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वेदान्त के प्रमुख सूत्र

Acharya Prashant

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वेदान्त के प्रमुख सूत्र

1. अहं ब्रह्मास्मि — "मैं ब्रह्म हूँ" (बृहदारण्यक उपनिषद्, प्रथम अध्याय, चतुर्थ ब्राह्मण, श्लोक क्रमांक १०)

2. तत्त्वमसि — "वह ब्रह्म तू है" (छान्दोग्य उपनिषद्, अध्याय ६, अष्टम खण्ड, श्लोक क्रमांक ७)

3. अयम् आत्मा ब्रह्म — "यह आत्मा ब्रह्म है" (माण्डूक्य उपनिषद्, अध्याय १, श्लोक २)

4. प्रज्ञानं ब्रह्म — "प्रज्ञान ही ब्रह्म है" (ऐतरेय उपनिषद् १/२)

5. सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् — "सब ब्रह्म ही है" (छान्दोग्य उपनिषद्, अध्याय ३, चतुर्दश खण्ड, श्लोक १)

6. सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन — "सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं" (मुण्डक उपनिषद्, तृतीय मुण्डक, प्रथम खण्ड, श्लोक ६)

7. एकमेवाद्वितीयं (एकं एवं अद्वितीयं) — "ब्रह्म ही एक मात्र सत्ता है। उसके अतिरिक्त कोई अन्य दूसरी सत्ता नहीं है।" (छान्दोग्य उपनिषद्, अध्याय ६, द्वितीय खण्ड, श्लोक १)

8. असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय — "मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से मुझे अमरत्व की ओर ले चलो।" (बृहदारण्यक उपनिषद्, अध्याय १, तृतीय ब्राह्मण, श्लोक २८)

9. तत्त्वमेव त्वमेव तत् — "वह तुम ही हो, तुम वही हो" (कैवल्योपनिषद्, श्लोक १६)

10. न सम्द्रसे तिस्थति रूपम् अस्य, न कक्सुसा पश्यति कस कनैनम — "उसे कोई देख नहीं सकता, उसको किसी की भी आँखों से देखा नहीं जा सकता" (श्वेताश्वतर उपनिषद्, अध्याय ४, श्लोक २०)

11. नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो — "यह आत्मा बलहीनों के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती।" (मुण्डक उपनिषद्, तृतीय मुण्डक, द्वितीय खण्ड, श्लोक ४)

12. ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर — "ओ३म। हे दिव्य संकल्पशक्ति! स्मरण कर, जो किया था उसे स्मरण कर! हे दिव्य संकल्पशक्ति, स्मरण कर, किये हुए कर्म का स्मरण कर।" (ईशोपनिषद्, श्लोक १७)

13. विद्यया विन्दतेऽमृतम्‌ — आत्मा स्वयं अमर है, और मनुष्य को अमर बनने के लिए केवल उसे जान लेने की आवश्यकता है। (श्लोक अनुसार अर्थ - विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है।) (केनोपनिषद्, द्वितीय अध्याय, श्लोक ४)

14. नाल्पे सुखमस्ति भूमैव सुखं भूमा त्वेव विजिज्ञासितव्य — "छोटे और सीमित रहने में कोई सुख नहीं, विशाल होने में ही सुख है। विशाल बनो!" (छान्दोग्योपनिषद्‌, अध्याय ७, खण्ड २३, श्लोक १)

15. मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः — 'मन' ही मनुष्यों के बन्धन और मोक्ष का कारण है (ब्रह्मबिंदूपनिषद्, श्लोक २)

16. ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते — "वह (अज्ञात ब्रह्म) पूर्ण है, यह (प्रतीत ब्रह्मांड) पूर्ण है; यह पूर्णता उस पूर्णता से उद्भूत हुई है" (शांतिपाठ, ईशावास्य उपनिषद्)

17. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति — "उठो, जागो, और श्रेष्ठ जनों के पास जाकर बोध ग्रहण करो। विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना" (कठ उपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, श्लोक १४)

18. रसो वै सः। रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति — "यह (अस्तित्व) जो बहुत अच्छी तरह तथा सुन्दरता से रचा गया है यह वस्तुतः अन्य कुछ नहीं, इस अस्तित्व के पीछे छिपा हुआ आनन्द, रस ही है। जब प्राणी इस आनन्द को, इस रस को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं आनन्दमय बन जाता है (तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्ली अथवा द्वितीय खण्ड, अनुवाक ७, श्लोक १)

19. तत्सत्यं स आत्मा — "वही सत्य है, वही आत्मा है" (छांदोग्य उपनिषद्, अध्याय ६, खण्ड ८, श्लोक ७)

20. नाहं कालस्य, अहमेव कालम — "मैं समय में नहीं हूँ, समय मुझमें है" (महानारायण उपनिषद्, अध्याय ११, श्लोक १४)

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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