प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर। बहुत लोग मुझसे ऐसे पूछते रहते हैं — रिश्तेदार हो गए, या फ्रेंड्स हो गए, या जो आपको नहीं चाहते, वैसे लोग हो गए — पूछा करते हैं कि, "आप इतने मॉडर्न कपड़े क्यों पहनते हैं? आपके आचार्य जी को ऐसी सब ज़रूरत क्यों है?" ऐसा मुझसे पूछा जाता है।
हालाँकि मैं अपने ओर से ट्राई करती हूँ समझाने का उनको कि "लोगों को तो प्रेज़ेंटेशन ही चाहिए न, तो वही वो कर रहे हैं। आप पुराने वीडियोज़ देखिए, उसमें आचार्य जी का ऐसा नहीं है। वो बहुत सिंपल कपड़े पहनते हैं।" पर उस टाइम का रीच और अभी का रीच — बहुत डिफरेंस आ गया है लोगों में पर वो नहीं समझते हैं।
तो आप मुझे समझाएँ कि मैं क्या बोल सकती हूँ?
आचार्य प्रशांत: सड़क पर — दिल्ली की, लखनऊ की, मुम्बई की सड़क पर एक्सप्रेसवे पर एक कार जा रही हो, ये ज़्यादा अचरज की बात है या गधा-गाड़ी जा रही हो, यह ज़्यादा अचरज की बात है?
मैंने आज के समय के कपड़े पहने हैं, तो ये अचरज की बात है? या कोई आज से हज़ार साल पहले के कपड़े पहन रहा है, वह अचरज की बात है? सवाल किससे पूछा जाना चाहिए? तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो? मैं तो वही कपड़े पहनता हूँ जो तुम पहनते हो। ये अगर मॉडर्न कपड़े हैं तो आपके भी मॉडर्न हैं। यहाँ जितने लोग हैं, जैसे कपड़े सब पहनते हैं। शर्ट किस-किस ने नहीं पहन रखी, यार? कौन-कौन है जो बिना शर्ट के है? ऐसा मैंने क्या पहन रखा है जो विशेष है?
काल की धारा है, व्यक्तित्व की सबसे बाहरी चीज़ है कपड़ा, कोई अंदरूनी बात नहीं है। काल-सापेक्ष परिधान है, आप जिस समय पर हो, उस समय के कपड़े पहन रहे हो। पर आपको एक बार भी ख़्याल नहीं आया कि जो आज के समय में — आज से दो हज़ार साल पहले के कपड़े पहन रहे हैं — उनसे एक बार पूछें कि, "तुम्हें क्या काट गया है कि तुम ये धारण करके घूम रहे हो?" अच्छा, और कपड़े तो तुमने पहन लिए हैं पाँचवीं शताब्दी के, पर गाड़ी तुम इक्कीसवीं शताब्दी की ही चलाते हो।
बाबा जी कपड़े पहनते हैं पाँचवीं शताब्दी के, और गाड़ी चलाते हैं इक्कीसवीं शताब्दी की। टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करते हैं — बाबा जी भी मीडिया, टीवी, सोशल मीडिया का पूरा इस्तेमाल करते हैं, जम कर के। इक्कीसवीं शताब्दी की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इक्कीसवीं शताब्दी की तुम्हारी गाड़ी है, माइक भी इक्कीसवीं शताब्दी का ही होगा। घड़ी पहनते हैं — महँगी-महँगी घड़ियाँ — वो भी आज की ही हैं। तो ये पूरा काहे को डाल रखा है अलादीन के ज़माने का?
बाबा जी विदेश भ्रमण भी करते हैं, तो फ्लाइट पर बैठकर जाते हैं। हमें तो नहीं पता कि पौराणिक विमान पर बैठकर जाते हैं, कि ऐसे-से करके मंत्र मारा, तो ऊपर से एक हंसों द्वारा चालित विमान उतरा — दो हंस इधर लगे थे, दो हंस उधर लगे थे। आगे पायलट कौआ था — ऐसा तो हमने नहीं देखा। बिल्कुल आधुनिक टेक्नोलॉजी के जेट पर बैठकर भारत यात्रा करते हैं, विदेश भ्रमण करते हैं, पर कपड़े पाँचवीं शताब्दी के ही पहनते हैं। ये वहाँ जाकर पूछो न, मुझसे क्या पूछ रहे हो?
बीमार पड़ जाते हैं तो किस अस्पताल में जाते हैं? बिल्कुल जो सबसे आधुनिक अस्पताल होगा, वहाँ जाते हैं। भारत क्या, विदेश के सबसे आधुनिक अस्पताल जाएँगे। मरने की हालत आएगी तो कौन-सी मेडिकल टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर रहे हैं? 21वीं शताब्दी की पर कपड़े पहन रहे हैं पाँचवीं शताब्दी के। उनसे जाकर पूछो ना कि फिर मेडिकल टेक्नोलॉजी भी पाँचवीं शताब्दी की क्यों नहीं इस्तेमाल करते?
घोड़ा-चालित रथ पर बैठो, पहली बात तो ये गाड़ी छोड़ो तुम। पौराणिक विमान पर बैठकर के तुम देवलोक का भ्रमण करो। ये जम्बो जेट्स, ये मॉडर्न कैरियर्स छोड़ो तुम, मोबाइल छोड़ो तुम, टीवी छोड़ो तुम, चश्मा भी छोड़ो तुम ये तो मॉडर्न लेंसेज़ हैं, ये क्यों लगा रहे हो? चश्मा क्यों लगा रखा है? जब कपड़ा तुम पाँचवीं शताब्दी का पहन रहे हो, तो ये भी जो है, पाँचवीं शताब्दी का पहनो। "दृष्टिवर्धन यंत्र" — चश्मा — काहे को बोले? अपनी संस्कृति के हिसाब से बात करेंगे।
सवाल आप मुझसे करने आ गए। मेरी ये मासूम-सी शर्ट, मैंने क्या बिगाड़ा किसी का? बताओ यार। मैं तो उस दिन से डर रहा हूँ जब बिना शर्ट के बैठाओगे यहाँ पर। जिस तरीके के आपके सवाल हो रहे हैं, जिस दिशा जा रहे हैं, मैं अभी त्रिकालदर्शी हूँ भाई। बाबा जी की मोनोपोली थोड़ी है, भविष्य देख पा रहा हूँ। इस प्रश्न के पीछे छुपा हुआ उद्देश्य यही है — इनको भी अब बनाओ दिगंबर। देखा, मौज आ गई सबको।
बाबा जी ब्रश क्यों करते हैं? मैं तो ये जानना चाहता हूँ। ये सब 21वीं शताब्दी के उत्पाद हैं। क्यों ब्रश करते हो? प्रिंटेड किताब क्यों पढ़ते हो? मुद्रित पाण्डुलिपियाँ पढ़ो। ताम्र पत्र पढ़ो। ये कहाँ से आ गया? ये तो मॉडर्न प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी है, ये कहाँ से आ गई?
सब कुछ तुम इसी ज़माने का कर रहे हो, लेकिन कपड़ा तुम पहनते हो आज से हज़ार–दो हज़ार साल पहले का! ये सिर्फ़ पाखंड नहीं है, ये खुली धोखाधड़ी है।
लेकिन ये भक्तों को नहीं समझ में आती बात। हर चीज़ तुम्हारी आज की शताब्दी की, और सिर्फ़ आज के समय की नहीं, मोस्ट मॉडर्न है। जितनी मॉडर्न टेक्नोलॉजी आम भक्तजन को उपलब्ध नहीं होती, उससे ज़्यादा मॉडर्न टेक्नोलॉजी का उपयोग बाबा जी कर रहे होते हैं। लेकिन भक्त जनों के दिमाग में कभी ये सवाल नहीं आता कि बाबा जी हर चीज़ में मॉडर्न चीज़ों का ही इस्तेमाल कर रहे हों, तो ये कपड़ा काहे को इतना पुराना पहन के बैठ गए? और वेशभूषा काहे कर ली तुमने वही अलीबाबा माने 40 चोर वाली? वो इसलिए कर ली है क्योंकि हमारे भीतर पहले से ही एक छवि बैठी हुई है, और उस छवि में अर्थ और डर दोनों जुड़े हुए हैं।
ध्यान से देखना, वो कपड़े बिल्कुल वही धारण किए जाते हैं जो आपको पहले से ही पता है कि धार्मिकता के सूचक हैं। आपने वही कपड़े कहानियों में पढ़े हैं, वही कपड़े आपने टीवी सीरियल्स में देखे हैं, और आपके मन में बात बैठ गई है कि जो ऐसे कपड़े पहन रहा है वो धार्मिक आदमी है। तो अपने आप को धार्मिक आदमी दिखलाने के लिए इससे अच्छा कोई तरीका है नहीं। सबसे सस्ता तरीका — बिल्कुल, बहुत सारा ऐसा मेकअप कर लो और कपड़े पहन लो जिससे चीख-चीख कर घोषणा हो: "मैं धार्मिक आदमी हूँ।"
मेरे पास तो कोई मेकअप नहीं है, मेरे पास तो मेरी बात है। जहाँ मैं जाता हूँ, लोग मुझे जानते नहीं, मैं खड़ा हो जाता हूँ। मैं उन्हीं की तरह एक साधारण आदमी हूँ, मुझे कोई नहीं पहचान सकता। बल्कि, आपके पास जितने प्रतीक हैं धार्मिकता के, मेरे पास तो वो साधारण प्रतीक भी नहीं हैं। ये रही दस उँगलियाँ — एक अंगूठी नहीं है। और ये रहा मेरा गला — खाली है। न यहाँ (नाक) कुछ है, न यहाँ (कान) कुछ है, न यहाँ (माथा) कुछ है, कुछ नहीं है। माँ ने — प्रकृति माँ ने — जैसा पैदा किया है, वैसा ही आपके सामने खड़ा हूँ। और शर्ट तो आप वैसे भी उतरवाना चाहते हैं।
पर बाबा जितना मेरे पास कुछ नहीं है — अंतर समझो — उतना ही बाबा जी के पास दस की दस उँगलियों में बीस कुछ न कुछ होगा, धारण कर रखा होगा। जितना मेरे शरीर पर एक निशान नहीं है, उतना बाबा जी ने अपने शरीर पर कोई जगह नहीं छोड़ी होगी जहाँ निशान न बना लिया हो। क्यों? क्योंकि निशान न बनाएँ तो बिल्कुल प्रमाणित नहीं हो पाएगा कि कोई दैवियता है। निशान के अलावा उनके पास वैसे भी कुछ नहीं है। निशान ही तो सब कुछ है ना, तो बहुत सारे निशान बनाने पड़ते हैं। यहाँ क्या निशान है? यहाँ कोई निशान नहीं है। पर फिर भी सवाल मेरे ऊपर है।
प्रश्नकर्ता: धन्यवाद।
आचार्य प्रशांत: भागिए नहीं, भागना नहीं है। यहाँ आते आप अपनी मर्ज़ी से हैं, जाते हमारी मर्ज़ी से। अब छोटे-मोटे बाबा जी तो, इतने तो हमें भी मान लो। ऐसे भागोगे तो भस्म मार के भस्म कर दूँगा।
प्रश्नकर्ता: मेरा दूसरा प्रश्न है।
आचार्य प्रशांत: नहीं, अभी पहला पूरा होने दो।
प्रश्नकर्ता: सॉरी, सॉरी।
आचार्य प्रशांत: मैं जैसा हूँ, वैसा आपके सामने खड़ा हो जाता हूँ, आपको बड़ी आपत्ति हो जाती है। मेरे लिए बहुत आसान हो जाए — मैं कुछ भी दिनभर इधर-उधर करता रहूँ। जब मैं आपके सामने आऊँ, तो पीतांबर या श्वेतांबर धारण करके आ जाऊँ, आपको क्या पता लगेगा? आप कोई मेरे कमरे में तो घुसे नहीं हो, मेरे जीवन में तो घुसे नहीं हो। मेरे लिए बहुत आसान है कि जब मुझे आपके सामने आना है, ठीक उस वक़्त मैं कोई ख़ास प्रतीक धारण कर लूँ या विशेष वस्त्र धारण कर लूँ। कर सकता हूँ ना?
जितने लोग मुझे जानते हैं, उनमें से 99% बस मीडिया के माध्यम से जानते हैं। तो मीडिया में अपनी एक छवि भेज दी — काम चल गया। पीछे मैं कुछ भी कर सकता हूँ। लेकिन नहीं — मैं जैसा हूँ, वैसा मैं आपके सामने आ जाता हूँ। और जब सामने आ जाता हूँ, तो — "अच्छा ओ, तो ये पेन का इस्तेमाल कर रहे हैं! ये चिड़िया के पंख से नहीं लिखते? देखा, हमें पहले ही पता था — धूर्ताचार्य! मोर के पंख से जो लिखे, ऐसे स्याही में डुबो-डुबो के — वो है असली गुरु! ये तो मॉडर्न पेन से लिख रहे हैं!" भाई मैं उसी से लिखता हूँ, तो उसी से लिखूँगा। आपके सामने कुछ और तो नहीं करूँगा।
इनमें इतना संयम तो है नहीं कि सत्र में बैठे हैं, तो दो-तीन घंटे ही कुछ खाएँ-पिएँ नहीं। धार्मिक बातें करते-करते चाय पीते रहते हैं। हाँ, पीता हूँ, क्यों छुपाऊँ? पीता हूँ। क्या समस्या है? और बोल रहा हूँ, रोज़ बोल रहा हूँ। और पूरी व्यवस्था यहाँ से यहाँ तक (अपने गले की ओर इंगित करते हुए) सूख गई है। पहले भी था, पर अब तो डॉक्टर ने भी बोल दिया है कि गले को सूखने मत देना। ये बड़ी समस्या है।
"हमने देखा इनके पास गाड़ी है।" हाँ भाई, है — और तुमने देखा नहीं? हमने दिखाया। तुमने मेरे ही वीडियो से देखा है, किसी ने छुप-छुप के स्टिंग ऑपरेशन नहीं करा है। और जो है, वो यहाँ सामने खड़ी रहती है। जितने लोग आते हैं, सब देखते हुए आते हैं, खड़ी हुई है। कहीं किसी गुप्त गैराज से अचानक वो प्रकट नहीं होती ऐसे।
आप आते हो, खेलने जाता हूँ तो आपके सामने से ही निकल जाता हूँ। अब इंतज़ार थोड़ी करूँगा कि आप बैठे-बैठे, मेरा टाइम बीत जाए — निकल ही जाता हूँ। "पता है! क्या? और ये बता नहीं सकते, ऐसी शर्मनाक बात। भाई, ये टेनिस खेलता है! हमारा कोई पौराणिक ऋषि, कोई पुराने आचार्य टेनिस खेलते थे क्या? ये खेलता है।” जो है, सो है। मामला सामने है — जस का तस। लेना है तो लो, नहीं तो मेरी बला से, भागो यहाँ से! आपको नहीं कह रहा, भागने को।
प्रश्न करना अच्छी बात है। पर मेरा प्रश्न कहाँ से आ रहा है? प्रश्न क्या होना चाहिए? और प्रश्न किससे करना चाहिए — ये प्रश्न किया करो पहले। कोई भी अगर थोड़ा होशमंद आदमी होगा, तो वो जाके बाबा जी को पकड़ेगा। कहेगा —"एक्सप्लेन दिस अटायर। दिस गेट-अप लुक्स सो पिक्यूलियर। हाउ मच टाइम डू यू स्पेंड कमिंग टू इट?”
तुम सोचो — पहले, उतना सजने के लिए बाबा जी को कितना समय लगता होगा? कभी विचार किया क्या? या बस विश्वास है — भक्त हैं — विचार बिल्कुल नहीं है, विवेक बिल्कुल नहीं है। इतने भारी-भारी ये सब जो पहनते हैं और क्या-क्या मल के रखते हैं, सोचा है कभी कि इनका कितना टाइम ड्रेसिंग में बीतता होगा? यहाँ मुँह धोने का वक़्त नहीं रहता।
कल किसी को जगह-जगह मैंने — आज सुबह 8 या 9 बजे किसी को बोला है, “आज मैंने ब्रश नहीं करा,” और “आज” से मेरा आशय बीता हुआ कल था, क्योंकि बीते हुए कल और आज के कल के बीच में जो विभाजन रेखा आती है — रात — वो तो जगह-जगह काट दी थी। तो जब मैं बोल रहा हूँ “आज ब्रश नहीं किया,” तो मैंने कल ब्रश नहीं किया था। तो फिर मैंने एक दिन में दो दिन का ब्रश किया। क्या कर सकते हैं? यहाँ ये समय नहीं है कि मुँह साफ़ कर लो, दाँत साफ़ कर लो। वहाँ इतनी ड्रेसिंग अप हो रही है। वो कैज़ुअल वियर है कोई, तुम्हें लग रहा है? सोच के देखो। महिलाएँ ज़्यादा आसानी से बता पाएँगी, उतनी ड्रेसिंग अप में कितना समय रोज़ लगता होगा।
सब बाबाओं को सोचो। एक-एक करके सबकी छवियाँ दिमाग़ में लाओ, और सोचो कितना समय लगता होगा उतना 'ड्रेस अप' करने में। ज़रूर कोई बहुत नाकारा और फालतू आदमी है, जिसके पास इतना खाली समय है।
हमारे लिए तो यही अच्छा है यार — शर्ट ली, चार बटन बंद किए, सामने आकर बैठ गए — बढ़िया है। और कैमरे में लोअर दिखाई नहीं देता। मैं लड़कियों, महिलाओं को बोलता हूँ, “काहे को लंबे बाल रखे हो? छोटे करा लो। बहुत वक़्त खाते हैं।” बाबा जी, बाल छोड़ दो! वहाँ पर जटाएँ हैं। सोचा है मेंटेनेंस कितनी लगती होगी? समय कहाँ से आ गया इतना? माने कुछ काम नहीं है तुम्हारे पास? सवाल वहाँ होना चाहिए, सवाल यहाँ आ रहा है।
प्रश्नकर्ता: धन्यवाद आचार्य जी। जी हाँ, लोगों को तो जवाब मिला। आपने अच्छे से दिया।