अन्तर्जातीय विवाह में अड़चनें || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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अन्तर्जातीय विवाह में अड़चनें || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्न: 'मेरी गर्लफ्रेंड दूसरी जाति की है, घर वाले शादी के लिए नहीं मान रहे। कृपया इंटरकास्ट मैरिज (अन्तर्जाती विवाह) के बारे में कुछ कहें।

आचार्य प्रशांत: विशाल, मामला क्या वैसा ही है और बस क्या उतना ही है जितना तुमने इन दो पंक्तियों में लिख कर के भेज दिया है — कि गर्लफ्रेंड है, गर्लफ्रेंड दूसरी जाति की है और घरवाले नहीं मान रहे विवाह के लिए। फिर कह रहे हो, 'अन्तर्जाती विवाह के बारे में कुछ कहिए।'

एक जवान आदमी के पास, हर किसी के पास दो चीज़ें होनी चाहिए अगर ज़िंदगी जीने के काबिल बनानी है –— पहला प्रेम और दूसरी चीज़ ताक़त! प्रेम से मेरा आशय है, सही लक्ष्य से प्रेम,! सही दिशा में प्रेम,! जिससे होना चाहिए उसी से प्रेम! और सही वजह से प्रेम। और ताक़त चाहिए, क्योंकि बिना ताक़त के प्रेम सिर्फ़ एक नाकाम आह बनकर रह जाता है, कि प्रेम तो है पर कुछ कर नहीं पा रहे, अपनी मंज़िल की दिशा में बढ़ ही नहीं पा रहे पहुँचना तो बहुत दूर की बात है।

यह दो चीज़ें मैं तुमसे पूछूँगा –, प्रेम है क्या? और ताक़त है क्या? जिससे लड़की से तुमने संबंध बनाया है, क्या उससे वाकई तुमको प्रेम है?

प्रेम जब होता है तो बड़ी स्पष्टता होती है, और प्रेम जब होता है तो प्रेम के पीछे बिलकुल वाजिब वजह होती है। यहाँ पर न तुम अपने बारे में कुछ बता रहे, न लड़की के बारे में कुछ बता रहे है, कुल मिलाजुला करके तुमने अपने संबंध के बारे में यह बताया है कि हमें तो शादी करनी है। यह कौन सा प्रेम है जिसका कुल एक उद्देश्य है, 'शादी'? ऐसा प्रेम क्या वाकई दूसरे की भलाई करेगा? क्या वाकई ऐसे प्रेम में तुम्हारा भी हित है? यह प्रेम ही है या बस जवानी के दिनों में होने वाला साधारण आकर्षण?

तुमने और कौन-कौन सी भलाईयाँ कर दी हैं अपनी प्रेमिका के साथ? उसके साथ रहकर भी, पता नहीं कितने दिनों से रिश्ता है तुम्हारा, लेकिन अभी भी तुम्हारे सवाल में इतनी तो मजबूरी टपक रही है।

इतना मजबूर नहीं हो सकता आदमी अगर उसे साफ़ पता है कि उसने सही लक्ष्य का चुनाव किया है, इतना मजबूर नहीं हो सकता आदमी अगर उसने सही लक्ष्य का चुनाव किया है, कि वह जाकर के दूसरों का मुँह देखे, दूसरों की अनुमति माँगे, और अनुमति न मिल रही हो तो बगले झाँके।

दूसरे कैसे हावी हो गए तुम पर? ज़रूर तुम्हारे ही मन में कोई खोट होगी, नहीं तो किसी की हिम्मत कैसे हो जाती कि तुम्हें तुम्हारे वाजिब लक्ष्य से, तुम्हें तुम्हारे सही उद्देश्य से, तुम्हें तुम्हारे प्रेम से भटका देता, रोक के वंचित कर देता? कोई सामने कैसे खड़े हो जाता तुम्हारे?

बैंगलोर से हो, मैं समझता हूँ कि कमा-खा भी बढ़िया रहे होगे; ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई है भई कि तुम्हें दूसरों का मुँह ताकना पड़ रहा है, और ऐसी तुममें क्या कमी है कि तुम्हें जब तक दूसरों की अनुमति, अनुमोदन न मिले तब तक तुम अपना जीवन अपने मुताबिक जी नहीं सकते? ज़रूर तुम ख़ुद नहीं जानते कि तुम्हें उस लड़की के साथ रहना क्यों है?

जानने में, बोध में बड़ी ज़बरदस्त ताक़त होती है, फिर उस ताक़त को रोका नहीं जा सकता। जो आदमी एक बार जान गया वह फिर अब बहते दरिया जैसा हो जाता है, वह भी जो पहाड़ से बहता नीचे उतर रहा हो; उस पर बाँध बनाना ही बड़ा मुश्किल है। और बाँध बना भी दो तो थोड़ी देर के लिए तुम उसको रोक लोगे, उसकी गति शांत कर दोगे, लेकिन आगे का बहाव उसका पूरी तरीके से तो तब भी नहीं रोक पाओगे।; तुम्हारा बहाव कैसे रोका जा रहा है भाई?

यह जो ताक़त की कमी है, यह हमें दूसरे बिंदु पर लाती है। तुमने ज़िंदगी कैसी जी है?

याद रखो जिन लोगों ने ज़िंदगी ऐसी नहीं जी है कि उनकी माँसपेशियाँ विकसित हुई हों, शरीर की भी, मन की भी, चरित्र की भी, उन्हें तो ज़िंदगी हक़ ही नहीं देती प्यार करने का! क्योंकि जैसा थोड़ी देर पहले कह रहा था — कि प्यार तो कर लिया पर ताक़त नहीं है, ऐसा प्यार कभी अपने अंजाम तक नहीं पहुँचता। बस दूर-दूर का आकर्षण बन कर रह जाता है, आँसुओं की धार बनकर रह जाता है, शेर की ललकार कभी नहीं बन पाता।

तो जीवन कैसा जी रहे हो बताओ न? क्या वजह है कि तुम दूसरों पर आश्रित हो? दूसरों की अनुमति लेने तो उसको ही जाना पड़ता है, जो या तो समझता न हो कि वह क्या कर रहा है। तो वह दूसरों के सामने खड़ा हो जाएगा कि समझा दीजिए हमको हम ठीक कर रहे हैं कि नहीं कर रहे हैं; आप बड़े लोग हैं आप ही बेहतर बता पाएँगे कि यह कदम हमें उठाना चाहिए कि नहीं उठाना चाहिए। या तो वह समझता न हो, या फिर वह दूसरों पर आश्रित हो तो उसको डर लगता हो कि अगर कहीं हमने अपनी मर्ज़ी का काम कर लिया तो दूसरे लोग हमाराहमारे दाना-पानी बंद कर देंगे, दूसरे लोग हमें पैसा भेजना बंद कर देंगे, दूसरे लोग हमारा हुक्का-पानी बंद कर कर के हमें समाज से बहिष्कृत कर देंगे।; तुम किस बात से डर रहे हो?

और यही प्रश्न तुम्हारी प्रेमिका पर भी लागू होता है। प्यार कोई हँसी-ठट्ठा है, बच्चों का खेल है? यूँ ही प्राकृतिक रसों का, हॉर्मोन्स का बहाव है क्या कि सबको हो जाएगा? प्यार करने के लिए मैंने बार-बार कहा है- 'बड़ी क़ाबिलियत चाहिए।' ज़िंदगी सही जीनी पड़ती है प्रेम का अधिकारी होने के लिए।

अन्यथा बस, काग़ज़ी, किताबी, रूमानी प्रेम बन जाएगा तुम्हारा। वह प्रेम जिसमें पतंगें उड़ाई जाती हैं, ख़त भेजे जाते हैं, आहें भरी जाती हैं लेकिन कोई सार्थकता जिसमें निकल कर नहीं आती।; जिसमें दोनों पक्षों के जीवन में कोई रौशनी, कोई उल्लास, कोई विकास नहीं आता।

ज़्यादातर लोगों का प्यार ऐसा ही होता है — बहुत अफ़सोस की बात है — ,ज़्यादातर लोग अपनेआप को कभी प्यार के क़ाबिल बनाते ही नहीं हैं। क्यों नहीं बनाते? क्योंकि हमारे ज़ेहन में, हमारी संस्कृति में यह बात बैठी हुई है — कि प्यार तो बस यूँ ही घट जाने वाली प्राकृतिक घटना है जिसके लिए कोई क़ाबिलियत, कोई एलिज़िबिलिटी नहीं चाहिए।

हमें लगता है कि ज्योंजो ही लड़का सोलह साल, अट्ठारह साल का हुआ नहीं कि उसको प्यार हो जाएगा। प्यार कोई शारीरिक चीज़ थोड़ी है कि एक उम्र के साथ हो जाएगी। प्यार बहुत परिपक्वता की बात है, प्यार बहुत अंदरूनी बात है। जिन्होंने समझा है उन्होंने कहा है कि — 'प्यार एक आध्यात्मिक, स्प्रिचुअल बात है।' तो इसके लिए बड़ी परिपक्वता, मेच्योरिटी चाहिए। इसके लिए बड़ी ताक़त चाहिए, इसके लिए इंसान को सिर्फ़ उम्र से ही नहीं वास्तव में जवान होना पड़ता है; और यह मेरे सामने जो मजबूरी के अल्फ़ाज़ रखे हैं, यह जवानी के और ताक़त के और प्रेम के नहीं लग रहे हैं।

यह तो ऐसा लग रहा है कि — जैसे दो कमज़ोर से लोग हैं, जिन्हें यूँ ही समय की धाराओं ने किसी वजह से संयोगवश मिला दिए हैं और वह एकदूसरे से थोड़ा आकर्षित हो गए हैं, जैसे लोहे-चुंबक का खेल हो।; और उनके आसपास जो बड़ी-बड़ी ताकतें हैं, वह ताक़तें जो उन पर नियंत्रण रखती हैं, वह ताकतें उन्हें एकदूसरे से दूर खींचे दे रही हैं यह कहकर कि — 'तुम दोनों अलग-अलग जाति के हो।!'

अरे जात हो, पात हो, धर्म हो, उम्र हो इनमें से कौन सी चीज़ होती है जो प्यार और ताक़त के आगे रुक जाए, ठहर जाए। दुनिया में आजतक जितने भी बड़े काम हुए हैं, चाहे आदमी के उद्यम का कोई क्षेत्र हो, वह सारे काम बस इन दो चीज़ों से हुए हैं –— प्रेम से और सामर्थ्य से, बल से।

अध्यात्म में भी बस यह दो चीज़ें होती हैं –— एक प्रेम मार्ग होता है और दूसरा ज्ञान मार्ग होता है।; इनके अलावा और तो कुछ होता ही नहीं। तुमने इन दोनों की अगर उपेक्षा कर दी है, तो अब अगर तुम चाह रहे हो कि बस किसी तरीके से ब्याह हो जाए, और फिर मैं और मेरी लड़की एक आम साधारण, औसत, शादीशुदा जीवन बिताना शुरू कर दें, तो मैं तुमसे कह रहा हूँ, तुम्हें तुम्हारे घर वालों की अनुमति मिल भी जाए तो तुम्हारा उससे कोई कल्याण नहीं हो जाने वाला।

तुम कोई पहले तो हो नहीं जो अन्तर्जातीय विवाह करोगे। हज़ारों-लाखों लोग हैं जो इन दिनों इंटर-कास्ट शादीयाँ कर रहे हैं।; तुम्हें क्या लग रहा है वह शादियाँ बड़ी सफल हो जाती हैं? वह दोनों लोग एक दूसरे के साथ में बड़ी ऊँचाइयाँ छू लेते हैं? बड़े प्रसन्न हो जाते हैं? एकदम बदल के निखर जाते हैं? ऐसा कुछ नहीं हो जाता।

वही औसत, चिड़चिड़ा, संकुचित जीवन बिताते हैं सब। चाहे तुमने अपनी ही जाति में विवाह किया हो, चाहे अपनी जाति से बाहर, अपने धर्म से बाहर, अपनी राष्ट्रीयता से बाहर विवाह किया हो।

बात इसकी है ही नहीं कि जिससे शादी कर रहे हो उसकी जाति क्या है, बात इसकी है कि तुम्हें प्रेम है भी क्या? या बस यूँ ही कोई फ़िल्मी फूल खिला दिया है?

जहाँ प्रेम होता है वहाँ बड़ी-से-बड़ी अड़चन अपनेआप हट जाती है। इतना ही नहीं एक बात और बोल रहा हूँ — प्रेम जब होता है न, तो तुम्हारे आसपास के लोग ख़ुद, संभावना यही है कि तुम्हारे प्रेम का सम्मान करना शुरू कर देते हैं।

घरवाले क्यों तुम्हारे प्रेम को अनुमति, सहमति दे दें अगर उन्होंने बचपन से ही तुम्हें दुर्बल ही देखा है। जब उन्होंने बचपन से देखा है कि तुम्हारा हर निर्णय औंधे-मुँह गिरा है। तुममें कुछ भी चुनने की तमीज़ रही ही नहीं है, जैसे ज़्यादातर लोगों को नहीं रहती है, तुम कोई अपवाद थोड़े हीथोड़ी हो।

ज़्यादातर लोग नहीं जानते पढ़ाई कैसे करें। ज़्यादा तो लोग यह भी नहीं जानते कि एक शर्ट ठीक से कैसे चुनकर खरीदें। ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि कक्षा दस के बाद ग्यारहवीं में विषयों का चयन कैसे करें। ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि बारहवीं के बाद कॉलेज कौन सा चुनें। ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि सही दोस्त कैसे बनाएँ, घटिया किस्म की ही दोस्तियाँ करी होती हैं सारे लोगों ने, और यह बात घर वालों ने भी देखी होती है। तो घर वालों को अब कैसे यकीन आ जाए कि अब तुमने कोई लड़की या लड़का चुन लिया है तो वह तुम्हारे लिए बिलकुल सही और शुभ होगा।

घर वालों को भी यकीन तो तब आएगा न जब वह तुम्हारे चरित्र में, तुम्हारे बोध में, तुम्हारे चुनाव में एक ताक़त और एक स्पष्टता देखेंगे। वह उनको दिखाओ तो सही! और फिर देखो कि क्या वह स्वयं ही पीछे नहीं हट जाते। और उसके बाद वह स्वयं नहीं भी पीछे हटते तो तुम्हारी ताक़त ऐसी होगी की परवाह नहीं करेगी। तुम कहोगे ‘— अब वह पीछे नहीं भी हट रहे तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा क्योंकि हम जानते हैं कि हम जो कर रहे हैं वह सही है, मेरे लिए भी सही है, उस लड़की के लिए भी सही है और हमारे घर वालों के लिए भी सही है, पूरी दुनिया के लिए सही है। तो अगर मैं घर वालों की राय यहाँ नहीं भी मान रहा हूँ, अगर मैं उनकी आज्ञा का यहाँ उल्लंघन भी कर रहा हूँ, तो मैं सबके लिए सही काम कर रहा हूँ, एक दिन घर वाले भी समझेंगे कि मैंने बिलकुलबिल्कुल सही चुनाव किया, बिलकुलबिल्कुल सही काम किया।

किसी की ओर बढ़ने का उद्देश्य यही मत रखो, ‘दैहिक सुख!’ प्रेम का वास्तविक अर्थ समझो उसके बाद कोई तुमको रोक नहीं पाएगा विशाल।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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