आपको नारी बनाकर लूटा जा रहा है

Acharya Prashant

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आपको नारी बनाकर लूटा जा रहा है
शरीर भी 80-90% एक महिला का एक पुरुष जैसा ही होता है। किडनी, लिवर, हार्ट इसमें क्या जेंडर देख के होता है ट्रांसप्लांट?और खून और दवाइयाँ और वैक्सीन्स, दाँत ये सब जेंडर देख के चलते हैं क्या? तो पहली बात तो चेतना, दोनों की ही चेतना मनुष्य की चेतना है मुक्ति माँगती है। दोनों का आईक्यू लगभग एक जैसा होता है दोनों जीवन में वास्तव में एक ही महान लक्ष्य के लिए पैदा हुए हैं रही शरीर की बात तो शरीर भी 80- 90% भाई एक ही है। ये तो काम वासना का जलवा है कि हमको दूसरे के शरीर में बस वही चीज़ें दिखाई देती हैं जो हमसे विपरीत है। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर। सर मैं काफी समय से जेंडर रोल्स को ऑब्जर्व कर रहा हूँ और मैं मॉडर्न फेमिनिज़्म को तो खासकर से काफी समय से ऑब्जर्व कर रहा हूँ। आपके जानने से पहले से छ: साल से कम से कम तो उसमें सर जिस तरीके से अभी रेड पिल मूवमेंट था। जिसमें स्नीको और वो एंड्रूटेट वगैरह काफी ग्राउंड्स गेन कर लिए थे जिन्होंने, उसी तरीके से सर एक और वर्ग आगे आ रहा है हाई वैल्यू वुमन उसमें जो उसके रिप्रेजेंटेटिव हैं वो ज्यादातर फीमेल ही होती हैं और वो वुमन को बताती हैं कि भयानक मटेरियल की कामना करो। ये मैं कोट कर रहा हूँ। भयानक मटेरियल की कामना करो।

“टू रेज़ योर स्टैंडर्ड्स। डिमांड मोर यू आर अ वूमन यूज़ इट टू योर एडवांटेज़। वैल्यू योरसेल्फ, नेवर शेयर फाइनेंसियल रिस्पांसिबिलिटीज़। ही इज़ अ मैन, ही मस्ट स्पॉइल यू। इफ अ मैन इज़ नॉट स्टिकिंग टू हिज़ जेंडर रोल, ही इज़ नॉट अ रियल मैन, बट कांट टेल यू टू एडहर टू योर ओन। इफ़ ही आस्क्ड टू स्प्लिट द बिल्स और फाइनेंसियल रिस्पांसिबिलिटीज़। ही इज़ नॉट ट्रीटिंग यू लाइक अ वूमन बट अ मैन। ही इज़ अ बिग-बिग रेड फ्लैग। एनी वुमन, हु डज़ इट हैज़ लो स्टैंडर्ड्स। शी इज़ अराउंड गार्बेज मैन। दैट्स द रीज़न शी इज़ लाइक दैट। शी इज़ सेटलिंग फॉर लेस। एंड शी इज़ नॉट स्टैंडिंग अप फॉर हरसेल्फ। शी इज़ अ लूजर ऑर अ कक। दे शो एज़ इफ़ दे आर टॉकिंग इन फेवर ऑफ वूमेन बाय यूज़िंग फ्रेजेस लाइक स्टैंड अप फॉर योरसेल्फ, रेज़ योर स्टैंडर्ड्स। बट द ओनली थिंग दे केयर अबाउट इज़ गेटिंग प्रोवाइडेड विद मनी, एक्सपेंसिव गिफ्ट्स, फ्लावर्स, शिवलरी एज़ द बेयर मिनिमम।”

*एंड दे रिवॉर्ड दे ओनली कॉल आउट सेक्सिज़्म व्हेन अ मैन इज आउटराइटली कैजुअली सेक्सिस्ट बट दे रिवॉर्ड बेनीवोलेंटली सेक्सिस्ट मैन। बेनीवोलेंट सेक्सिज्म जब कोई आदमी करे तो वो उसको जेंटलमैन बोलते हैं रियल मैन बोलते हैं। पर अगर कोई इक्वलिटी की बात भी कर दे कि कह दे कि फाइनेंसियल रिस्पांसिबिलिटी शेयर करो या कुछ भी फॉर दैट मैटर तो उसको कहा जाता है कि तुम रियल मैन नहीं हो या तुम जेंटलमैन नहीं हो और यही सब। तो क्या इसमें सर, उनको भी समझना चाहिए कि क्या नहीं समझना चाहिए उनको? उनको क्या इसमें ये चीज़ नहीं समझनी चाहिए कि अगर इक्वलिटी इस्टैब्लिश करनी है तो दोनों तरफ से ही होना चाहिए। मतलब बेनिवोलेंट सेक्सिज्म को सेक्सिज्म की तरह देखा ही नहीं जाता है बल्कि उसको रिवॉर्ड कर दिया जाता है।

आचार्य प्रशांत: आप समझ लो ना, वो सफल नहीं होंगे ना जब तक उनको ऐसा एक बेनिवोलेंट शिवलरस मेल नहीं मिलेगा तो आप समझ लो। क्योंकि निशाना आप पर है, शिकार तो आप होने वाले हो। वो काहे को समझे? ये जरा सी बात समझने में हमें तकलीफ क्या है कि हम इंसान हैं? क्या तकलीफ है? देह तो बहुत बाद का एक छोटा सा विभाजन है बड़ा विभाजन ये है कि इंसान हो, जानवर नहीं हो। विभाजन रेखा हमें स्त्री और पुरुष के बीच में नहीं खींचनी है मनुष्य और पशु के बीच में खींचनी है। समस्या क्या है? आपकी आइडेंटिटी ये नहीं है कि आप नॉन मेल हो, आपकी आईडेंटिटी ये है कि आप नॉन एनिमल हो। आप इंसान हो भाई। चाहे स्त्री हो, पुरुष हो, कुछ हो इंसान हो ना? और जेंडर तो बहुत-बहुत छोटी चीज़ होती है कि नहीं होती है? इतनी भारी चीज़ हो गई?

अच्छा एक बात बताओ जेंडर इतनी बड़ी अगर चीज़ है तो स्त्री को पुरुष से बहुत भिन्न होना चाहिए और स्त्री को किसी ना किसी पशु से बहुत समान होना चाहिए। ऐसा है क्या? कोई कितनी भी ज़बरदस्त स्त्री हो, ज़बरदस्त मतलब आइडेंटिटी उसने अपनी बना रखी हो वुमन की तो भी उसकी समानता तो मैन से ही है। या कौवे से है? या मछली से है, कछुए से है, शेर से है, हाथी से है, किससे है बताओ? एक मनुष्य है जिसका लिंग क्या है? स्त्री। ठीक है? एक मनुष्य है जो शरीर से स्त्री है। ये कोई बड़ी भारी बात नहीं हो गई, मनुष्य हो। उसकी समानता हर तरीके से एक पुरुष से है, है कि नहीं है?

शरीर भी 80-90% एक महिला का एक पुरुष जैसा ही होता है। आप आँखों का दान करते हो कई बार मरते वक्त कई लोगों ने प्लेज़ किया होगा कि मर जाएँगे तो आँखें दान करेंगे। नहीं करा तो कर दीजिए। तो ऐसा है कि स्त्री की आँख बस स्त्री के ही लगेगी। ऐसा होता है? किडनी, लिवर, हार्ट इसमें क्या जेंडर देख के होता है ट्रांसप्लांट? बोलो। और खून और दवाइयाँ और वैक्सीन्स, दाँत ये सब जेंडर देख के चलते हैं क्या? तो पहली बात तो चेतना, दोनों की ही चेतना मनुष्य की चेतना है मुक्ति माँगती है। दोनों का आईक्यू लगभग एक जैसा होता है दोनों जीवन में वास्तव में एक ही महान लक्ष्य के लिए पैदा हुए हैं रही शरीर की बात तो शरीर भी 80- 90% भाई एक ही है। ये तो काम वासना का जलवा है कि हमको दूसरे के शरीर में बस वही चीज़ें दिखाई देती हैं जो हमसे विपरीत है।

एक शेर को बुलाओ उसके सामने एक 80 किलो की महिला हो और 60 किलो का पुरुष हो, वो किसको चुनेगा? बोलो। वो 80 किलो की महिला को चुनेगा भई। और 80 किलो का पुरुष हो और 60 किलो की महिला हो तो किसको चुनेगा? तो 80 किलो के पुरुष को चुन लेगा। उसकी नज़र में दोनों बराबर हैं और हैं ही। दोनों के मांस का स्वाद भी लगभग एक जैसा ही होगा। ये बाल वगैरह बढ़ाने का आयोजन ना हो तो सिर्फ मुँह देख के कई बार बताना मुश्किल हो जाए कि स्त्री हो कि पुरुष हो। पुरुष दाढ़ी कटा दे, महिला बाल कटा दे तो कम से कम आधे मामलों में आपको संशय हो जाएगा महिला है कि पुरुष है। कैसे बता पाओगे? ये तो हमने चेहरे को भी सेक्सुअलाइज़ कर दिया है ना। और बाल बढ़ाना ही काफी ना हो तो उसके होंठ पोत दो और आँखें ऐसी बड़ी-बड़ी लंबी-लंबी यहाँ तक खींच दो और उसकी भौंह उखाड़ दो। ये है ना? और पुरुष की ऐसे यहाँ (मूँछ की ओर इंगित करते हुए) पर, किसी तरह का धोखा ना रह जाए भाई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए। समझ में आ रही है बात कि नहीं?

और महिला के मूँछ आ जाए तो तुरंत उसको बोलो भाग मूँछ मुंडी जल्दी। वो मूँछे आती है महिलाओं के भी जानते नहीं क्या? भई विवाहित लोग बैठे हैं या नहीं बैठे हैं। मस्त मूँछे आती है महिलाओं के भी, तब तो उनको जल्दी से कहते साफ कर! साफ कर! किसी को पता नहीं लगना चाहिए। जबरदस्ती जहाँ अंतर है भी नहीं वहाँ अंतर खड़े कर रहे हो और समानता 80-90% की है। जहाँ अंतर होना चाहिए वहाँ अंतर कर नहीं पाते अंतर होना चाहिए इंसान और जानवर के बीच में, इंसान जानवर बना हुआ है वहाँ अंतर तुम कर नहीं पा रहे। जहाँ अंतर है नहीं वहाँ इतना जबरदस्ती अंतर खड़ा करा है सिर्फ़ इसलिए क्योंकि अंतर जितना ज्यादा होता है कामवासना को उतना मजा आता है। महिला को हाइपर सेक्सुअलाइज़ कर दो, मेल को अल्फा मेल बना दो अब बिल्कुल फायर वर्क्स होंगे, अब चिंगारियाँ फूटेंगी। जबरदस्ती की बात।

देखो एक बात समझो, आप अपने आप को मैं बोलते हो ना। आपको भी अगर एक महिला का शरीर मिला होता तो आप लगभग वैसे ही व्यवहार कर रहे होते जैसे एक महिला करती है। और एक महिला को पुरुष का शरीर मिल जाए वो भी वैसे ही व्यवहार करेगी जैसे एक आम पुरुष करता है। जो थोड़ा शरीर में अंतर है उसी के कारण आपको चाल, चलन, बोल, व्यवहार में अंतर मिलता है प्रायोरिटीज़ में अंतर मिलता है उससे ज्यादा नहीं है। फिर बोल रहा हूँ अंतर तो हमें करना है, विवेक का अर्थ ही होता है ना भेद करना? तो भेद करो मनुष्य और पशु के बीच में। नर-नारी में क्या भेद कर रहे हो? फिर तो नारियाँ भी कई तरीके की होती है उनमें भी भेद करो। उस स्लाइसिंग की तो फिर कोई सीमा ही नहीं हो सकती ना, कि आपको कहाँ-कहाँ पर रेखाएँ खींचनी है खींचो-खींचो।

नारियाँ भी कई तरीके की हो सकती है उनमें कोई स्ट्रेट नारी, लेसबियन नारी, फलानी नारी, ढ़िकानी नारी, 18 तरह की नारियों के भी वर्ग बना दो। बस जहाँ पर विभाजन करना चाहिए था वहाँ नहीं किया और ये जो पूरी बात बोली है, बहुत इसमें गहरी चर्चा की भी जरूरत नहीं है। ये आप जानते ही हो ये क्या बात है कि मैं अपना आदिम जंगली किरदार निभाती चलूँगी। वो क्या है? मैं घर पर रहूँगी। प्रोवाइड फॉर मी। और मैं घर में रह के क्या करूँगी? मैं तुम्हारा बिस्तर गर्म करूँगी और बच्चे जनूँगी। और तुम बाहर जाओ, खतरे उठाओ, मेरे लिए तमाम तरह की सहूलियतें लेकर के आओ और बदले में मैं तुम्हें क्या दूँगी? अपना जिस्म दूँगी।

जाके कहीं पढ़िएगा, कहने वाले कहते हैं दुनिया का सबसे पुराना व्यवसाय है वेश्यावृत्ति। क्योंकि जब किसी के पास कुछ नहीं था देने को, तो भी आधे मनुष्यों के पास शरीर था देने को। जब किसी भी तरह का इंडस्ट्रियल छोड़ दो, किसी भी तरह का कोई प्रोडक्शन शुरू नहीं हुआ था एग्रीकल्चरल भी, तो भी एक चीज़ तो थी ही जिसका बाल्टर हो सकता था लेनदेन हो सकता था, क्या? शरीर। क्यों इसमें पड़ना है? ये कोई गरिमा की बात है कि मैं घर पे रहूँगी और मैं, और मेरे पास एक ऐसी चीज़ है जिसके लिए मैं तुमसे कई तरह के दाम उगा सकती हूँ। कौन सी चीज़ है मेरे पास? शरीर। तो इसीलिए मैं घर पर और ज्यादा हाइपर सेक्सुअलाइज़ होकर रहूँगी। मैं दिन के तीन-तीन घंटे बस सजूँगी, संवरूँगी क्योंकि उसी से तो मुझे दाम मिलने हैं। ये सुनने में अच्छा लग रहा है? ना ऐसा होना है ना अपनी बच्चियों को ऐसा होने देना है हम मनुष्य हैं, मनुष्य की अपनी एक गरिमा है।

स्त्री को भी वहीं पहूँचना है जहाँ पुरुष को। और उस जगह का क्या नाम है? मुक्ति।

समझ में आ रही है बात? सस्ता सौदा मत कर लीजिएगा, और किसी को करते देखिए तो थोड़ा उसे ज्ञान दीजिएगा। ये जो भी लोग हैं मैं इनको जानता नहीं हूँ पर ये जो बातें हैं ये नई नहीं है। ये बहुत पुरानी आदिम बातें हैं जंगल से निकल के आ रही हैं ये बातें। और कई तरह की प्रजातियाँ होती हैं जिनमें ये सब होता भी है, क़्वीन बी का नाम तो सुना होगा ना? ड्रोंस भी जानते होंगे? ये सब वही चल रहा है। ये करना है क्या? क्यों करना है? फिर ज्ञान किस लिए है? फिर विश्वविद्यालय किस लिए हैं? फिर उन महिलाओं का क्या होगा जिन्होंने जीवन भर श्रम करके कोई मुकाम, कोई स्थान हासिल किया है अपने लिए, क्या कहना चाहते हैं हम? महिला का मुकाम यही है, बिस्तर, रसोई, प्रसूति ग्रह वो इसी के लिए पैदा हुई है। और पुरुष ऐसा कहे तो कहे महिला ऐसा कह रही है, तो वाह! और इसमें मत पड़ो कि पर उन्हें भी तो कुछ समझना चाहिए, कोई नहीं समझे तो? उसकी मर्ज़ी है नहीं समझना चाहता तो तुम समझो।

हमारा बस सबसे पहले किसके ऊपर है? हमारे ऊपर है ना। कोई पुरुष, कोई महिला सच्चाई नहीं सुनना समझना चाहता तो हम क्या करें? हम भी अपनी क़ुर्बानी चढ़ा दें? और ये सब बातें हटा दीजिएगा बिल्कुल कि बट नेचुरली द वुमन इज मेंट टू स्टे इंडोर्स ऐसा लगता है कितनी गहरी बात बोल दी। सर नेचुरली तो हमें कपड़े भी नहीं पहनने चाहिए, अगर प्रकृति की ही बात कर रहे हो तो चश्मा उतारो। प्रकृति में कौन से आपने जानवर को चश्मा पहने देखा है? और ये सुबह-सुबह ब्रश क्या करते हो? प्रकृति में कौन ब्रश करता है? और ये फ्लश क्या करते हो? जानवरों को देखो, वो जहाँ मल त्याग करते हैं वहीं खा भी लेते हैं। घोड़ों के स्तबल में चले जाओ, भैंसों के तबेले में चले जाओ वहीं गोबर कर रहे होते, वहीं खा भी रहे होते। तो तुम क्या अलग से एक शौचालय बनाते हो और फिर वहाँ जाकर फ्लश करते हो और साफ-वाफ करके आते हो कि गंदगी दिखनी नहीं चाहिए। ये सब क्या है? प्राकृतिक बात क्या कर रहे हो?

प्रकृति से आगे निकल चलो, प्रकृति के बंधनों से मुक्त हो सको। इसीलिए तो जंगल से बाहर आए थे ना हम? नहीं तो हम जंगल में ही रह रहे होते।

गुफा में पेड़ के ऊपर। आप जंगल से बाहर आ गए लेकिन अपनी बदनियती को जायज़ ठहराने के लिए कुतर्क देते हैं। किसका? जंगल का, प्रकृति का बट नेचुरली शी इस मेंट टू स्टे इंडोर्स। भाई वो गुफा के दिनों की बात थी, आज भी गुफा में रहते हो क्या? वो तब की बात थी जब सारा काम शारीरिक श्रम से चलता था। जब ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत बाहुबल था, मस्कुलर स्ट्रेंथ। आज ऊर्जा मस्कुलर स्ट्रेंथ से आती है? सोलर एनर्जी से आती है, टाइल एनर्जी से आती है, फॉसिल फ्यूल से आती है। जब सारी ऊर्जा हमारे हाथों से और हमारी जाँघों से आती थी उस समय महिला के लिए शायद उचित रहा होगा कि वो कम मेहनत वाले काम करें। मेंटेनेंस वाले काम करें। प्रोडक्शन वाले काम ना करें क्योंकि प्रोडक्शन के कामों में ये लग रही थी और वो यहीं से आ सकती थी। दिस वज़ द ओनली सोर्स ऑफ़ एनर्जी।

आज एनर्जी कहाँ से आती है? रसोई में खाना कैसे बनता है? एनर्जी लगती है ना उसमें, वो कहाँ से? सिलेंडर से आती है भाई। किसी मर्द की मांसपेशियों से थोड़ी जाती है कि ऐसा होता है कि रोटियाँ बेली जा रही है और नीचे कोई मर्द अपनी मस्कुलर स्ट्रेंथ दिखा रहा है। उससे एनर्जी पैदा हो रही है। गाड़ी कैसे चलती है? इंजन में दो चार मर्द बैठा रखे हैं? और गाड़ी इंकार करती है कि औरत चलाएगी तो नहीं चलूँगी? और कंप्यूटर इंकार करता है कि औरत कोडिंग करेगी तो कोड एग्जीक्यूट नहीं होगा? बट नेचुरली शी इज़ मेंट टू, यू नो टेक केयर ऑफ द किड्स शी इज़ द केयर गिवर एंड ही इज़ द प्रोवाइडर। हा…! कितनी विज़डम की बात बोली! शी इज़ द केयर गिवर एंड ही इज द प्रोवाइडर। आपने जिस समय की बात बोली, मैं चाहता हूँ आप उसी समय में वापस चली जाएँ। जल्दी से लाओ रे कोई टाइम मशीन और भेजो इनको आज से 2 लाख साल पहले, किसी पेड़ के ऊपर सीधे टाँगो। क्योंकि ये उसी समय की बात कर रहे हैं कि शी इज़ द केयर गिवर एंड ही इज़ द प्रोवाइडर।

अगर गुफा जैसा ही आचरण करना है तो ये सारी प्रगति ये तरक्की क्यों करी? ये सभ्यता ये संस्कृति फिर किस लिए है? अगर आचरण वही करना है जंगल जैसा तो। यू नो वी शुड स्टिक टू आवर नेचुरल रोल्स। अदरवाइज़ वी आर बीइंग एंटी नेचर। और ये बात एक्सेंट के साथ बोल दो तो और लगता है कि कितनी विज़डम की बोल दी। इनका टॉयलेट पेपर हटाओ सबसे पहले तो। हम देखें जंगल में कौन साफ करता है, वैसे ही घूमो कहीं भी बैठ जाओ वहीं हग दो और उठ के चल दो जैसे जंगल में होता है। नेचुरल रोल तो यही है भाई।

ये कर-कर के हमने महिलाओं का तो शोषण करा ही है। पुरुषों को भी बर्बाद कर डाला। जबरदस्ती उसके कँधे पर दुगनी तिगुनी जिम्मेदारी, वो खट रहा है दिन भर क्यों? ही इज़ सपोज़ टू बी द प्रोवाइडर? क्या प्रोवाइडर? क्यों प्रोवाइड करें? वो तेरी ही उम्र की है। वह काम क्यों नहीं करती? नहीं वो करती है काम। कहाँ करती है? बिस्तर पर करती है। वो एक ही जगह काम करने के लिए उसको मैं लाया था ब्याह के रसोई और बिस्तर और कहीं नहीं काम करती वो। तो तुम ये कर लो, तुम उसको डाल लो बंधन में तुम उसे कैद कर दो घर के अंदर पर फिर तुम्हारी जिंदगी भी बर्बाद होगी।

कॉलेज में होते हैं, मौज कर रहे होते हैं। 4 साल के अंदर वो चार लोगों का खर्चा उठा रहा है, क्यों उठा रहा है तू चार लोगों का खर्चा? क्योंकि इन्हें अपना नेचुरल रोल अदा करना है। नेचुरल रोल भी दो तरह का है कि पहले तो इन्हें प्रोवाइडर होना है दूसरी बात इन्हें प्रोक्रिएटर भी होना है। तो इन्होंने जल्दी से दो बच्चे भी पैदा कर दिए। आप प्रोक्रिएटर भी हो और प्रोवाइडर भी हो तो चार लोगों के लिए जाओ खर्चा उठाओ। मर रहे हैं मर्द भी इस बेवकूफी में, पर औरत को आजादी नहीं देना चाहते। कह रहे देखो उसके जन्म की सार्थकता वो स्त्री है उसके जन्म की सार्थकता तो माँ बनने में है।

मैंने बोल दिया भाई द फंक्शन ऑफ रिप्रोडक्शन लेट इट मूव आउटसाइड द वुमंस बॉडी। रिप्रोडक्शन में ऐसा कुछ नहीं है कि उसके लिए तुम एक औरत के कई साल खर्च कर दो। उसमें जब ये काम उसके शरीर से बाहर हो सकता है तो होने दो ना, तो क्या हल्ला मचा। लोगों ने ट्रेंड चला दिए। बोले ये देखो ये क्या कर रहा है हमारी महान संस्कृति बर्बाद कर रहा है। अच्छा क्या लाभ हो जाता है? 9 महीने गर्भ रख के और फिर उसके तमाम कॉम्प्लिकेशंस झेल के? और अगर सब कुछ नेचुरली ही होना है तो सिज़ेरियन डिलीवरी भी क्यों हो? तो फिर अस्पताल भी क्यों जाना है? जानवर तो सब जहाँ खड़े होते हैं वहाँ खड़े-खड़े ही उनका अपना हो जाता है प्रसूति। अस्पताल काहे के लिए फिर? क्यों जाना है? अल्ट्रासाउंड पहले से क्यों कराना है? चेकअप क्यों कराने हैं? सब नेचुरली होने दो ना।

बच्चे प्यारे होते हैं, मुझे भी बच्चों से बड़ा लगाव है लेकिन एक बच्चे के लिए एक मनुष्य के जीवन के स्वर्णिम वर्ष खराब हो ये स्वीकार करने लायक बात नहीं है। और ये सब बंद कर लो शिवलरि वगैरह कि मैं उसके लिए कुर्सी खींच दूँगा फिर वो बैठेगी और कार में जा रहे हैं तो ड्राइवर सीट पे पहले तो खुद हो। उसको क्यों नहीं गाड़ी चलाने देते? और उसके बाद फिर कूद के जाएँगे और उसका दरवाजा खोलेंगे तब वो अपना वो लॉन्ग फ्लोइंग गाउन लेकर उतरेगी। बंद करो बकवास बिल्कुल ये। शरीर थोड़ा अलग-अलग है तो कपड़े थोड़े अलग-अलग होंगे पर थोड़े ही अलग-अलग होने चाहिए। ये नहीं कि तुम तो आराम से कच्छे में और शॉर्ट्स में घूम रहे हो और उसको तुमने दे दिया है 10 मीटर का गाउन कि तू ये पहन ताकि तू अल्ट्रा फीमेल लगे। एक से कपड़े पहनो, उससे वासना भी थोड़ा कम जोर मारेगी।

अब बिल मैं दूँगा। काहे को दोगे? एकदम मत देना और जो ऐसी हो कि वो साधारण चाय कॉफी का बिल नहीं दे सकती, दूर रहना। वो पहले ही दिन से जच जाता है मामला कि डेट का खर्चा किसने उठाया सब वहीं दिख जाता है कीप इट डच तेरा तू मेरा मैं। कोई आपसे बार-बार आग्रह करे ना महिलाओं से कह रहा हूँ कि तुम्हारे खर्चे मैं उठाऊँगा वो दोस्त नहीं है आपका। क्योंकि देयर आर नो फ्री लंचेस कोई अगर आपके खर्चे उठा रहा है तो आपको पता भी नहीं चलेगा वो आपसे क्या वसूल रहा है। इतना निस्वार्थ प्रेमी कोई नहीं होता कि बिना किसी स्वार्थ के आपके खर्चे उठा ले। एक पागलपन है पेट्रिआर्की। और जाने उसकी बराबरी का जाने उससे बड़ा पागलपन है या आजकल का फेमिनिज़्म। तय करना मुश्किल हो जाता है कि ज्यादा विक्षिप्त कौन है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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