
प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, सबसे पहले तो बहुत थैंक यू, सर। सर, मेरा क्वेश्चन है अपने पापा को लेकर। सर, मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ, मुझे ब्रेन ट्यूमर हुआ जिसकी दो बार सर्जरी हुई। बहुत डिप्रेशन में थे वो, बहुत बीमार हो गए, और उसके बाद उन्होंने मेरा इलाज करवाया। अभी मैं बिल्कुल ठीक हूँ।
सर, अब उन्हें प्रॉब्लम है कि वो ड्रिंकिंग के एडिक्टेड हो गए हैं। और सर, एडिक्टेड इतने ज़्यादा हो गए हैं कि उनका लूप चलता है, ड्यूटी वो पूरी करते हैं, हमारे लिए कभी कोई कमी नहीं छोड़ते, हम बच्चों के लिए, मम्मी के लिए हमेशा अवेलेबल हैं। लेकिन लूप है कि ड्रिंक करेंगे एक दिन, दो दिन, तीन दिन, और फिर तब तक करेंगे जब तक वो बीमार नहीं हो जाते। फिर एडमिट होंगे, फिर हमें अपॉलजाइज़ करेंगे, फिर दो दिन ठीक चलेंगे, फिर वही लूप।
ड्यूटी मिस नहीं करते, लेकिन सर उसकी वजह से हम पूरी फैमिली फ़्रस्ट्रेशन में हैं। और सर, वो इतने सारे हार्ट के पेशेंट हैं, किडनी के पेशेंट हैं, डायबिटीज़ है उन्हें और भी बहुत सारी बीमारियाँ हैं। 55 की ऐज है।
तो सर, मैं कई बार सोचती हूँ कि उन्हें अकेला छोड़ दूँ क्योंकि मैं बहुत कोशिश कर चुकी हूँ। लेकिन मैं उन्हें इस कंडीशन में अकेला कैसे छोड़ सकती हूँ? और सर, उनके साथ रहती हूँ तो फ़्रस्ट्रेशन होती है कि मैं अपना टाइम ख़राब कर रही हूँ, मुझे और कुछ करना चाहिए। तो सर, मैं क्या करूँ इस चीज़ में?
आचार्य प्रशांत: देखिए, आमतौर पर कोई भी एडिक्शन एक पूरे इकोसिस्टम से उठता है। वो एक व्यक्ति भर की बात नहीं होता, वो पूरे एक परिवेश की बात होता है। और इसीलिए एडिक्शन छोड़ना इतना मुश्किल होता है क्योंकि हम इलाज, ट्रीटमेंट या एक्शन करना चाहते हैं व्यक्ति के तल पर। हमें लगता है, इस व्यक्ति में कुछ गड़बड़ है तो इसलिए ये एडिक्टेड है। इस व्यक्ति का इलाज करो तो ये ठीक हो जाएगा और वो बड़ा मुश्किल पड़ता है।
क्योंकि एडिक्शन मूलतः उस व्यक्ति का है ही नहीं। एडिक्शन उस पूरे इकोसिस्टम का है, उस पूरी व्यवस्था का है, जहाँ वो व्यक्ति साँस ले रहा है, खा रहा है, पी रहा है, जी रहा है, जिनसे बात कर रहा है, जिनसे रिश्ते हैं, वो सब कुछ मिलजुल कर के परिणाम दे रहा है एडिक्शन का, लत का।
तो अगर इसको आप एक तरह का आउटपुट मानते हो, एडिक्शन को, तो इसको बदलने के लिए आपको उनकी पूरी ज़िंदगी ही बदलनी पड़ेगी। जो उनका पूरा परिवेश है, वातावरण है, जिस माहौल में वो उठ रहे हैं, बैठ रहे हैं, खा-पी रहे हैं, बातचीत कर रहे हैं, वो सब बदलना पड़ेगा। उसको बदले बिना आप चाहो कि बाक़ी सब कुछ वैसे ही चलता रहे ज़िंदगी में जैसा आज तक चला आ रहा है, बस उनकी ड्रिंकिंग बंद हो जाए, तो मुश्किल होगा।
हो सकता है, बहुत काम होते हैं। डी-एडिक्शन के होते हैं, रिहैबिलिटेशन ये सब चलता है। उसमें सक्सेस भी मिलती है कई बार, लेकिन फिर उसमें रिलैप्स भी होता है। आप जिसका एडिक्शन छुड़ा देते हो, आप पाते हो कि छह महीने बाद उसने दोबारा शुरू कर दिया। उसकी वजह यही होती है, उस व्यक्ति में आपने कुछ बदलने की कोशिश की होती है, उसका माहौल तो नहीं बदला होता है न, उसके रिश्ते तो नहीं बदले होते न, उसकी नौकरी तो नहीं बदली होती न।
तो जब तक आप व्यक्तित्व को ही नहीं बदलोगे और उसके पूरे माहौल को नहीं बदलोगे, तब तक जो भी लत लगी हुई है, वो लगी रहेगी।
बड़ी खुशनसीबी होगी कि अगर सब कुछ पहले जैसा चल रहा है लेकिन व्यक्ति ने जो भी एडिक्शन है, उसको छोड़ दिया। वो बहुत मुश्किल, रेयर होता है। आपको देखना पड़ेगा कि घर में छोटी-सी बात है, टीवी यदि चलता है, तो टीवी में लोग क्या देख रहे हैं? घर में जितने भी सदस्य हैं, उनके आपस में रिश्ते कैसे हैं? अगर वो जॉब आप ड्यूटी वग़ैरह कुछ कह रही थीं, जॉब पर जाते हैं तो…
प्रश्नकर्ता: सर, वो गवर्नमेंट जॉब है तो उसे छोड़ तो नहीं सकते।
आचार्य प्रशांत: अब फैसला करना पड़ेगा, हो सकता है छोड़ना पड़े। क्यों नहीं, गोल्डन हैंडशेक होता है, ले लें न वी.आर.एस. (वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम)। कुछ कह नहीं सकते हम। वो जो फ्री होते हैं, इस ख़्याल के साथ फ्री होते हैं कि आज संडे है, कल फिर से उसी जॉब में जाना है, तो उसको आप फ्रीडम नहीं बोल सकते अभी।
प्रश्नकर्ता: नहीं, सर। वो अपनी जॉब से प्यार करते हैं?
आचार्य प्रशांत: कह नहीं सकते, कुछ नहीं कह सकते। हमें तो बस ये पता है कि वो जो उनका पूरा माहौल है, उसी का आउटपुट है उनकी ड्रिंकिंग। जिस पूरे माहौल में वो जी रहे हैं, चौबीस घंटे उठ-बैठ रहे हैं, उसी का नेट आउटपुट ये है कि उन्हें शराब पीनी पड़ती है।
आप समझिए, शराब पीना माने क्या होता है? आपने कभी अगर थोड़ी-बहुत पी हो तो आपको पता होगा कि क्या होता है शराब पीने से। क्या होता है? आप थोड़ी देर के लिए सब भूल जाते हो, यही तो होता है। यही चीज़ मूवी देखने में होती है। यही चीज़ अपने आपको कोई भी एंटरटेनमेंट या जनरल प्लेज़र देने में होती है, यहाँ तक कि शॉपिंग में भी। आप जाकर के बस विंडो शॉपिंग ही करने लग जाओ, थोड़ी देर को आप सब भूल-भाल जाते हो। या किसी से आप गॉसिप करने लग जाओ तो भी आप भूल जाते हो। यही तो हो रहा है न।
इसका मतलब आपके पास कुछ है भूलने लायक। व्यक्ति पीता इसलिए है क्योंकि होश उसे गवारा नहीं होता, क्योंकि होश आएगा तो कुछ ऐसा याद आएगा जो वो याद नहीं रखना चाहता। तो इसलिए फिर वो पीता है, और इसीलिए फिर वो बहुत टीवी भी देखता है, इसीलिए गॉसिपिंग भी करता है, इसीलिए वो सौ तरह के एंटरटेनमेंट में जाता है, इसीलिए बहुत सारे लोग एडवेंचर में निकल जाते हैं, बहुत सारे लोग कुछ और करना शुरू कर देते हैं, ऑल काइंड्स ऑफ़ डिस्ट्रैक्शन्स, जस्ट सो दैट समथिंग कैन बी फॉरगॉटन।
तो उस वातावरण में कुछ है जो उनको तकलीफ़ दे रहा है। कोई भी व्यक्ति सिर्फ़ एक कारण से ही पीता है, उसे अपनी ज़िंदगी बर्दाश्त नहीं हो रही। उसकी ज़िंदगी बदल दो, उसके पास पीने की कोई वजह नहीं बचेगी।
कोई आपका बहुत-बहुत गहरे आनंद का क्षण हो, उसमें आप बेहोश होना चाहोगे क्या? पूछ रहा हूँ। उसमें तो आप नींद को भी भगा देते हो, भगाते हो कि नहीं? जो आपका डीप जॉय का मूवमेंट होता है, उसमें आप सोना चाहते हो, बेहोश होना चाहते हो, चाहते हो क्या? नहीं होना चाहते न। तो इसी तरीक़े से आप पीना नहीं चाहोगे अगर ज़िंदगी जॉयफ़ुल हो जाएगी। आप कहोगे, पी लूँगा तो अभी जो हो रहा है वो छूट जाएगा।
पीता है आदमी, कहते हैं न ग़म गलत करने के लिए। ग़म है इतना क्यों, ये पता लगाइए पहले।