Meera Bai

Is Enlightenment More Difficult for Women?
Is Enlightenment More Difficult for Women?
17 min
A man has to give up on greed, on this and that. A woman has to give up on the feelings related to the body. On all the assumptions and other stuff related to the body. Leaving the house, for her, is like becoming naked. And then the rest of the journey is very easy for her. If you have a woman who can drop her physicality, who can get rid of the basic woman-ness, then you have a great saint in front of you.
लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव आइ.आइ.एस.सी बेंगलुरु (2022)
लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव आइ.आइ.एस.सी बेंगलुरु (2022)
25 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। आचार्य जी, ऐसा कहते हैं कि एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते। मैंने भी यह देखा है कि कहीं-ना-कहीं कुछ छुपी हुई मंशा रहती है या इरादे रहते हैं।

इसी सिलसिले में एक पॉडकास्ट मैंने सुना, हालाँकि वह यूएस बेस्ड (आधारित) है,

आत्मविश्वास बढ़ाने का अचूक तरीका || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
आत्मविश्वास बढ़ाने का अचूक तरीका || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
16 min

प्रश्नकर्ता१: आचार्य जी प्रणाम। आचार्य जी, मैं पंजाब से हूँ। मेरा सवाल लो सेल्फ़स्टीम, प्रोकास्टिनेशन (कम आत्मसम्मान, टालमटोल) पर्सनल-प्रोफेशनल फ़्रन्ट (व्यक्तिगत-व्यावसायिक अग्रता) पर है।

आचार्य जी, फ़्रॉम लास्ट सो मैनी ईयर्स, आई एम लिसनिंग टू सो मैनी स्प्रिचुअल गुरूज़ एण्ड इन्सपिरेशन वीडियोज़ आई एम सीइंग (अन्तिम बहुत से सालों से

भक्ति और साधना कैसे करें? || आचार्य प्रशांत (2019)
भक्ति और साधना कैसे करें? || आचार्य प्रशांत (2019)
13 min

प्रश्नकर्ता: सर, क्या भक्ति सुमिरन है, क्या इसमें ध्यान लगाना चाहिए, भक्ति कैसे करनी है? कई लोग कहते हैं कि आप ध्यान में बैठोगे, वो भक्ति है; या आप सुमिरन कर लोगे, वाहे गुरु, वाहे गुरु जाप कर लोगे, वो है। आप राम-राम कर लो वो है या आप ओम्-ओम्

भजन, ध्यान की श्रेष्ठ विधि || आचार्य प्रशांत (2013)
भजन, ध्यान की श्रेष्ठ विधि || आचार्य प्रशांत (2013)
9 min

आचार्य प्रशांत: ध्यान की तीन बेहतरीन विधियाँ हैं। हज़ारों हो सकती हैं, इसमें ये तीन सर्वश्रेष्ठ हैं। पहला — जप; जप का अर्थ है दोहराना, रिपिटिशन , ताकि भूलें नहीं, लगातार याद रहे, कोंस्टेंट रिमेंबरेन्स (सतत स्मरण)। लगातार नाम लिया जाता रहे, लगातार नाम लिया जाता रहे।

दूसरा, इस बात

सत्य के ध्यान की विधि? || आचार्य प्रशांत (2018)
सत्य के ध्यान की विधि? || आचार्य प्रशांत (2018)
35 min

आचार्य प्रशांत: मुकेश पूछ रहे हैं कि क्या ध्यान करते समय किसी पर केंद्रित होना है? गिरेन्द्र कह रहे हैं कि मन एक बार में एक ही काम क्यों करना चाहता है? कहते हैं कि जब ईश्वर को याद करता हूँ तो संसार को भूलता हूँ। जब संसार याद आता

बेचैन मन का शान्ति की ओर खिंचना ही प्रेम है || आचार्य प्रशांत (2019)
बेचैन मन का शान्ति की ओर खिंचना ही प्रेम है || आचार्य प्रशांत (2019)
16 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मुझे कर्म में कोई विश्वास नहीं है, भक्ति में कोई श्रद्धा नहीं है। मुझे धर्म की कोई समझ नहीं है, तो परमात्मा की कृपा मुझ पर होगी या नहीं? परमात्मा से मेरा कभी साक्षात्कार होगा?

आचार्य प्रशांत: तो अभी जैसे भी हो तुम, उससे अगर संतुष्ट ही

देह है तो वियोग रहेगा || आचार्य प्रशांत, भक्त मीराबाई पर (2017)
देह है तो वियोग रहेगा || आचार्य प्रशांत, भक्त मीराबाई पर (2017)
9 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कहा जाता है कि मीरा जी को कृष्ण मिल गये थे, फिर भी वो वियोग के गीत क्यों गाती थीं?

आचार्य प्रशांत: क्योंकि शरीर है अभी भी। क्योंकि मीरा अभी मीरा है। जब तक शरीर रहेगा उनके पास, तब तक पूर्णतया कृष्ण न हो पाएँगी। तो जब

रस नज़दीकी में है || आचार्य प्रशांत, मीराबाई पर (2014)
रस नज़दीकी में है || आचार्य प्रशांत, मीराबाई पर (2014)
24 min

वक्ता: मीरा कहती हैं:

दास भक्त की दासी मीरा

रसना कृष्ण रटे

उसके साथ सूर कहते हैं:

सोइ रसना

जो हरि गुण गावै

सवाल किया है कि रसना यानि ज़बान, जिह्वा की सार्थकता ईश्वर के गुण गाने में बताई गयी है। आशय क्या है हरि गुण से? और फिर जो

तैंतिस कोटि देवता मरिहैं || आचार्य प्रशांत, मीराबाई पर (2015)
तैंतिस कोटि देवता मरिहैं || आचार्य प्रशांत, मीराबाई पर (2015)
8 min

कीट पतंग और ब्रह्मा भी चले गए

कोई न रहेगा अवसान

~ मीरा

प्रश्न: सर, ब्रह्मा भी चले गए, यह बात कुछ समझ में नहीं आ रही है।

वक्ता: कुछ नही है जो मन से न निकला हो

मन ही जन्म है, मन ही मत्यु है। व्यर्थ ही नहीं

तुम ही मीरा, तुम ही कृष्ण || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
तुम ही मीरा, तुम ही कृष्ण || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
14 min

प्रश्नकर्ता; आप मीरा जी के प्यार को क्या नाम देंगे? आप उसे भक्ति बोलेंगे या उसे कृष्ण के प्रति प्यार कहेंगे?

आचार्य प्रशांत: तो जसप्रीत (प्रश्नकर्ता) हम अपनी बात करें। मीरा हुए बिना, मीरा को जान नहीं पाओगे। बाहर-बाहर से देखोगे, दूर-दूर से समझने की कोशिश करोगे, कुछ बात बनेगी

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तो आज यह संभव हुआ है, तो महिलाओं ने कहा है, भैया हमारा शरीर इसलिए थोड़ी है कि हम बच्चे ही पैदा करते रहे, तो फिर जो फर्टिलिटी रेट है, वो गिर रहा है, पूछा यह जाना चाहिए कि जब बढ़ा इतिहास में तो कैसे बढ़ा? बढ़ा ऐसे कि औरतों का दमन कर कर के बढ़ा। अब वही दमन वापस आए, उसके लिए दुनिया के बहुत सारे देश अब उनको औरतों को लालच दे रहे हैं, तुम घर पर बैठो, यह फेमिनिज्म वगैरह बेकार की बात है, यह स्वतंत्रता या इंडिपेंडेंस इसमें कुछ नहीं रखा। घर में बैठो, आराम की जिंदगी जियो, तुम घर में बैठो, बच्चे पैदा करो, हम तुम्हें मुफत का पैसा देंगे। काहे के लिए पैदा करो वो, इतने लोग क्यों होने चाहिए?
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No, no, you don't have to be empty of anything. You just have to be empty of the choice to use anything in your defense. You are born with ammunition; you don't have to keep the ammunition aside. Let the gun be there with you—just don't fire at the teacher. That's all that Shri Krishna is saying. You don't have to empty the gun. Keep it loaded; it's all right.
क्या लुक्स से मिलती हैं महिलाओं को नौकरियाँ?
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एक लड़की की बचपन से परवरिश ही ऐसे की जाती है कि देह ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। देह दिखाकर पति मिल गया, और देह ही दिखाकर अगर बॉस भी मिल जाता है, नौकरी मिल जाती है, तो क्या अनर्थ हो गया? सबसे पहले तो महिला को मनुष्य बनना पड़ेगा। जिस दिन वह देखने लगेगी कि ऐसे जीने में कोई ज़िंदगी नहीं, कोई गरिमा नहीं, उसी दिन यह खत्म होगा। ज़िंदगी में हर वो विषय, जो आपको मनुष्य की बजाय महिला बनाता हो, उसे नकार दीजिए।
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Who are the people who never understand Shri Krishna? The ones whose minds are full of Karmakand. If your mind is full of Karmakand, Shri Krishna himself has very clearly said, you will never understand the Gita because Karma Kand deals with desire, because whatever you do, you do for the sake of desire.
हम अपने काम से प्यार क्यों नहीं करते?
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प्रेम ही ज़िंदगी को अर्थ, आज़ादी और सच्चाई देता है, लेकिन हमारे जीवन में किसी भी क्षेत्र में प्रेम नहीं होता। जब मामला Loveless होता है, तो हर आदमी भागना चाहता है—अपने काम से, रिश्तों से और खुद से भी। हमें खुद से भी प्यार नहीं है। हमारा समाज और अर्थव्यवस्था ऐसी नौकरियां देती ही नहीं, जिनसे प्यार हो सके। न कंपनियां प्यार के कारण बनती हैं, न जॉब्स ऐसी होती हैं कि कोई उनसे चाहे भी तो प्रेम कर सके। हम काम से कैसे प्रेम कर लेंगे?
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सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेषः योऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ १० ॥

अर्थ: सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्मा ने कहा था कि यज्ञ के द्वारा ही वृद्धि को प्राप्त करोगे। यह यज्ञ ही तुम लोगों को अभीष्ट फल देगा और कामधेनुतुल्य सर्वाभीष्टप्रद होगा।

काव्यात्मक अर्थ:

सगुण हो बंधन चुना

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A mind full of desires gets blind. It comes to supremely stupid conclusions, and it refuses to see or acknowledge facts that disrupt or disprove its biases. It's just that the fulfillment of the desire stands zero chance of your fulfillment. But there is definitely some chance that the desire can get fulfilled. And if you are stupid enough and laborious enough, the chance of desire fulfillment can also multiply.
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हमने ज्ञान को बड़ी एक परालौकिक चीज़ बना दिया है की ज्ञान माने आसमानों पर क्या हो रहा है। वही ज्ञान है। कभी मैंने आपसे कहा कि उपनिषद् साफ-साफ बताते हैं। विद्या और अविद्या दोनों चाहिए। और आसमानों की बात तो बाद में हो जाएगी। उपनिषद् कहते हैं कि जो ज़मीन की बात नहीं समझता, वो अगर आसमानों की बात करे तो दो चांटा लगाओ उसको।
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शेक्सपियर क्यों पढ़ा रहे हो बताओ? और होगा कोई वाजिब कारण। निश्चित रूप से है। बाद में दिखाई पड़ता है कि हां एक माकूल, सही उचित वजह थी। पर उस वक्त अगर उसको ये बात नहीं पता चल रही है तो उसके लिए चीज उबाऊ हो जाती है। ये अंग्रेजी भी नहीं है। ‘दाऊ शाल्ट’— एक तो हिंदी में बात कर ले यार तू। ‘दाऊ शाल्ट’। प्यार, स्पष्टता ये सब एक साथ चलते हैं। आजादी, जिज्ञासा ये सब एक साथ चलते हैं। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आपकी जिंदगी प्यार से वंचित रह जाती है। और इससे बड़ी सजा दूसरी नहीं होती।
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ये सब जो काम होते है न बीमारों की सेवा कर देना, धर्म के नाम पर भंडारा लगा देना। क्या मतलब है इनका धर्म से? क्या मतलब है? तुम खुद उस व्यवस्था में भागीदार हो जो शोषणकारी है, दमनकारी है, जिसमें किसी को अमीर करने के लिए हज़ारों को गरीब रखना जरूरी है। वो गरीब खुद तुमने पैदा करे है। उसके बाद साल में एक-दो दिन तुम उनको खाना खिला के और कम्बल बांट के, अपने आप को धार्मिक घोषित कर रहे है और कह रहे हो मैं तो कमज़ोरों का मसीहा हूँ।
क्या भावनाएँ बंधन हैं?
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पुरुषों में महत्त्वाकांक्षा और महिलाओं में भावना, उन्हें कहीं का नहीं छोड़ते। समाज, संस्कार, लोकधर्म और देह, ये सब मिलकर चाहते हैं कि आप अपना पूरा जीवन सिर्फ़ देह के कामों में निकाल दो, कोई भी ऊँचा काम न करो। तुम्हारी भावनाएँ बंधन हैं, गहना मत माना करो उन्हें। संघर्ष करना सीखो, कोई भावनात्मक मजबूरी नहीं होती। 'मैं क्या करूँ, मेरे आँसू निकल जाते हैं।' तो फिर, ‘आँसुओं के साथ सही काम करो।’ बात इसमें नहीं है कि भावना उठी, बात इसमें है कि आपने भावना को समर्थन दे दिया क्या?
Why Did Sufi Poets Like Kabir Emphasize Love in Bhakti?
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The saints don't display affection at all. Affection actually means disease. Affection means disease. The saints have no affection. The saints have love and love has nothing to do with affection. Affection and affliction go together. It is not affection that characterizes a saint. It is love that characterizes him. Affection and dryness, they go together. Together always. And affection and love, they never go together. So you have to be very clear about what accompanies what.
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
53 min

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: | तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ||3. 9||

अन्वय: यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र (यज्ञ के लिए किए कर्म के अलावा अन्य कर्म में) लोकोऽयं (लगा हुआ) कर्मबन्धनः (कर्मों के बन्धन में फँसता है) कौन्तेय (हे अर्जुन) मुक्तसङ्गः (आसक्ति छोड़कर) तत्-अर्थ (यज्ञ के लिए) कर्म (कर्म) समाचर (करो)

काव्यात्मक अर्थ: बाँधते

(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
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37 min
If all that the Ego wants is liberation from itself, which means coming to see its own non-existence, then the only way to see its non-existence is by paying attention to itself. The more the Ego pays attention to itself, it sees that it does not exist. The more the Ego remains attached to this and that, all the sensory inputs, the Ego feels that is real and this is real.
Redefine Love This Valentine’s Day
Redefine Love This Valentine’s Day
9 min
The purest definition of love is when the mind is very, very joyful, and that joy shows up in all your relationships. Love is your internal joy spilling over. Love is not about trying to find love. Love is about letting yourself be absolutely free! That is it! Love is not object-based. Love is not about - 'I love this person,' or 'I love this work,' or 'I love this book.' Love is your inner state of mind.
श्रीकृष्ण कब अवतरित होंगे?
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7 min
जब-जब तुम सच्चाई की ओर नहीं बढ़ते, तब-तब जीवन दुख, दरिद्रता, कष्ट, रोग और बेचैनियों से भर जाता है। अधर्म अपने चरम पर चढ़ जाता है, और विवश होकर तुम्हें आँखें खोलनी पड़ती हैं। तब मानना पड़ता है कि तुम्हारी राह ग़लत थी, और ग़लत राह को छोड़कर तुम्हें सत्य की ओर मुड़ना पड़ता है। अतः जब तुम अंधेरे को पीठ दिखाते हो, तो श्रीकृष्ण को अपने समक्ष पाते हो। यही श्रीकृष्ण का अवतरण है।
How Gita Transforms Your Mind?
How Gita Transforms Your Mind?
43 min
The entire Bhagavad Gita is devoted to Freedom from the conditioning of the body and the conditioning of the mind. Gita is about letting Arjuna know who he is. In a very liberal way, Shri Krishna says, "If you realize who you are, then you will know what to do. I do not need to instruct you. So Arjuna is not even being motivated, let alone being instructed. He's being illuminated." And that illumination enables him to do what he must.
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
52 min

श्लोक: नियतं कुरु कर्म, त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न, प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥3.8॥

काव्यात्मक अर्थ:

कर्म के परि त्याग से, श्रेष्ठ है नि यत कर्म । कर्मयात्रा पर चल पड़े, जि स क्षण लि या जीव जन्म॥

आचार्य जी: श्रीमद्भगवद्गीता गीता, तीसरा अध्याय कर्म का विषय है, पिछले सत्र में

उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
47 min
यह आदमी जो अपने ऊपर हंसना शुरू करता है, यह अकर्ता हो जाता है। नॉन-डूअर हो जाता है। नॉन-डूअर का मतलब यह नहीं कि अब नॉन-डूइंग हो गई। डूइंग तो बहुत होगी! ज़बरदस्त होगी! घनघोर होगी! कल्याणप्रद होगी! ऑसपिसियस होगी! डूइंग होगी, डूअर नहीं होगा। पर कर्ता नहीं होगा। और जो यह कर्ता-हीन कर्म होता है, "द डीड विदाउट डूअर", इसके क्या कहने! यह फिर अवतारों की लीला समान हो जाता है। यह जीवन को खेल बना देता है। यह पृथ्वी पर स्वर्ग उतार देता है। यह बहुत पुराना जो कैदी है, उसे आकाश की आज़ादी दे देता है।
Saint Ravidas on Humility
Saint Ravidas on Humility
5 min
The one who takes great pride in his self and knowledge won’t be able to walk towards the Truth. But the one with humility, truly surrendered, sees things clearly. He realizes there are forces within him—his own physical system—working against the Truth. Humility is the hallmark of Sainthood. It comes with the honesty to accept one’s flaws.
What is 'Nature Worship' in Vedas?
What is 'Nature Worship' in Vedas?
14 min
You cannot worship something with the intent of obtaining favors—that's exploitation. Worshiping a cow while asking for milk is not worship. Worship is when you do not use any dairy product and yet respect the cow. The common man sees everything as an object for consumption. True nature worship is desireless—not based on consumption, with no one left to desire.
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
45 min
मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
38 min
The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
प्रेम और मोह में ये फर्क है
प्रेम और मोह में ये फर्क है
12 min
जहाँ प्रेम है, वहाँ मोह हो नहीं सकता, और जहाँ मोह है, वहाँ प्रेम की कोई जगह नहीं है। मोह में सुविधा है, सम्मान है। प्रेम तो सब तोड़-ताड़ देता है—पुराने ढर्रें, पुरानी दीवारें, सुविधाएँ, आपका आतंरिक ढाँचा, और जो सामाजिक सम्मान मिलता है। प्रेम सब तोड़ देता है। प्रेम इतनी ऊँची चीज़ है कि आप उसमें पुरानी व्यवस्था का विरोध नहीं करते, पुरानी व्यवस्था को भूल जाते हो। प्रेम और मोह दो अलग-अलग दुनियाओं के हैं।
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
49 min

श्रीमद् भगवत गीता प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग

धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

धृतराष्ट्र ने कहा, “हे संजय! धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और पांडवों ने क्या किया?”

आचार्य प्रशांत: जिज्ञासा से आरंभ हो

लड़कियाँ पराई क्यों?
लड़कियाँ पराई क्यों?
17 min
इसमें किसी तरह का कोई धार्मिक पक्ष नहीं है कि लड़की को पराया मानो, उसे घर से विदा करो। आप जीवन भर अपनी लड़की को अपने घर रख सकते हैं और यह बात पूरी तरह धार्मिक है। इसमें कोई अधर्म नहीं हो गया। आज आर्थिक तौर पर लड़की-लड़का दोनों बराबर हैं। यदि बराबर हैं तो लड़का भी आ सकता है उसके यहाँ रहने के लिए। कुछ समय वो आ जाए रहने, कुछ समय वो चली जाए। बाकी समय दूर-दूर रहो, अलग रहो, ज़्यादा शांति रहेगी।
एक ही है जिसके लिए सजना है, रिझाना है
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40 min
जो भी कर रहे हो अगर उसके कारण में राम है तो ठीक है। कारण माने उत्पत्ति, मूल। या तो मूल में राम हो या मंजिल में राम हो। मूल ही मंजिल होता है। एक ही बात है। अगर राम के लिए है तो ठीक है। जो भी गति है जीवन की अगर वह राम के लिए है तो गति कैसी भी है, ठीक है। और अगर राम के लिए नहीं है गति तो व्यर्थ है। फिर दुनिया के बाजार में बिकने के लिए तैयार हो रहे हो। बहुत तैयारी करी जा रही है। बहुत शिक्षा ली जा रही है। बहुत ज्ञान संचित किया जा रहा है। चेहरे को बहुत चमकाया जा रहा है। यह सब किस लिए करी जा रही है? राम कसौटी है।
Kumbh in the Light of Vedanta: Truth Beyond Tradition
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Immortality, and the meaning of life, is the theme of Kumbh. Seen with clarity, everything in the Kumbh narrative revolves around escaping death.

Another Kumbh festival is here. There are several ancient stories behind Kumbh. If the stories are taken merely as tales or folklore, then religion risks becoming merely

भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
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गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान्तधिरप्रदिग्धान् ।।५।।

“मैं तो महानुभाव गुरुओं को न मारकर, इस लोक में भिक्षान्न भोजन करना कल्याणकर मानता हूँ, क्योंकि गुरुओं का वध करके मैं रक्त से सने हुए अर्थ और काम रूपी भोगों को ही तो भोगूँगा।“

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक

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Amrit is at the center of the story. And where can we get Amrit from? By self introspection. The more a person knows himself, the more he will become free from himself. Free from death. What you think of yourself is known as death. And the more you look at yourself, the more you understand that what I think of myself is all futile. I'm actually not that. Negation, Neti Neti. Amrit does not mean gaining something. Amrit means being free from death.
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Love and realization are things that roar aloud. They are extremely intimate, yet if they are there, there is no way you can hide them. These are not things that you can ever prevent from getting expressed. So, don’t even try. This expression means living it. Every thought is an expression, every action is an expression. You just express. By blocking it, you are blocking the thing itself. You don’t allow it to be expressed, and it’s gone.
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What is the most beautiful thing you can think of? And why is it not worth committing yourself to if it is indeed high and beautiful? Give yourself totally to it. And then even if you have to go to Netflix etc. you'll go with a purpose. It's not some kind of a heinous crime to watch videos or something but you will remember the purpose. You're not going there to waste your precious time. Even there, the mind somewhere is remembering what the purpose is.
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आचार्य प्रशांत: तो शंखनाद होता है दोनों सेनाओं की ओर से। और संजय बताते हैं कि शंखनाद ने विशेषतया धृतराष्ट्र के पुत्रों के, कौरवों के हृदय में हलचल कर दी। मन उनके कम्पित हो गये, हृदय विदीर्ण हो गया। ये सुनने के बाद अब आते हैं दूसरे पक्ष पर। अर्जुन

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गुरु का परिचय उसका प्रभाव है; गुरु कोई पदवी नहीं है। गुरु वो हैं, जिनके होने से शांति, समझ और रोशनी आती हो। बुद्धि का भरपूर प्रयोग करो। किसी भी बात को बस आँख मूँदकर, हाथ जोड़कर स्वीकार मत कर लो कि, "गुरु जी कह रहे हैं तो ठीक ही होगी।" खासतौर पर उन जगहों से बचना जहाँ विज्ञान-विरुद्ध और अंधविश्वास से भरी हुई बातें की जाती हों। जहाँ डर हटने लगे, जहाँ मन से ईर्ष्या, संदेह, तमाम तरह की बेचैनियाँ हटने लगें, समझ लेना वह जगह तुम्हारे लिए ठीक है।
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तो जो लोग इस बच्ची के देह पर या शक्ल पर अभद्र टिप्पणियाँ कर रहे हैं, उनको पता भी नहीं है कि उनकी उन टिप्पणियों का स्रोत क्या है। इसलिए उठ रही है क्योंकि तुम्हारे घरों में, गली-मोहल्लों में और शहरों में, वास्तव में स्त्रियों के लिए कोई ऊँचा स्थान नहीं है। तुमने उनको यही बना रखा है, घर की सजावट की चीज़ें, घर का सेवक और ये मत कहिएगा ये पुरानी बात है। आज भी बहुत सारे धर्म गुरु और कथा वाचक जो बातें कहते हैं उसमें सुनिए कि महिलाओं के लिए क्या संदेश रहता है कि अगर महिला ने पति की थाली में खा लिया तो पति मर जाएगा या उसे कुछ हो जाएगा। लेकिन पति की जूठी थाली में अगर महिला खाएगी तो स्वर्ग पाएगी और पति के अगर पाँव दबाएगी तो घर में लक्ष्मी आएगी। अगर उसे पति के पाँव ही दबाने है तो बोर्ड टॉप करके क्या कर लेगी!
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There has to be a love for freedom. Especially as a young person, one should remain young all his life. You see, but you know, at least when you are in your 20s or 30s, you need to have a burning desire to to live as a sovereign entity. And when that is there, then anything that comes your way would be rightfully utilized, including crutches.
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The word for a Guru does not really exist in the English language. So, they have borrowed Guru itself, Guru. But they have borrowed the word Guru and rather misunderstood it and misapplied it. So, anybody who seems to be an expert at anything, can be justifiably called a Guru in the English language. Now that's not the proper usage in spirituality or in Sanskrit.
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मेरी रेपुटेशन खराब कर दी, मेरी इज़्ज़त नहीं करते
22 min
जो सबसे अच्छे काम होते हैं उस पर दुनिया कभी इज़्ज़त नहीं देती। दुनिया इज़्ज़त बस उन कामों को देती है जो दुनियादारी के होते हैं। दुनिया जैसे ही काम करो, दुनिया द्वारा स्वीकृत काम करो, दुनियादारी में ही तुम भी लोटने लग जाओ, तो दुनिया इज़्ज़त देगी। सचमुच जो ऊँचे काम होते हैं, उसकी तो कभी इज़्ज़त मिलेगी ही नहीं। तो जो इज़्ज़त के बहुत प्यासे हैं वो फिर कभी सचमुच ऊँचे और अच्छे काम कर भी नहीं पाएँगे। ज़िंदगी में सचमुच अगर कोई काबिल-ए-तारीफ़ काम करना है, कोई मौलिक काम करना है, तो इज़्ज़त की चाह के साथ नहीं करा जा सकता।
आदर्श, शिक्षित, सुसंस्कृत उत्तर भारतीय घर || आचार्य प्रशांत
आदर्श, शिक्षित, सुसंस्कृत उत्तर भारतीय घर || आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत: तो हमें बेटियों की चिन्ता हो रही है, होनी भी चाहिए। लेकिन बेटियों की चिन्ता का जो कारण आपके पास है, शायद बेटियों पर जो ख़तरा है वो किसी दूसरे कारण से है। जिस कारण से है, उसकी बात कर लेते हैं।

आप जब कहते हैं कि भारत