छोटी बच्चियों में प्यूबरटी

Acharya Prashant

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छोटी बच्चियों में प्यूबरटी
देखिए, जो प्रकृति का पूरा खेल चल रहा है न, उसका उद्देश्य मुक्ति नहीं है, उसका उद्देश्य तो यही है कि खेल ही चलता रहे। खेल बस चलता रहे, चलता रहे। हाँ, मुक्ति हो सकती है, पर वो अपवाद स्वरूप होती है। थोड़ा ज़मीनी बात करता हूँ। जैसा आप अपने आप को माहौल देने लग जाते हो, इवोलूशनरी थ्योरी कहती है की आपका शरीर भी उसी तरह का होना शुरू हो जाता है। ये विकासवाद है इवॉल्यूशन का सिद्धांत। आप जैसा अपने आपको माहौल देने लग जाते हो न, आपका शरीर भी उसके अनुकूल होना शुरू हो जाता है। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा नाम डॉक्टर ज्योत्सना मिश्रा है। मैं गवर्मेंट हॉस्पिटल में ऐज़ अ डॉक्टर पोस्टेड हूँ। आचार्य जी, मैंने हाल ही में एक सेमिनार अटेंड किया था जिसमें कुछ गवरमेंट टीचर्स भी आए थे। वहाँ पर यह डिस्कशन हुआ कि छोटी बच्चियों में यानि आठ से नौ साल की बच्चियों में प्यूबरटी बहुत तेजी से आ रही है।

इसकी वजह से इनके मंथली पीरियड स्टार्ट हो जाते है। और ये बच्चियाँ इतनी छोटी होती है आचार्य जी कि ये अपने कपड़े तो ढंग से पहन नहीं पाती तो ये हर महीने पैड कैसे बदलेंगीं। और कई बच्चियाँ तो इसकी वजह से स्कूल भी मिस करती है। खासकर ग्रामीण इलाकों में तो लड़कियाँ स्कूल से ड्रॉप भी ले लेती है। क्योंकि हर स्कूल में लेडी टीचर्स भी अवेलेबल नहीं होती।

हाल ही में टीवी पर भी ऐड दिखाया गया था जिसमें कक्षा तीन की बच्चियों को डांस करते हुए दिखाया गया था कि पीरिड्स आए है तो हेल्दी है। इसमें कई वजहों पर डिस्कशन हुआ था जिसपे कुछ वजह ये आई थी कि बच्चियों में बढ़ता स्क्रीन टाइम, छोटी बच्चियों में बढ़ते देह भावना की और बच्चियों में जो हम मेकअप प्रोडक्ट्स यूज करते हैं, उसमें जो केमिकल्स होते हैं, उसकी वजह से भी प्यूबर्टी आती है। तो मैं कहना चाहती हूँ आचार्य जी की हम कितना खतरनाक खेल खेल रहे हैं अपनी बच्चियों के साथ। आप इससे कुछ रोशनी डालें।

आचार्य प्रशांत: देखिए, जो प्रकृति का पूरा खेल चल रहा है न, उसका उद्देश्य मुक्ति नहीं है, उसका उद्देश्य तो यही है कि खेल ही चलता रहे। खेल बस चलता रहे, चलता रहे। हाँ, मुक्ति हो सकती है, पर वो अपवाद स्वरूप होती है। थोड़ा ज़मीनी बात करता हूँ। जैसा आप अपने आप को माहौल देने लग जाते हो, इवोलूशनरी थ्योरी कहती है की आपका शरीर भी उसी तरह का होना शुरू हो जाता है। ये विकासवाद है इवॉल्यूशन का सिद्धांत। आप जैसा अपने आपको माहौल देने लग जाते हो न, आपका शरीर भी उसके अनुकूल होना शुरू हो जाता है।

उदाहरण के लिए अगर पेड़ों की पत्तियाँ बहुत ऊँचे तल पर लगने लग जाए, किसी वजह से, तो जो नीचे घोड़े हैं, घोड़ों से मिलती जुलती जो प्रजातियाँ है मान लीजिए, उनकी गर्दनें खुद ही लम्बी होनी शुरू हो जाएंगी और एक दिन आएगा जब आप बोलोगे, ये जिराफ है। जिराफ की गर्दन ऐसे ही लम्बी हुई है? जिराफ की गर्दन लम्बी होने में कई कई कई लाख साल लगे हैं। ऐसे दो दिन में नहीं हुई।

ये हम जानते है, मुझसे बेहतर आप जानती होंगी। है न! जैसे ये सब होते हैं, इनके जैसे घोड़े, खच्चर, गधे, वैसे ही या ज़ेबरा वैसे ही ज़िराफ भी कभी होते होंगे। फिर उन्होंने पाया कि वातावरण ऐसा हो रहा है, माहौल ऐसा हो रहा, इको सिस्टम ऐसा हो रहा है की नीचे वाली पत्तियों में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है, कि नीचे पत्तियाँ लगने ही बंद हो गई है। तो धीरे धीरे करके उनकी गर्दन खुद ही लम्बी होती गई और वो ज़िराफ हो गया। प्रकृति बस ये चाहती है खेल चलता रहे। खेल चलता रहे, इसके लिए अगर तुम्हारी गर्दन लम्बी होनी है तो गर्दन लम्बी हो जाएगी।

ये जितनी आप विविधता देखते हैं, तमाम तरह के पशु पक्षियों में वो सब विविधताएँ रिस्पोंस है इकोलॉजिकल कंडीशन्स को, इन्वायरमेंटल कंडीशन्स को। जैसा वातावरण होता है, उसके अनुसार शरीर रिस्पांस करना शुरू कर देता है। अब कहीं कहीं पर पेड़ बहुत लम्बे होते हैं, उसकी कोई वजह होती है की पेड़ इतना लम्बा क्यों होता है। अगर कैनोपी बहुत घनी हो जाएगी और निचले तल पर पेड़ को सनलाइट मिलनी बंद हो जाएगी तो सनलाइट पाने के लिए पेड़ बहुत तेजी से ऊपर उठेगा और पेड़ लम्बा हो जाएगा।

यूं ही नहीं लंबा हो गया, कोई वजह है लंबे होने की। प्रकृति ये करती रहेगी और ये सब करने में जीव का क्या हो रहा है, प्रकृति इसकी ढेला भर परवाह नहीं करती। प्रकृति बस ये कहती है की जीव आगे बढ़ता रहे, जीव की प्रजाति चलती रहे, उसे बस इस बात से मतलब है। जीव को उससे लिब्रेशन मिलेगा की नहीं, जीव को उससे ज्ञान, बोध मिलेगा की नहीं, या जीव जैसा जैसा जी रहा है उसमे डिग्निटी बचेगी कि नहीं, उससे कोई मतलब नहीं है, कोई मतलब नहीं है।

अब कछुए का जो वजन होता है, कछुए का आधे से ज़्यादा वज़न लगभग दो तिहाई वज़न, आप लोग खोज निकालिएगा एग्जैक्टली कितना होता है। वो उसके जो उसका कवच होता है, जो उसका खोल होता है उसमे होता है। उसका नतीजा यह है कि कछुआ बहुत धीरे धीरे चलता है और कछुआ अजीब सा लगता है। लेकिन कछुआ इस ग्रह पर मौजूद सबसे पुरानी प्रजातियों में से है। कभी ऐसा होता रहा होगा की कछुए के पास खोल नहीं था और लोग, क्यूंकि उसका बाकी शरीर बड़ा मुलायम होता है और कछुए बाकी शरीर देखे तो जो उसके प्रिडेटर्स होते होंगे, उसे मारते होंगे और कछुए का शिकार कर लेते होंगे। तो प्रकृति ने धीरे धीरे उसको खोल दे दिया। उस खोल में कछुए को आज तक बचा के रखा है।

लेकिन उसकी वजह से जो कछुआ बड़ा अनसीमली हो गया है, विचित्र सा दिखता है। वो ऐसे धीरे धीरे चलता है। इतना ही नहीं है जब कछुआ जो बहुत लम्बी उम्र जीता है, दो सौ साल जीता है और जो कछुए बूढ़े हो जाते हैं वो चल भी नहीं पाते क्योंकि उनकी पीठ पर इतना वजन रखा होता है। तो जो कछुए कैप्टिविटी में रखे होते है उन्हें हाथ से खिलाना पड़ता है। क्योंकि चल ही नहीं पाते, इतना भारी उनके ऊपर खोल रखा हुआ है, वो घिसट घिसट धीरे धीरे बढ़ रहे हैं, फिर उनको लेकर हैंड फीडिंग करनी पड़ती है।

पर प्रकृति ने इतना कर दिया की कछुए की प्रजाति अब चलती रहेगी। इसके कारण अब कछुए की लाइफ डिग्निटी से बिल्कुल वंचित हो गई है, गरिमा-हीन हो गयी है। प्रकृति को कोई मतलब नहीं पड़ता। प्रकृति बस ये चाहती है की जीव ज़िन्दा रहे और न सिर्फ ज़िन्दा रहे बल्कि अपना डी एन ए और फैलाता रहे।

ज़िन्दा रहने की इस प्रक्रिया में अगर उसकी डिग्निटी, उसकी गरिमा, उसकी मर्यादा, उसकी शालीनता ऊपर उठने के उसके अवसर, बोध रौशनी पाने की उसकी संभावना, अगर कुंठित होती है या कम होती है तो होती रहे। प्रकृति ने आपको इसलिए नहीं पैदा करा है कि आप मुक्त हो जाओ। छोटी बच्ची है, प्रकृति उसको इसलिए पैदा करती ही नहीं है की वो ज्ञान पाए, कि वो अपनी संभावना को साकार करे।

मनुष्य प्रजाति में एक छोटी बच्ची है, वो इसलिए नहीं पैदा होती, प्रकृति माँ ने उसको मुक्त होने के लिए पैदा करा ही नहीं है। प्रकृति माँ ने उसको पैदा करा माँ ही बनने के लिए। तू माँ बन! माँ बनने की प्रक्रिया में अब अगर उसके पीरियड आठ–नौ साल में शुरू हो रहे है तो प्रकृति को कोई समस्या नहीं है। और अच्छी बात है ये और ज्यादा बच्चे पैदा करेगी। कोई समस्या की बात नहीं है।

यही देख कर के ऋषि अष्ट्रावक्र जैसों ने हमें समझाया था; त्वं प्रकृति परे, तुम प्रकृति से थोड़ा परे हो जाओ, तुम प्रकृति नहीं हो भाई। प्रकृति तुमसे बस यही करवाना चाहती है। आठ साल में पीरियड तुम्हारे शुरू कर दिए, दस साल के लड़के के साथ सेक्स कर लो, प्रेगनेंट भी हो जाओगी। रिस्की होगा पर ये भी हो सकता है की दस साल की उम्र में माँ भी बन जाओ। हो सकता है बिल्कुल। पहले चाइल्ड मैरेज होती थी, उसमे ये होता था, दस साल की माँ, बारह साल की माँ, ये सब हो जाता था। और प्रकृति बहुत खुश रहती थी। एक –एक लड़की के नौ– नौ, दस– दस बच्चे होते थे। तब हो रहा था ये सामाजिक तल पर और अब तो होने लग गया है शारीरिक ही तल पर, क्योंकी भीतर से हम वहीं रह गए। हम भीतर से वहीं रह गए। बात समझ रही है?

हम अब और ज्यादा शारीरिक प्राणी बन गए हैं। हम अब और ज्यादा एनिमलिस्टिक हो गए हैं, जानवरों जैसे हो गए हैं। तो प्रकृति चाहती भी वही है। बात सिर्फ पीरियड्स की नहीं है, पीरियड तो महीने में चार दिन के है। जिसमे प्यूबर्टी ज़्यादा जल्दी आ गई, उसमें सेक्सुअल ओरियंटेशन, सेक्सुअल थॉट भी तो ज्यादा जल्दी आ गया न।

वो लड़का, वो लड़की क्या पढ़ाई करेंगे। जो काम पांच साल बाद होना चाहिए था। और हम अच्छे से जानते है की नौवी दसवी में आमतौर पर जब हुआ करता था आज से बीस–चालीस साल पहले। आमतौर पर जब प्यूबर्टी आती थी तो यह बिल्कुल होता था कि लड़के लड़कियों का पढ़ाई से ध्यान थोड़ा उचटता था। होता था हमेशा, स्पोर्ट्स में भी होता है, जब जो बिल्कुल जूनियर खिलाड़ी होते हैं, जब वो टीनएज में पहुँचते हैं तो डिसट्रैकटेड होने लग जाते है, कुछ शिकायत करते हैं, लेकिन फिर किसी तरीके से उनको खेल में वापस लेकर आते है।

एकेडमिक में भी यही होता है जो डिस्ट्रक्शन होता था आपका बारह साल, चौदह साल या सोलह साल की उम्र में वो डिस्ट्रेक्शन अब होगा आठ साल की उम्र में। शुरुआत में ही जैसे किसी ने भांजी मार दी हो।

तो जो आपके लिए फिर ज्ञान की, बोध की, ऊंचा उठने की सम्भावना है, वो और कम हो जाएगी। दिमाग पर यही- यही नाचेगा सेक्स रिलेशनशिप, पीरियडस, यही चलेगा। और हम ये सब जानते हैं बहुत अच्छे से कि छठी क्लास में बॉयफ्रेंड होते हैं, आठवीं में ब्रेकअप होते है, फिर वो बहुत बड़े-बड़े मुद्दे बनते है। छठी आठवीं के बच्चों के लिए बड़े मुद्दे हैं कि उसका ब्रेकअप हो गया, उसका पैचअप हो गया, उसका ये चल रहा है, उसका वो चल रहा है। ये हमारी आने वाली पीढ़ी है। और अगर पूरी पीढ़ी ऐसे होने वाली है तो इस पृथ्वी का क्या भविष्य है और इस सभ्यता का क्या भविष्य है?

वो ओर ज्यादा बॉडिली हो जाने वाली है, और बॉडी होने का मतलब है मिटलिस्टमक, मिटलिस्टमक होने का मतलब है एनिमलिस्टिक, उसका मतलब ही बस इन्ही चीजों से रह जाएगा। ये जो स्थूल पदार्थ है, इसका कंजम्शन करने को मिल रहा है, अच्छी बात है, नहीं मिल रहा तो कोई बात नहीं। ये एक बहुत खतरनाक चीज है जो हम समझ नहीं रहे हैं। आप इन्वायरमेंट जैसा बना देते हो न, जीव भी वैसा ही हो जाता है। पेड़ में पत्ती अगर ऊँची लग गई तो जिराफ की गर्दन भी ऊँची हो जाती है। वातावरण इंसान को ही बदल देता है। वातावरण और सिर्फ मानसिक रूप से नहीं, शारीरिक रूप से।

हमने ये तो सुना हुआ है कि जैसा अन्न वैसा मन और जैसा पानी वैसी वाणी। ये तो हम सुनते है। पर हम अधिक से अधिक इतना ही बोलते हैं कि जैसा अन्न वैसा मन। वैसा तन भी है, तन भी बदल जाता है, ये डीएनए तक बदल जाता है। एक पीढ़ी में नहीं बदलेगा उतना, पर कई-कई पीढियों में ये जो आपकी जेनेटिक सामग्री है, ये तक बदल जाएगी अगर आपका इन्वायरमेंट,आपका वातावरण बदल गया है। अब क्या करोगे?

तो इसलिए माहौल कैसा है, इस पर बहुत बहुत विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। हम जो पूरा वातावरण बनाते हैं वो लोगों को सेक्सुअली चार्ज करने के लिए ही बनाते हैं। और सेक्सुअली चार्ज करने के लिए इसलिए नहीं क्योंकि हमें सेक्स करना है। बाजार में आप जाते हैं, वो जो पूरा माहौल उन्होंने बना कर रखा होता है वो हमें नहीं पता होता। पर वो सब लिमिनली, सेक्सुअली चार्जड होता है।

सलिए नहीं कि बाजार आपके साथ सेक्स करेगा। इसलिए क्यूँकि जब आपका सेक्सुअल सेंटर सक्रिय हो जाता है तो आपको सोचने की ताकत कम हो जाती है। अब आप उल्टा-पुल्टा भी बाज़ार का माल खरीद लोगे भारी दाम चुका कर के, दुनिया का हर बाज़ार, चाहे वो राजनीति का हो, चाहे वो धर्म का हो और चाहे वो कॉमर्स का हो, सब आपका सेक्सुअल सेंटर एक्टिवेट करना चाहते हैं हर कोई, हर कोई। धर्म के क्षेत्र में भी क्यों बातें होती हैं, अपसराओं की ओर हूरों की बताओ तो?

धर्म के क्षेत्र में भी जो प्रतीक होते हैं, वो इतने आकर्षक क्यों होते हैं दैहिक रूप से भी,बताओ तो? सब आपको कोई माल बेचना चाहते हैं। और माल बेचने में बड़ी सहूलियत हो जाती है, जब आपका सेक्सुअल सेंटर एक्टिवेट कर दिया जाए। तो उन्होंने तो अपना माल बेच लिया, पर हम जानते हैं कि जैसा माहौल होगा वैसा मन ही नहीं, तन भी हो जाएगा। उन्होंने तो माल बेच दिया, पर आप भीतर से बदल गए।

उस बंदे ने तो इतना ही करा था कि अपना दो कौड़ी का माल बेचने के लिए आपको सेक्सुअली एक्टिवेट करा था। लेकिन उसके परिणाम बहुत-बहुत दूर तक गए, आप इंसान ही दूसरे हो गए, आप इंसान ही दूसरे हो गए। एक और मैं हमेशा बोला करता हूँ कि महिलाओं को खेलों में आगे-आगे और आगे आना चाहिए। लगातार, दूसरी और मैं यह भी सोचा करता हूँ कि टेनिस जैसे खेल में अगर पुरुष शार्ट्स पहन कर खेल सकते हैं तो महिलाएं भी शार्ट्स पहन कर क्यों नहीं खेल सकती?

मुझे ये समझ में नहीं आया। मैं बिल्कुल चाहता हूँ सब महिलाएँ टेनिस खेलें और ये आपको भी पता है कि मैं खेलने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ। पर मुझे नहीं समझ में आया कि महिलाएँ शॉर्ट्स पहनकर क्यों नहीं खेल सकती? मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आप अगर किसी आकर्षक महिला खिलाड़ी के नाम से सर्च करेंगी न, आप नाम लिखिए और उस पर नाम लिख के लिखिए पिक्स या पिक्स नहीं, बस नाम लिख दीजिए और गूगल सर्च में इमेजेज वाला बटन दबा दीजिये। तो उसमे आपको सारी उसकी जो उत्तेजक तस्वीरें होंगी, वो मिल जायेगी।

आपको ये नहीं मिलेगा कि देखो ये सर्विस करती है तो इसका कॉन्टैक्ट प्वाइंट कैसा है ये सब नहीं मिलेगा। आपको मिलेगा कोई ऐसा प्वाइंट, जिसमे वो झुक गई है तो उसका कुछ अंग-प्रत्यंग दिख रहा है या इस तरह की तस्वीरें और ये सब चीजें बाजार को बहुत सुहाती है। अब उस खिलाड़ी को मॉडल बना करके बहुत सारा माल बेचा जा सकता है। इस लिए कोई अच्छी सी अच्छी खिलाडी हो। बाजार लगा रहता है, उसके कपड़े उतरवाने में।

एक बार उसने कपड़े उतार दिए, तो अब माल बेचा जा सकता है, और उसने कपड़े उतारे नहीं कि सब ग्राहकों को सेक्सुअल सेंटर एक्टिवेट हो गया, सेक्सुअल सेंटर एक्टिवेट हो गया माल अब खूब बिकेगा। जिसको पागल करना हो, जिसको बेवकूफ बनाना हो उसके भीतर वासना उठा दो। जिसमें वासना उठा दी उसको बेवकूफ बनाने की अब जरुरत ही नहीं है, वो बेवकूफ हो गया।

किसी के सर पर बंदूक रखके, उसे लूटने की जरूरत नहीं है उसे सेक्सुअली स्टिमुलेट कर दो,अब वो खुद लूटेगा। ये बाजार कर रहा है हमारे साथ। सेक्सुअल स्टिमुलेशन हमें दे रहा है, ताकि हम और खरीदें, और खरीदें और खरीदें। धर्म भी हमारे साथ यही कर रहा है, यहाँ तक की राजनीति भी यही कर रही है। बिल्कुल आयोग्य किस्म की अभिनेत्रियां वगैरह होंगी, उनको खड़ा कर दिया जाता है चुनावों में, वो जीत जाती है।

हम बहुत अच्छे से जानते है की कोई पात्रता नहीं है, उसको वोट क्यों मिल गए। जहाँ अभिनेत्री खड़ी नहीं की गई है वहाँ भी कम से कम चुनाव प्रचार में लगाई गई है। अभिनेता भी हो सकता है क्योंकि महिलाएँ भी वोट डालती है। तो उन्होंने देखा बिल्कुल हष्टपुष्ट, मस्त शरीर वाला अभिनेता, वो जाके वोट डाल आएँगी। दिमाग काम करना बंद कर देता है जब सेक्स बेचा जाता है। लेकिन बात इसकी नहीं थी कि सेक्स दिया गया तो आपने चीज खरीद ली, बात ये है कि वो सेक्स आपको दे-देकर, दे-देकर, आपको बदल ही दिया गया है। आप बंदे ही कुछ और हो गए, आप इंसान दूसरे हो गए।

वो लड़की जो बारह साल में पीरियड शुरू करती है उसको आठ साल में मासिक धर्म शुरू हो गया। हमने जो यह बात बोल रखी है न कि साहब फ्रीडम होनी चाहिए। हमे ये भी तो पता हो कि जिनको आप फ्रीडम दे रहे हो उनको आपने ये गाइडेंस भी दी है क्या कि फ्रीडम यूज कैसे करनी है? फ्रीडम बहुत अच्छी बात है, उच्चतम बात है, पर फ्रीडम का इस्तेमाल कैसे करना है, पहले इसकी शिक्षा भी तो दी जानी चाहिए न। हमें शिक्षा तो कुछ है नहीं कि फ्रीडम का इस्तेमाल कैसे करना है। हमें फ्रीडम मिल गई है। तो उस फ्रीडम का हमारे लिए बस यही मतलब है, द फ्रीडम टू अब्युज़ आवरसेल्व्स एंड अदर्स।

बस यही है हमारी फ्रीडम। लोग कहते हैं टीनेज प्रेग्नेंसी समस्या है, टीनेज, प्रेग्नेंसी समस्या का छोटा सा लक्षण हो सकता है शायद। असली बात ये है कि वो प्रेग्नेंट हो रही है कि नहीं हो रही है। अब उसके दिमाग में तो यही चलेगा न। उसको अभी ठीक से किसी भाषा का एक वाक्य लिखना नहीं आता।

आपने बिल्कुल सही कहा, वो क्या अपना शरीर संभालेगी क्या अपना पैड संभालेगी, क्या वो जा कर के कुछ खेल खेलेगी। यही वो समय होता है, उदाहरण के लिए, जब अच्छे खिलाड़ी, एथलीट, तैराक पैदा किए जाते हैं। आपने आठ साल की लड़की को पीरियड्स पर डाल दिया, अब वो क्या जिमनास्टिकस सीखेगी, वो क्या स्विमिंग करेगी,कैसे?

और जब उसका सेक्सुअल सेंटर इतनी जल्दी एक्टिवेट हो गया है तो फिर वो कितने दिन तक अपने आप को रोक लेगी सेक्सुअल संबंध भी बनाने से, उसके लिए तो फिर जीवन का उद्देश्य ही यही हो जाएगा कि अब जल्दी से जल्दी बॉयफ्रेंड बन जाए, बॉयफ्रेंड माने सेक्सुअल एक्टिविटी और कुछ नहीं।

बॉयफ्रेंड बन जाए और उसके बाद जल्दी से जल्दी शादी हो जाए। अब कहाँ इसमें यह है कि कला, साहित्य, विज्ञान ये सब बहुत पीछे की चीज हो गए। आप अगर गौर से देखोगे न अपने आसपास की दुनिया को, यहाँ सब कुछ सेक्सुअल है। मटेरियल माने सेक्सुअल, अज्ञान माने सेक्सुएलिटी, पशुता माने सेक्सुएलिटी। जो कुछ भी शारीरिक है, वो सेक्सुअल। क्योंकि शरीर बस एक चीज चाहता है। मैं चलता रहुँ और मेरे बाद मेरी पीढ़ी चलती रही, इसके अलावा कुछ भी नहीं है। आपने देखा है आप जैसे ही बच्चे पैदा कर लेते हो, उसके बाद आपकी मरने की उम्र आ जाती है। यह क्यों होता है?

बहुत खींचतान के होता है, तो आप पैतालीस तक बच्चे पैदा कर सकते हो, ठीक। पैतालीस के बाद आपकी मरने की उम्र आ जाती है। प्रकृति आपको धीरे-धीरे विल्ट डाउन करना शुरू कर देती है। आपको मुरझाना शुरू कर देती है। क्यों?

जो आपके शरीर का उत्कृष्टतम समय होता है, जब आप एकदम भरपूर बलवान रहते हो, उस समय प्रकृति कहती है की बच्चे पैदा करो। बच्चे पैदा करने के लिए तो तुम भरपूर बलवान रहो, लेकिन जब तुम्हारे पास कुछ ज्ञान आना शुरू हुआ है, कुछ तुमने सीखना शुरू किया है, तब प्रकृति आपके शरीर को गिराना शुरू कर देती है। पैतालीस तक बच्चे पैदा कर सकते हो तो मजबूत रहो। पैतालीस के बाद तुम बुड्ढे हो गए, मर जाओ, प्रकृति को फर्क ही नहीं पड़ता मर जाओ।

ज्यादातर कैंसर पैतालीस की उम्र के बाद होते हैं, हार्ट डिजीजेस पैतालिस के बाद होती है, एजिंग ही पैतालिस के बाद, छोड़ो बाकी क्यूँ ? प्रकृति कहती है बच्चे पैदा कर लिए अब तुम यूजलेस हो, मरो l प्रकृति कहती है, बच्चे पैदा करने तक में तुम्हे मजबूत रखूंगी पैतालिस के बाद तुम्हें बच्चे तो करने नही है तो अब तुम मरो।

क्या आपको दिखाई नहीं देता, आपको मारा ही इसलिए जाता है क्यूंकि बच्चे नहीं पैदा कर सकते, ये है प्रकृति का खेल, जो बच्चे नहीं पैदा कर सकता, उसको मार दो l पुरुषों में उदाहरण के लिए जो टेस्टेस्टोरोन होता है, जो बच्चे पैदा करने के लिए चाहिए, वही शरीर की बहुत सारी अन्य क्रियाओं के लिए भी चाहिए, जिनका वास्ता, ऐसा कोई रिश्ता नहीं। जब शरीर में टेस्टोस्टरोन कम होता है, तो आपको कई और बीमारियाँ हैं, जो शुरू हो जाती है।

प्रकृति कहती है अब तू सेक्स तो कर नहीं सकता न तो तू बीमार हो जा और मर जा, क्यों मर जा? क्योंकि अगर तू जिंदा रहेगा तो वो रिसोर्सेज खाएगा जो किसी जवान आदमी के काम आने चाहिए थे। अगर बुड्ढा जिंदा रह गया तो खाएगा, तू क्यों खाए? वो खाना किसको मिलना चाहिए? किसी जवान आदमी को मिलना चाहिए न, देयर शुड बी नो कॉम्पीटीशन फॉर रिसोर्सेज।

और अगर रिसोर्सेज के लिए कॉम्पिटिशन है, तो उस कॉम्पिटिशन में किसको जीतना चाहिए? उसको जो प्रेग्नेंट हो सकता है या प्रेग्नेंट कर सकता है, उसको जीतना चाहिए। बुड्ढे तू मर, तुझे खाने को भी नहीं मिलना चाहिए, यह प्रकृति का नियम है। आप कभी सोचिए तो की आपको मौत क्यों आती है? आपको मौत इसलिए आती है ताकि जो सारे रिसोर्सेज है पृथ्वी के, वो किसी जवान आदमी को मिल सके तो इसलिए बुड्ढों को मार दिया जाता है। और जवानी माने यही सेक्स।

जब तक हम प्रकृति के इस खेल को समझेंगे नहीं, हमें लगेगा ये खेल ही बड़ी मजेदार बात है, हम इसी खेल में उलझ के तबाह होते रहेंगे। ये खेल जानवरों के लिए हैं, उन्हें खेलने दो ये खेल, ये खेल इंसानों के लिए नहीं है। इंसान इसलिए नहीं पैदा हुआ है कि यही भोगने - भोगने के खेल में लगा रहे। बच्चे पैदा कर लो, बच्चे, बच्चे, बच्चे, बच्चे, ये इस खेल के लिए नहीं पैदा हुए हो तुम। जानवरों को करने दो ये काम l मुझे बच्चे पैदा करने से सिद्धांततः कोई तकलीफ नहीं है, मुझे तकलीफ है, जब बच्चे पैदा करने को जीवन का केंद्र बना लिया जाता है।

वो चीज आकस्मिक हो सकती है, वो चीज पारिधिक हो सकती है, वो चीज जीवन का एक छोटा हिस्सा हो सकती है, वो जीवन का केंद्र नहीं हो सकती। प्रकृति चाहती है कि वो चीज जीवन का केंद्र बने और बाजार भी यही कर रहा है कि वो चीज जीवन का केंद्र बन जाए।

खरगोशों को देखते नहीं हो, आपने कहा आठ साल की बच्चियों के पीरियड्स शुरू हो जायेंगे। खरगोश पैदा होते है तीन, चार महीने के होते, बच्चा पैदा शुरू कर देते हैं। जिस तरह सेक्सुअल एक्टिविटी चल रही है, हमारे यहाँ भी यही होगा की तीन, चार साल की लड़कियां बच्चे पैदा कर रही होंगी । खरगोश पैदा होता नहीं है, कि पैदा होने के चौथे महीने वो बच्चे पैदा करना शुरू कर देता है, इंसान भी यही कर रहे होंगे। जब तक हमारी शिक्षा में, परवरिश में, माहौल में ये बात नहीं आएगी कि हम कौन हैं,? मानव जन्म क्या है? इसका उद्देश्य क्या है? तब तक देख रही है ये होता ही रहेगा। और इसकी कुल निष्पत्ति, कुल परिणाम यह होना है कि हम और ज्यादा और ज्यादा जानवर होते जाएंगे।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी जब पेरेंट्स से बात करो तो वो ये बात मानने को तैयार भी नहीं होते हैं कि उनकी वजह से ये दिक्कतें हो रही हैं या उन्हें लगता है कि हम मेकअप प्रोडक्ट यूज कर रहे है तो उसकी वजह से इन्हें कैसे प्यूबर्टी आएगी? बल्कि बच्चियों को वो ऑनलाइन मेकअप किट भी आता है, किड्स मेकअप किट वो भी खरीद कर देते हैं।

आचार्य प्रशांत: देखिए मैं इस पर दो घंटे तक बोल सकता हूँ कि किस किस तरीके से एक एक विज्ञापन अपने भीतर सेक्सुअल सिग्नल्स रखता है एक एक विज्ञापन। आपकी जो कार होती है न, उस कार के भी जो कर्वेचर होते है न, वो मॉडल किए जाते हैं फीमेल बॉडी के कर्व्स के आधार पर, आपको पता भी नही लगेगा। आपको पता नहीं लगेगा कि आपको किसी कार का डिजाइन इतना क्यों पसंद आ रहा है? आपको नहीं पता लगेगा पर जिसने उनको डिजाइन करा बड़े शातिर लोग हैं, उन्हें साइकोलॉजी की बड़ी गहरी समझ है।

आपको पता नहीं लगेगा लेकिन उस कार को देख के आपकी सिक्सुएलिटी अराउज हो रही है इसलिए आप वो कार खरीद रहे हो, इसलिए एक्साइट हो रहे हो। एक एक माल इसी आधार पर बेचा जाता है कि आपको सेक्सुअली अच्छा लगता है। जो इस बात को गंभीरता से विचार कर पाएंगे वो समझ जायेंगे, बाकियों को ये बात बहुत अजीब लगेगी क्योंकि कुछ भी बेचने का सबसे अच्छा तरीका में दोहरा के बोल रहा हूँ ये है कि वो बात आपके सेक्सुएलिटी को अपील कर जाए, आप ले लोगे उसको।

बाजार और माल बड़ी- बड़ी खतरनाक चीज होती है। जब किसी आदमी को अपने जीवन का उद्देश्य यही लगने लग जाता है न कि मुझे पैसा कमाना है बस, तो वो अपना माल बेचने के लिए कुछ भी कर सकता है। हम किस हद तक सेक्स से भरे हुए हैं? मैं समझता हूँ हर आदमी को फ्रायड को पढना चाहिए।

बाद में उनकी बहुत सारी बातें थीं जो संशोधित हो गई, कुछ बातें लगभग गलत भी सिद्ध हो गई उन्हीं के शिष्यों द्वारा ही। लेकिन फिर भी उन्होंने जो जो ब्रेक थ्रू फेमवर्क दिया उसका महत्व हमेशा रहेगा। उन्होंने कहा तुम्हारे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सेक्स भरा हुआ है, जमीनी भाषा में बता रहा हूँ। फ्रायड की कुल बात यह थी की तुम्हारे खोपड़े में सिर्फ और सिर्फ सेक्स भरा हुआ है। तुम अच्छा आदमी बनने का स्वांग करते हो, इसलिए नहीं मानना चाहते कि तुम्हारे दिमाग में सेक्स भरा है वरना सिर्फ सेक्स है।

उन्होंने कहा कि तुम जितने सपने लेते हो न, ये सब के सब अपने भीतर सेक्सुअल सिग्नल्स रखते हैं। और कुछ बाद में उन्होंने इस बात को यंग वगैरह ने थोडा करा, अब उन्होंने कहा, उदाहरण के लिए कि नहीं, नहीं, नहीं, सिर्फ सेक्स नहीं होता कुछ कल्चरल चीजें भी होती हैं, जिनके और अर्थ भी होते हैं। लेकिन फ्रायड की बात हमेशा अपने आप में बहुत अनूठी रहेगी। इससे पहले इंसान ने कभी माना नहीं था कि भीतर एक जानवर बैठा हुआ है जो प्रकृति द्वारा संचालित होकर सिर्फ और सिर्फ सेक्स चाहता है और ये नहीं कि जवान है तभी, बूढा हो जाए तो भी।

वो धर्म के नाम पे भी सेकस ही चाहता है। क्यूँकी है तो हम वही जंगल के जीव न, जंगल का जीव और क्या चाहता है? जिंदगी में खाना, सुरक्षा और सेक्स। इसके अलावा कुछ चाहता है। वो खाना माने चलता रहूँ, सुरक्षा माने बचा रहूँ, सेक्स माने बढ़ता रहूँ।

तो हम भी 90 प्रतिशत जंगल के ही जानवर रहे, हमें भी कुल यही चाहिए बचा रहूँ, चलता रहूँ, बढ़ता रहूँ, किससे? शरीर से वही हम कर रहे हैं। और ज्यादा और ज्यादा जंगली होते जा रहे हैं, जवाब तो यही है आत्मज्ञान, जवाब तो यही है लाइफ एजुकेशन। बाजार को समझने की कोशिश करिए कि किस तरीके से ऑपरेट करता है?

एक छोटी सी बात बोल रहा हूँ, बहुत बेहूदी बात है असल में ये, पर समझिएगा। महिलाओं के साथ गुलाबी रंग जोड़ दिया गया है, यह बाजार ने करा है काम, ये बाजार ने करा है काम। पहले नहीं था, ये पिछले डेढ़ दो साल में हुआ है। और ये बड़ी मजेदार बात है कि क्लाइमेट चेंज भी 1850 के बाद की बात है l जो हम कहते हैं प्री इंडस्ट्री ppm कार्बनडाई ऑक्साइड का, वो भी 1850 से नापते हैं कि तब 280 था और अभी भी जो हम बात कर रहे हैं उसमे मैंने कहा ये 1850 की बात है की हमने महिलाओं के साथ वो पिंक रंग जोड़ दिया है।

बहुत अशालीन बात है, लेकिन वो पिंक रंग जानती है कहाँ से आ रहा है? वो पिंक रंग आ रहा है। महिलाओं के अंगों के रंग से, यौन अंगों के रंग से। वो गाल का रंग नहीं है, वो यौनांग का रंग है। तो महिलाओं को गुलाबी गुलाबी कर करके पुरुषों की सेक्सुएलिटी को चुप चाप सक्रिय कर दिया जाता है। क्योंकि पुरुष जानता है की गुलाबी क्या होता है?

अब भारत की महिला का गाल तो गुलाबी होता नहीं, गेहुआ-सावला रंग भी यहाँ बहुत होता है, गोरा रंग तो किसी किसी का होता है। तो पिंक क्या है? ये हमने कभी विचार भी नहीं किया और लड़कियों का नाम भी रख देते है, पिंकी। और जो यौन साहित्य होता है उसमे पिंकी का मतलब होता है, योनी।

प्रश्नकर्ता: जो बेबी फोटो शूट होते हैं, उसमे भी पिंक कलर पूरा। पैदा होने के साथ ही फोटो शूट था।

आचार्य प्रशांत: हम समझते भी नहीं है कि, और फिर समझ में आता है कि दो साल की लड़कियों का बलात्कार क्यों हो रहा है? तुम उसे पूरा पिंक पिंक दिखाओगे तो पुरुष की वासना को जाग्रत होगी ही ना। और पुरुष को पता भी नहीं है की वासना उसकी क्यों जाग्रत हो रही है? पर बाजार में काम कर डाला है। मैं नहीं कह रहा यह एक मात्र कारण है पर दस कारणों में एक कारण ये भी है।

आज से बीस, चालीस साल पहले भी हम जब छोटे थे तो बच्चियों को पिंक पिंक नहीं बना देते थे कि ये बिल्कुल एंजेल हैं, पिंक वाली। अभी मैंने कहीं पर देखा। वो एक बड़ा सा था कि जब हम छोटे होते थे तब, अब ये दिखाता हूँ।

मुझे एक फोटो दिखानी है। बस और कुछ नहीं। आज के बच्चे पैदा होते हैं तो उनकी फोटोग्राफी होती है। तो ऐसी होती है सो। वही में कैरी है अभी, इसके आगे जो दिखाऊंगा उसमें आपको आयेगा। कुछ मजा कैसे करूँ। स्पॉटलाइट जी स्पॉटलाइट में हैं।

इसमें आपको कौन सा रंग दिखाई दे रहा है, दिख रहा है।

(फोटो दिखाते हुए)

प्रश्नकर्ता: पिंक

आचार्य प्रशांत: ये बच्चा है, इसको क्या कर दिया गया है। इस बच्चे को भी सेक्सुएलाइज कर दिया गया है। पर ये बात बहुत लोग मानेंगे नहीं, क्योंकि सुनने में गंदी बात लगती है। इस बच्चे को भी सेक्सुअलाइज किया गया है। और फिर इसी में था कि जब हम छोटे थे तब हमारी फोटोग्राफी कैसी होती थी। ऐसी ऐसी होती थी। ये जैसी भी है, ठीक है।

थोड़ी हास्यप्रद है लेकिन, कम से कम हमें सेक्सुअलाइज, इसमें कम से कम हमें सेक्सुअलाइज तो नहीं किया गया है न। बड़ा भारी, ऐसा लग जाता था काले रंग का कुछ, कुछ गले में बांध दिया गया है, काजल वाजल लगा दिया गया है। लेकिन ये तो नहीं किया गया न की सेक्सुअल ऑब्जेक्ट बन जाए। अब तो बेबी को भी सेक्सुअल ऑब्जेक्ट बना देते हो।

प्रश्नकर्ता: वही से स्टार्ट हो जाता है।

आचार्य प्रशांत: सभी बेबी को सेक्सुअल ऑब्जेक्ट बना देते हो। और अपने सेक्सुअल ऑब्जेक्ट को बेबी बोलते हो। सोचा आपने? आपका जो सेक्सुअल ऑब्जेक्ट होता है, आप उसे बेबी नहीं, बोलते ही तो है। अब एक मजेदार बात बताता हूँ। कुल दो बार हुआ है जब इधर इस दीवाल के सामने रिकॉर्डिंग हुई है। अभी हम बाहर हैं, बोध सथल में नहीं हैं, तो यहाँ पर ये दीवाल, बहुत लोगों के कम्युनिटी पर आये की “आचार्य जी बहुत बढ़िया लग रहे थे आज आप।“

वो इस दीवाल का असर है। ये रंग देख रहे हो न क्या है? मैं तो वही हूँ पुराना हिप्पो। ये दीवाल नयी है, पिंक है। बिलकुल गुलबिया गये आचार्य जी। एक नाम, दो बहनें थी, एक पिंकी, एक बबली। बबली मालूम हैं क्या होता है? शराब को बोलते हैं, बबली। क्योंकि उसमें बबल्स होते हैं। ये हमारे माँ बाप हैं, जो बच्चियों के नाम रख रहे हैं, पिंकी और बबली। बबली माने शराब।

बहुत सबको ताज्जुब होता है, “आज इतने बलात्कार क्यों बढ़ रहे है? बलात्कार क्यों बढ़ रहे हैं?” तुम्हारा पूरा कल्चर ही सेक्सुअल है। इसलिए बढ़ रहे हैं। तुम्हारे कल्चर का एक-एक एलिमेंट सेक्सुअल है। क्योंकी तुम्हारे कल्चर का सेंटर ही सेक्सुअल है। क्यूँ? क्यूंकी लाइफ एजुकेशन नहीं है। क्यूँकी विजडम लिटरेचर से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है। क्यूँकी ज्ञान को तुमने मजाक की बात बना लिया है, आत्मज्ञान, सेल्फ नॉलेज को।

अगर कोई स्प्रिचुअल नहीं है, तो ये नहीं बोलोगे की “स्प्रिचुअल नहीं है, पर नॉर्मल है।” जो स्प्रिचुअल नहीं है उसके पास और कोई विकल्प नहीं होगा सेक्सुअल होने के अलावा। या तो आप आध्यात्मिक होगे, नहीं तो प्राकृतिक होगे। यही दो चीजें होती हैं। या तो आध्यात्मिक होगे, नहीं तो प्राकृतिक होगे। आध्यात्मिक माने, वाइज और प्राकृतिक माने सेक्सुअल। अगर आप वाइस नहीं तो सेक्सुअल होगे। बीच में कोई और रास्ता नहीं है। बस यही दो विकल्प है। कोई भी व्यक्ति या तो आध्यात्मिक होगा, नहीं तो प्राकृतिक होगा।

आध्यात्मिक है तो वाइज है, प्राकृतिक है तो सेक्सुअल है। वो सेक्सुआलिटी 90 की उम्र तक चलती है। आखिरी सांस तक चलती है। दादी हाय हाय कर रही है, “अरे पोते का मुंह दिखा दे। तभी मरूँगी।“ तुम्हें दिख नहीं रहा है, यह क्या है? यह भी सेक्सुआलिटी ही है। दादी के भीतर ऐसी प्रकृति चिल्ला रही है, “सेक्स, सेक्स, सेक्स।” दादी खुद नहीं कर सकती तो लगी हुई है कि कोई और कर दे। दादी खुद नहीं कर सकती तो अपने बेटे से करवाने में लगी हुई है। विकेरियस सेक्स, सेकेंड हैंडेड।

बाप को कितनी ज्यादा परवाह रहती है कि बेटी कहाँ जा कर के सेक्स कर रही है? यह और क्या है? बेटी की सेक्सुएलिटी को कंट्रोल करने की कोशिश और क्या है? क्यूंकि समाज ने, मान्यता ने, मोरालिटी ने नियम बना दिया है की बाप-बेटी के साथ डायरेक्ट सेक्स नहीं कर सकता। बाप कहते हैं, “मैं डायरेक्ट तेरे साथ नहीं कर सकता, लेकिन तेरे साथ कौन करेगा, ये मैं तय करूंगा।”

ये बात बहुत बहुत गन्दी लग रही होगी। सुनने में छि- छि करेंगे, कहेंगे “दुराचार्य है।” पर मेरा काम आपको खुश करना नहीं है, मेरा काम आपसे सच बोलना है। आपको बुरा लगता है, तो लगे। मैं मनोरंजन करने थोड़ी आया हूँ कि आपको खुश करूँ? और न मुझे आपसे कुछ चाहिए के मैं आपको खुश करूँ। इज्जत-वगैरह अपने पास रखो, मुझे तुम्हारी इज्जत नहीं चाहिए। तुम्हे मुझे गाली देनी है तो दो, पर जो बात है वो बता रहा हूँ।

तुमने देखा जिन रिश्तों में तुम खुद सेक्स नहीं कर सकते, उनके सेक्सुअल बिहेवियर को कंट्रोल करने के लिए तुम कितने आतुर रहते हो। और तो और छोड़ दो हमने तो अपने भगवानों का भी सेक्सुअल बिहेवियर कंट्रोल कर लिया है। सारी कथाएँ और क्या है?

बहुत सारे ऋग वैदिक देवता हैं जो ऋग्वेद में बिना अपने कंसर्ट के है। कंसर्ट माने उनकी, उनकी साथी, उनकी संगिनी, उनकी पत्नी या प्रेमिका। तो उनकी कोई संगिनी नहीं है, जब आप जाओगे ऋग्वेद को देखोगे तो आगे। और आगे आओ, जब पुराणों की ओर तो बाकायदा उनकी कोई पत्नी खड़ी हो जाती है। हमने कहा, “ये अकेला क्यों है? इसके साथ में किसी को बैठा देना होगा, ये अकेला क्यों है?” तो फिर संतों को गाना पड़ा की, “माया महाठगनी हम जानी, केशव के घर कमला बन बैठी, और शिव के भवन भवानी।”

क्योंकि शिव तो ऋग्वेद से भी पहले, आप हड़प्पा मोहन जोदाड़ो सभ्यता में जाएंगे तो पशुपति तो वहाँ भी मौजूद है, पर उनकी कोई संगिनी नहीं है, कोई संगिनी नहीं है, न वहाँ, न ऋग्वेदिक काल में। पर आगे आइये आप तो हमने तो हर जगह संगिनी खड़ी कर दी है। हम अपने इष्टों को, आराध्यों को, देवताओं को, भगवानों को भी सेक्सुअलाइज कर देते हैं। कि “नहीं, इसका भी तो कोई सेक्सुअल पार्टनर होना चाहिए न।” संतो ने फिर इसी लिए मुस्करा के कहा की, “माया महा ठगिनी हम जानी, केशव के घर कमला बन बैठी, और शिव के भवन भवानी।”

मुझे बड़ी समस्या आती है। मैं दुनिया भर तक गीता को ले जाना चाहता हूँ। पर जो लोग गीता से बचना चाहते हैं उनके पास बहुत तर्क होते हैं। जिसमें से एक बड़ा तर्क ये होता है कि “ये तो कृष्ण, हम इनकी बात क्यों सुने? कौन सा ज्ञान है कृष्ण की बात में?” ऐसा भयानक कुतर्क। कहते हैं “ये तो खुद प्ले बोये थे। ये तो खुद कैसेनोवा थे। देखो न ये कितनी सारी गोपियों से रास रचाते रहते थे।”

हम कृष्ण की बात, मैं उनसे कहता हूँ, “गीता पढ़ो मेरे साथ आओ, गीता पढ़ो।” वो नहीं पढ़ना चाहते। क्यूंकी कृष्ण का पूरा चरित्र हमने सेक्सुअलाइज करके रख दिया है। और तथ्य यह है कि भगवत गीता ईसा से 600 -800 साल, शायद हजार साल पहले की है, ईसा से कम से कम 600 - 800 साल पहले की है भग्वद्गीता।

भागवत पुराण ईसा से 800, हजार साल बाद का है। गीता में और भागवत पुराण में हजार, पंद्रह सौ साल का अंतर है। गीता के हजार डेढ़ हजार साल बाद ये सब कथाएँ लिखी गई है। पर इन कथाओं के कारण, लोगो को गीता पढ़ाने में उसे बड़ी दिक्कत आ रही है। लोग खूब कुतर्क करते कहते, “हमें गीता पढ़ने ही नहीं है।”

खासकर जो लोग अध्यात्म से यूँ ही कन्नी काटते हैं, उनको एक बहाना मिल जाता है गीता न पढने का। वो कहते हैं, “ये कृष्ण तो महिलाओं के कपड़े चुराते थे। हर समय तो ये गोपियों के साथ” किसी ने मुझसे पूछा, मैंने उसको समुचित उत्तर दे दिया। पर तुम देखो सवाल कितना चालाकी भरा है। उन्होंने कहा कि “ये कृष्ण और गोपियों का जो इतना आता है। तो कृष्ण को इतना प्रेम था गोपियों से तो जो गीता ज्ञान उन्होंने अर्जुन को दिया, पहले गोपियो क्यों नहीं दे दिया?

गोपियों के साथ रास करने की क्या जरुरत थी? गीता का ज्ञान पढाते उनको, सामने बैठाते। गीता क्यों नहीं पढ़ाई? तो गोपियों के साथ तो उन्होंने वो व्यवहार किया जो पुरुष स्त्री के साथ करता है। और गीता, अर्जुन को पढाई।”

ये कुतर्क, पर ये जो कुतर्क है, ये गीता के रास्ते में बाधा बन कर खड़ा हो जाता है कि “गोपियों को गीता क्यों नहीं पढ़ाई कृष्ण ने?” तो गोपियों को बोला बल्कि बहुत कड़े शब्दों में कह रहे हैं, “गोपियों को देखकर कृष्ण गीता भूल गये थे क्या? तब उन्हें बस ये याद आया कि उनके साथ रास कर लो। तो हम ऐसे कृष्ण की क्यों सुने?” और भी तर्क देते हैं।

उदाहरण के लिए तर्क एक यह होता है कि जैसे कुछ ने कहा की बुद्ध ने कहा था कि “मित्र पर भी वार मत करना…..अहह… शत्रु पर भी वार मत करना। बुद्ध ने कहा था कि “शत्रु पर भी वार मत करना।” और कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि “मित्र पर भी वार करो।” “तो हम बुद्ध की सुनेंगे, हम कृष्ण की क्यों सुनें?”

मैं उनको कहता हूँ कि, “मैं जितना कृष्ण का सम्मान करता हूँ, उतना बुद्ध का भी करता हूँ। हम गीता पढ़ रहे हैं तो हम साथ में बौद्ध दर्शन भी पढ रहे हैं। आओ साथ आओ।” पर उनको एक बहाना मिल जाता है, बात न सुनने का। हमने अपने देवताओं को भी सेक्सुलाइज़ कर दिया। लाइफ एजुकेशन, एजुकेशन ऑफ द सेल्फ, सेल्फ नॉलेज कोई और रास्ता नहीं है। ये जब तक हमारी संस्कृति में नहीं आएगा, हमारी शिक्षा व्यवस्था में नहीं आएगा, भारी समस्या बनी रहेगी। और बड़े हमें घोर गंभीर परिणाम झेलने पड़ेंगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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