सच्चा दोस्त कौन है?

Acharya Prashant

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सच्चा दोस्त कौन है?
हमारी फ़िल्में, किस्से, संस्कृति यही सिखाते हैं कि दोस्त वो है जो गुनाहों में शरीक हो जाए, सही-गलत का बिना सवाल किए साथ दे। लेकिन सच्चा दोस्त वो है जो ज्ञान दे, प्रकाश दे; न कि अँधकार में सहायक हो। जो तुम्हारे अँधेरे को चुनौती दे, तुम्हें बाहर निकाले। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

आचार्य प्रशांत: अध्यात्म की क़रीब-क़रीब डरावनी छवि बना दी जाती है बालकों, किशोरों और युवाओं के मन में। तो जब मैं कॉलेजों में जाकर युवाओं से बात करता था तो उनमें से एक तो बेचारे काँपते-सिहरते खड़े होते थे और कहते थे, “सर, अगर पूरी दुनिया में सब आध्यात्मिक हो गए तो दुनिया का क्या होगा?’ ये वो प्रश्न नहीं कर रहे हैं, पूछ नहीं रहे हैं, अगर पूछ रहे होते तो उत्तर पाने से पहले ही इतने डरे कैसे होते?

उत्तर उन्हें पहले ही बता दिया गया है। उन्हें बता दिया गया है कि आध्यात्मिक होना कुछ ख़तरनाक बात होती है। और हज़ार में दो ही चार लोग हों तब ठीक है, ज़्यादा लोग हो गए तो दिक्क़त हो जाएगी। “पचास-पचास कोस दूर तक जब भी कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है, बेटा चुप हो जा नहीं तो बाबा आ जाएगा, अध्यात्म ख़तरनाक है!”

दुनिया में आध्यात्मिक लोग नहीं हैं तब कैसी दुनिया है ये तो आप देख ही रहे हैं। आध्यात्मिक हो गए लोग तो दुनिया जैसी है इससे तो बेहतर ही होगी। मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूँगा कि वह बहुत-बहुत सुंदर दुनिया होगी वो जिसमें सब आध्यात्मिक होंगे।

पर बालकों के और युवाओं के मन में दहशत भर दी जाती है। पति सत्संग में आने को निकले तो स्त्रियाँ चीत्कार करके उनके पैरों पर गिर पड़ती हैं, ‘मैंने ऐसा क्या कर दिया है जो अब तुम सत्संग में जाओगे? मुझसे क्या भूल हो गई कि तुम ज्ञान की तरफ़ चल दिए? मैं तुम्हें अज्ञान के इतने सुख दे तो रही हूँ, वो सुख अब कम पड़ने लगे क्या, ज्ञान की ओर क्यों जा रहे हो?’ यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है। स्त्री सत्संग की ओर चल पड़े, पुरुष के भीतर घोर असुरक्षा उठने लगती है कि ये तो अब निकली शिकंजे से।

तो समझ रहे हो न साहिल, ज्ञान किसके लिए हानिकारक है? अज्ञान के साथ जिसके स्वार्थ जुड़े हुए हों। दुर्भाग्यवश हममें से ज़्यादातर लोगों के स्वार्थ अज्ञान के साथ ही जुड़े हुए हैं इसीलिए हमें बिलकुल पसंद नहीं आता अगर किसी के जीवन में रोशनी उतर रही हो तो।

मैं पूछता था लड़कों से, कॉलेजी लड़के, दस साल पहले की बात। तुम्हारे दोस्त कौन हैं? तुम क्या करते हो अपने दोस्तों के साथ? तो उत्तर आता था कि हमारे दोस्त वो हैं हम जिनके साथ मस्ती कर सकते हैं, हमारे दोस्त वो हैं कि जब हमारी लड़ाई हो जाती है तो वो तुरन्त आकर हमारा साथ देते हैं। वो ये पूछते भी नहीं कि हम सही हैं या ग़लत, हम धर्म के साथ खड़े हैं या अधर्म के साथ खड़े हैं। लड़ाई हुई नहीं कि मैं फ़ोन करता हूँ कि आना ज़रा और भागते हुए बाइकों पर पहुँच जाते हैं। दोस्त कौन हैं? जो परीक्षा में हमें नक़ल करा देते हैं। दोस्त कौन हैं? जिनके साथ हम बियर इत्यादि पी लेते हैं। बात समझ रहे हो न?

मुझे सुनने को ही नहीं मिला कि मेरा दोस्त वो है जो मुझे ज्ञान दे, प्रकाश दे। ये बात हमें बार-बार सिखायी जा रही है कि दोस्त का मतलब होता है वो जो तुम्हारे अँधेरे में तुम्हारा सहायक बने। सहायक किस अर्थ में? अँधेरा कायम रखने में सहायक। जो तुम्हारे अँधेरे को चुनौती दे, तुम्हें अँधेरे से खींचकर बाहर ले जाए वो दोस्त नहीं है तुम्हारा, वो या तो दुश्मन हुआ तुम्हारा या कोई बड़ा बोरिंग आदमी। कि इनके पास तो जब भी जाओ तो ये ज्ञान की ही और प्रकाश की ही बातें करते हैं।

आप फ़िल्में देखें, आप किस्से सुनें; पूरा कल्चर, पूरी संस्कृति सिखा ही यही रही है कि दोस्त माने वो जो तुम्हारे साथ तुम्हारे गुनाहों में भी शरीक हो जाए।

दोस्त कौन? जिससे तुम दो-दो घंटे फ़ोन पर बात करो। अब दो घंटे तो किसी से कोई ज्ञान की चर्चा तो कर नहीं रहे या कर रहे हैं? ये जो घंटों-घंटों फ़ोन पर जो बात होती है इसमें गीता और उपनिषद् तो बाँचे नहीं जा रहे। पर दोस्त वही जिसके साथ तुम दो घंटे बिलकुल घटिया तरीक़े की बातें कर सको। फिर यही लड़का जब थोड़ा आगे बढ़ता है, ये विपरीत लिंग के संपर्क में आता है। स्त्री है तो पुरुष की ओर आकर्षित होता है, पुरुष है तो स्त्री की ओर बढ़ता है। तो ये अपना विपरीतलिंगी साथी भी ऐसे ही चुनता है जो मेरे साथ सबसे ज़्यादा व्यर्थ बातें कर सके, बकवास में शरीक हो सके, वो मेरा मित्र है।

जैसे फ्रेंड चुना था फिर वैसे ही बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड चुन लिए जाते हैं; पैमाना, क्राइटिरिया वही रहता है। मिले कोई आपको ऐसी लड़की कि जिसको आप रात में एक बजे फ़ोन करो बिलकुल कामातुर होकर, कामाग्नि में जलते हुए रात में एक बजे उसको फ़ोन करा और उसने तुमको सुना दिया उपनिषद् का शांति पाठ तो शांति पाठ ख़त्म होने से पहले ब्रेक-अप हो जाएगा। होगा या नहीं होगा? ब्रेक-अप का तो सीधा-सरल तरीक़ा ही यही है, आध्यात्मिक हो जाओ। आध्यात्मिक हुए नहीं कि सब मक्खी-मच्छर दूर हो जाते हैं। इससे ये भी समझ गए होगे कि ज्ञान किसके लिए लाभदायक है। जो तुम्हारे जीवन में रोशनी लेकर आ रहा है तुम उसको और मूल्य दे पाओगे जैसे-जैसे तुम्हें ज्ञान होगा।

साफ़ समझना जैसे-जैसे तुम्हें ज्ञान होगा, तुम्हारी नज़र में उसका मूल्य गिरता जाएगा जो तुम्हारे जीवन में अँधेरा लाता है। और तुम्हारे जीवन में उसका मूल्य बढ़ता जाएगा जो तुम्हारे जीवन में रोशनी लाता है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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