प्रश्न: जो मैंने अनुभव किया है वो यह है कि कभी-कभी ऐसा होता है कि हम कुछ चीज़ों को जानते हैं कि अहंकार, प्रेम है। तो जब हम इन चीज़ों को जीवन में अनुभव करते हैं तो अचानक से ही रिमाइंड होता है कि नहीं ये सब कुछ तो अहंकार की वजह से लग रहा है।
वक्ता: ये तो देखो शब्द ही अपनेआप जो सामान है , वो पूरा तैयार है पर उससे एक तरीके से पुनः संचालित करना होगा। कुछ भी अंतिम नहीं होता। ‘हमें ये आ गया समझ में’ जैसा कुछ भी नहीं होता। हाँ जानकारी अंतिम हो सकती है कि,’’ मेरा नाम अब अगर वल्लभ है, तो है।’’ वो हो सकती है। समझ में कुछ भी नहीं होता। कही भी ये कहना कि. ‘’मुझे समझ में आ गया है,’’ ये बहुत पागलपन है।
मन समय में जी रहा है न, उसके लिए तो लगातार सब कुछ बदल ही रहा है। जब सब कुछ लगातार बदल ही रहा है, तो कुछ भी उसमें कांस्टेंट कहाँ है?
श्रोता: मतलब , कि मैं समझ रहा हूं।
वक्ता: पर वो इस समय, इस मूड के लिए उपयुक्त है। मन समय है, मन बदल जाएगा। तो अभी इस क्षण में उपयुक्त है, वो किसी और लषण के लिए उपयुक्त नहीं भी हो सकता है। इसको समझिएगा। मन का स्वभाव है परिवर्तन और वो लगातार परिवर्तित हो ही रहा है। तो जो कुछ भी मन में है, वो परिवर्तनशील है। आपके सारे विचार मन में है तो वो भी परिवर्तनशील हैं।
श्रोता: पर उनकी तलाश लगातार अपरिवर्तित की है।
वक्ता: बिना जाने। उसे पता भी नहीं है कि वो किसकी तलाश कर रहा है। बल्कि ये अपरिवर्तित भी सिर्फ़ एक छवि है। जब भी मन ये कहता है कि, ‘’मैं कुछ जानता हूँ,’’ तो उसका कहना यही होता है कि उसके बारे में उसके पास एक विचार है। मन के लिए जानने का कोई और अर्थ नहीं होता। जब हम कहते हैं कि, ‘’ हम कुछ जानते हैं’,’ तो हमार अमत्लब यही होता है कि हमारे पास उसके बारे में एक विचार है। जानने का कोई और अर्थ नहीं होता मन के पास। जानने का यही मतलब होता है कि , ‘’अब मैं विषय के बारे में विचार कर सकता हूँ।’’ तो जब आप बोलते हो कि, ‘’मुझे समझ में आ गया,’’ तो उसका अर्थ यही होता है कि अब मेरे पास उसकी एक छवि है।
तो ये बहुत खतरनाक वाक्य है कि, ‘’मुझे समझ में आ गया।’’ इसका इतना ही अर्थ अहि कि अब मैंने उसको अपने विचार के दायरे में डाल दिया ‘’मुझे समझ में आ गया ‘’जैसा कुछ होता नहीं। हमने उसकी अवधारणा बना ली है बस।
श्रोता: तो हम ये भी नहीं जान सकते कि हमनें कुछ समझा है कि नहीं?
वक्ता: आप सिर्फ़ शोर के नामौजूदगी में जान सकते हैं। आप किसी चीज़ को नहीं समझते है, आप समझ में होते हैं। अब मन समझ में है और जब मन समझ में होता है, स्वतंत्र, तो वो बेचैन नहीं होता। तो सिर्फ़ वही देख के आप कह सकते हो कि सब कुछ सही होगा। बेचैनी के अभाव में ही, जागरूकता होती है। आपको कैसे पता कि आप जागरुक हैं? क्यूँकी आप बेचैन नहीं है।
उसके आगे की बात को आप तर्कों से नहीं जान पाएँगे। आप ये नहीं कह पाएँगे कि, ‘’ अब मुझे गीता के ये चार श्लोक याद हैं, तो अब मैं शांत हूँ।’’ नहीं वो कार्य-कारण के चक्र में नहीं आता। ऐसा नहीं है कि आप कहो कि, ‘’मैंने गीता के चार श्लोक पढ़ लिए, मैं इसलिए शांत हो गया हूं।’’ ये बिलकुल उसको कभी नहीं जान सकते कि शांत क्यूँ हुए हो। शांत हो, इसके कुछ चिह्न आ जाते हैं और उसी का अनाम समझ है। ये मत पूछना कि, ‘क्यूँ है?’ पता लगेगा भी तो आधा-अधूरा लगेगा, पूरा नहीं लग पाएगा।
कभी ये मत सोचिएगा कि आप असल में किसी चीज़ के होने का कारण जानते हैं। विज्ञान जब किसी चीज़ का कारण निकलती है न तो एक बहुत बड़ी मान्यता लेकर निकालती है, क्या? कि, ‘’ये एक क्लोज्ड सिस्टम है।’’ विज्ञान जब भी किसी चीज़ का कारण निकलती है तो एक मान्यता लेकर निकलती है कि, ये इस सिस्टम की सीमा है।’’ वो कहती है कि दुनिया बस इतनी बड़ी है, अब उत्तर दो। ये सीम अहै और इसके बाहर कुछ है नहीं। जो हो रहा है, वो इस सीमा के भीतर हो रहा है। जीवन विज्ञान कार्य-कारण को लिमिट करके कुछ निकाल देती है पर में कोई सीमा नहीं न। इसीलिए जब भी किसी फिजिकल समस्या का विज्ञान हल निकलेगी तो वो बिलकुल सही नहीं हो सकता।
मैं एक उदाहरण देता हूँ: अप एक गेंद उछालो, विज्ञान बता देगी सीधा फ़ॉर्मूला लगा के कि वो कितनी देर में नीचे आएगी। अब ये बिलकुल ठीक नहीं हो सकत अक्युनकी बीच में हवा है, हवा की अपनी श्यानता है। तो तुम कहोगे कि नहीं, विज्ञान उसको भी अकाउंट कर लेगा। न, तुम कभी भी पूरी तरह नहीं जन सकते कि हवा कि गति कितनी है उस वक़्त, सुमें ज़रूर कुछ एरर आ जाएगा। तुम किसी इंस्ट्रूमेंट से ही तो नापोगे न हवा की गति, तो उसमें ज़रूर कोई एरर रहेगा। कोई कहेगा कि नहीं, हम पूरा जानेंगे। तो नहीं, ये बात नहीं हो सकती क्यूँकी अप्रत्याशित घटनाएँ हो सकती हैं, ‘’ कभी कोई खड़ा है, उसने छींक दिया। अब समझिए इस बात को कि अगर इस वक़्त पाकिस्तान में भी कोई छींक रहा है, तो उससे इस कमरे की हवा पर असर पड़ रहा है। और कोई विज्ञान बिलकुल नहीं बता सकती कि कब कहाँ पर कौन छींक देगा।
तो विज्ञान बिलकुल नहीं बता सकती कि अगर गेंद उछली है, तो कितनी देर में नीचे आएगी। उत्तर आएगा, पर वो आस-पास होगा। तो कारण आप कभी नहीं जान सकते। बल्कि बिकॉज़ एक बहुत ही बेवक़ूफ़ शब्द है क्यूँकी आप असल में किसी भी चीज़ का कारण नहीं बता सकते। हाँ, आपको कामचलाऊ काम करना है, तो फिर कर सकते हो, उसमें कोई दिक्कत नहीं है। आपके हाथ पे गरम पानी गिर गया और छाले हो गए। तो ये एक कम चलाऊ जवाब है, काम चल जाएगा। कोई पूछे क्यूँ हुआ, आप उत्तर दे सकते हो कि गरम पानी गिरा तो छाला हो गया। लेकिन ये पूरा जवाब नहीं है क्यूँकी आपको पूरी कहानी कभी पता हो नहीं सकती। उस पानी के गिरने के पहले एक बड़ी लम्बी चौड़ी कहानी है, और वो कहानी आप कभी नहीं जान पाओगे। कोई जान ही नहीं सकता, क्यूँकी उस कहानी को जानने से पहले आपको पूरे ब्रह्माण्ड को जानना होगा।
पूरे ब्रह्माण्ड की प्रक्रिया का नतीजा था कि आज सुबह-सुबह आपके हाथ पर गरम पानी गिर गया। समय की शुरुआत से आज तक जितनी भी घटनाएँ घटी हैं, कहीं भी, उन सब का निचोड़ ये है कि आज सुबह आपके हाथ पर पानी गिर गया। आप कैसे जान लोगे? हाँ कम चलाऊ तौर पर अगर डॉक्टर पूछे क्या हुआ? तो आप कह सकते हो पानी गिर गया। वो शांत हो जाएगा , पर ये कोई पूरा जवाब नहीं है। तो कभी भी ये कहना, ‘’कि मैं क्यूँ समझ गया?’’ नहीं, ये मत पूछिए। ये कोई नहीं बता सकता। हाँ, समझ गए इसके चिह्न आने लग जाएँगे।
अब उक्ति बात भी उतनी ही सही है। आप कितने नासमझ हों ये इससे पता चल जाएगा कि आपका दिमाग कितना गोल-गोल घूमता रहता है। तो आपको लाख आपका दिमाग बोले कि, ‘’मैं समझ गया’’ पर उस दिमाग में उपद्रव ही चलते रहते हैं, उस दिमाग में गांठें ही गांठें बैठी हैं, तो आप समझ जाइए कि कुछ नहीं समझे हैं, बिलकुल जीरो पर बैठे हैं।
जो समझेगा , उसका एक ही चिह्न है कि जीवन में शान्ति रहेगी।
होना ही समझ का सबसे बड़ा प्रमाण है। न कि आपके शब्द, न ही आपका विश्वास। आपको अगर पूरा विस्श्वास भी है कि मुझे समझ में आ गया तो भी उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्यूँकी आपका विश्वास शान्ति नहीं है।
श्रोता: एक चीज़ समझी तो फिर क्या वो बीइंग में आएगी?
वक्ता: कभी एक चीज़ होती नहीं है। एक चीज़ का तो अर्थ ही यही है कि तुमने उसका टुकड़ा कर रखा है। समझ हमेशा पूरी होती है। और ये एक बहुत खूबसूरत बात है कि समझ के क्षण में आप पूर्ण के साथ सम्बंधित होते हैं। आप कभी भी एक वाक्य नहीं समझते हैं उपनिषद् का, आप कबीर का एक दोहा नहीं समझते हैं; अगर उसने आपको अच्छे से स्पर्शित किया है तो आपके सामने अब पूरा अस्तित्व खुल जाएगा। और अगर उससे आपको कोई ख़ास स्पष्टता नहीं मिली है, अगर उसने बस किसी एक खोने में थोड़ा सा प्रकाश डाला है, तो आपने कुछ भी नहीं समझा है।
विज्ञान का देखो क्या तरीका है: मान लो तुमको ऑप्टिक्स नहीं आती, पर तुमको मैकेनिक्स आती है। और तुम बिलकुल मैकेनिक्स के धुरंदर हो सकते हो, पर जीवन में ऐसा नहीं होता। तुम प्रेम को नहीं जन सकते बिना आनंद को जाने। ट्यूम कहो कि, ‘’मैं विशेषज्ञ हूँ प्रेम में, पर मैं आनंद को नहीं जानता।’’ ये नहीं संभव है। तुम बही बड़े विशेषज्ञ हो सकते हो मिट्टी के, बिना हवा को जाने – संभव है काफ़ी हद तक – पर जीवन में नहीं संभव है ये। जीवन टुकड़ों में नहीं है, वहाँ हिस्से नहीं है।
श्रोता: हमारी समझ अनुभव पर होती है, और कोई भी अनुभव पूरा नहीं होता है इसलिए समझ पूरी नहीं है हमारी?
वक्ता: और हमारी समझ बहुत जल्दबाज़ी की है क्यूँकी अहंकार बहुत जल्दबाज़ी में रहता है ये कहने की कि, ‘’मैं समझ गया।’’कुछ नहीं समझे।