प्रश्नकर्ता: सर, हम लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इतने सारे लोगों से मिलते हैं। बहुत लोग होते हैं जो नाटक करते हैं, ज़्यादातर के तो नकली चेहरे ही होते हैं। तो किस पर विश्वास कर सकते हैं कि कौन हमारा असली दोस्त है? कैसे जाने कि कौन हमारी परवाह करता है?
आचार्य प्रशांत: आप कैसे जानोगे? आप पूछ रहे हो कि कैसे जानूँ कि सच्चा दोस्त कौन है, नकली कौन है, कौन मेरे सामने मुखौटा लगा कर खड़ा हुआ है? मैं पूछ रहा हूँ कि जानने वाला कौन है? इन सब का निर्धारण करने वाला कौन है? ‘मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे जीवन में कौन असली है और कौन नकली है,’ — ये जानेगा कौन? मैं ही तो जानूँगा न? अपने ही मन से जानूँगा, अपने ही दृष्टि से देख कर। अगर मेरी ही आँख साफ़ नहीं है, तो क्या मैं दूसरों को साफ़-साफ़ देख पाऊँगा? ‘मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे जीवन में जो यह दूसरे मौजूद हैं, इनमें से असली कौन और नकली कौन।’
तुम्हारा सवाल है दूसरों के बारे में। मैं सवाल को विपरीत कर रहा हूँ। अब मैं सवाल कर रहा हूँ तुम्हारी अपनी नज़र के बारे में, क्योंकि जानने वाले तो तुम ही हो न, निर्णय तो तुम ही सुनाओगे न, तुम ही तो घोषणा करोगे कि यह असली है और यह नकली है। जब जज ने, निर्णय करने वाले ने, वो जो वहाँ बैठा हुआ है, न्यायाधीश! (मन की और इंगित करते हुए) जब उसने जम कर शराब पी रखी हो, तो वह निर्णय कैसे करेगा? कैसे निर्णय करेगा? उल्टे-पुल्टे ही तो।
तो यह मत पूछो कि मैं कैसे जानूँ कि जीवन में कौन असली है, कौन नकली है। यह पूछो कि मैं अपना मन साफ़ कैसे करूँ, फिर सब जान जाओगे! असली, नकली सब स्पष्ट दिख जाएगा। अभी तुम्हारी असली-नकली की जो परिभाषा है, वो भी हो सकता है नकली हो! क्या तुमने गौर किया इस बात पर? अभी तो असली, नकली की जो परिभाषा है, वो देखो न कैसी है। तुमने दोस्तों की बात की, तुम कहते हो, ‘जो ज़रुरत में काम आए, वो मित्र।' तुमने देखा नहीं है कि यह कैसी नकली परिभाषा है? तुम कह रहे हो कि जो तुम्हारी ज़रूरतों को पूरा करे, वो तुम्हारा दोस्त है।
पहले ख़ुद जग जाओ, फिर दुनिया साफ़-साफ़ दिखाई देगी। सब दिख जाएगा।
अब दूसरी बात पर आते हैं। यदि असली बात यही है कि मुझे ख़ुद जगना है, यदि असली बात ये नहीं है कि लोग कैसे हैं, कि मतलबी हैं, चालबाज़, लुटेरे, या भले हैं, अगर असली मुद्दा यह है कि मेरी आँखें साफ़ होनी चाहिए, मेरे जीवन में स्पष्टता होनी चाहिए, तो फिर मेरा दोस्त कौन होगा? अगर सर्वप्रथम मुझे यह देखना है कि मेरा मन साफ़ रहे, मेरी दृष्टि पैनी रहे, मैं होश में रहूँ, तो मेरा दोस्त कौन हुआ? मेरा दोस्त वो हुआ जो मुझे होश में लाने में मदद करे। मेरा दोस्त वो हुआ, जिसकी मौजूदगी में मुझे नकली न होना पड़ता हो। मेरा दोस्त वो नहीं जिसके सामने मैं पाँच मुखौटे पहनूँ और वो कहे कि पाँच और पहन ले।
मेरा दोस्त वो जो मुझसे कहे, ‘दोस्त तुझे किसी मुखौटे की ज़रूरत नहीं है।’ मेरा दोस्त वो जो मुझसे कहे, ‘तू सुन्दर है, तू पूरा है, तू क्यों डर रहा है, तू अपने आप को जान और तू जैसा है भला है।’ वो होगा मेरा दोस्त। मेरा दोस्त वो नहीं हुआ जो मुझे और नशे में डाल दे! भविष्य के नशे, आकर्षणों के नशे, विचारों के नशे, इधर-उधर की व्यर्थ चर्चा के नशे। मेरा दोस्त वो हुआ जो मेरे नशों को उतार दे।
पर एक दिक्कत है। ऐसा दोस्त तुम्हें पसंद नहीं आएगा! ऐसा दोस्त तुम्हारे जीवन में आएगा तो तुम कहोगे कि यह दोस्त नहीं दुश्मन है क्योंकि वो उन सब बातों पर आघात करेगा जो तुम्हें प्रिय है। तुम्हें तो नशे ही प्यारे हैं। जो असली दोस्त होगा वो तुम्हारे नशे तुमसे छुड़ाएगा, और इस कारण तुम्हें पसंद नहीं आएगा। अब यह बड़ी विकट स्थिति है, कि जो असली दोस्त होगा वो हमें रुचेगा ही नहीं और जो नकली है वो हमें बड़ा प्यारा लगेगा! बड़ा प्यारा लगेगा! तुम देखो अपने आसपास, तुम अपने ही दोस्तों को देख लो कि तुम्हें कौन प्यारा लगता है। जो भी तुम्हारे भ्रमों को बनाए रखने में तुम्हारी मदद करता है, वही तुम्हें प्यारा लगता है। जो भी नीचताओं में तुम्हारा साथ देता है, उसी को तुम अपना सबसे गहरा दोस्त मानते हो। अब क्या करें? अब क्या होगा?
तो तुम्हें ऐसा दोस्त भी मिल सके, इसके लिए तुम्हें पहले थोड़ी सी सद्बुद्धि चाहिए ताकि तुम यह निर्धारित तो कर सको कि किसको अपने जीवन में रखना है। जीवन हमारा बना है प्रभावों से, और हमने सारे भ्रष्ट प्रभाव चुन-चुन कर अपने जीवन में भर लिए हैं।
वास्तविक दोस्त तुम्हें तुम्हारे करीब ले आता है, नकली दोस्त तुम्हें तुमसे दूर ले जाता है।
बात पकड़ लो। असली दोस्त तुम्हें तुम्हारे करीब ले आएगा। उसकी मौजूदगी में तुम्हें गहन शान्ति मिलेगी, और नकली दोस्त तुम्हें उत्तेजनाएँ देगा। वो तुम्हें दूर ले जाएगा। वो तुमसे कहेगा कि ये पाना है, वो पाना है। वो तुमसे कहेगा कि यहाँ चल और वहाँ चल। यही लक्षण हैं, बड़े सरल लक्षण हैं। देखना चाहोगे तो दिख जाएगा। इसलिए मैंने कहा कि सबसे पहले तो अपनी सद्बुद्धि पाओ। तो प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हें सद्बुद्धि मिले और तुम ख़ुद ही देख पाओ कि किसको मित्र के रूप में रखना है। ठीक है?