प्रश्नकर्ता: क्या हम ग्रंथों का दुरुपयोग करते हैं?
आचार्य प्रशांत: ग्रन्थ ना पढ़ना बेहतर है ग्रन्थ का दुरुपयोग करने से। ये तो अहंकार ने बड़ा ही अनर्थ कर दिया, पहले तो वो ग्रन्थ को छूता नहीं था, और अब क्या कर रहा है? छू करके उसका इस्तेमाल कर रहा है ख़ुद को सजाने के लिए। सोचिए कैसा लगेगा कि एक बिलकुल वहशी आदमी, दरिंदा समान, आए और ग्रंथों के पन्ने फाड़-फाड़ कर अपने लिए कागज़ का मुकुट बनाए और कुछ करे। दरिंदा अपनी सजावट के लिए धर्म ग्रंथों का उपयोग कर रहा है। दरिंदे का क्या नाम है? अहंकार।
शेक्सपियर ने बोला था 'मर्चेंट ऑफ़ वेनिस' में, शाइलॉक के चरित्र पर, 'द डेविल कैन कोट स्क्रिप्चर्स फ़ॉर हिस पर्पस' (शैतान अपने स्वार्थ के लिए ग्रंथों का भी इस्तेमाल कर सकता है)। और ये जो शाइलॉक का किरदार था, ये ऐसा था कि इसे पैसा ना मिले तो लोगों का माँस रखवा लेता था। *'द डेविल कैन साइट स्क्रिप्चर्स फ़ॉर हिस पर्पस'*।
तो सिर्फ़ इसलिए कि कोई बार-बार श्लोक पढ़ देता है, या उद्धरण बता देता है, या कोई दोहा बोल देता है, उसको आध्यात्मिक मत मान लीजिएगा। सम्भावना ये भी है कि वो अध्यात्म का दुरुपयोग कर रहा हो, वो अध्यात्म का इस्तेमाल कर रहा हो ख़ुद को सजाने के लिए, और वो अध्यात्म का इस्तेमाल कर रहा हो दूसरों को गिराने के लिए।
अध्यात्म क़ायदे से वो बन्दूक है जो अपने ऊपर चलती है कि तुम मिट जाओ। लेकिन अध्यात्म अगर ग़लत हाथों में पड़ जाए, तो वो बन्दूक हो जाता है जो दूसरों पर चलती है ताकि तुम उन पर राज कर सको।
प्र२: आचार्य जी, कहते हैं कि गुरु बदलना नहीं चाहिए, एक ही होना चाहिए जीवन में। ये कहाँ तक बात सही है?
आचार्य: बिलकुल सही बात है, पर वो कौन सा गुरु है जो एक ही होना चाहिए? क्योंकि वो एक ही है। वो, वो (तर्जनी से ऊपर की ओर इशारा करते हैं) है न परम गुरु, प्रथम गुरु, वो नहीं बदलना चाहिए।
प्र२: जो शरीर में होते हैं वो?
आचार्य: (रुमाल से चेहरा ढ़कते हैं) (श्रोतागण हँसते हैं) हम्म? अरे, वो एक है, धरती पर पेड़, पौधे, पत्ती, फूल, तो अनेक हैं न। फिर? चार दिन यही कुर्ता पहनूँगा तो ये महकेगा, कल बदल कर आऊँगा भाई। फिर तुम कहोगे, "देखो बदलना नहीं चाहिए, रूप नहीं बदलना चाहिए।" रूप तो बदलेंगे ही, बात तो उसी की है न। दृश्य तो बदलेगा-ही-बदलेगा, दृश्य के पीछे जो अदृश्य बैठा है वो तो एक ही है न।
तो एक ही गुरु रखना है। कौन-सा गुरु? (ऊपर की ओर इशारा करते हुए) वो, वो है, पहला गुरु वो ही है। जब वो पहला गुरु है, तो उसके प्रताप से धरती पर भी तुम्हें गुरु उपलब्ध हो जाते हैं। इसीलिए जो धरती के गुरु हैं वो अपने-आपको उसका दास बोलते हैं, कि हम उसके दास हैं। तुम अगर कहते हो कि तुम हमारे शिष्य हो, तो तुमसे पहले हम उसके शिष्य हैं।