लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव आइ.आइ.एस.सी बेंगलुरु (2022)

Acharya Prashant

25 min
935 reads
लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव आइ.आइ.एस.सी बेंगलुरु (2022)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। आचार्य जी, ऐसा कहते हैं कि एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते। मैंने भी यह देखा है कि कहीं-ना-कहीं कुछ छुपी हुई मंशा रहती है या इरादे रहते हैं।

इसी सिलसिले में एक पॉडकास्ट मैंने सुना, हालाँकि वह यूएस बेस्ड (आधारित) है, लेकिन उसकी रीच (पहुँच) काफ़ी यूएस के युवा में और भारत के युवा में भी है। उसमें इस चीज को मान्यता दी गई, एग्री (सहमत) किया गया कि हाँ ऐसा ही है, कभी दोस्त नहीं हो सकते। और लड़कियों को सम्बोधित करते हुए यह कहा गया कि तुम्हारे साथ कोई लड़का है, तुम्हारी हेल्प करता है, तुम्हारी बातें सुनता है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह तुमसे मित्रता ही रखना चाहता है। तो और अगर तुम ऐसा सोचती हो तो तुम बेवकूफ़ हो। और यह ’फ्रेंड् जोन’ भी है तो यह काफ़ी एक तरह से स्टिगमेटाइज्ड (लांछित) है। लड़कों के लिए कहा जाता है कि यह वीकनेस जोन है और या तो इससे निकलो, या तो कहीं और मामला सेट करो।

तो इस पर मेरा यह प्रश्न है कि यह किस हद तक सच है। और अगर सच है तो यह क्यों इतना मुश्किल है?

अचार्य प्रशांत: क्या मुश्किल है?

प्र: दोस्त रह पाना।

आचार्य: दोस्त रह पाना मुश्किल नहीं है। दोस्त की हमारे पास एक छवि है, उस तरह की छवि पर लड़के-लड़की की दोस्ती का खरा उतर पाना मुश्किल है। दोस्त तो हो सकते हैं पर वैसे दोस्त नहीं हो सकते जैसी हमने दोस्ती की मन में छवि बना रखी है। देखो, उसका नाम ही क्या है — लड़की। ठीक है न? उसके नाम में ही उसका लिंग बैठा हुआ है, है न?

यह कोई संयोग की बात नहीं है कि आप अपना जब नाम लिखना शुरू करते हैं तो उसमें पहले श्रीमान लिख देते हैं या सुश्री लिख देते हैं, नाम के अंत में भी कुमार लिखते हैं, कुमारी लिखते हैं। संबोधन भी किया जाता है, किसी को बुलाते भी हैं तो उसको उसके लिंग से ही संबोधित करके, सूचित करके बुलाते हैं। यह बड़ी व्यावहारिक बात है। इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती और उपेक्षा करने की कोई जरूरत भी नहीं है न।

हमें जो हमारी जेंडर आईडेंटिटी (लैंगिक परिचय) है उससे डर क्यों लगता है? क्या आपको अपने शरीर या अपने व्यक्तित्व के अन्य हिस्सों को छुपाने की, या परे रख देने की कोई आवश्यकता महसूस होती है, नहीं होती न? तो वैसे ही आपके पास आप का जेंडर भी है, लिंग भी है।

जानते हो लिंग का अर्थ ही क्या होता है? सूचक, इंडिकेटर। तो भारत में आपका जो सेक्स है, उसको लिंग कहा गया। उससे आपके बारे में पता चल जाता है आप कौन हो। और वह बात भी बड़ा अर्थ रखती है क्योंकि एक स्त्री का जो शरीर होता और एक पुरुष का जो शरीर होता है, वो काफ़ी भिन्न होते हैं। और शरीर से मेरा आशय फिर सूक्ष्म शरीर से भी, हमारे मन से भी है। एक महिला और एक पुरुष के मन में भी अंतर होता है। उनके पूरे व्यक्तित्व का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है उनकी सेक्शुअलिटी (लैंगिकता) और वह अलग-अलग होती है।

तो अब दो व्यक्ति मिल रहे हैं। एक लड़का और एक लड़का मिल रहे हैं, उनकी भी जो दोस्ती है वह निर्धारित हो रही है इस बात से कि दोनों लड़के हैं, है न? दो लड़के जब साथ रहते हैं तो परस्पर एक विशिष्ट तरह का व्यवहार करते हैं, है न? दो लड़के साथ घूम रहे होंगे, उनमें दोस्ती होगी, तो आप क्या पाओगे? धौल-धप्पा कर रहे हैं, एक-दूसरे की पीठ पर मार रहे हैं, आपस में गाली-गलौज भी कर लेते हैं। और एक-दूसरे को परेशान करना दोस्ती की गहराई का सूचक हो जाता है। ठीक है न? कुछ उसके साथ ऐसा कर दिया जिसमें उसको थोड़ी सी चोट लग गई या कुछ हो गया। तो ये सब माना जाता है कि इनकी दोस्ती गहरी है। ठीक है?

वह बोल कर सोया था कि मुझे इतने बजे उठा देना, परीक्षा आ रही है, पढ़ना है। जान-बूझकर उसको नहीं उठाया और फिर जब वह देर से उठा और गालियाँ दे रहा है तो खूब हँस रहे हैं ज़ोर-ज़ोर से कि अच्छा, अब यह मरेगा। और इन सब बातों से दोस्ती और गहरा जाती है। होता है यह सब या नहीं होता है? यह पूरे तरीक़े से सेक्शुअल बिहेवियर (लैंगिक व्यवहार) है। पर तब हम कोई आपत्ति नहीं करते।

एक लड़का और एक लड़का भी जब आपस में व्यवहार कर रहे हैं तो वह जो व्यवहार है वह उनकी सेक्शुअलिटी से ही तो निर्धारित हो रहा है न? क्योंकि लड़के होते ही ऐसे हैं। क्यों होते हैं ऐसे? क्योंकि वो लड़के हैं। और लड़का होना माने हम आपकी जेंडर आइडेंटी (पहचान) की ही तो बात कर रहे है न। लड़का होना माने हम आपके सेक्स की बात कर रहे हैं। लेकिन तब हमें दिक्क़त नहीं होती कि 'हाँ देखो, दोनों सेक्शुअल बिहेवियर कर रहे है, कितनी ग़लत बात है!' तब हम कहते इसी को दोस्ती कहते हैं। हमने फिर इसी को दोस्ती की छवि, पहचान, परिभाषा मान लिया। हमने कहा, दोस्ती ऐसी ही होती है।

जबकि यदि एक लड़की और लड़की भी मिल रही है तो उनका भी आपस में एक ख़ास तरह का व्यवहार होता है। दो लड़कियाँ साथ में बैठकर के, वो सखी सहेली हों, वो आपस में बैठकर बातचीत कर रही हों, और उधर दो लड़के हों, उनका आपस में व्यवहार देख लीजिए। ये भी सखियाँ हैं, वो सखा हैं आपस में। लेकिन इधर जो चल रहा होगा, वह उधर चल रही केमिस्ट्री (व्यवहार) से बिलकुल अलग होगा। लेकिन तब हमें कोई दिक्क़त नहीं आएगी। तब हम नहीं कहेंगे कि ये लड़की और लड़की भी जो आपस में कर रही है वह उनकी सेक्शुअलिटी से ही हो रहा है।

लड़कियाँ आपस में एक-दूसरों के बाल-वाल नहीं खींचती ज़्यादा। कोई और लड़ाई-वड़ाई हुई, अलग बात है। नहीं तो उनका जो आपस में व्यवहार रहता है वह एक तरह का रहता है, संयत रहता है। लड़के आपस में बिलकुल अलग तरह का व्यवहार करते हैं। मैं जो कहना चाह रहा हूँ, समझ रहे हैं?

लड़की और लड़की भी साथ में है तो वहाँ पर प्रदर्शन सेक्शुअलिटी का ही हो रहा है। और लड़का और लड़का भी साथ में है तो वह भी जो चल रहा है, वह भी टेस्टोस्टेरॉन (पुरुषों के शरीर में पाया जाने वाला मुख्य सेक्स हार्मोन) से ही निर्धारित हो रहा है, कि मिले आपस में और सामने वाले को लात मार दी। कहे, ‘बहुत खुश थे’, तो क्या किया? ‘उसको लात मार दी’। लड़कियाँ ऐसा नहीं करेंगी। आप नहीं पाएँगे कि दो लड़कियाँ आपस में मिलीं और एक-दूसरे को संबोधित करने के लिए, प्यार जताने के लिए उसके पिछवाड़े में धड़ाक से लात मारी। और लड़कों में ऐसा व्यवहार बहुत आम होता है, होता है कि नहीं?

किसी का जन्मदिन आया तो उसको चार ने उठा लिया और बाकी पाँच लगे उसको पीटने और पीटे ही जा रहे हैं, पीटे ही जा रहे हैं। और जितना पिटा, दोस्ती उतनी ही गहरी हो गई। होता है कि नहीं होता? लड़कियों में ऐसा नहीं होता। ऐसा नहीं होगा कि किसी लड़की का जन्मदिन है तो पाँच उसको मिलकर चप्पल से पट-पट-पट पीट रही हैं। उनकी दोस्ती टूट जाएगी ऐसा कर दिया तो। लड़कियाँ आपस में ऐसा नहीं करतीं, यह बात भी सेक्शुअल (लैंगिक) है, यह बात भी उनकी जेंडर से आ रही है।

जेंडर में दोनों चीज़ें आ गयीं कि आप पैदा कैसे हुए थे, सेक्स क्या था आपका और सामाजिक फिर परिवेश क्या था आपका। दोनों बातें हैं इसमें। तो यह बात भी उनके उससे आ रही है और लड़के भी आपस में मार-पिटाई, धौल-धप्पा , गाली-गलौज जो भी कुछ कर रहे हैं, खुरदरा व्यवहार, वह भी वहीं से आ रहा है।

लेकिन हमने दोस्ती की छवि वही बना रखी है जो लड़के और लड़के के बीच में होती है। जब लड़की और लड़के के बीच में उस प्रकार की दोस्ती नहीं हो पाती तो हम कहते हैं, 'हाँ, गंदी बात! गंदी बात!' गंदी बात क्या है? लड़के और लड़के की एक तरह की केमिस्ट्री होगी। लड़की और लड़की की एक तरह की केमिस्ट्री होगी। और लड़का और लड़की जब दोस्ती करेंगे तो एक बिलकुल तीसरी तरह की केमिस्ट्री होगी। आप इसको नहीं रोक सकते। इसमें कोई गंदी बात इत्यादि नहीं हो गया। यह प्रकृति का नियम है। आप इसमें क्या कर लोगे? वह जो तीसरी तरह की केमिस्ट्री है, उसको देखकर के यह मत सोचा करिए कि लड़के-लड़की में मित्रता नहीं हो सकती। वह मित्रता ही है पर वह एक ख़ास तरह की, अलग, अपनी तरह की मित्रता है। उस मित्रता की आप तुलना अगर लड़के और लड़कियों वाली मित्रता से करेंगे तो आप कहेंगे, ‘इधर कुछ अलग ही चल रहा है और ग़लत है, गंदा है’। ग़लत, गंदा क्या है?

आप जो कुछ भी कर रहे होते हो, तो देखो वह सेक्शुअल ही होता है। अभी हम मिलेंगे गीता में कृष्ण से, वह भी हमें बिलकुल यही समझाएँगे कि जो तुमको लग रहा है कि तुम्हारा साधारण कर्म है, वह भी प्रकृति से ही आ रहा है। तुम्हें बस पता नहीं है। और आध्यात्मिक अर्थों में प्रकृति से जो कुछ आये उसको ही सेक्शुअल कहते हैं। जो कुछ भी प्राकृतिक है वही सेक्शुअल।

समझ में आ रही है बात?

तो अब आप जिस तरीक़े से यहाँ पर खड़ी हैं, थोड़ी देर पहले वह खड़े हुए थे। वह पुरुष हैं, आप महिला हैं। आप वैसे नहीं खड़ी हैं जैसे वह खड़े थे। तो ये गंदी बात थोड़ी हो गई! भई, आपको प्रकृति ने भिन्न बनाया है, शरीर से भी, मन से भी।

हम एक छवि बना लें कि प्रश्न करते समय खड़े होने का सही तरीक़ा ये है। और उस तरीक़े की हम तस्वीर खींच लें कि ये सही तरीक़ा है ऐसे। और वह जो तरीक़ा है, वह किसका तरीक़ा है? वह पुरुष का तरीक़ा है और उस तरीक़े को फिर हम लाद दे स्त्री के ऊपर भी। हम कहें इस तरीक़े से अगर यह खड़ी हो रही हैं, ऐसे बात कर रही हैं, तब तो ठीक है, नहीं तो गंदी बच्ची। तो यह तो कोई बात नहीं हुई, इंसाफ़ भी नहीं हुआ।

सब कुछ ही सेक्शुअल होता है हमारी ज़िंदगी में, हम भले उस बात को समझें, चाहे ना समझें। आप खाना कैसे खाती हैं और एक पुरुष कैसे खाना खाता है, इसमें बहुत अंतर होगा, सेक्शुअल है न वह। कोई नहीं मानेगा, खाने में भी सेक्स होता है। फूड पॉर्न की बात नहीं कर रहा। पर आप साधारण दाल चावल खा रहे हो, वह भी एक सेक्सुअल एक्टिविटी है। आपकी सेक्शुअलिटी निर्धारित कर रही है आप खाना कैसे खाओगे। यह बात कोई नहीं मानेगा। कहे, ‘कैसा आदमी है? गंदा आदमी है। इसके दिमाग़ में सेक्स ही सेक्स घूमता है। दाल चावल खा रहे हैं, उसको बोल रहे सेक्स है’। पर ऐसा है। और आप यदि ऐसा नहीं देख पा रहे तो इसलिए है क्योंकि आप की आँखों पर पट्टी बंधी है।

हॉस्टल में लड़कियाँ रहती हैं, लड़के रहते हैं। आप किसी लड़के कमरे में जाइए, वहाँ देखिए क्या है। वहाँ कमरा खोजना पड़ेगा, कबाड़ हटाओगे, गोदाम साफ़ करोगे तो कमरा दिखाई देगा। 'अच्छा, कमरा है!' पंखा मिलेगा बिस्तर के नीचे। और वहाँ वह किसी ख़ास उद्देश्य से रखा गया है। उसकी अभी चर्चा नहीं की जा सकती।

आप लड़कियों के कमरे में जाइए। वहाँ बिलकुल अलग रहता है माहौल। साफ़-सफ़ाई, बढ़िया बिस्तर सजा हुआ है उसमें एक फ्रॉगी और एक डॉगी रखा हुआ है। और लड़के जब घुसते हैं लड़कियों के कमरे में, हॉस्टल में, तो भनभना जाते हैं, दिमाग उनका आउट हो जाता है, अरे, कर क्या रखा है यह! इतनी सफ़ाई! बिस्तर हर समय चकाचक तैयार है। कहीं कुछ गंदा नहीं। पंखा ऊपर रखा हुआ है! इस से गिरी हुई बात कोई हो सकती है कि पंखा छत पर है। यह सेक्सुअल बिहेवियर (लैंगिक व्यवहार) है। इसको क्यों नहीं आप गंदा बोलते?

लड़की अगर साफ़ रखे अपना कमरा, तो बोलो न कि, “तू गंदा काम कर रही है क्योंकिसेक्स गंदी चीज़ है।" भई, वह लड़की है इसलिए साफ़ है। कुछ लड़कियाँ गंदी भी होंगी, मैं उनकी नहीं बात कर रहा। इससे वह गंदी लड़कियाँ नहीं हो गयीं; लड़कियाँ गंदी हैं, गंदी लड़कियाँ नहीं हो गयीं। कुछ लड़के भी साफ़ रखते होंगे। वह अपवाद है, वह अलग चीज़ है। मैं जो कहना चाह रहा हूँ उसकी दिशा समझिए।

हँसना भी अलग-अलग होता है। आप जैसे हँस रहे हो, महिलाएँ हैं वो कैसे हँस रही हैं, वह अलग-अलग है। उसमें कुछ तो बात सामाजिक परवरिश की और प्रशिक्षण की है कि समाज ने यह सिखाया। पर समाज नहीं भी सिखाए तो भी आप पाओगे कि हँसने तक में अंतर होता है।

देखने में अंतर होता है। एक महिला आपको बताना चाहती है कि तकलीफ़ में है, उसका एक तरीक़ा होगा। एक पुरुष आपको बताना चाहता है उसे कष्ट है, उसका बिलकुल दूसरा तरीक़ा होगा। अब आप छवि बना लो कि यही तरीक़ा होना चाहिए जिससे स्त्री अपनेआप को अभिव्यक्त करे, पुरुष भी करे, तो आप फँस जाओगे। आप ज़िंदगी को नहीं समझ पाओगे।

स्त्री और पुरुष हर मामले में बहुत अलग होते हैं। एक यूनिफॉर्मिटी की इच्छा करोगे तो ये दोनों के साथ ही नाइंसाफी है।

समझ में आ रही है बात?

सेक्शुअलिटी कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो कि शयनकक्ष में सिर्फ़ बिस्तर पर प्रदर्शित होती है। आप साधारण बैठे भी हो ना, वह भी अभिव्यक्ति है आपकी सेक्शुअलिटी की ही, बिलकुल है। समझ में आ रही है बात? और आप उससे निजात नहीं पा सकते। उससे निजात तो फिर कोई मुक्त पुरुष ही पा सकता है। जो एकदम मुक्त हो गया हो वही ऐसा होता है जो अब देह से मुक्त हो गया। जो देह से मुक्त हो गया उसको क्या बोलें, ना स्त्री है ना पुरुष है, अब वह आगे निकल गया। लेकिन हम लोग तो कोई मुक्त वग़ैरह हो नहीं गये हैं। तो हम जो कुछ भी करेंगे उसमें क्या रहेगा? उसमें रहेगी ये।

तो जब एक लड़का-लड़की आपस में दोस्ती करेंगे तो उसमें एक सेक्शुअल कोण रहेगा। और यह कोई अफ़सोस मनाने की बात नहीं है। ऐसा होना ही है। आप प्रयास कर भी लो कि ऐसा नहीं होना है तो भी ऐसा होना है। ठीक वैसे ही रहेगा जैसे लड़के और लड़के की दोस्ती भी सेक्शुअल होती है, ठीक वैसे ही। तो लड़की और लड़का भी जब मित्रता करेंगे तो उसमें सेक्शुअलिटी रहेगी।

अब यह आप पर निर्भर करता है कि उस मित्रता का उद्देश्य क्या है। अगर उद्देश्य यह है कि भैया, ज़िंदगी में ताक़त लानी है, ज़िंदगी को ज़रा साफ़-सफ़ाई से जीना है तो आप अपनी सेक्शुअलिटी को भी एक सही दिशा दोगी, उसे चैनेलाइज (दिशा देना) करोगी सही दिशा में। आप अधिक-से-अधिक बस यही कर सकते हो कि अपनी सेक्सुअलिटी चैनेलाइज कर दो। आप उसको रोक नहीं सकते, ख़त्म नहीं कर सकते, ब्लॉक नहीं कर सकते। आपके हाथ में ही नहीं है।

आपकी एक-एक कोशिका में आपका सेक्स बैठा हुआ है, ठीक। आप कुछ भी घोषित कर दें, आप कह दें मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। अभी ज़रा सा आपका सैंपल (नमूना) लिया जाए, वह सैंपल ही बता देगा यह तो स्त्री है। लो, सारा राज़ खुल गया। मुँह से क्या बोल रहे थे? नहीं जी, हम तो अपने जेंडर से ऊपर उठ चुके हैं। और यह नाखून की एक सेल (कोश) ने क्या बता दिया? है। आगे नहीं बढ़ सकते, है; नाखून ने ही बता दिया कि है। तो आगे कैसे बढ़ जाओगे?

लड़की-लड़का साथ रहेंगे तो उसमें एक सेक्सुअल डायमेंशन (लैंगिक आयाम) हमेशा रहेगा। इस बात को न नकारने से कोई फ़ायदा है, न इस बात का कोई विरोध करने की ज़रूरत है। ठीक है?

हाँ, अब आपको क्या करना है? आपको याद रखना है कि आप कौन हो। आप सारी सेक्शुअलिटी के होते हुए भी उसके केंद्र में एक चेतना हो, देह नहीं। ठीक है? आपकी देह हो सकती है महिला की हो। लेकिन चेतना तो मुक्ति चाहती है न। वह पुरुष होने से भी मुक्ति चाहती है और स्त्री होने से भी मुक्ति चाहती है।

चेतना को तो पसंद ही नहीं है कि उसके ऊपर कोई पहचान थोपी जाए। आपने चेतना पर पहचान थोप रखी है, 'वुमन वुमन' , चेतना छटपटाती है। कहती है क्यों वुमन बन कर जीना है।

चेतना को आपने बोल दिया 'अमीर-अमीर' या 'गरीब-गरीब' या कुछ भी बोल दिया चेतना को, किसी भी तरह की पहचान, आईडेंटिटी , परिचय पसंद ही नहीं है। उसे मुक्ति चाहिए। हर चीज से मुक्ति चाहिए। तो यह याद रखते हुए दोस्ती करनी है। साथ में लेकिन आप कर लो दोस्ती, आपका इरादा भले ही यह है कि मुक्ति चाहिए, लेकिन दोस्ती करने तो यह शरीर ही गया है न, इसी को लेकर गये हो। अपना परिचय देंगे, "मैं यह हूँ, ये मेरा नाम है।" वह भी अपना परिचय देगा, "यह मेरा नाम है।" अब वह नाम में ही आपका जेंडर भी आ गया। तो क्या करोगे?

यही जो प्रश्न है, यह समूचे दर्शन का, फिलोसोफी का केंद्रीय विषय है – चेतना में और प्रकृति में—प्रकृति माने समझ लो शरीर—चेतना में और प्रकृति में सही सम्बन्ध क्या रखना है? क्योंकि एक ओर चेतना को प्रकृति से मुक्ति चाहिए, दूसरी ओर चेतना प्रकृति के बगैर अकेली कहीं घूम-फिर भी नहीं सकती।

आप ये कर सकती हैं क्या कि एक लड़के से मिलने जा रही हूँ, शरीर घर पर छोड़ दिया, चेतना वहाँ पहुँच गयी, सामने बैठ गयी। अब चेतना को भी जहाँ जाना है, वह आश्रित तो वह शरीर पर ही है। आप उसके सामने बैठेंगे, आप जो भी बात करेंगे, लेकिन सामने उसका शरीर है, इधर आपका शरीर है। और शरीर है तो शरीर अपनी हरकतें भी करेगा और उसकी हरकतें सिर्फ़ बाहरी नहीं होतीं, भीतरी भी होती हैं। शरीर है तो चेतना को भी प्रभावित करता है। हमारी मुक्त चेतना तो है नहीं। हमारी चेतना तो हमारे देह से प्रभावित रहती है। ठीक है?

तो क्या करना है? दुनियाभर के जितने दर्शन हैं, विशेषकर भारतीय दर्शन, सब ने इस प्रश्न पर बहुत गहराई से ग़ौर किया है। पुरुष में और प्रकृति में, पुरुष माने चेतना, मेल (पुरुष) नहीं। चेतना में और प्रकृति में सही सम्बन्ध क्या होना चाहिए? तो उनमें आपस में बड़े मतभेद रहे हैं। किसी ने इस तरीक़े की बात करी, किसी ने दूसरे तरीक़े की बात करी। लेकिन एक बात पर सबकी सहमति रही है, क्या? बोले, प्रकृति से मुक्ति तो चाहिए, क्योंकि मुक्ति नहीं मिलती तो बड़ी तकलीफ़ है। लेकिन वह मुक्ति प्रकृति के माध्यम से ही मिलेगी। यह हुई बात! जिससे मुक्ति चाहिए उसी के माध्यम से मिलेगी। तो सेक्शुअलिटी से मुक्ति भी सेक्शुअलिटी के माध्यम से ही मिलेगी।

तो कोई पुरुष है जिससे आपको मित्रता करनी है, आप यह कामना या यह उम्मीद नहीं रख सकतीं कि आप उससे बहुत मित्रवत हो जाएँगी लेकिन रिश्ते में कोई सेक्सुअल एंगल नहीं रहेगा; रहेगा, बिलकुल रहेगा। लेकिन वह जो दूसरा पुरुष है वह वैसा ही चुनिए कि सेक्सुअल एंगल के रहते हुए भी वह आपको धीरे-धीरे सेक्शुअलिटी से आज़ादी की तरफ़ ले जाए। आप यह कर सकते हो। यह बिलकुल तनी रस्सी पर चलने जैसी बात है। बड़ा मुश्किल है क्योंकि सेक्शुअलिटी ऐसी चीज़ है जो दलदल जैसी भी हो सकती है, कि एक बार उस में कदम रखा तो फिर धँसते ही चले गए।

लेकिन जिन्होंने जाना है उन्होंने कहा है, देखो, उससे बच नहीं सकते,अवॉइड (टाल) कर नहीं सकते। हाँ, उसको चैनेलाइज (दिशा देना) कर सकते हो। साथी तो तुम चुनोगे। तुम्हारे भीतर जो यह बैठा हुआ है, यह देह और यह पशु और यह प्रकृति, यह तुमको मजबूर कर देगा, तुम्हें जाना तो पड़ेगा ही किसी विपरीत लिंगी की ओर। लड़की हो तो लड़के की तरफ़ जाओगे, लड़के हो तो लड़की की तरफ़ जाओगे। और जब जाओगे तो उसमें तुम्हारा छुपा या प्रकट इरादा सेक्शुअल ही होगा। पाखंड करने की कोई ज़रूरत नहीं, साफ़-साफ़ मान लो।

जब एक लड़की लड़के की ओर जाती है, जब एक लड़का लड़की की ओर जाता है तो उसमें कहीं-ना-कहीं एक छुपी हुई सेक्शुअल भावना होती है। यह कोई पाप नहीं हो गया। यह बात प्राकृतिक है। यह बात शरीर की है।

तो जानने वालों ने फिर क्या समझा? उन्होंने कहा, ठीक है, तुम्हें जाना ही है किसी लड़के की ओर तो कम-से-कम ऐसे लड़के की ओर जाओ, भले ही सेक्सुअल मोटिव (प्रेरणा) से जा रहे हो पर ऐसे लड़के की ओर जाओ जो धीरे-धीरे तुम्हें सेक्शुअलिटी से पार ले जाए। खोजनी ही है कोई लड़की तो ऐसी खोजो न जो भले ही देह से लड़की दिखती हो, पर एक मुक़ाम पर आकर तुम्हें देह से जितना ज़्यादा हो सके उतनी आज़ादी दिला सके।

समझ रहे हो बात को?

लेकिन यह काम मुश्किल होता है। मुश्किल होता है इसलिए बहुत कम लोग इसमें सफल हो पाते हैं। फिर भी काम क्या है, वह मैंने आपको बता दिया। यह तो सब छोड़ दीजिए कि मेरी एक महिला मित्र है लेकिन मेरे लिए वो पुरुष बराबर है। अगर आपकी महिला मित्र है जिनसे आप पुरुष जैसा ही बर्ताव कर रहे हो, तो आप अपने मित्र के साथ भी अन्याय कर रहे हो। क्योंकि पुरुष नहीं हैं, वह महिला हैं। थोड़ा देख-समझकर उनसे व्यवहार करो। एक महिला के साथ वही व्यवहार नहीं कर सकते जो एक पुरुष के साथ किया जाता है।

यही बात महिलाओं पर लागू होती है। आपके जीवन में जो भी पुरुष है वह आपकी सहेली नहीं है। आप सहेलियों के साथ पचास तरीक़े की बातें करेंगी, यह करेंगी, वह करेंगी। वह बातें आप पुरुषों के साथ करेंगे, पुरुष भनभना जाते हैं। क्या बोल रही है? क्यों बोल रही है? जो बात है सीधे बोल न। उनको नहीं समझ में आता। लेकिन लड़कियों को यह रहता है कि यह मेरी सहेली बन जाए।

बंदे बोलते हैं कि लेट हर बी वन ऑफ अस गायज़ (उस लड़की को थोड़ा लड़कों जैसा बनने दो)। वह गाय नहीं बन सकती; वह लड़की है, समझो। तुम कितनी भी कोशिश करो। तुम उसे सिगरेट पिला दो, तुम उसे लड़कों के परिधान पहना दो, ठीक है? तुम सब कुछ उसका वैसे ही कर दो व्यक्तित्व में जैसा कि पुरुषों का होता है, तो भी लड़का नहीं बन सकती। और यह न तो लज्जित होने की बात है, ना इसमें कोई पाप या अपराध हो गया। हम ऐसे हैं। हम गर्भ से ऐसे ही पैदा होते हैं। इसमें कोई घबराने, शर्माने कि बात नहीं है।

पुरुष अगर आँसू बहा दे तो उसका एक मतलब होता है। महिला अगर आँसू बहा रही है तो उसका दूसरा मतलब होता है। अब एक छवि अगर बना ली कि आँसू माने यह, तो फँस जाओगे। अन्याय कर दोगे। बात आ रही है समझ में?

मीरा को ही देखो न! बहुत आगे निकल गयी हैं अध्यात्म में। लेकिन अभी भी कृष्ण को कह क्या रही हैं? पति ही तो कह रही हैं। वह जो स्त्री बैठी है उससे थोड़े ही मुक्त हो पायीं। पर उन्होंने यह कहा कि चलो, स्त्री हूँ तो पति चाहिए। लेकिन पति फिर कृष्ण बराबर ही चाहिए। और अगर कृष्ण मुझे इधर अपने आसपास, अपने राज्य में, घर परिवार में नहीं मिल रहे हैं, तो दूर वाला ही सही।

कृष्ण को पति बनाया, यह बात तो ठीक है। पर इस बात पर भी ग़ौर करिए कि कृष्ण को पति ही बनाया, सहेली नहीं बनाया। क्योंकि सहेली नहीं बना सकतीं, क्योंकि महिला हैं। महिला को पुरुष चाहिए। तो महिलाओं को पुरुष चाहिए होगा। पुरुषों को महिलाएँ चाहिए होंगी। जब पुरुष चाहिए हों तो मीरा को याद कर लो, कि कृष्ण चाहिए। पुरुष तो चाहिए लेकिन कृष्ण से नीचे वाला नहीं। जब महिला की ज़रूरत पड़े तो भी आप यही याद कर लीजिए कि ठीक है, महिला तो चाहिए, क्योंकि देह कि यही पुकार है, 'महिला चाहिए, महिला चाहिए।' लेकिन फिर कोई ऐसी नहीं चलेगी, ऐरी गैरी, नथ्थू खैरी। एक दम होना चाहिए, एक स्तर होना चाहिए। उसके नीचे हम हाथ नहीं रखेंगे।

हम सेक्शुअलिटी को समझते नहीं है। हम सेक्शुअलिटी को जीवन का एक छोटा सा हिस्सा मानते हैं। यही करते हैं न हम? किसी से आप मिलते हो तो उससे पूछते हो, हाव इज योर सेक्स लाइफ ? (आपका लैंगिक जीवन कैसा है?) सेक्स लाइफ माने कुछ नहीं होता; लाइफ इज सेक्स (जीवन ही सेक्स है), सब कुछ सेक्शुअल ही होता है, सब कुछ।

जो सड़क की परिभाषा है सेक्स की वह एक एक्ट (क्रिया) की है; एक कृत्य, एक घटना। वह घटना जब घट जाती है, कृत्य जब होता है तो आप कहते हैं सेक्स हुआ। नहीं, जिन्होंने जाना है, मनीषी हैं, मनोवैज्ञानिक हैं, उनसे आप पूछेंगे तो कहेंगे, एवरीथिंग इस सेक्सुअल (सबकुछ लैंगिक होता है),राइट फ्रॉम बर्थ टिल डेथ, एक्जिस्टेंस इटसेल्फ इज सेक्सुअल (जन्म से लेकर मृत्यु तक, समग्र अस्तित्व ही लैंगिक है)।

नब्बे वर्ष का एक व्यक्ति भी सेक्शुअल है, दो महीने का एक बच्चा भी सेक्शुअल है। खाना भी सेक्शुअल है, साँस लेना भी सेक्शुअल है। यहाँ तक कि आप जिनको धार्मिक कृत्य बोलते हैं, सुनने में अटपटा लगेगा, वो भी सेक्शुअल ही हैं। बस वो प्रच्छन्न सेक्शुअलिटी हैं। एक शब्द होता है, मुमुक्षा के विपरीत होता है 'जिजीविषा'। जिजीविषा माने क्या होता है? जीने की इच्छा। अध्यात्म में जिजीविषा ही कामुकता है। ये जो जीने की इच्छा है न, मूल कामुकता इसी में निहित है। यही लिबिडो (कामेच्छा) है। द लिबिडेनस अर्ज टू कैरी ऑन, लिव ऑन, एक्सिस्ट फॉर एवर (सदा अस्तित्वमान रहने की प्रबल इच्छा)। इससे छूट के कहाँ जाओगे और क्यों जाना है?

भारत इस मामले में बड़ा बेहिचक रहा है। भारत ने कभी सेक्स को न तो त्याज्य समझा, न अपमान की वस्तु समझा। कहा, 'यह तो है। उसको छुपाना, दबाना क्या है।' क्यों? क्योंकि भारत में गहराई रही है। भारत में समझ रही है। जो हल्के लोग होते हैं और नासमझ, वो जैसे कुछ नहीं समझते, वैसे ही सेक्स को नहीं समझते। हमने सब समझा है। हमें कोई आवश्यकता नहीं थी कि जीवन की यह जो बिलकुल केंद्रीय बात है, हम उसकी उपेक्षा करें या पर्दा डालें।

आपने अपने अवतारों की मूर्तियाँ देखी हैं? वो कैसी हैं? सब सुंदर, सब देह से आकर्षक। कुछ नहीं, बात स्पष्ट है। आपने अपनी देवियों की मूर्तियाँ देखी हैं? हमने अपने अवतार, अपने देवी, अपने देवता कभी वृद्ध दिखाये हैं अस्सी साल के? सब युवा और सब अति आकर्षक। छुपाने की क्या बात है, ऐसा ही है। देवियों को हम माँ बोलते हैं। माँ तो किसी भी आयु की हो सकती हैं। पर हमने उनको माँ बोल कर भी बहुत युवा दिखाया है। यह बात भारत के बोध की गहराई का द्योतक है। ठीक है?

तो मैंने दो बातें बोलीं। पहली, लड़की-लड़के में वैसी दोस्ती नहीं हो सकती जैसी लड़के-लड़के और लड़की-लड़की में होती है। वहाँ तो जब भी आप मित्रता वग़ैरह करोगे तो उसका एक नया प्रकार होगा और किसी भी तरह की मित्रता में, कैसे भी सम्बन्ध में सेक्शुअलिटी तो होगी ही होगी। वह अनिवार्य है। उससे आप पीछा नहीं छुड़ा सकते।

तो फिर हमें करना क्या है? हमने कहा, सही सिलेक्शन चैनेलाइजेशन। किसके साथ हो, किसकी संगत में जा रहे हो, उसका चयन ठीक होना चाहिए, बड़े विवेक से होना चाहिए। और जिसके भी साथ जा रहे हो, उसके साथ अपने सम्बन्ध को दिशा क्या देनी है, इसमें बड़ा अनुशासन और बड़ी सजगता होनी चाहिए। तो चयन, सिलेक्शन और चैनेलाइजेशन। ठीक है? सेक्स से नहीं बच सकते, उसको बस चैनेलाइज कर सकते हो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories