संयोगों के खेल को आत्मा नहीं बनाते || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)

Acharya Prashant

5 min
897 reads
संयोगों के खेल को आत्मा नहीं बनाते || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, मेरा प्रश्न सच्ची ख़ुशी को लेकर है। जैसे मैंने कोई कामना करी, और अगर वो पूरी नहीं होती है, तो उससे जो फ़्रस्ट्रेशन , जो दिमाग में मम्बलिंग या ओवरथिंकिंग (अधिक सोचना) होती है, बाद में इसको लेकर एक वॉइड (खालीपन या रिक्तता) बन जाता है और वो वॉइड कहीं-न-कहीं भरने की इच्छा होती है – या तो ज़्यादा खाना खाकर या फिर सम्बन्ध बनाकर या कोई ऐसा लक्ष्य बनाकर जिसमें अपनेआप को और व्यस्त रख सकूँ।

आचार्य प्रशांत: तो ये तो अच्छा है न, दूसरा कोई लक्ष्य बनाओ न! बस जो दूसरा बने वो पहले जैसा न हो, पहले से बेहतर हो। कामना अगर अतृप्ति देती है, हार देती है, तो ये अपनेआप में कोई बुरी बात थोड़े ही है! अब उससे बेहतर कामना करो, और फिर और बेहतर।

प्र: सर, लेकिन उससे कम्प्लीटनेस नहीं आ रही है।

आचार्य: क्या, किससे नहीं आ रही है? पिछली कामना से न?

प्र: जी सर।

आचार्य: अगली से आएगी न, करो कोशिश! उससे भी न आए तो और ऊँची वाली से करो। बस ये ग़लती मत करना, दोहरा रहा हूँ, कि जिस कोटि के लक्ष्य के पीछे पहले भागे थे, उसी कोटि का, उसी स्तर का, उसी तरह का कोई लक्ष्य दोबारा बना दिया; ये मत करना। अगला लक्ष्य पिछले लक्ष्य से ऊँचा हो; हार भी मिले तो ऊँची हार मिले।

प्र: सर, लेकिन फ़िक्स्ड माइंडसेट रह जाता है किसी भी चीज़ को लेकर।

आचार्य: किसी भी चीज़ का नाम बता दो, तो बात कर पाऊँ।

प्र: ऐमटेक की एक परीक्षा है जिसमें सीट्स बहुत कम रहतीं हैं, तो उसी चीज़ के लिए...

आचार्य: तो उसकी तो तैयारी करोगे, उसमें तुम्हें हार मिल गयी क्या?

प्र: जी सर, कई प्रयास हो गए हैं।

आचार्य: अच्छा। तो ठीक है, अब आगे देखो! ऐमटेक किसलिए करना चाहते थे, ऐमटेक से क्या पाना है? (देखो कि) वो और किस तरीके से पा सकते हो।

देखो, सुनो – अपनी ज़िन्दगी का आधार कभी किसी ऐसी चीज़ को मत बना लो जिस पर तुम्हारा कोई बस नहीं चलता; कि कोई नौकरी मुझे मिलेगी, वो मेरी ज़िन्दगी का आधार बनेगी। अब वो नौकरी आपको मिलेगी या नहीं मिलेगी, इस पर आपका क्या बस चलता है, बताइए? ये तो संयोग की बात है, प्रतिस्पर्धा की बात है, उसी नौकरी को पाने के लिए दस और लोग खड़े हुए हैं। आपने हो सकता है बहुत अच्छा करा हो, उन दस में से किसी ने बेहतर कर दिया हो, वो पा जाएगा, आप तो नहीं पाओगे।

ऐसी चीज़ें जो संयोग के चलाए चलतीं हैं, उनको कभी आत्मा नहीं बना लेना चाहिए, नहीं तो बड़ी तड़प उठेगी। जिसने खूब भी तैयारी कर रखी हो, क्या वो आश्वस्ति के साथ कह सकता है कि उसका चयन हो जाएगा अब किसी परीक्षा में? क्योंकि ये तो प्रतिस्पर्धी परीक्षा है न? यहाँ बात ये तो है नहीं कि भई जिस-जिस के नब्बे प्रतिशत से ऊपर आ जाएँगे वो सब चयनित हैं। यहाँ तो बात ये है कि दस सीट्स हैं, जो शीर्ष दस हैं वो घुसेंगे। अब शीर्ष दस का मतलब ये है कि आप बहुत अच्छे हो, कोई दूसरा आपसे बेहतर हो सकता है। ये तो संयोग की बात है, आपको क्या पता दूसरे क्या कर रहे हैं! ये भी हो सकता है कि आप बहुत नाकारा हों, औसत हों, लेकिन दूसरे आपसे भी नीचे के हैं तो आप चयनित हो गए।

ऐसी चीज़ों को आत्मा नहीं बनाते; नौकरी है, पढ़ाई है, या कि फ़लाना व्यक्ति अगर मुझे हाँ बोलेगा विवाह के लिए तो ही मैं जीवन को सार्थक मानूँगा। अब वो हाँ बोलेगा, नहीं बोलेगा, ये तो वो जाने; वो आपका ग़ुलाम तो है नहीं, उस पर आपका बस तो चलता नहीं। अब ऐसी चीज़ों से अगर दिल टूटने लग गया तो टूटा ही रह जाएगा फिर।

अपने मालिक आप बनो! संयोगों के खेल को आत्मा नहीं बनाते। आगे बढ़ो! शान के साथ आगे बढ़ो! देखो कि अगली चीज़ क्या कर सकते हो, और उसमें डूब जाओ। अपने आत्मसम्मान को संयोगों से मत जोड़ा करो।

बात आ रही है समझ में?

लोग जीवनभर अपने भीतर ये घाव लेकर घूमते रहते हैं – ‘फ़लानी परीक्षा में चयनित नहीं हो पाया।‘ पचास साल का हो गया है व्यक्ति, अभी भी याद कर रहा है कि अगर तीन नंबर और आ गए होते तो यूपीएससी की लिस्ट में मेरा भी नाम होता। उसका बेटा भी अब ओवरएज हो चुका है यूपीएससी के लिए, पर बाप अभी भी याद कर रहा है कि मेरा हो गया होता यूपीएससी में अगर तीन नंबर और आ गए होते तो। ये क्या है? पैंसठ साल के हो गए हैं और शराब पीकर के अपने टीनेज क्रश (किशोर प्रेम) को याद कर रहे हैं – ‘जब आठवीं में था तो जो मेरी केमिस्ट्री (रसायनशास्त्र) वाली मैम थीं...’ अब ये पैंसठ के हो गए हैं, बगल में पोते को बैठा रखा है नींबू चटाने को।

ठीक है! क्या करोगे? कामनाओं की पूर्ति को अगर जीवन का आधार बना लिया, तो बच्चे, जियोगे कैसे? और वो भी तब जब सबकी एक ही कामना हो, सबको सिलेक्शन (चुनाव) चाहिए। सबकी एक ही कामना है, पूरी हो सकती है? तो इस बात पर थोड़े ही मन छोटा करते हैं!

आगे बढ़ो!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories