प्रश्नकर्ता: आत्म-ज्ञान क्या है?
आचार्य प्रशांत: विचार और कर्म। जिसको हम ‘सेल्फ’ कहते हैं वह विचार और कर्म के आलावा कुछ और नहीं जानता। वह विचार और कर्म ही है। तो सेल्फ-अवेयरनेस का क्या अर्थ हुआ? अगर ‘सेल्फ’ का अर्थ है विचार और कर्म तो सेल्फ-अवेयरनेस का अर्थ क्या हुआ?
श्रोतागण: देखना।
आचार्य प्रशांत: देखो कि तुम दिन भर क्या सोचते हो और देखो कि दिन भर तुम क्या करते रहते हो। करने में कहना शामिल है। मनसा (मन से), वाचा (वाणी से), कर्मणा (कर्म से) – तीन होते हैं। मैंने दो कर दिया – करने में, कहना शामिल है। तो देखो कि मन में क्या उतरा है और देखो कि शरीर दिन भर क्या कर रहा है। यही है सेल्फ-अवेयरनेस। इसके अलावा सेल्फ-अवेयरनेस कुछ नहीं है। सेल्फ-अवेयरनेस बड़ी साधारण सी चीज़ है कि मैं दिन भर क्या सोचता रहता हूँ और दिन भर क्या . . .
श्रोतागण: करता रहता हूँ।
आचार्य प्रशांत: करता रहता हूँ, २४ घंटे। कोई मेरे सामने से गुज़र जाता है तो क्या विचार आता है? परीक्षा का नोटिस लग जाता है तो क्या विचार आता है? प्लेसमेंट की बात उठ जाती है, तो क्या विचार आता है? घर में कोई ऐसे ही चर्चा चल रही है, तो क्या विचार आता है? टी.वी. में कोई कार्यक्रम आ रहा है तो उसे मैं किस दृष्टि के साथ देखता हूँ? मैं किसी को अगर ज़ोर से बोल दे रहा हूँ, तो क्यों बोल दे रहा हूँ? मैं अगर क्लास में आती हूँ और आकर एक खास जगह पर पीछे की पंक्ति में बैठ जाती हूँ, तो मैं क्यों ऐसा करती हूँ?
यही सेल्फ-अवेयरनेस है। मैं पीछे ही वाली सीट पर क्यों बैठता हूँ? समझ रहे हो बात को? कोई खास व्यक्ति सामने आता है, हम नाराज़ हो जाते हैं। कोई दूसरा व्यक्ति सामने आता है, हम उत्तेजित हो जाते हैं। कोई तीसरा सामने आता है, हम दुम-दबाकर भाग जाते हैं। आत्म-ज्ञान यही है।
आत्म-ज्ञान का अर्थ है , मन का ज्ञान। मेरा मन क्या कर रहा है, क्या कह रहा है, इस पूरी प्रक्रिया का ज्ञान।
शाम को ५ बजते ही मेरी क्या हालत होती है? (मुस्कुराते हुए) कॉलेज में हैं और ५ का घंटा बजते ही और मेरी क्या हालत होती है? यही एक मोमेंट है, यही एक क्षण है आत्म-ज्ञान का। जग जाओ। अरे! घंटा बजता नहीं और मैं बाहर भागने के लिए विचलित होना शुरू हो जाता हूँ। कौन-सी बातें हैं जो मुझे निराशा में धकेल देतीं हैं? कौन-सी बातें हैं जो मुझे उत्साह दे देतीं है? कौन-सी बातें हैं जो क्रोध दे देतीं हैं? क्या कुछ खास लोग हैं मैं जिनकी बहुत ज़्यादा परवाह कर रहा हूँ? अगर मैं एक खास तरह की नौकरी करना चाहता हूँ तो क्यों? मैंने जीवन में क्या लक्ष्य बना रखे हैं? यही आत्म-ज्ञान है।
आत्म की, सेल्फ की जितनी गतिविधियाँ हैं, उनको जानना ही आत्म ज्ञान है। और आत्म की गतिविधियाँ हमने कहा कि दो हिस्सों में आ जातीं हैं . . .
श्रोतागण: विचार और कर्म।
आचार्य प्रशांत: ठीक है? तो आत्म-ज्ञान कोई कलाकारी नहीं है कि किसी गुरूजी के पास जा रहे हो कि ‘आत्म-ज्ञान चाहिए’। जो कर रहे हो वही देख लो। सड़क पर चल रहे हो, देखो - आत्म-ज्ञान। खाना खा रहे हो, देखो - आत्म ज्ञान। पढ़ रहे हो, देखो - आत्म-ज्ञान। सो रहे हो, देखो - आत्म-ज्ञान। बस यही।