम्हें?
श्रोता: सर, हमेशा साथ रहे।
वक्ता: क्यों साथ रहे? अरे, उसकी नहीं मर्ज़ी है तुम्हारे साथ रहने की| तुम ज़बरदस्ती करोगे?
श्रोता: नहीं सर, आप कह रहे थे कि जो प्यार नहीं जानता, उसे दर्द होता है।
वक्ता: मैं बिल्कुल कह रहा हूँ कि तुम प्यार जानते नहीं, इसलिए तुम्हें दर्द हो रहा है। जो प्यार जानेगा, वो क्या कभी ये कहेगा कि हमेशा मेरे साथ रहो? और चलो कहते हैं हमेशा मेरे साथ रहो, तो सुबह से लेकर शाम तक चिपका कर घूमो, ब्रश भी साथ-साथ करो, एक थाली में खाओ, एक प्याले से पियो, क्या क्या करोगे साथ साथ? वो क्यूँ चले तुम्हारी मर्ज़ी पर? उसका स्वतंत्र मन है, उसका जीवन है। ये तुम प्रेम कर रहे हो कि मालकियत जमा रहे हो? ये कौन सा प्रेम है जो ये शर्त रख रहा है कि साथ रहना हमेशा। तुम्हें प्रेम करना है तुम करो, तुम उससे उम्मीद बाँध के क्यों बैठे हो? प्रेम तुम्हें करना है न? तुम्हें कुछ अच्छा लगा, तुम्हें गुलाब का फूल अच्छा लगा, अब तम उससे ये कहोगे कि मेरी जेब में रह हमेशा और किसी और के पास मत जाना, किसी और को खुश्बू दी तो तू बेवफा कहलाएगा। पहले तो तुम प्रेम जानते नहीं, फिर तुम कहते हो प्रेम में दर्द मिल रहा है। प्रेम दर्द नहीं देता है, प्रेम तो मौज ही देता है। ये जो तुम कह रहे हो न, ये सिर्फ इच्छाओं का खेल है। एक प्रकार कि वासना है ये कि पकड़ कर रख लो। दूसरा जो है, इंसान नहीं है चीज़ है वो कि जेब में डाल ली कि साथ में रहे हमेशा। उस पर नाम और लिख लो अपना।
श्रोता: सर, इच्छाएं कभी ख़त्म नहीं होतीं।
वक्ता: बस इसीलिए दर्द कभी ख़त्म नहीं होते।
श्रोता: हाँ सर, दर्द कभी ख़त्म नहीं होते।
वक्ता: होते नहीं हैं या तुम्हें करने नहीं हैं? ईमानदारी से बताओ।
सभी श्रोतागण: सर करने नहीं हैं।
श्रोता: सर, करने आते नहीं हैं।
वक्ता: ठीक है। तो करने का जो सिद्धांत है, उसे समझते हैं ज़रा सा। हमे दुःख क्यूँ मिलता है? और दुःख से किसी भी तरह कि निजात सम्भव क्यूँ नहीं है? दोनों बातें देखेंगे। तुम अपनी पूरी ज़िन्दगी को देखो आज तक कि तुम्हें दो ही प्रकार के छण याद आएंगे। एक, वो जो तुम्हारे गहरे सुःख के थे और दूसरे वो जिनमें तुम्हें खूब दुःख मिला है। ठीक है न? जीवन के जो साधारण पल हैं, वो तो याद आते नहीं हैं। जब तुम पुरानी फोटो देखतो हो तो तुम्हें दो ही तरह के पल याद आते हैं। वो या तो उन पलों के होते हैं जब तुम जब बहुत खुश थे या फिर मन पर वो स्म्रितियां अंकित होती हैं जब कोई दुखद घटना घट गयी थी। तुमने कभी ध्यान दिया, मन सिर्फ इन्हीं दो घटनाओं को याद क्यों रखता है? सुःख और दुःख? क्योंकि सुःख में वो हुआ जो तुम चाहते थे। पूरा- पूरा वो हुआ जो तुम चाहते थे, इसी का नाम सुःख है। दुःख में वो नहीं हुआ या उसके विपरीत हुआ जो तुम चाहते थे। और ये दोनों ही याद हैं। इसका मतलब इन दोनों में ही केंद्रीय क्या है? कॉमन क्या है? चाहना।
मन, अहंकार, इसी में जीते हैं कि मुझे चाहिए। ठीक है? सुःख और दुःख बस उस चाहने पर केंद्रित है। और जो तुम्हें चाहिए वो तुम्हें हमेशा से नहीं चाहिए था। वो चाहना भी तुम्हें सिखा दिया गया। इसीलिए कोई कुछ चाहता है, कोई कुछ चाहता है। हालांकि दावा हमारा यही होता है कि ये मै खुद चाहता हूँ। तो अगर तुम गौर करो कि अलग अलग लोग अलग अलग चीज़ें क्यों चाहते हैं या एक ही व्यक्ति अलग अलग समय पर अलग अलग चीज़ें क्यूँ चाहता है, तो तुम पाओगे कि यह सब बाहरी प्रभावों का नतीजा है। तो मन, सुःख और दुःख दोनों में ज़ोर पाता है, ताक़त पाता है। जो हमारे होने की भावना है, झूठी है, आयातित है, वो इसी में ज़ोर पाती है कि हमें सुःख मिला या दुःख मिला। अब सुःख और दुःख में, चाहिए तुम्हें सुःख है, दुःख किसी को नहीं चाहिए। मगर तुम पाओगे कि जब भी तुम सुःख के पीछे भागोगे, दुःख अनिवार्य हो जाता है। बिना दुःख के सुःख मिल ही नहीं सकता। अभी अगर तुम्हारे सर में दर्द हो रहा है और तुम शाम को घर जाते हो, दवा खाते हो, बाम लगाते हो, तो तुम कहोगे कि अब सुःख अनुभव हो रहा है। जब कि हुआ कुछ विशेष नहीं है। तुम्हारा जो सर है, वो अब सामान्य हो गया है। एक दूसरा व्यक्ति जिसको सर दर्द था ही नहीं, वो यह नहीं कहेगा कि सुःख अनुभव हो रहा है, लेकिन तुम कहोगे। तुम्हें सुःख क्यों अनुभव हो रहा है? क्योकि पहले दुःख था। सुःख के लिए तुम्हें क्या आमंत्रित करना पड़ेगा?
सभी श्रोतागण: दुःख।
वक्ता: समझ रहे हो बात को? तुम्हें किसी घटना की आशंका हो कि बहुत बुरा हो सकता है, तुम गहरे तनाव में हो, और जिसकी तुम्हें आशंका है, वो घटना न घटे, तो तुम ख़ुशी से नाचने लग जाओगे। यह तुम इसीलिए नाच रहे हो क्योकि पहले तुम तनाव में थे। न होता तनाव, तो तुम न नाच पाते। तो सुःख के लिए ज़रूरी है कि पहले दुःख निर्मित किया जाए। इस कारण आदमी कभी दुःख से निजात नहीं पाता क्योंकि उसे सुःख चाहिए। सुःख के लिए अनिवार्य है कि पहले दुःख लेकर आओ, दुःख के बैकग्राउंड पर ही सुःख पता चलता है। जैसे कि काली पृष्ठभूमि पर ही सफ़ेद अंकित किया जा सकता है, ब्लैकबोर्ड कि तरह। ठीक उसी तरह जब तक दुःख न हो, सुःख पता ही नहीं चलता। तो अगर मन कहता है सुःख चाहिए, तो ठीक है पहले दुखी तो हो जाओ। इस कारण आदमी अपना पूरा जीवन दुःख में बिताता है क्यूँकि उसे सुःख की तलाश है। जो भी कोई सुःख की तलाश करेगा उसे दुखी होना ही पड़ेगा। और तुम्हें जितना ज़यादा सुःख चाहिए होगा, उतना ज्यादा तुम्हें दुखी होना पड़ेगा। तो तुमने जो पहले बात कही थी वो ठीक थी कि कुछ चाहिए तो पहले दुखी हो जाओ, पहले दर्द झेलो।
दो बातें पता चल रही हैं- पहली दुःख मिल इसलिए रहा है क्यूँकि सुःख चाहिए, दूसरी- हम जिनको दुःख समझते हैं, जिनको सुःख समझते हैं- वो दोनों ही बाहरी बातें हैं। अब तुम अपने जीवन पर ध्यान दो। जहां कहीं भी ये पाते हो कि दुःख बहुत गहरा है, वहीँ ध्यान से देखना कि तुमने किसी तरीके के सुःख कि अपेक्षा कर रखी होगी। और वो सिर्फ उम्मीद है, और वो तुम्हारी उम्मीद भी नहीं है। वो उम्मीद भी तुमने कहीं से इकठ्ठा कर ली है।तुम्हें बता दिया गया है कि ऐसी कोई उम्मीद करनी चाहिए, तो तुमने अपने आप से ऐसी उम्मीद कर ली है, और वो उम्मीद बाँध कर तुम सोच रहे हो कि मैं सुःख की तलाश में निकला हूँ। और पा क्या रहे हो?
सभी श्रोतागण: दुःख।
वक्ता: दुःख। बेवकूफी है कि नहीं है ये बताओ? पहले तो मैं किसी की दी हुई उम्मीद बांधू, फिर उस उम्मीद के पीछे-पीछे जाऊं, सोचूं कि सुःख मिलेगा। और मिलता क्या है? दुःख। दुःख का मिलना अनिवार्य है। दुःख का मिलना ऐसा नहीं है कि सांयोगिक है कि अरे धोखे से मिल गया। हममे से ज़्यादातर लोग यही सोचते हैं कि कोई घटना घट गयी, कोई ख़ास परिस्थिति आ गयी जिसके कारण हमें दुःख मिला। और मैं तुमसे ज़ोर देकर कह रहा हूँ कि तुम्हें किसी संयोग से दुःख नहीं मिल गया है। तुमने दुःख को बुलाया है, तुमने दुःख को पाला है। दुःख कभी सांयोगिक नहीं होता, हमने दुःख को पकड़ कर बैठा रखा है कि चले मत जाना। दुनिया में कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसके दुःख का कारण कोई और हो। हम खुद अपने दुःख का कारण हैं, हमारी नासमझियाँ यह ही तो कारण हैं दुःख का।
श्रोता: सर, इसको मैं एक उदहारण से समझना चाहता हूँ।
वक्ता: मैंने उदहारण दिया तो था। यही कि तुम्हारा परीक्षा परिणाम निकलनेवाला है। दो लोग, तुम और तुम्हारा पड़ोसी । तुमको डर है कि तुम फेल हो जाओगे, उसको ऐसा कोई डर नहीं है। दोनों जाते हो और दोनों पाते हो कि पास हो गए। अब दोनों में ज्यादा सुखी कौन होगा?
श्रोता: जिसे फेल होने का डर था।
वक्ता: जिसे फेल होने का डर था। तो अब तुम्हें खूब सुःख मिल रहा है। पार्टी कौन देगा दोनों में से? जिसे डर था। जिसको दुःख ही नहीं, वो सुःख क्यों मनाएगा? जानते हो तुम्हारी नौकरी लगती है, तो तुम खूब पार्टी क्यों देते हो? नौकरी लग गयी, लोगो को मिठाई बाँट रहे हैं। उस मिठाई बांटने का कारण जानते हैं? वो बहुत डरे हुए थे कि वो बेरोज़गार न रह जाएं। अगर वो इतना डरे हुए न होते, तो मिठाई बांटने का कोई कारण ही नहीं हो सकता था। तो उस मिठाई बांटने के लिए ज़रूरी है कि पहले तुम खूब डरे हुए रहो। हम सोचते हैं, सुःख बड़ी अच्छी चीज़ है। हम पूरा नहीं देखते कि चल क्या रहा है।
श्रोता: सर, जितने भी दुःख हैं क्या हम अपने आप पैदा करते हैं?
वक्ता: निश्चित रूप से, क्योंकि तुम्हें सुःख चाहिए। और अंतर्मन को गहराई से यह पता है कि सुःख मिलेगा ही तभी जब पहले दुःख हो।
श्रोता: सर, क्या हमें एक्सपेक्ट नहीं करना चाहिए?
वक्ता: तुम करो, पर फिर ये जानते रहो कि तुम जो ये कर रहे हो, ये दुःख का इंतज़ाम है। ये पक्का जानते हुए। फिर जो करना है करो।
तुम्हारे पास कोई बैठा हो, तुम्हारा कोई दोस्त हो, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड हो, वो तुम्हारे पास ही है, तुम्हें उसकी कोई विशेष कीमत नहीं पता चलेगी। लड़ाई हो जाए, लगे कि रिश्ता ही टूट गया और फिर हफ्ते भर बाद फिर वापस आ जाए बड़ा सुःख अनुभव होगा। ठीक है?क्यूँकि मन मज़ा मांगता ही तब है, जब पहले कोई विपदा की स्थिति हो। जो रोज़ ही मिला हुआ है, उसमें क्या है? कुछ ख़ास नहीं। इसीलिए हमें भी जो निरंतर उपलब्ध है, जो हमेशा हमारे पास है, जो हमारा स्वभाव है, हम उसकी कद्र नहीं करते। तुम्हारे साथ जानते हो सदा क्या है? तुम। तुम अपनी कोई कद्र नहीं करते। तुम उनकी कद्र करते हो, जो आते जाते रहते हैं। क्योंकि तुम्हें मज़ा ही वहीँ पर आता है। अगर कोई हमेशा साथ है, तो फिर मन कहता है अरे इसमें क्या रखा है। पहले उसे दूर हो जाना चाहिए, जब दूर हो जाए, तब तड़पो और चिल्लाओ और फिर वो दुबारा वापस आए तब कहो, आज पार्टी है। ऐसे ही चल रहा है न जीवन?
श्रोता: सर, लेकिन अगर वापस नहीं आया तो?
वक्ता: वापस नहीं आया तो इंतज़ार करो। इंतज़ार जितना बढ़ेगा तो सुःख की उम्मीद उतनी बढ़ेगी। इसीलिए तो हम बड़े- बड़े लक्ष्य बनाते हैं, जो कभी पाए ही नहीं जा सकते। तुम देखो न तुम क्या करते हो। खूब लम्बे चौड़े लक्ष्य बनाते हो, जो तुम्हें पता है कि कभी पूरे होने हैं नहीं, पर उनकी उम्मीद में बड़ा मज़ा है। सपने लेने में बड़ा मज़ा है। मिल गया तो क्या मज़ा है। ये दूरी है, इस दूरी के कारण ही तो तुम अपने मन के अनुसार कल्पनाएं कर सकते हो। कोई जब तक तुम्हें मिला नहीं है तब तक तुम्हें बड़ी सुविधा रहती है न। क्या? कल्पनाएं करो। वो ऐसी होगी, ये होगा, वो होगा, मैं ये बोलूंगा, तो वो ये बोलेगी, और फिर ये होगा, और फिर वो होगा। ये सुविधा तुम्हें तब कहा रहेगी, जब वो सामने बैठी होगी। तुम्हारे विद्वानो ने तुम्हें बता दिया है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। उम्मीद पर दुनिया नहीं कायम है, उम्मीद पर दुःख कायम है।
श्रोता: सर, उन्होंने कहा है तो कुछ सोच कर ही कहा है।
वक्ता: उन्होंने वही सोचा, तुम सोच रहे हो। तुम्हारा तल और उनका तल एक ही है। इसीलिए इतना याराना है कि उन्होंने कह दिया और तुमने पकड़ लिया। अरे उन्होंने कह दिया, थोड़ा विचारो, अपनी आँख से भी देखो। जो भी महत्वपूर्ण है, वो तुम्हारे पास है, मिला हुआ है। पर उसकी ओर नहीं देखना है क्योंकि उसमें तुम्हें वो गुदगुदी नहीं होती, टिटिलेशन उपलब्ध नहीं होगा, डर कि थर्राहट नहीं रहेगी, जिसे तुम थ्रिल बोलते हो। तो इसीलिए दूर कर दो, खुद ही दूर कर दो। सब मिला हुआ है, पर ये मान लो कि दूर है और फिर पूरी कोशिश करो कि पाना है, पाना है। अच्छा खेल है- जो है सामने उसकी और से आँखे मूँद लो, अपने आप को कभी देखो मत, और आँखें मूँद कर कहो कि कुछ कमी है, कुछ कमी है, और फिर अपने आपको प्रेरणा दो कि अब मुझे जीवन में कुछ करके दिखाना है, कुछ पाना है, और फिर लग गए हैं पाने में। क्या पाने में लग गए हैं? वो, जो है ही नहीं। बढ़िया है, तुम तो बड़े होशियार हो। जो मिला हुआ है, उसकी ओर आँखे मूंदो। जो है ही नहीं उसको पाने के लिए उसके पास दौड़ो, और जीवन भर दौड़ते रहो, और फिर पूछो कि ये दर्द कहाँ हो रहा है। सब कुछ दर्द होता है, ऊपर से लेकर नीचे तक। दर्द नहीं होगा तो क्या होगा?
अपने ही हाथों पीटे जा रहे हो, अजीब सा मामला है। कोई वैद्य नहीं समझ पाएगा, डॉक्टर के पास जाओगे, समझ में नहीं आएगा। ये क्या है उसे पता ही नहीं है। कि तुम अपनी पिटाई खुद करते हो ।
-संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।