बस बेहोश बहाव || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)

Acharya Prashant

4 min
83 reads
बस बेहोश बहाव || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)

वक्ता: तुम नाव के पास जाते हो तो पाते हो कि नाव का जो नाविक है, वो सो रहा है। तो नाव आब पूरी तरह से लहरों के हवाले है। जो भी बड़ी लहर आएगी उस पर बाहर से प्रभाव डालेगी और अपने साथ ले जाएगी, फिर दूसरी लहर आएगी उसे कहीं और ले जाएगी। तुम्हारी आदत यह डाल दी गई है कि तुम बाहरी प्रभावों से चलते हो। अगर बाहर से प्रेरणा मिली तो तुम कुछ कर दोगे और जो भी प्रेरणा मिली तुम वही कर दोगे। चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो तुम कर डालोगे क्योंकि आन्तरिक तो कुछ है नहीं। यहाँ खली बैठा है। बाहर से जो भी लहर आएगी तुम्हें ले चलेगी अपने साथ।जाग जाओ! फिर तुम्हे बाहरी प्रभावों कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी। फिर तुम खुद जानोगे कि तुम्हें अपनी नाव किस दिशा में ले जानी है। एक बार नाविक उठ गया तो अब तो लहरें नहीं कर सकती ना कोई गड़बड़। उसके पास पाल भी है, पतवार भी, अब अपने हिसाब से चलाएगा। सोते रहोगे तो कहोगे कि लहरें प्रेरित नहीं कर रही हैं। या यह कहोगे कि कोई लहर आई उसने बड़ा प्रेरित किया, नाव कुछ दूर तक गई अब यह लहर नहीं प्रेरित कर रही है तो मैं क्या करूँ? तुम बैठे रहो निर्भर बनकर कि कोई प्रेरित करेगा तो कुछ करेंगे, अगर कोई नहीं करेगा तो कुछ नहीं करेंगे।

तो क्या करना चाहिए? समझ लाओ और देखो कि क्या करना चाहिए। यह तुम्हारे साथ बड़ी अच्छी स्थिति है कि तुम जान पा रहे हो कि तुम्हारे पास दुविधा है। ‘शायद जो कर रहा हूँ वो उचित नहीं है,’ इतना तो जान पा रहे हो ना? तुम अगर पूरी तरह से जान जाओ कि जो कर रहा हूँ वो पूरी तरह से ठीक नहीं है तो तुम उसे करोगे कहाँ? तुम इस बात को ध्यान से देखो ना तुम नहीं जान रहे हो, और नहीं जानने का कारण यह नहीं है कि तुम्हें जानकारी नहीं है। नहीं जानने का कारण है कि तुम्हारे पास ध्यान नहीं है। तुम ध्यान से देख नहीं रहे हो इसलिए नहीं जान रहे हो। तुम विचारों में, कल्पनाओं में घिरे रहे हो, तुम छवियों में घिरे हुए हो इसलिए नहीं जान पा रहे हो। इन छवियों से से पीछा छुडाओ

HIDP तुम्हें क्या बोलता रहा? पहचानों से पीछा छुड़ाओ, छवियों से पीछा छुड़ाओ, भविष्य की प्लानिंग से दूर हटो ताकि वास्तविकता के पास आ सको। दुविधा का आजतक संसार में और कोई कारण हुआ भी नहीं है। तुम यह मत सोचो कि तुम्हारा स्वाद कुछ अद्भुत है। तुम्हारे साथ कुछ नई घटना घट रही है। आज तक जो भी आदमी अपने आप को दुविधा में महसूस करता है, जिसने भी अपने आप को आज तक परेशानियों से घिरा हुआ पाया है उसका कारण बस यही रहा है कि मन ने अपने आसपास जाल बुन लिया है और वो उस से बाहर नहीं जा पा रहा है, कुछ और कारण नहीं है। चाहे आज की बात हो, या ५ हजार साल पहले की बात हो, या ५ हजार साल बाद की।

जो भी आदमी अपने आप को दुविधा में महसूस करेगा उसका कारण बस एक ही होगा कि वो कल्पनाओं में घिरा हुआ है, वो उम्मीदों में है, वो आशाओं में है, वो छवियो में है; वो वास्तविकता में नहीं है। बस दुविधा का यही एक कारण होता है और कोई है नहीं। कोई बहुत विलक्षण घटना तुम्हारे साथ नहीं हुई है।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories